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BJP में शामिल होंगे शिवपाल यादव? क्या है इसकी वजह और भतीजे अखिलेश को क्यों नहीं है परवाह

शिवपाल ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले है. लेकिन भाजपा और योगी आदित्यनाथ के प्रति उनके रुख से ये अटकलें तेज हो गई हैं कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं. वह जल्द ही अयोध्या के दौरे पर भी जाएंगे.

शिवपाल सिंह और अखिलेश यादव

लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश में सियासी अफवाहों का बाजार गर्म करने में लगे हैं. पहले वह 29 मार्च को सहयोगी दलों के साथ सपा की मीटिंग से गायब रहे और फिर अगले ही दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात करने का फैसला कर लिया. दो दिन बाद, उन्होंने ट्विटर पर आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को फॉलो करना शुरू कर दिया. पिछले सोमवार उन्होंने रामायण की उस चौपाई को ट्वीट किया जिसमें भगवान राम के चरित्र को ‘परिवार, संस्कार और राष्ट्र के लिए सबसे अच्छी पाठशाला’ कहा गया है.

शिवपाल यादव क्या करने जा रहे हैं? हालांकि उन्होंने अभी तक अपना पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन भाजपा और खासकर आदित्यनाथ के प्रति उनके रुख ने अटकलों को हवा दी है कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं.

शिवपाल की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के उपाध्यक्ष रक्षपाल चौधरी ने दिप्रिंट को बताया कि शिवपाल नवरात्रि के बाद अयोध्या जाएंगे और पार्टी सूत्रों के अनुसार उसके बाद ही उनका फैसला आ सकता है.

शिवपाल के अयोध्या दौरे के बारे में पूछे जाने पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि जो लोग अब तक भगवान राम से दूर रहे और अब उनकी पूजा कर रहे हैं, उनका स्वागत है.

सपा के साथ नाराजगी की वजह

शिवपाल और उनके भतीजे अखिलेश यादव के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. वर्तमान में अखिलेश समाजवादी पार्टी के प्रमुख हैं। दरअसल इन दोनों के बीच सत्ता की लड़ाई है जिसके चलते दिसंबर 2016 में मुलायम ने अपने ही बेटे को पार्टी से निकाल दिया था। थे। ये सच किसी से छिपा नहीं है. उस समय अखिलेश राज्य के मुख्यमंत्री. हालांकि मुलायम ने 24 घंटों के भीतर ही अपने फैसले को उलट भी दिया था. तब से अखिलेश और शिवपाल के बीच झगड़ा बना हुआ है. शिवपाल ने बाद में अपना खुद का संगठन समाजवादी सेक्युलर मोर्चा खड़ा कर लिया, जिसे अगस्त 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया का नाम दिया गया.

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हालांकि पीएसपी-लोहिया ने 2019 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीती थी. लेकिन वह सपा के वोट शेयर में सेंध लगाने में कामयाब रहे. नतीजतन, सपा सिर्फ पांच सीटों पर सिमट कर रह गई और अपने तीन गढ़ों कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद को गंवा दिया.

यादव परिवार ने पिछले महीने के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सब कुछ ठीक कर लिया था. शिवपाल एक बार फिर अपनी पार्टी पीएसपी-एल के साथ भतीजे अखिलेश के साथ खड़े थे. खास बात यह है कि शिवपाल ने जसवंतनगर से सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

सपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अखिलेश ने संबंधों में आई कड़वाहट को दूर करने का फैसला यादव वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए किया था. लेकिन फिलहाल वह शिवपाल को पार्टी में बने रहने के लिए राजी करते नहीं दिख रहे हैं. शिवपाल खेमे के सूत्रों का दावा है कि उन्होंने अपने भतीजे से हाथ मिलाया क्योंकि वह ‘पार्टी (सपा) को तोड़ने’ वाले के रूप में नहीं दिखना चाहते थे.

