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UP में वरिष्ठ नागरिक जल्द ही अपने बच्चों से ‘नाखुश’ होने पर उन्हें घर से कर सकेंगे बेदखल

समाज कल्याण विभाग का प्रस्ताव माता-पिता के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के नियमों में संशोधन करना चाहता है, जिसके तहत बच्चों को अपने बुजुर्गों की देखभाल करने की आवश्यकता होती है. ड्राफ्ट जनवरी में दोबारा पेश किया जाएगा.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता की | फोटोः एएनआई

लखनऊ: समाज कल्याण विभाग का एक नया मसौदा प्रस्ताव उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नागरिकों को नए अधिकार दे सकता है. अगर इस मसौदे को कैबिनेट की मंज़ूरी मिल जाती है तो “अपने बच्चों से नाखुश” वरिष्ठ नागरिक पुलिस की सहायता के जरिए अपने बच्चों को अपनी संपत्ति से बेदखल करने कर पाएंगे.

यह प्रस्ताव माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के राज्य नियमों में यूपी राज्य विधि आयोग (यूपीएसएलसी) द्वारा सुझाए गए संशोधनों पर आधारित है. इस अधिनियम में बच्चों या रिश्तेदारों को “वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण” करने की आवश्यकता होती है. उनका “दायित्व” ऐसे नागरिकों की “ज़रूरतों” को पूरा करना है ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें.

राज्य सरकारों के पास अधिनियम को लागू करने के लिए नियम बनाने और न्यायाधिकरण बनाने का अधिकार है. उत्तर प्रदेश ने 2014 में अपने नियम बनाए.

अप्रैल 2021 में, यूपीएसएलसी ने अधिनियम के नियम संख्या 22 को बदलने की सिफारिश की, जो जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को अधिनियम के कर्तव्यों और शक्तियों को पूरा करने के लिए अपने अधीनस्थ एक अधिकारी को नियुक्त करने की शक्ति देता है.

आयोग ने तब सुझाव दिया था कि यदि बच्चे/रिश्तेदार अपने माता-पिता की उपेक्षा करते हैं या उन्हें उनकी संपत्ति से बाहर करना चाहते हैं, तो माता-पिता संपत्ति से बेदखल करने के लिए जिलाधिकारी – जो कि न्यायाधिकरण का प्रमुख होता है – के पास आवेदन कर सकते हैं.

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समाज कल्याण विभाग ने इन सिफारिशों के आधार पर एक मसौदा प्रस्ताव तैयार किया और इसे कई बार कैबिनेट में पेश किया, आखिरी बार यह मसौदा दो महीने पहले पेश किया गया था.

यूपी समाज कल्याण विभाग के मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया कि नियमों के मुताबिक यदि माता-पिता अपने बच्चों से नाखुश हैं, तो वे डीएम को आवेदन देकर उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं.

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, इसमें सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) ऐसे बच्चों को माता-पिता की संपत्ति से बेदखल कर सकता था, लेकिन इसमें एक कमी यह थी कि इस बारे में कोई जिक्र नहीं था कि निर्देश को कौन लागू करेगा. अब, संशोधन स्थानीय प्रशासन को स्थानीय पुलिस से ऐसे बच्चों/रिश्तेदारों को उनकी संपत्तियों से बेदखल करने के लिए कहने की शक्ति देगा.”

विशेष रूप से, जब दो महीने पहले कैबिनेट के समक्ष मसौदा प्रस्ताव पेश किया गया था, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विभाग से उन स्थितियों के लिए समाधान निकालने को कहा था, जहां माता-पिता और बच्चे पैतृक संपत्ति पर रहते हैं.

असीम अरुण ने दिप्रिंट को बताया, “समाधान पर काम किया जा रहा है और प्रस्ताव अब से तीन सप्ताह बाद कैबिनेट के समक्ष फिर से पेश किया जाएगा.”

यह पूछे जाने पर कि किन शर्तों के तहत स्थानीय अधिकारियों को बच्चों/रिश्तेदारों को उनके माता-पिता के घर से बेदखल करने की शक्ति दी जाएगी, विभाग के प्रधान सचिव डॉ. हरिओम ने कहा कि न सिर्फ तब जबकि बच्चे/रिश्तेदार उनका भरण-पोषण करने से इनकार करते हैं बल्कि यदि माता-पिता उनसे नाखुश हैं तो भी वे उन्हें बेदखल कर पाएंगे.“

बुधवार को उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि इस प्रस्ताव को कैबिनेट से मंज़ूरी मिलना बाकी है.


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पैतृक संपत्ति का क्या होगा?

