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योगी कैबिनेट के विस्तार में एक महीना और लगने की संभावना – इसमें क्या है रुकावट?

22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में राम लला की मूर्ति की 'प्राण प्रतिष्ठा' के बाद यूपी में कैबिनेट विस्तार होने की संभावना है. मंत्रिपरिषद में 7 पद खाली हैं.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ | फाइल फोटो: ANI

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ कैबिनेट के बहुप्रतीक्षित विस्तार में कम से कम एक महीने की देरी हो सकती है. सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यह निर्माणाधीन राम मंदिर में 22 जनवरी को अयोध्या में मंदिर राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही होगा.

यूपी के मंत्रिपरिषद में अभी सात जगहें खाली हैं, जिनकी कुल संख्या 60 है.

हालांकि, कहा जाता है कि बीजेपी आलाकमान की इच्छा के अनुसार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और घोसी के पूर्व विधायक दारा सिंह चौहान को शामिल करने के लिए योगी अनिच्छुक थे, क्योंकि उन्होंने 2022 विधानसभा चुनाव के पहले उनकी सरकार से अलग होकर भाजपा के प्रतिद्वंद्वियों से हाथ मिला लिया था.

कहा जाता है कि दोनों का अपने समुदायों के बीच प्रभाव है, जो यूपी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंतर्गत आते हैं.

समाजवादी पार्टी (सपा) ने आरोप लगाया है कि कई मुद्दों पर भाजपा के राज्य और केंद्रीय नेतृत्व के बीच मतभेदों के कारण कैबिनेट विस्तार में देरी हो रही है, लेकिन भाजपा ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि यह कवायद सीएम के फैसले के अनुरूप होगी.

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यूपी बीजेपी के सूत्रों ने स्वीकार किया कि सीएम इन दोनों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के इच्छुक नहीं हैं, लेकिन देरी के लिए इस तथ्य को जिम्मेदार ठहराया कि विस्तार को लेकर काफी बदलाव होने की संभावना है.

यूपी बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, “राजभर और चौहान दोनों ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया, विपक्ष में शामिल हो गए और एनडीए में लौट आए. सीएम ने इसकी सराहना नहीं की और खासतौर पर चौहान को कैबिनेट में शामिल करने के खिलाफ हैं क्योंकि वह इस साल सितंबर में घोसी उपचुनाव हार गए थे.”

नेता ने कहा, “हालांकि, राजभर और चौहान को केंद्रीय नेतृत्व के कारण एनडीए में शामिल किया गया था और उन्हें कैबिनेट में शामिल किया जाना होगा क्योंकि उनके पास दिल्ली की मुहर है और वे कई जिलों में प्रभाव रखने वाले दो प्रमुख समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं.”

उन्होंने कहा, विस्तार में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि चुनाव पूर्व आकलन के बाद जब कैबिनेट विस्तार होगा तो अधिक चेहरों को शामिल किए जाने की संभावना है और विभाग भी बदले जाएंगे.

यूपी बीजेपी के एक अन्य नेता ने कहा कि पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी और अन्य समुदायों से अधिक चेहरों को शामिल कर सकती है, खासकर सपा द्वारा ‘पिछड़े दलित अल्पसंख्यक’ समुदायों (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) कम्युनिटीज़ पर ज़ोर देने की पृष्ठभूमि में.

नेता ने कहा, “पार्टी सभी मंत्रियों के प्रदर्शन का आकलन कराएगी और सरकार में और चेहरे जोड़ जाने की संभावना है. कुछ मंत्रियों को हटाया जा सकता है और कुछ के विभाग बदले जा सकते हैं.”

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र ने कहा कि कैबिनेट विस्तार ‘खर मास’ अवधि की समाप्ति के बाद ही हो सकता है, जिसे हिंदुओं द्वारा कोई नया कार्य शुरू करने के लिए शुभ नहीं माना जाता है.

इस बार 16 दिसंबर 2023 से शुरू हुआ है और 15 जनवरी 2024 तक रहेगा. चूंकि अयोध्या में राम मंदिर में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होनी है, इसलिए कैबिनेट विस्तार के काम में और ज्यादा देरी हो सकती है.

खर मास की अशुभ अवधि समाप्त होने के बाद ही कैबिनेट विस्तार की संभावना है. उसके बाद, मुख्य फोकस राम मंदिर में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा पर रहेगा.”

राजभर ने शुक्रवार को सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और उनसे कैबिनेट विस्तार पर फैसले में तेजी लाने को कहा.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी निर्णय ‘दोनों पक्षों (केंद्रीय बीजेपी नेतृत्व और यूपी सीएम) के समझौते’ के बाद लिया जाएगा.

राजभर ने कहा कि वह 29 दिसंबर को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलेंगे और उसके बाद ही कैबिनेट विस्तार की तारीख के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ बता पाएंगे.


