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सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर सिक्किम में क्यों भड़का विरोध, कैसे दो राजनीतिक दल इसे भुनाने में जुटे

शीर्ष अदालत के टैक्स छूट संबंधी अपने एक फैसले से सिक्किम-नेपालियों के लिए ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणी ‘विदेशी मूल के लोग’ हटा लिए जाने के बावजूद चुनावी राज्य में हिंसक विरोध जारी है.

गंगटोक में एमजी मार्ग पर एससी अवलोकन के खिलाफ प्रचार करते युवा | फोटो: उर्जिता भारद्वाज, दिप्रिंट टीम

गंगटोक: सुप्रीम कोर्ट ने टैक्स छूट पर 13 जनवरी को सुनाए अपने एक फैसले से सिक्किमी-नेपाली लोगों के संदर्भ में ‘विदेशी मूल के लोग’ वाली टिप्पणी को हटाने का आदेश दिया है. हालांकि, इससे पहले ही इस टिप्पणी को लेकर सिक्किम में विरोध भड़क चुका था.

शीर्ष कोर्ट ने ओल्ड सेटलर्स एसोसिएशन ऑफ सिक्किम की तरफ से टैक्स छूट की मांग वाली याचिका पर फैसला सुनाया था. सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को लेकर विरोध, हड़ताल, पथराव की घटनाओं के साथ-साथ सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) और विपक्षी सिक्किम डेमोक्रेटिक पार्टी (एसडीएफ) के बीच झड़पें भी हुईं.

1975 के बाद—जब एक जनमत संग्रह के बाद तत्कालीन स्वतंत्र राज्य सिक्किम का भारत में विलय हुआ था—यह पहला मौका है जब राज्य ने इस तरह की हिंसक झड़पें देखी हैं.

पिछले दो हफ्तों में राज्य में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं, पथराव की कम से कम एक दर्जन घटनाएं हुई हैं और पूर्व मुख्यमंत्री और एसडीएफ विधायक पवन कुमार चामलिंग पर कथित तौर पर हमला हुआ है. सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने भी ‘बाहर से आए भाड़े के लोगों’ की तरफ से हमले किए जाने का दावा किया है.

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पथराव करके एसडीएफ के मुख्य कार्यालय की खिड़कियां और शीशे आदि तोड़ दिए जाने के बाद से यह एकदम जीर्ण-शीर्ण नज़र आ रहा है. जब दिप्रिंट ने कार्यालय का दौरा किया, तो वह काफी हद तक सुनसान मिला. पार्टी के कुछ सदस्य ज़रूर हड़बड़ाहट में फोन कर रहे थे, वे नेपाली में बात कर रहे थे और कुछ कानूनी दस्तावेज़ छांट रहे थे.

एसडीएफ कार्यालय, गंगटोक की टूटी खिड़कियां | फोटो: उर्जिता भारद्वाज, दिप्रिंट

पार्टी अध्यक्ष चामलिंग सहित अधिकांश एसडीएफ सदस्य एक अन्य पुरानी इमारत, ‘एनेक्स सी’ में डेरा डाले थे और अपनी अगली कार्रवाई पर चर्चा के लिए पार्टी की बैठक शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे.

एसडीएफ के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘हमने कभी नहीं सोचा था कि सिक्किम में कहीं आने-जाने के दौरान सावधान रहना होगा और छिपना भी पड़ सकता है.’’ पार्टी दफ्तर के अंदर प्रसारित एक वीडियो में अज्ञात बदमाशों को कार्यालय पर पथराव करते दिखाया गया है. एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘वीडियो अब वायरल हो गए हैं, लोगों को पता होना चाहिए.’’

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के उस खास हिस्से—जिसे सिक्किम के वरिष्ठ राजनेताओं ने ‘आपत्तिजनक’ और ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया है—को हटा दिया है, बावजूद इसके राज्य में गतिरोध और अशांति बनी हुई है. गौरतलब है, सिक्किम में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और इसमें एसकेएम और एसडीएफ के बीच सीधे मुकाबले के आसार हैं.

टैक्स छूट के मुद्दे पर एसकेएम और एसडीएफ आमने-सामने हैं. एसडीएफ नेताओं का दावा है कि पुराने बसे भारतीयों को सिक्किम की आबादी से बाहर न मानने और उन्हें कर छूट की अनुमति देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला राज्य में निहित विशेष अधिकारों से इतर एक कदम है.

एसडीएफ नेताओं को लगता है कि राज्य में भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल एसकेएम सिक्किम के मौजूदा दर्ज को घटाने की कोशिश कर रहा है. राज्य को संविधान के अनुच्छेद 371-एफ के तहत विशेष दर्जा प्राप्त है, जैसे जम्मू-कश्मीर को अगस्त 2019 से पहले अनुच्छेद-370 के तहत हासिल था.

