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त्रिपुरा में 0, मेघालय में 5—TMC को मिली सीटें ममता के ‘मिशन दिल्ली’ के लिए एक रिएलिटी चेक है

मेघालय में 2021 में कांग्रेस विधायकों के दल बदलने के कारण रातो-रात प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी टीएमसी ने राज्य में करीब 14% वोट हासिल किए है. वहीं, त्रिपुरा में इसका वोट शेयर 1% से भी कम रहा.

टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को कोलकाता में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया | एएनआई

कोलकाता: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने मेघालय की 60-सदस्यीय विधानसभा में पांच सीटें जीतकर यहां पर अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया है. हालांकि, पार्टी त्रिपुरा में एक भी सीट जीतने में नाकाम रही और ये नतीजे पार्टी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राष्ट्रीय राजनीति में आने की आकांक्षाओं के लिहाज से पर्याप्त नहीं माने जा रहे हैं.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पार्टी ने मेघालय में जहां लगभग 14 फीसदी वोट हासिल किए, वहीं त्रिपुरा में उसका वोट शेयर 1 फीसदी से भी कम रहा. इसने मेघालय में 58 और त्रिपुरा में 60 में से 28 सीटों पर चुनाव लड़ा था.

मेघालय विधानसभा के लिए मतदान 27 फरवरी को हुआ था, जिसमें 85.17 फीसदी वोटिंग हुई. एक सीट सोहियोंग के लिए होने वाला मतदान 20 फरवरी को यूडीपी उम्मीदवार एच.डी.आर. लिंगदोह के निधन के कारण स्थगित कर दिया गया.

टीएमसी ने पहली बार 2012 में मेघालय की राजनीति में कदम रखा था, लेकिन राज्य में अपना पहला विधानसभा चुनाव 2018 में लड़ा, उसने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन कोई भी जीत नहीं पाई.

2021 में 12 कांग्रेस विधायकों के पाला बदलकर टीएमसी में शामिल हो जाने से टीएमसी बिना किसी चुनावी जंग के ही मेघालय विधानसभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई थी और इसने बनर्जी को इस पूर्वोत्तर राज्य में बड़े पैमाने पर चुनाव अभियान शुरू करने को प्रेरित किया.

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नवंबर 2021 में दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा 11 मौजूदा विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में शामिल हो गए थे. वहीं बाकी के पांच कांग्रेस विधायक नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) में शामिल हो गए थे, जिससे राज्य में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया और टीएमसी सत्तारूढ़ एनपीपी के नेतृत्व वाले गठबंधन की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बन गई.

कांग्रेस ने 2018 में यहां 21 सीटें जीती थीं, लेकिन इनमें से चार पहले इस्तीफे और उपचुनाव में हार गई थीं.

हालांकि, इस बार टीएमसी को मिली कुल सीटों की संख्या कांग्रेस की तरह ही पांच रही. कांग्रेस ने यहां एक कमजोर चुनाव अभियान चलाया था जिसमें राहुल गांधी ने सिर्फ एक बार शिलांग दौरा किया और अन्य शीर्ष नेता इससे दूर ही रहे.

टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने गुरुवार को कोलकाता में एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, ‘‘कुछ भ्रम था क्योंकि कांग्रेस ने कहा कि ममता बनर्जी भी कांग्रेस में थीं. मैं पहले कांग्रेस में थी. मतदाताओं के बीच कुछ भ्रम रहा. लेकिन हम इसे ठीक कर लेंगे.’’

गुरुवार को आए नतीजों के बाद टीएमसी 26 सीटें जीतने वाली एनपीपी की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी का दर्जा बनाए रखने में विफल रही. यूडीपी 11 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है.

2018 में एनपीपी-नीत मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), यूडीपी और अन्य क्षेत्रीय दलों के समर्थन से सत्ता संभाली थी. हालांकि, इस बार सभी दलों ने विधानसभा चुनाव अलग-अलग ही लड़ने का फैसला किया था.

पार्टी की तरफ से उपलब्ध कराए गए ब्योरे के मुताबिक, चुनावों के दौरान टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने जून 2022 से 7 बार मेघालय का दौरा किया, वहीं ममता बनर्जी ने तीन बार राज्य का दौरा किया. इनमें से पहला दौरा दिसंबर 2022 में हुआ.

टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन और पश्चिम बंगाल के मंत्री मानस रंजन भुनिया को पार्टी के लिए समर्थन जुटाने और जमीनी स्तर पर इसकी पहुंच की निगरानी के लिए राज्य का प्रभार दिया गया था.


