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जातियों के सूचीकरण के मुद्दे पर योगी की लापरवाही ने कराई थी केन्द्र और राज्य की फज़ीहत

कैसे योगी सरकार ने 17 जातियों को अनुसूचित जाति की लिस्ट में शामिल करने पर केंद्र को अंधेरे में रखा और अनजान गहलोत ने संसद में योगी को फटकार लगाई.

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संसद के बाहर थावरचंद गहलोत, फाइल फोटो | प्रवीण जैन, दिप्रिंट

नई दिल्लीः केन्द्रीय सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत ने पिछले हफ्ते मंगलवार को 17 जातियों को अनूसूचित जाति में शामिल करने को लेकर बीएसपी सांसद सतीश चंद्र मिश्रा के सवाल का जवाब देते हुए योगी सरकार को फटकार लगाई. केन्द्रीय मंत्री ने योगी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जातियों के वर्गीकरण का अधिकार केवल संसद को है राज्य सरकारें अपनी तरफ से एकतरफा फैसला नहीं ले सकती हैं.

गहलोत ने सदन मे कहा कि योगी सरकार ने 17 जातियों को अनुसूचित जाति की लिस्ट में डालते समय संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है.

गहलोत के इतना कहते ही दिल्ली से लेकर लखनऊ तक फ़ोन की घंटियां घनघनाने लगीं और सबको लगा कि केन्द्र योगी के इस फैसले के साथ नहीं खड़ा है पर दप्रिंट ने जब कड़ियों को मिलाना शुरू किया कि आखिर सरल स्वभाव के थावरचंद ने अपनी ही योगी सरकार को कटघरे में क्यों खड़ा किया तो कहानी कुछ और निकली.


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योगी सरकार द्वारा थावरचंद गहलोत को भेजा गया पत्र.दरअसल, यूपी के सामाजिक विकास मंत्रालय ने 24 जून को सभी जिलाधीश और कमिश्नर को एक चिट्ठी भेजी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की 29 मार्च 2017 के आदेश के मुताबिक़ 17 जातियों को जाति प्रमाण पत्र जारी करे. यह आदेश अखिलेश सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका के संदर्भ में आया था. चिट्ठी के मुताबिक जाति प्रमाण पत्र पाने वाली जातियों में 13 जातियां निषाद, मछुआरे, केवट समुदाय से आती हैं.

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पर योगी सरकार ने इस प्रशासनिक कदम से केन्द्र सरकार को अवगत नहीं कराया और न ही जातियों को ओबीसी और अनुसूचित जातियों की लिस्ट में शामिल करने वाली नोडल मंत्रालय सामाजिक विकास मंत्रालय को अवगत कराया. यूपी सरकार ने कोर्ट के आदेश से भी केन्द्रीय मंत्री को अवगत नहीं कराया.

योगी सरकार के फैसले को लेकर जब राज्यसभा में सतीशचंद्र मिश्रा ने सवाल उठाया तो थावरचंद गहलोत ने संवैधानिक स्थिति से सदन को अवगत कराया और संवैधानिक स्थिति यह थी कि किसी भी जाति को दूसरी जाति की सूची में डालने का अधिकार केवल केन्द्र को है.

राज्यसभा में योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर गहलोत जब कमरे में पहुंचे तो योगी सरकार का फ़ैक्स उनका इंतज़ार कर रहा था जिसकी वजह से योगी ने जाति प्रमाण देने का निर्देश जिलाधिकारियों को दिया है लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और राज्य सरकार के फैसले लेने की वजह से अनजान केन्द्रीय मंत्री योगी की खिंचाई कर चुके थे.

सामाजिक विकास मंत्रालय को यह भी नहीं पता था कि योगी इस मामले पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की हरी झंडी ले चुके हैं चूंकि इस फैसले का बड़ा चुनावी फायदा बीजेपी उठाना चाहती है पर फैसले लेने की इस कड़ी में सामाजिक मंत्रालय कहीं शामिल नहीं था और जिसकी वजह से यह पूरा राजनैतिक हादसा घटा.

क्या है संवैधानिक प्रक्रिया?

संविधान के अनुच्छेद 341 के उप वर्ग (2) के अनुसार संसद की मंज़ूरी से ही अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में बदलाव हो सकता है.

दरअसल, इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को केन्द्र को प्रस्ताव भेजना होगा और इसे लोकसभा व राज्यसभा से पारित कराना होगा. इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट में चल रही है.


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योगी के इस फ़ैसले का क्या है राजनैतिक फायदा?

लोकसभा चुनावों में यूपी में बीजेपी की प्रचंड जीत का कारण बनी ग़ैर यादव अन्य अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र देने के योगी सरकार के फैसले को राजनैतिक मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है.

योगी सरकार के इस फैसले से नौकरियों में आरक्षण का फायदा इन 17 जातियों को मिलना शुरू हो जाएगा क्योंकि ओबासी कैटेगिरी में पहले से ही प्रभावशाली और मुखर जातियां आरक्षण का फायदा उठा रहीं है. जाट, जाटव, कुर्मी की मुखरता के कारण निषाद, मछुआरा जाति को आरक्षण का वैसा फ़ायदा नहीं मिल पा रहा था जिसकी मांग लगातार वे करते रहें हैं.

योगी सरकार ने जिन 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र देने का आदेश दिया है, उनमें निषाद, बिंद, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, गौड़ व तुरहा शामिल हैं.

इनकी आबादी उत्तर प्रदेश में क़रीब 13.70 फ़ीसदी है. यूपी के प्रमुख सचिव समाज कल्याण की ओर से जिलाधिकारियों व मंडलायुक्तों को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि इस बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए और जारी किया जाने वाला प्रमाणपत्र कोर्ट के अंतरिम आदेशों के अधीन होगा. कोर्ट ने केवल इस मामले में पूर्व में दिए फैसले पर रोक को हटाया है और अंतिम फ़ैसला आना अभी बाक़ी है.

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