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चुनावी बांड पर उर्दू प्रेस ने कहा — डोनर्स की पहचान की जानकारी नहीं होने का BJP का दावा ‘एक झूठ’

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले हफ्ते के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख अपनाया.

चित्रण : सोहम सेन/दिप्रिंट
चित्रण : सोहम सेन/दिप्रिंट

नई दिल्ली: कथित आबकारी घोटाले मामले के सिलसिले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी इस हफ्ते उर्दू प्रेस में प्रमुखता से कवर की गई, लेकिन चुनावी बांड पर भारतीय स्टेट बैंक के खुलासा संपादकीय की चर्चा का विषय रहा.

19 मार्च को अपने संपादकीय में सियासत ने दावा किया कि यह संभावना नहीं है कि इन बांडों के शीर्ष लाभार्थी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपने दाताओं की पहचान नहीं पता होगी.

यह भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को पार्टी के दावे का ज़िक्र कर रहा था कि उसे “चुनावी बांड के दाताओं के नाम और जानकारी रखने की ज़रूरत नहीं थी और इस तरह पार्टी ने इन जानकारियों को नहीं रखा है”.

इसने कहा, “भाजपा के पास हर काम के लिए एक संगठित मशीनरी है, चाहे वो चुनाव हो या विपक्ष को चुप कराना हो. उनका दावा है कि वे अपने दाताओं और योगदानकर्ताओं की पहचान नहीं जानते हैं, यह एक झूठ है.”

संपादकीय में कहा गया है कि अपने डोनर्स की पहचान उजागर करना कानून द्वारा अनिवार्य नहीं है, लेकिन पारदर्शिता के लिए यह महत्वपूर्ण है. संपादकीय में कहा गया है, “वे (पार्टियां) तर्क दे सकते हैं कि वे पहचान का खुलासा नहीं करना चाहते हैं और ऐसा करने के लिए कानून के बहाने का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा होने के कारण, भाजपा सावधानी से चलने की कोशिश कर रही है.”

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इस हफ्ते जिन अन्य विषयों पर प्रमुखता से चर्चा हुई उनमें आगामी आम चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक शिविरों में उन्मादी गतिविधियां और गुजरात यूनिवर्सिटी के एक छात्रावास में नमाज़ पढ़ रहे विदेशी छात्रों पर हमला शामिल था.

दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू प्रेस में पहले पन्ने पर सुर्खियां बटोरने और संपादकीय में शामिल सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.


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केजरीवाल की गिरफ्तारी और चुनावी बांड

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस हफ्ते अपनी सरकार की अब समाप्त हो चुकी 2021-22 की शराब नीति को लेकर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे थे. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली सरकार के कई मंत्रियों — जिनमें पूर्व भ्रष्टाचार-विरोधी योद्धा केजरीवाल भी शामिल हैं — पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया है.

विपक्षी इंडिया गुट, जिसमें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी एक हिस्सा है, ने गिरफ्तारी को “विच-हंट” कहा है.

यह सब कुछ ऐसे समय में हुआ है जब चुनावी बांड एक राजनीतिक संकट पैदा कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में इस योजना को रद्द कर दिया था और बार-बार मांग की थी कि एसबीआई बांड पर पूर्ण खुलासा करे.

20 मार्च को अपने संपादकीय में रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने कहा कि एसबीआई, भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक और चुनावी बांड जारी करने के लिए अधिकृत एकमात्र बैंक, “अधूरी जानकारी” प्रदान करने में भाजपा से भी आगे निकल गया है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर SBI ने अब ये जानकारी ECI की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दी है.

संपादकीय में कहा गया, “(एसबीआई) की टैक्स चोरी की कोशिशें विफल रहीं, जिसके कारण निर्वाचन आयोग को अपनी वेबसाइट पर बांड जानकारी का खुलासा करना पड़ा. हालांकि, यह डेटा भी अधूरा और त्रुटिपूर्ण है. सेटों में विभाजित, एक में बॉन्ड खरीदने वाले व्यक्तियों और कंपनियों की सूची है, जबकि दूसरे में इन बॉन्ड से लाभान्वित होने वाले राजनीतिक दलों के नाम हैं. इस संग्रह में विसंगतियों के कारण, यह पता लगाना असंभव है कि किसने कितने बांड खरीदे और किस पार्टी को दान दिया.”