समाज कल्याण विभाग का प्रस्ताव यूपीएसएलसी की सिफारिश पर आधारित है, कि यदि बच्चे/रिश्तेदार अपने माता-पिता का भरण-पोषण नहीं कर पाते या माता-पिता उनसे नाखुश हैं, तो माता-पिता उस बिक्री विलेख (Sale Deed) या उपहार विलेख (Gift Deed) को रद्द कर सकते हैं जिसके द्वारा उन्होंने संपत्ति हस्तांतरित की थी. और वे सिविल कोर्ट में जाए बिना उन्हें संपत्ति से बेदखल करने के लिए आवेदन कर सकते हैं.

गुरुवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, यूपीएसएलसी के पूर्व अध्यक्ष, आदित्य नाथ मित्तल, जिनकी अध्यक्षता में सिफारिशें अप्रैल 2021 में राज्य सरकार को सौंपी गई थीं, ने कहा कि सिफारिश के पीछे मुख्य उद्देश्य बच्चों/रिश्तेदार द्वारा माता-पिता की देखभाल और रखरखाव सुनिश्चित करना था.

उन्होंने कहा, “यह देखा गया है कि कई मामलों में बच्चे/रिश्तेदार या तो अपने माता-पिता का भरण-पोषण नहीं करते हैं या उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं.”

एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में, माता-पिता को गैरेज में रखा जाता है या वृद्धाश्रम में भेज दिया जाता है.

उन्होंने कहा, “हमारी सिफारिशें दिल्ली उच्च न्यायालय के नवंबर 2018 के फैसले पर आधारित थीं कि माता-पिता द्वारा बच्चों/रिश्तेदारों को संपत्ति का हस्तांतरण रद्द किया जा सकता है यदि वे उनकी देखभाल नहीं करते हैं.”

मित्तल ने कहा, “यूपीएसएलसी की सिफारिशों में सुझाव दिया गया है कि ऐसे मामलों में जहां माता-पिता ने बिना ज्यादा सोचे-समझे बच्चों को उपहार विलेख या बिक्री विलेख के माध्यम से अपनी संपत्ति हस्तांतरित कर दी है और उनके बच्चों द्वारा उनका भरण-पोषण नहीं किया जा रहा है या वे उनसे नाखुश हैं, तो माता-पिता केवल स्थानीय डीएम की अध्यक्षता वाले ट्रिब्यूनल में आवेदन करके संपत्ति स्थानांतरण को रद्द कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें सिविल कोर्ट का रुख नहीं करना पड़ेगा.”

ऐसा इसलिए था, क्योंकि उन्होंने बताया, कि सिविल अदालत का दरवाजा खटखटाने पर पैसा लगेगा, और माता-पिता आमतौर पर बुढ़ापे में इसे वहन करने में असमर्थ होते हैं. “ऐसे मामले में, माता-पिता को अदालत की फीस और अन्य कानूनी खर्चों का भुगतान नहीं करना होगा.”

मित्तल के अनुसार, पिछली कैबिनेट बैठकों में, विभाग को पैतृक संपत्ति जो कि जो दादा-दादी द्वारा बच्चों को दी जाती है और माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति नहीं है, उसकी शर्तों के प्रावधानों पर काम करने के लिए कहा गया था.

उन्होंने कहा, “दादा-दादी से मिली संपत्ति पर पोते-पोतियों का वैधानिक अधिकार होता है. क्योंकि ऐसी संपत्ति माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति नहीं है, यह भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और राजस्व अधिनियम के तहत कवर की जाएगी.”

क्या हो अगर माता-पिता अन्य कारणों से नाखुश हैं?

सुल्तानपुर के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए, जिसकी मां ने इस साल अगस्त में अपने परिवार को घर से बेदखल करने के लिए एक आवेदन दायर किया था, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि उस मामले में, मां नाखुश थी क्योंकि उस व्यक्ति ने अपने से किसी दूसरी जाति यानि अंतर्जातीय विवाह किया था. लेकिन डीएम ने निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता को घर और दुकान से बेदखल कर दिया जाए.

अदालत ने कहा था कि, जबकि याचिकाकर्ता अपनी पत्नी के साथ केवल एक कमरे में रहता था और दुकान उसकी आजीविका का एकमात्र स्रोत थी, घर के बाकी हिस्से पर उसकी मां का कब्जा था, जो याचिकाकर्ता की विवाहित बहनों के साथ रह रही थी.

इसमें लिखा था कि मां को दुकानों से प्रति माह 26,500 रुपये किराया मिलेगा. याचिकाकर्ता को फैमिली कोर्ट द्वारा उसके माता-पिता के पक्ष में दिए गए गुजारा भत्ते के रूप में प्रति माह 4,000 रुपये का भुगतान करने के लिए भी कहा गया था.

ऐसी स्थितियों के बारे में बात करते हुए, मित्तल ने बताया कि जिन स्थितियों में माता-पिता अंतर्जातीय विवाह आदि जैसे कारणों से अपने बच्चों/रिश्तेदारों से नाखुश हो सकते हैं, उन पर आयोग द्वारा विचार नहीं किया गया है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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