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‘लास्ट टॉर्च’ — कैसे बुर्का पहनी दो बहनें अफगान तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध की आवाज़ बन गईं

‘लास्ट टॉर्च’ नाम के तहत, अफगानिस्तान की बहनें कठोर तालिबान शासन को चुनौती देने और दूसरों को उनके साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए संगीत को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं.

बहनों ने अब तक सात गाने रिलीज़ किए हैं | एक्स/@NilofarAyoubi
बहनों ने अब तक सात गाने रिलीज़ किए हैं | एक्स/@NilofarAyoubi

नई दिल्ली: दो बहनों ने सोशल मीडिया पर ‘लास्ट टॉर्च’ नाम से एक संगीत आंदोलन शुरू करके अफगानिस्तान में संगीत पर तालिबान के प्रतिबंध को खारिज कर दिया. नीले बुर्के से अपनी पहचान छिपानी वाली इन बहनों ने नए तालिबान शासन के तहत महिलाओं के उत्पीड़न, असंतुष्ट कैदियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में एक गीत गाया.

तालिबान ने अगस्त 2021 में सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और इस्लामी कानून (शरिया) लागू किया जिसने देश भर में महिलाओं के अधिकारों को लगभग खत्म कर दिया. मध्य एशियाई देश में संगीत पर भी बैन लगा दिया गया था.

असल में RadioFreeEurope/Radio लिबर्टी ने बताया कि विश्व स्तर पर ऐसा करने वाला यह एकमात्र देश है. जुलाई 2023 में तालिबान की तथाकथित नैतिकता पुलिस ने पश्चिमी शहर हेरात से म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स और सभी टूल्स भी जब्त कर लिए और उन्हें आग लगा दी.

इस पृष्ठभूमि में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा करने के कुछ दिनों बाद बहनों ने अपना पहला गीत जारी किया. तालिबान की वापसी से पहले उन्होंने कभी कोई कविता नहीं लिखी थी, छोटी बहन शकायेक ने बीबीसी को बताया, “तालिबान ने हमारे साथ यही किया.”

उन्होंने कहा, “इसलिए हमने खुद को लास्ट टॉर्च कहने का फैसला किया. यह सोचकर कि हम कहीं नहीं जा पाएंगे, हमने घर से गुप्त विरोध शुरू करने का फैसला किया.”

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बहनों ने अब तक सात गाने जारी किए हैं, सभी में वे नीले बुर्के के पीछे हैं. शुरुआत में वे दूसरों द्वारा लिखे गए गीतों गाती थीं, लेकिन तब से उन्होंने अपने खुद के गीत लिखना शुरू कर दिया है.

उनका एक गीत, दारी में गाया गया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर साझा किया गया, जो अफगानिस्तान की महिलाओं की पीड़ा और व्यथा को दर्शाता है.

उनके गीतों ने वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है, प्रशंसकों ने गीतों की अपनी प्रस्तुतियां साझा की हैं, कभी-कभी छद्मवेश में भी.

बीबीसी के मुताबिक, बहनों ने अपनी सुरक्षा के लिए पिछले साल अफगानिस्तान छोड़ दिया था.

काबुल पर कब्ज़ा करने के एक महीने के भीतर, तालिबान ने महिला मामलों के मंत्रालय का नाम बदलकर उपदेश और मार्गदर्शन और सदाचार के प्रचार और बुराई की रोकथाम मंत्रालय कर दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नया मंत्रालय उसी इमारत से संचालित होता है, जहां कभी महिला मामलों का मंत्रालय हुआ करता था.

उसी महीने, तालिबान अधिकारियों ने कक्षा 6 से ऊपर या लगभग 13 वर्ष की आयु की लड़कियों के स्कूलों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया. शासन का मानना है कि कक्षा 6 से ऊपर की लड़कियों को स्कूलों में जाने की अनुमति देना इस्लामी धार्मिक कानून की उनकी व्याख्या का अनुपालन नहीं करता है.

अगले साल तालिबान ने जिम, पार्क और स्विमिंग पूल जैसे सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया. दिसंबर 2022 में उन्होंने महिलाओं के यूनिवर्सिटी जाने पर प्रतिबंध लगा दिया. उस साल महिलाओं को यूनिवर्सिटी परीक्षाओं में बैठने की अनुमति दी गई, लेकिन प्रतिबंध के बाद उन्हें स्कूली शिक्षा शुरू करने की अनुमति नहीं दी गई.

अंतर्राष्ट्रीय निंदा के बावजूद, काबुल पर नियंत्रण रखने वाले शासन ने अभी तक अपने कार्यों में नरमी नहीं बरती है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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