एसडीएफ की केंद्रीय समिति के वरिष्ठ नेता और पार्टी के मुख्य प्रवक्ता एम.के. सुब्बा ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘दोनों ही टिप्पणियों में समस्या है. हम राज्य के विशेष दर्जे से छेड़छाड़ नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने ‘विदेशी मूल’ के संदर्भों को हटा दिया है, लेकिन बाकी का क्या? सबसे पहले से बसे लोगों को उसी कर व्यवस्था में शामिल करना भी मौजूदा प्रावधानों को बदलने का एक तरीका है.’’

इसके जवाब में एसकेएम नेताओं का कहना है कि एसडीएफ के बयान एक ‘चाल’ है जो चामलिंग की तरफ से चुनाव से पहले सिक्किम के लोगों को सामुदायिक आधार पर बांटने के लिए चली जा रही है.

राज्य के कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री कुंगा नीमा लेप्चा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘‘अदालत की गई टिप्पणियां दुर्भाग्यपूर्ण थीं, लेकिन विपक्ष इस पर राजनीति कर रहा है, जबकि सिक्किम की पहचान को संरक्षित रखने के लिए सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों को मिलकर काम करना चाहिए.’’

पांच विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे मंत्री ने आगे कहा, ‘‘राज्य सरकार ने यह सुनिश्चित करने के हरसंभव उपाय किए हैं कि ऐसी की घटनाएं दोबारा न हों. हमने इन मुद्दों पर आगे चर्चा करने और स्थायी समाधान के आह्वान के लिए विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया है. अगर ज़रूरत पड़ी तो स्थायी समाधान के लिए आगे की कार्रवाई के उद्देश्य से पूर्ण कैबिनेट दिल्ली पहुंचेगी.’’


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‘सिक्किम जैसे राज्य में पहचान सबसे अहम मुद्दा’

सिक्किम में विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं. 2019 में 25 साल तक एक पार्टी के शासन के बाद राज्य ने एसकेएम को सत्ता सौंपने का फैसला सुनाया. 32 सीटों में से प्रेम सिंह तमांग के नेतृत्व वाली एसकेएम ने 17 सीटें जीतीं, जबकि एसडीएफ ने 15 सीटों पर जीत हासिल की.

हालांकि, चुनाव परिणाम के तीन महीने के भीतर एसडीएफ के 12 विधायक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए, जो राज्य में पैर जमाने की कोशिश कर रही थी. अक्टूबर में तीन सीटों पर उपचुनाव हुआ था और भाजपा को दो, तमांग को एक सीट मिली. अभी, एसडीएफ के पास राज्य में एकमात्र विधायक हैं—चामलिंग और वही एसडीएफ के अध्यक्ष भी हैं.

‘विदेश मूल’ वाली टिप्पणी पर विरोध के बीच मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने रविवार को वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि राज्य एक समीक्षा याचिका दायर करेगा. गृह मंत्रालय (एमएचए) ने भी सोमवार को एक समीक्षा याचिका दायर की, जिसके बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणियों को हटा दिया. गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष संविधान के अनुच्छेद 371ए की सर्वोच्चता पर अपनी स्थिति से अवगत कराया.

सोमवार को ट्विटर पर जारी अपने बयान में एमएचए ने कहा, ‘‘भारत सरकार ने अपने इस रुख को दोहराया है कि सिक्किम की पहचान की रक्षा करने वाला संविधान का अनुच्छेद 371ए सबसे ऊपर है और इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए.’’

चामलिंग ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘‘इस स्थिति को टाला जा सकता था. सिक्किम ही संभवत: महाद्वीप का ऐसा पूर्ववर्ती राज्य है जिसने जनमत संग्रह कराया और फिर राज्य के तौर पर भारत का हिस्सा बना. कोई अदालत राज्य के बहुसंख्यकों को विदेशी कैसे कह सकती है? यह सरकार, सत्ता पक्ष की गलती का नतीजा है. उन्होंने अदालत को गुमराह किया और गलतबयानी की. सिक्किम जैसे भू-राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील राज्य में पहचान सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘सिक्किम को एक संसदीय और राजनीतिक समाधान की ज़रूरत है, जो स्थायी हो. हम चाहते हैं कि केंद्र हमें आश्वस्त करे कि इस तरह की स्थिति या किसी भी संस्थान की तरफ से इस तरह की टिप्पणी कभी नहीं आएगी. हम इसके लिए कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ेंगे.’

