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‘मुझे ऑक्सफोर्ड पढ़ने जाना था’, उच्च शिक्षा पर बैन के बाद चकनाचूर हो गए अफगान महिलाओं के सपने

महिलाओं को विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाने से रोकने का फैसला एक कट्टर मौलवी के नेतृत्व वाले तालिबानी उच्च शिक्षा मंत्रालय ने लिया था. उसके बाद एक छात्रा ने दिप्रिंट को बताया कि उसका बाहर निकलना भी लगातार असुरक्षित होता जा रहा है.

नई दिल्ली में तालिबान का विरोध करती अफगानी महिलाएं | फाइल फोटो: ANI

नई दिल्ली: पिछले साल जब से तालिबान ने फिर से काबुल की सत्ता पर कब्जा किया है, अफगानिस्तान की महिलाओं को यही डर सताए जा रहा है कि उनके सपने कभी भी कुचल दिए जाएंगे. उनका डर इस हफ्ते की शुरुआत में तब सच साबित हुआ जब तालिबान ने उनके उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर पाबंदी लगा दी.

काबुल की एक 22 वर्षीय युवती, जो कॉलेज की पढ़ाई से वंचित कर दी गईं हजारों छात्राओं में से एक है, उसने कहा, ‘दुनिया में कोई भी यह नहीं समझ पाएगा कि अफगान लड़कियां पर अभी क्या गुजर रही है.’

उन्होंने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘मैं ऑक्सफोर्ड जाना चाहती थी और अर्थशास्त्र की पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन उसके लिए टीओईएफएल (एक विदेशी भाषा के रूप में अंग्रेजी का परीक्षण) को पास करना होगा. मैं कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ रही थी ताकि मैं टीओईएफएल को पास कर सकूं. लेकिन तालिबान द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बाद मैं घर पर ही फंस गई हूं. मैं दुनिया में बदलाव लाना चाहती थी, लेकिन अब सभी योजनाओं पर पानी फिर गया है.’

उसने कहा, ‘हालांकि मैं वास्तव में नहीं जानती कि अब मैं क्या करने जा रही हूं, पर कम-से-कम मैं शिक्षित तो हो गई हूं. मेरा दिल उन सभी युवतियों के प्रति व्याकुल है, जिन्हें इस मौके से भी वंचित रखा गया है.’

उसने बताया कि तालिबान शासन के तहत अफगान लड़कियों की जिंदगी वैसे ही मुश्किलात वाली रही है, लेकिन यह ताज़ातरीन ‘हुक्म’ उनके लिए आखिरी चोट के रूप में आया है. उसका कहना है कि अन्य देश भी मदद नहीं कर रहे हैं बल्कि केवल चीजों को और बदतर ही बना रहे हैं.

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इस छात्रा ने कहा, ‘भारत सरकार ने अफगान छात्रों को वीजा देना बंद कर दिया है, और अफगानिस्तान में रहने वाली अफगान महिलाओं के लिए शेवनिंग वाला वजीफा (छात्रवृत्ति) भी अब उपलब्ध नहीं है. यूरोपीय देश भी हमें स्वीकार नहीं कर रहे हैं … ऐसे समय में हमारी मदद करने के बजाय, अन्य देश शत्रुतापूर्ण रवैया अपना रहे हैं, जो बहुत निराशाजनक है.’

अफ़ग़ान विश्वविद्यालयों में महिलाओं की पढ़ाई को प्रतिबंधित करने का फैसला कट्टरपंथी मौलवी निदा मोहम्मद नदीम – जो महिलाओं की शिक्षा का लंबे समय से विरोधी रहा है – की अगुवाई वाले तालिबान के उच्च शिक्षा मंत्रालय द्वारा किया गया था. इसी मंत्रालय ने पहले लड़कियों को हाई स्कूल की पढ़ाई में भी भाग लेने से रोक दिया था, और कॉलेज स्तर के विषयों के लिए उनकी पसंद को भी सीमित कर दिया था.

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में बताया था कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में स्वास्थ्य सेवा, नौकरी और न्याय तक महिलाओं की पहुंच गंभीर रूप से सीमित हो गई है. तालिबान ने उन कानूनों को भी बहाल कर दिया है जिनके तहत महिलाओं के लिए शरीर को पूरी तरह से ढ़कने वाला बुर्का पहनना अनिवार्य है.


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अंधकारमय भविष्य

जो महिलाएं अभी अपनी डिग्री हासिल करने के लिए पढ़ाई कर रही हैं या जो इस साल सितंबर में ही कॉलेज में दाखिल हुई हैं, उन्हें भी अब अपने पाठ्यक्रम के बीच में ही पढ़ाई छोड़नी होगी. दिप्रिंट से फोन पर बात करते हुए इनमें से कुछ युवतियों ने इस बात पर अफसोस जताया कि ‘तालिबान ने उनकी एकमात्र उम्मीद भी छीन ली है.’