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लोकसभा चुनाव

जैसा कि अपेक्षित था, आगामी लोकसभा चुनाव को प्रमुख कवरेज मिलती रही, कुछ संपादकीय में मतदाताओं को जिम्मेदारी से मतदान करने की सलाह दी गई.

21 मार्च को “मतदाताओं का मज़ाक” शीर्षक से अपने संपादकीय में, सियासत ने राजनीतिक दलबदल की निंदा करते हुए कहा कि जिस मूल पार्टी से वे अलग हुई है, उसका दावा करने वाले राजनीतिक विभाजित समूहों की प्रवृत्ति “लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमज़ोर कर सकती है”.

संपादकीय इस हफ्ते राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक शरद पवार और उनके भतीजे और महाराष्ट्र के उप मंत्री अजीत पवार के बीच पार्टी के नाम और प्रतीक को लेकर कानूनी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का ज़िक्र कर रहा था. इस हफ्ते सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने केवल “विधायी बहुमत” के आधार पर अजित पवार गुट को आधिकारिक मान्यता देने के ईसीआई के तर्क पर सवाल उठाया.

इस बीच 17 मार्च को सहारा के संपादकीय में चुनाव से पहले नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ चेतावनी दी गई है. इसमें कहा गया है कि अब जब चुनाव की तारीखों की घोषणा हो गई है, तो चिंता है कि कुछ राजनेता और राजनीतिक दल देश में सांप्रदायिक सद्भाव को “प्रभावित” करने की कोशिश कर सकते हैं.

संपादकीय में कहा गया, “भड़काऊ या नफरत भरी टिप्पणियां की जा सकती हैं. देश के लोगों के लिए यह ज़रूरी है कि वे किसी भी तरह के उकसावे में न आएं. किसी का मोहरा न बनें. अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखें और देश और इसके लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए पूरी गंभीरता के साथ अपने वोट का उपयोग करें.”

गुजरात यूनिवर्सिटी के छात्रों पर हमला

उर्दू प्रेस ने इस हफ्ते अहमदाबाद की गुजरात यूनिवर्सिटी में नमाज़ पढ़ते समय पांच विदेशी छात्रों पर भीड़ के हमले की निंदा की. मामले में कम से कम दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

22 मार्च को सहारा के संपादकीय में इस घटना के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के बदायूं में एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा कथित तौर पर दो छोटे बच्चों की हत्या पर भी प्रकाश डाला गया. संपादकीय में कहा गया है कि दूसरी घटना का मकसद स्पष्ट नहीं है, साथ ही यह भी कहा गया है कि इससे पैदा हुआ सांप्रदायिक तनाव निष्पक्ष जांच को महत्वपूर्ण बनाता है.

संपादकीय में कहा गया, “…यह कहना गलत नहीं होगा कि दो मासूम बच्चों की हत्या के कारण दोनों समुदायों के बीच मौजूद भरोसा और विश्वास तार-तार हो गया है.”

सियासत का 18 मार्च का संपादकीय गुजरात हमले पर एक उत्तेजक टिप्पणी थी. इसने “नमाज़ी पर हमला गुजरात मॉडल है” शीर्षक वाले संपादकीय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना की गई.

संपादकीय में कहा गया कि हमला “नैतिक रूप से निंदनीय” था और यह दर्शाता है कि कैसे चरमपंथी विचारधाराओं ने युवाओं के दिमाग में ज़हर भर दिया है.

संपादकीय ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में माहौल लंबे समय से तनावपूर्ण है. 2002 में हुए दंगों ने विश्व स्तर पर भारत को शर्मिंदा किया है. विडंबना यह है कि गुजरात और उसके नेताओं को आज तक शर्म महसूस नहीं हुई. इसके बजाय, वे कुछ हद तक गर्व महसूस करते है.” इसमें हमले के लिए जिम्मेदार लोगों की शीघ्र पहचान, गिरफ्तारी और सज़ा की मांग की गई है. इसने कहा, “हालांकि, यह निराशाजनक है कि हमलावर जेल में थोड़ा समय बिताने के बाद अक्सर अपने कार्यों को दोहराने के लिए साहसी हो जाते हैं. “यह प्रवृत्ति पीड़ितों के लिए न्याय के बजाय अपराधियों को प्राथमिकता देती है, जिससे बुराई कायम रहती है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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