2011 की जनगणना के मुताबिक, सिक्किम की कुल आबादी में 75 प्रतिशत सिक्कमी नेपाली हैं.

इसमें मूल निवासियों के करीब 400 परिवार हैं और लगभग 6.7 लाख आबादी वाले राज्य में इन लोगों की कुल संख्या करीब 2,700 है. पिछली जनगणना के मुताबिक, कुल आबादी में नेपालियों की संख्या 75 प्रतिशत है, लेप्चा और भूटिया करीब 23 प्रतिशत हैं, जबकि पुराने मूल निवासी लगभग 2 प्रतिशत हैं.

सबसे पहले से यहां बसे लोगों को लगता है कि दोनों पार्टिया आगामी चुनाव के मद्देनजर मौजूदा मुद्दे को भुनाने में लगी हैं. नाम न छापने की शर्त पर ओल्ड सेटलर्स एसोसिएशन के एक सदस्य ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘याचिका 10 साल पुरानी है. हम राज्य सरकार को बतौर टैक्स 4 प्रतिशत राशि चुकाते थे, जबकि सिक्किम के बाकी निवासियों ने कभी कोई टैक्स नहीं दिया. हम यही असमानता दूर करना चाहते थे और कोर्ट चले गए.’’

गंगटोक में एक दुकान चलाने वाले एसोसिएशन के उक्त सदस्य ने कहा, ‘‘हालांकि, पूरा घटनाक्रम और कोर्ट की टिप्पणी इस तरह सामने आई है जैसे हमने कुछ गलत किया है. हमें बस अपना अधिकार चाहिए था. यह सब राजनीति और चुनाव की वजह से है, लेकिन हम यहां सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. पिछले चार दशकों में ऐसा कभी नहीं हुआ था.’’


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असुरक्षा बढ़ी, ‘स्थायी दर्जे’ की मांग

सिक्किम यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बलराम पांडे कहते हैं कि सिक्किम के लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं क्योंकि दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों ने इसकी जनसांख्यिकी को काफी हद तक बदल दिया है. पांडे ने कहा, ‘‘स्थानीयता की भावना बढ़ी है. वे चाहते हैं कि उनकी पहचान सुरक्षित रहे. राज्य सरकार के पास ‘सिक्किम सब्जेक्ट’ कहे जाने वाले इस पूर्ववर्ती राज्य के निवासियों के लिए विशेष प्रावधान है. इन निवासियों को बतौर सिक्किमी अपनी पहचान बनाए रखने के लिए सिक्किम सब्जेक्ट सर्टिफिकेट लेने की जरूरत होती है, जिनके पास यह प्रमाणपत्र होता है, उन्हें सिक्किम के मूल या असली निवासी माना जाता है.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘इस सबको देखते जो बात सबसे ज्यादा चिंता बढ़ाती है, वो राज्य के सामाजिक ताने-बाने से जुड़ी है. यदि इस मुद्दे को तुरंत और प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं किया गया, तो राज्य की संवेदनशील स्थिति और चीन और नेपाल से इसकी निकटता को देखते हुए भारत के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पन्न हो सकती है. बाहर से बड़ी संख्या में लोगों की आमद और लोगों की आजीविका पर मंडराते खतरे ने एक असुरक्षा की भावना पैदा की है और (सुप्रीम कोर्ट की) टिप्पणी ने वह भावना और भड़का दी. राज्य में अगले साल चुनाव होने हैं और दोनों पार्टियां इसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगी जिससे परेशानी और बढ़ेगी.’’

सेंट्रल गंगटोक में एमजी मार्ग और उसके आसपास युवा उद्यमी और छात्र संबंधित टिप्पणी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और ‘स्थायी दर्जे’ की मांग कर रहे हैं, ताकि फिर से इस तरह की टिप्पणियां न की जाएं.

एक युवा उद्यमी अधिश्री प्रधान ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘शीर्ष अदालत का मूल निवासियों को विदेशी कहने संबंधी टिप्पणी ने निश्चित तौर पर हमें आहत किया है. कोर्ट ने सिक्किमी की परिभाषा को ही रद्द कर दिया, जिसे अनुच्छेद 371एफ के तहत भारत के राष्ट्रपति के अलावा और किसी को बदलने का अधिकार नहीं है और वह सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही बदल सकते हैं.’’

प्रधान ने कहा, ‘‘राज्य सरकार की तरफ से कानूनी हस्तक्षेप के अलावा, हम लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना चाहते हैं और अपनी पहचान और संस्कृति की रक्षा के लिए एक आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं.’’

(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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