एक 21 वर्षीय छात्रा, जो काबुल विश्वविद्यालय से परास्नातक (पोस्ट ग्रेजुएट) की पढाई कर रही थी, ने कहा, ‘जिस रात यह आदेश आया, उस रात मुझे नींद ही नहीं आई. यह मेरे जैसे छात्रों के लिए काफी निराशाजनक है. मैं किसी विदेशी विश्वविद्यालय से पीएचडी करना चाहती थी और फिर अपने वतन की सेवा के लिए वापस आना चाहती थी, लेकिन अब यह एक दूर का सपना लगता है.’ उसे पीएचडी करने की उम्मीद के साथ-साथ पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी है.

काबुल पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की तीसरे वर्ष के एक छात्रा ने खुलासा किया कि महिलाओं के लिए अब बाहर निकलना भी बड़ी तेजी के साथ असुरक्षित होता जा रहा है.

उसने कहा, ‘इस बात पर यकीन करना बहुत मुश्किल है कि वे हमारे साथ ऐसा कर रहे हैं! इस साल की शुरुआत में, प्राथमिक स्कूल बंद कर दिए गए थे और अब उन्होंने विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया है.’ साथ ही, उसने कहा कि ‘(अफ़ग़ान) महिलाओं का भविष्य अब अंधकारमय है, लड़कियों को स्कूलों और कॉलेजों में दाखिल होने से रोक दिया जाता है, यह अफगानिस्तान में पिछले 20 वर्षों में महिला अधिकारों के आंदोलन की समूची प्रगति को समाप्त करने जैसा है.’

उसका कहना था कि शिक्षा के लिए कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहने से, अफगान महिलाएं अपने घरों में दुबक जाएंगी, और ‘मूक पीड़ित’ बन जाएंगी. तालिबान ने हमारी एकमात्र उम्मीद भी छीन ली.

लेकिन सभी महिलाओं ने अभी हार नहीं मानी है. अजहर इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन से हाल ही में कानून और राजनीति विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने वाली माहेरा रहीमी ने कहा कि हालात बदतर तो जरूर हो गए हैं, पर वह इनमें बदलाव की उम्मीद करती हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह प्रतिबंध सभी प्रोफेसरों और छात्रों के लिए एक झटके के रूप में आया. हालांकि, मुझे पक्का यकीन है कि यह बदलेगा.’

रहीमी ने कहा कि काबुल में महिलाओं के पास जो कुछ बचा है, वह है उनके पक्ष में बदलाव लाने के लिए उनकी आवाज. वे कहतीं हैं, ‘हर दिन ऐसी महिलाओं का एक नया समूह सामने आता है जो विरोध और प्रदर्शन में सड़कों पर उतरती हैं. हालांकि, हम यह उम्मीद जरूर करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां बदलाव के लिए जोर डालेंगीं, मगर फिलहाल हम शिक्षा और काम के अपने हक़ की मांग के लिए खुद आवाज उठा रहे हैं.‘

उन्होंने दावा किया कि महिलाओं द्वारा नियमित रूप से आवाज उठाने के बावजूद, उनके देश में लगी मीडिया सेंसरशिप के कारण इस विरोध को कवर नहीं किया गया.

हालांकि, अफ़ग़ान छात्राओं ने इस फैसले का विरोध किया है, लेकिन तालिबान ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल किया है. पश्तो-भाषा वाले रेडियो चैनल ‘आज़ादी’ ने हाल ही में बताया था कि तालिबान लड़ाकों द्वारा जबरन संबंध बनाने से बचने के लिए लोग अपनी छोटी-छोटी बेटियों की उनसे शादी कर रहे हैं.

पिछले महीने आई एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान के विशेषज्ञ रोक्सन्ना शापोर और रमा मिर्जादा ने लिखा था कि नए महिला विरोधी कानून ‘स्वयं के लायक शिक्षा की उनकी भावना को कुचल रहे हैं और खुद के लिए, अपनी बहनों या बेटियों के लिए और अफगानिस्तान में सभी महिलाओं के लिए भविष्य के विकल्पों को बंद कर रहे हैं.’

भारत ने इस प्रतिबंध की निंदा की

गुरुवार को एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान भारतीय विदेश मंत्रालय ने (अफगानिस्तान में) महिलाओं की उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध की ख़बरों पर अपनी चिंता व्यक्त की.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘भारत ने अफगानिस्तान में महिला शिक्षा के मकसद का लगातार समर्थन किया है. हमने हमेशा से एक ऐसे समावेशी और प्रतिनिधि सरकार की स्थापना के महत्व पर जोर दिया है जो सभी अफगानों के अधिकारों का सम्मान करती है और उच्च शिक्षा तक पहुंच सहित अफगान समाज के सभी पहलुओं में भाग लेने के लिए महिलाओं और लड़कियों के समान अधिकार को सुनिश्चित करती है.‘

पिछले साल अगस्त में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता हथियाए जाने के बाद विश्वविद्यालयों को नए नियमों को लागू करने के लिए मजबूर किया गया था, जिसमें अलग-अलग लिंग के छात्रों के लिए अलग-अलग कक्षाएं आयोजित करना भी शामिल था; साथ ही महिलाओं को अबाया जैसी पोशाक और उनके चेहरे को ढंकने वाले परिधान पहनने के लिए कहा गया था.

(अनुवाद: राम लाल खन्ना | संपादन: ऋषभ राज)

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