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NDA में वापसी

राजभर ने अप्रैल 2019 में योगी कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद, राज्य में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखी जाने वाली सपा के नेतृत्व वाले महागठबंधन के हिस्से के रूप में 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव लड़ा था. वह इस साल जुलाई में एनडीए में लौट आए.

2022 में घोसी से चुने गए चौहान ने पहली योगी सरकार में मंत्री के रूप में भी काम किया, लेकिन जनवरी 2022 में दो अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी के साथ इस्तीफा दे दिया.

तीनों सपा में शामिल हो गए, जिसे सत्तारूढ़ दल के लिए एक झटके के रूप में देखा गया.

उन्होंने इस साल 15 जुलाई को यूपी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और 17 जुलाई को फिर से बीजेपी में शामिल हो गए.

राजभर ने कई इंटरव्यू में कहा है कि दोनों को उनके शामिल होने से पहले योगी कैबिनेट में मंत्री पद का आश्वासन दिया गया था.

इस साल अक्टूबर में दिल्ली में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ बैठक के बाद राजभर ने कहा था कि कैबिनेट विस्तार की तारीख 7 नवंबर के बाद स्पष्ट होगी.

इस महीने की शुरुआत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के कुछ दिनों बाद, इस कवायद पर कुछ भी कहे बिना, राजभर ने कहा कि मंत्रिपद उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है और “कुछ चीजें तय थीं”.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि आदित्यनाथ दलबदलुओं को शामिल करने के खिलाफ रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि राजभर और चौहान ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के आदेश पर एनडीए में वापसी की है, जिससे इन दोनों को मदद मिल सकती है.

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख शशिकांत पांडेय ने कहा, “विधानसभा चुनाव के बाद जब कैबिनेट का गठन हुआ, तो यह देखा गया कि योगी के पसंदीदा चेहरे कैबिनेट में नहीं दिखे.”

“ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया गया और एके शर्मा को ऊर्जा मंत्री बनाया गया. हालांकि, चूंकि भाजपा आमतौर पर ऐसे मतभेदों को मैनेज करती है, इसलिए इन्हें दबा दिया गया. यह सही है कि अपने ढुलमुल रवैये और बार-बार पार्टी बदलने के कारण चौहान और राजभर सीएम की पसंद नहीं हैं, लेकिन चूंकि दोनों ओबीसी समुदाय से आते हैं, इसलिए उन्हें कैबिनेट में शामिल किए जाने की पूरी संभावना है क्योंकि वे अपने-अपने समुदाय के बड़े चेहरे हैं.”

पांडेय ने कहा, राजभर समुदाय 10-15 जिलों में प्रभाव रखता है, खासकर पूर्वांचल क्षेत्र में, जहां भाजपा को सपा से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, “चौहान भी अपने समुदाय के एक [प्रमुख] चेहरे हैं, जिसकी कई जिलों में अच्छी-खासी आबादी है.”

उन्होंने कहा, “हालांकि केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के बीच खींचतान दिखाई दे सकती है, लेकिन बीजेपी की ओबीसी पहुंच और सभी समुदायों को एक साथ लेने की कोशिश के कारण दोनों नेताओं को शामिल किए जाने की संभावना है.”

‘केंद्र और राज्य बीजेपी के बीच मतभेद’

सपा ने दावा किया है कि बीजेपी के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के बीच काफी मतभेद हैं और इससे न सिर्फ कैबिनेट विस्तार बल्कि राज्य सरकार के अन्य फैसलों में भी देरी हो रही है.

सपा प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने दिप्रिंट को बताया, “भाजपा के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के बीच कई मतभेद हैं और यह हाल के दिनों के कई घटनाक्रमों से स्पष्ट है, चाहे वह राज्य के स्थायी डीजीपी और मुख्य सचिव की नियुक्ति हो, ‘धोखाधड़ी’ करने वाले संजय शेरपुरिया की गिरफ्तारी हो, जिन्हें माना जाता था दिल्ली में पार्टी के कुछ नेताओं का करीबी है, और उसके बाद कानपुर में एक व्यापारी के परिसर पर आईटी छापे.”

भाटी ने कहा, ”इन मतभेदों के कारण कैबिनेट विस्तार भी रुका हुआ है.”

बीजेपी ने इन आरोपों से इनकार किया है, यूपी पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि कैबिनेट विस्तार सीएम के फैसले के मुताबिक होगा.

यह पूछे जाने पर कि क्या राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद कैबिनेट विस्तार की संभावना है, उन्होंने कहा कि यह समारोह निस्संदेह हाल के भविष्य में होने वाला सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, केवल पार्टी नेतृत्व ही जानता है कि विस्तार कब होगा.

उन्होंने कहा, “मीडिया इस बारे में विश्लेषण कर सकता है लेकिन केवल नेतृत्व ही जानता है कि निर्णय कब लिया जाएगा.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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