अखिलेश शिवपाल को लेकर कितना परेशान हैं, इसका अंदाजा हाल ही की एक प्रेस वार्ता से लगाया जा सकता है: जब कुछ लोगों ने उनसे उनके चाचा के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की अटकलों के बारे में सवाल किया, तो उन्होंने उनसे कहा कि इस मुद्दे पर ‘अपना समय बर्बाद’ न करें.

रिपोर्टों से पता चलता है कि इस संकेत के बावजूद कि वह सपा के बाहर विकल्प तलाश रहे हैं, अखिलेश ने अभी तक अपने चाचा से संपर्क नहीं किया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए पूर्व सपा नेता हरिओम यादव ने दावा किया कि भाजपा शिवपाल को लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें देने को तैयार थी, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. हरिओम सिरसागंज के एक पूर्व विधायक हैं जो पिछले चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे.

हरिओम ने कहा, ‘उन्होंने कुछ गलतियां की हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘मैंने शिवपाल जी को लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा में शामिल होने की सलाह दी थी. बीजेपी उस वक्त उन्हें कुछ सीटें देने को भी तैयार थी. लोगों की नजरों में उनका सम्मान और बढ़ जाता। लेकिन उन्होंने अपने भाई के प्रति प्रेम के चलते उनकी बात नहीं मानी.’

हरिओम के अनुसार, अखिलेश एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने पिता के व्यक्तिगत समीकरणों को नहीं अपनाया और दूसरे दलों के साथ संबंधों को बेहतर करने के लिए कुछ नहीं किया.

उन्होंने कहा, ‘मुलायम जी एक चतुर राजनेता थे, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर  उन्होंने अटल जी और अन्य भाजपा नेताओं के साथ जिस तरह के संबंध साझा किए, वो बेजोड़ थे. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद  मुलायम के सभी दलों के नेताओं के साथ दोस्ताना संबंध थे’ वह आगे बताते हैं, ‘ लेकिन अखिलेश के साथ ऐसा नहीं हैं. वह एक गैर-राजनीतिक तरीके के व्यक्ति हैं। वह अपने परिवार को संभालने में असमर्थ है. उन्होंने अपने चाचा से एक साल तक बात नहीं की. ऐसा व्यक्ति राज्य या राष्ट्र कैसे चलाएगा?’

शिवपाल की चिंता

67 साल के शिवपाल को सबसे ज्यादा चिंता अपने बेटे आदित्य के राजनीतिक भविष्य की है. शिवपाल विधानसभा चुनाव में अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे. लेकिन अखिलेश ने उन्हें मना कर दिया. जिस समय यादव परिवार एकजुट था और शिवपाल को एक ‘संगठन के खास आदमी’ के रूप में जाना जाता था. तब उनका सपा और यादवों के एक वर्ग के बीच खासा दबदबा था. उसका कुछ प्रभाव आज भी देखा जा सकता है.

एक पीएसपी-एल नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक पिता होने के नाते उनकी भी यही इच्छा है कि उनके बेटे का भविष्य सुरक्षित हो जाए. फिलहाल इस बारे में बातचीत चल रही है.’

शिवपाल के एक वफादार ने बताया कि चुनाव के बाद से उन्हें नजरअंदाज किया जाता रहा है. 26 मार्च को पार्टी विधायकों की अखिलेश की बैठक में न्योता नहीं दिया गया था.

वह कहते हैं, ‘शिवपाल चुनाव के दौरान सपा के एक स्टार प्रचारक थे और उन्होंने पूरी ताकत से अखिलेश के लिए प्रचार किया था. लेकिन सपा के टिकट पर चुनाव जीतने के बावजूद उन्हें मार्च की बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया. इसे उन्होंने अपना अपमान माना और कार्रवाई करने का फैसला किया.’

राजनीतिक विशेषज्ञ ब्रजेश शुक्ला बताते हैं कि शिवपाल को पार्टी से ‘बार-बार अपमान’ का सामना करना पड़ा है और अब उनके पास कुछ विकल्प हैं. इस सबके अलावा, वह जानते हैं कि सिर्फ भाजपा की मदद से अपनी राजनीतिक पकड़ हासिल कर सकते हैं.