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‘राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को झटका लगा’

2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल की जीत के बाद इस पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती देने वाले प्रमुख दल के तौर पर देखा जाने लगा था. हालांकि, भाजपा ने राज्य में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाई थी, लेकिन ममता की जीत को बंगाल में अपनी पहली सरकार बनाने के लिए भाजपा की तरफ से ऐड़ी-चोटी का जोर लगाकर चलाया गया चुनाव अभियान नाकाम होने के तौर पर देखा गया.

वहीं, अपनी पार्टी की सफलता से उत्साहित ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को टक्कर देने की कांग्रेस की क्षमता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया.

उन्होंने 2021 में पार्टी के मुखपत्र जागो बांग्ला में ‘दिल्लीर डाक’ (दिल्ली की पुकार) शीर्षक से एक विशेष फीचर में लिखा, ‘‘हमने कांग्रेस के बिना मोर्चा बनाने के बारे में कभी सोचा ही नहीं और न ही कभी इस पर बात ही की. हालांकि, कांग्रेस वास्तव में भाजपा से लड़ने में बुरी तरह विफल रही है.’’

बहरहाल, टीएमसी को पहला झटका त्रिपुरा में लगा जहां 2021 के निकाय चुनावों के दौरान उसे केवल एक सीट से संतोष करना पड़ा. 2022 के गोवा विधानसभा चुनावों में पार्टी ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के साथ गठबंधन में 26 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन 40-सदस्यीय विधानसभा में एक भी सीट हासिल करने में सफल नहीं हुई.

इस बार मेघालय विधानसभा चुनाव के नतीजों पर उसकी काफी उम्मीद टिकी थीं. मेघालय में मजबूत प्रदर्शन—यहां तक कि मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल करना तक भी—टीएमसी के लिए विपक्षी खेमे का नेतृत्व करने की उसकी दावेदारी को मजबूत कर सकता था.

एग्जिट पोल में, राजनीतिक विश्लेषकों ने टीएमसी को 11 सीटों के साथ मेघालय के लिए एक त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान जताया था.

शिलॉन्ग में नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर सुष्मिता सेनगुप्ता ने मेघालय चुनाव को ‘जटिल’ करार देते हुए दिप्रिंट से कहा कि एग्जिट पोल आमतौर पर क्षेत्रीय पार्टियों को नज़रअंदाज कर देते हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘यूडीपी ने मेघालय में टीएमसी से बेहतर प्रदर्शन किया. वैसे भी रैलियां हमेशा वोटों में तब्दील नहीं होतीं. टीएमसी एक नई पार्टी है और मेघालय का चुनाव काफी जटिल है जहां आदिवासी एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में टीएमसी की छवि जिस तरह दागदार बनी है, मेघालय के लोग उससे अच्छी तरह वाकिफ हैं. पिछले एक साल में टीएमसी का नाम कथित तौर पर कई घोटालों के साथ जुड़ा है. ऐसे में, इसमें अचरज की कोई बात नहीं है कि मेघालय में टीएमसी के बढ़त हासिल करने में नाकाम रही और प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद राज्य में सिंगल डिजिट पर ही सिमटी रही. इस परिणाम के साथ, टीएमसी को अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं फिलहाल ठंडे बस्ते में ही डालनी होंगी.’’

राजनीतिक विश्लेषक सौरभ भौमिक ने भी सेनगुप्ता की राय से सहमति जताते हुए दिप्रिंट से कहा टीएमसी का प्रदर्शन बहुत ज्यादा हैरान करने वाला नहीं है और पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.

उन्होंने कहा, ‘‘एनपीपी और भाजपा ने अच्छी संख्या में सीटें हासिल की हैं और उनकी तरफ से टीएमसी उम्मीदवारों को खरीदने के लिए धन बल का उपयोग भी किया जा सकता है. टीएमसी अभी पश्चिम बंगाल तक ही सीमित है और अपने विधायक की मृत्यु के बाद सागरदिघी उपचुनाव में उसे कांग्रेस के हाथों हार का भी सामना करना पड़ा है. वह गोवा में नाकाम रही और अब त्रिपुरा और मेघालय में भी उसे कोई सफलता हाथ नहीं लगी है. इसलिए टीएमसी को एक बार फिर नए सिरे से अपनी रणनीति तय करने पर ध्यान देने की ज़रूरत है.’’

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंदोपाध्याय ने कहा कि टीएमसी ने मेघालय में अच्छा प्रदर्शन किया है. उन्होंने कहा, ‘‘टीएमसी को निराश नहीं होना चाहिए. कागजों पर तो यह पहले से ही एक राष्ट्रीय पार्टी है. टीएमसी ने मेघालय में पैठ बना ली है और अगर विपक्ष एकजुट होता, तो शायद परिणाम कुछ और हो सकता था.’’

(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

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