शुक्ला ने कहा, ‘बातचीत तो पहले ही हो चुकी होगी। इंतजार डिप्टी स्पीकर के चुनाव का है। सत्र जल्द ही बुलाया जा सकता है. वैसे भी न तो भाजपा और न ही शिवपाल , दोनों में से कोई जल्दी में नहीं हैं.‘

भाजपा में जाने पर क्या मिलेगा?

आने वाले समय में शिवपाल का भाजपा में शामिल होना महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए. इस सीट पर छह महीने के भीतर उपचुनाव होने तय हैं. आजमगढ़ सपा का गढ़ माना जाता है. मुलायम सिंह यादव ने 2014 में इसे 63,204 वोटों के अंतर से जीता था. तो वहीं अखिलेश ने 2019 में 2,59,874 लाख वोटों से इस सीट पर जीत हासिल की थी. पिछले महीने सपा ने आजमगढ़ की सभी 10 विधानसभा सीटों पर अपना परचम लहराया था.

करहल विधानसभा सीट जीतने के बाद अखिलेश ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. तब से यह सीट खाली है.

शिवपाल को क्या दे सकती है बीजेपी? इस सवाल पर हरिओम ने कहा, ‘यह पार्टी तय करेगी‘ वह आगे कहते हैं ‘क्या पार्टी आजमगढ़ उपचुनाव के आसपास कुछ चाहती है? इसके लिए आपको इंतजार करना होगा.‘

सपा को छोड़ भाजपा में शामिल हुए एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया कि शिवपाल के भाजपा में जाने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि अब अखिलेश ही पार्टी में एक मात्र पावर सेंटर है – जिसके लिए बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती को व्यापक रूप से जाना जाता है.

उन्होंने कहा, ‘यह सत्ता के लिए एक संघर्ष है. पार्टी अब वन-मैन शो होकर रह जाएगी क्योंकि यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि सपा पर शिवपाल का प्रभाव खत्म हो जाए.’

जब दिप्रिंट ने सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी से पूछा कि सपा ने शिवपाल को पार्टी में बनाए रखने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया, तो उन्होंने सवाल टाल दिया. उनके अनुसार, शिवपाल अभी भी समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. और उन्हें पार्टी व उसके सहयोगियों की बैठक में भी आमंत्रित किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘बाकी यह उनके परिवार के बीच की बात है.’ वह आगे कहते हैं, ‘उनकी लड़ाई (2016) पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर थी. लेकिन उन्हें समझ में आ गया था कि वे दोनों सपा के चिन्ह (साइकिल) के नीचे ही चुनाव लड़ेंगे.’

हालांकि उन्होंने इस आरोप से इनकार किया कि अखिलेश सपा का एकमात्र पावर सेंटर बन जाएंगे. वहीं पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि परिवार की अंदरूनी कलह का कोई अंत होता नहीं दिख रहा है.

उन्होंने कहा, ‘यह (शिवपाल के पार्टी छोड़कर जाने की अटकलें) पारिवारिक कलह का परिणाम है जो कई सालों से चल रही है’ उन्होंने बताया कि आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने शिवपाल को लखनऊ के पॉश मॉल एवेन्यू में एक प्रतिष्ठित बंगला भी आवंटित किया था। गौरतलब है कि 12 अक्टूबर 2018 को- 2019 के आम चुनावों से कुछ महीनों पहले – आदित्यनाथ सरकार ने शिवपाल को 6 लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर एक घर आवंटित किया था. यह वही बंगला है जिसे मायावती को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महीनों पहले खाली करने के लिए मजबूर किया गया था.

सपा के एक युवा नेता ने कहा कि पार्टी की नजर शिवपाल की हरकतों पर बनी हुई है, लेकिन जब तक शिवपाल कोई कदम उठाने का फैसला नहीं करेंगे तब तक उनकी तरफ से भी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.

वह कहते हैं, ‘राजनीति में संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं’.  उन्होंने आगे कहा, ‘जब तक (शिवपाल का भाजपा के साथ आना) ऐसा नहीं हो जाता है, तब तक कुछ कहना मुश्किल है.’

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