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RLD प्रमुख अब हुए ‘चौधरी जयंत सिंह’ और बड़े चौधरी, राजनीतिक रूप से इसकी कितनी अहमियत है

रालोद को उम्मीद है कि जयंत चौधरी को सभी खापों के राजनीतिक प्रतिनिधि के तौर पर मान्यता मिलने से उत्तर भारत में उनकी स्थिति और मजबूत होगी और 2022 के यूपी चुनावों में पार्टी की संभावनाएं भी बढ़ेंगी.

रस्म पगड़ी कार्यक्रम के दौरान रालोद प्रमुख जयंत चौधरी | ट्विटर/@samajwadiparty

लखनऊ: राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के प्रमुख जयंत चौधरी को अब एक नई पहचान मिल गई है- उन्हें अब चौधरी जयंत सिंह या ‘बड़े चौधरी’ के नाम से संबोधित किया जाएगा. जयंत चौधरी के लिए यह नया संबोधन उन्हें पूरे देश में खापों के नए राजनीतिक प्रतिनिधि का रुतबा हासिल हो जाने का प्रतीक है.

व्यक्तिगत स्तर और यहां तक की समुदाय के दायरे से बाहर, पहचान के इस बदलाव का एक बड़ा राजनीतिक महत्व है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद की पकड़ मजबूत है लेकिन उसे उम्मीद है कि ‘बड़े चौधरी’ के रूप में उनकी नई पहचान इस क्षेत्र से आगे उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भी उनका दबदबा बढ़ाएगी.

जयंत चौधरी को ‘बड़े चौधरी’ की ये पहचान 20 सितंबर को एक पारंपरिक ‘रस्म पगड़ी ’ समारोह में दी गई. उन्हें समुदाय के प्रमुख के तौर पर मान्यता देने के लिए सभी प्रमुख खाप छपरौली कस्बे में जुटी थीं.

यूपी के बागपत जिले का यह इलाका चौधरी परिवार की पारंपरिक सीट है. इससे पहले यह रुतबा जयंत के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह को हासिल था, जिनका इसी साल मई में निधन हो गया था और उनसे पहले अजित सिंह के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यह पद संभाल रहे थे.

उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में परिवार के मुखिया की मृत्यु के बाद परिवार या कुनबे की जिम्मेदारी सबसे बड़े जीवित पुरुष सदस्य (या जो कोई सबसे ज्यादा सम्मानित स्थान रखता हो) को सौंपने के लिए ‘रस्म पगड़ी ’ का आयोजन किया जाता है.

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खाप समारोह के संदर्भ में इसे ‘सर्व खाप रस्म पगड़ी’ कहा जाता है जिसमें देशभर के सभी प्रमुख खाप ‘समाज’ (समुदाय) की जिम्मेदारी उस व्यक्ति को सौंपने के लिए जुटते हैं जिसे ‘चौधरी’ के नाम से संबोधित किया जाता है.

चौधरी जयंत सिंह की रस्म पगड़ी, जिसमें उन्हें समाज की तरफ से खास स्थान देने के लिए एक पारंपरिक पगड़ी पहनाई गई- में यूपी, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान की 40 से अधिक खाप ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के अध्यक्ष और बाल्यान खाप के प्रमुख नरेश टिकैत और कई अन्य वरिष्ठ जाट नेता शामिल हुए.

यह समारोह चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजित सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में जयंत को औपचारिक मान्यता देने के लिए आयोजित किया गया था.

अपनी नई जिम्मेदारी के संबंध में दिप्रिंट से बातचीत में जयंत ने कहा, ‘यह एक विरासत का सम्मान करने का संदेश है. सिर्फ मुझसे जुड़ा नहीं है. यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है जो मुझे दी गई है. मेरी भूमिका उन्हें राजनीतिक आवाज देने, राजनीतिक मंचों पर उनके मुद्दों को उठाने की है. मैंने यहां जुटी भीड़ को आश्वस्त किया है कि मैं अपने पिता की तरह ही काम करूंगा. मुझे जो जिम्मेदारियां दी गई हैं उन्हें हरसंभव निभाने की कोशिश करूंगा.’

जयंत ने यह भी बताया कि वह जल्द ही अपने ट्विटर हैंडल का नाम बदलेंगे. उन्होंने कहा, ‘मेरा नाम जयंत सिंह है. लेकिन मैं जयंत चौधरी का इस्तेमाल करता रहा हूं. लेकिन अब मैं इसे ट्विटर पर भी बदलने की सोच रहा हूं.’

हालांकि, जाटों द्वारा अपने नाम के आगे चौधरी और सिंह लिखना- दोनों का ही इस्तेमाल किया जाता है लेकिन रालोद के एक पदाधिकारी के अनुसार, नाम से पहले ‘चौधरी’ का इस्तेमाल जयंत की पहचान को और ज्यादा मजबूत करेगा.

जयंत अब एक माह के लिए ‘आशीर्वाद पथ’ पर निकलने की योजना बना रहे हैं, जो गांवों के लोगों से मिलने-जुलने के लिए निकाली जाने वाली एक यात्रा है, जो 8 अक्टूबर को हापुड़ जिले के नूरपुर गांव से शुरू होगी और 30 अक्टूबर को बागपत जिले के बड़ौत में पूरी होगी. नूरपुर चौधरी चरण सिंह का जन्मस्थल है.


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रस्म पगड़ी- एक पुरानी परंपरा

बागपत की चौबीसा खाप के प्रमुख सुभाष चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद अब उनकी विरासत बेटे जयंत चौधरी को सौंप दी गई है. अब वह चौधरी जयंत सिंह के नाम से जाने जाएंगे, जैसे हम अजित सिंह को चौधरी अजित सिंह के नाम से संबोधित करते थे. खाप सदस्यों ने जयंत चौधरी के सिर पर पगड़ी बांधी (उन्हें अपना राजनीतिक प्रतिनिधि बनाने के प्रतीक के तौर पर). खापों के बीच इस पगड़ी का अपना अलग ही महत्व होता है.’

उन्होंने कहा, ‘इसमें ‘प’ का मतलब तो खुद पगड़ी ही होता है लेकिन ‘ग’ का मतलब है गरिमा और डी का आशय है डिगना (गरिमा गिरने से). इसलिए जिस व्यक्ति को यह पगड़ी पहनाई जाती है वह शपथ लेता है कि ‘पगड़ी की गरिमा को कभी गिरने नहीं देगा.’

सुभाष चौधरी ने आगे कहा, ‘यह एक पुरानी परंपरा है, जो आजादी से पहले से चलती आ रही है. विभिन्न खापों के लोग भी बड़े चौधरी को पेश करने के लिए पगड़ी लाते हैं.’

कार्यक्रम में मौजूद रहे रालोद के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि जयंत को मिली पगड़ियों की संख्या एक हजार से अधिक है और 34 जातियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम किसानों के प्रतिनिधि भी उनके प्रति अपना समर्थन जताने के लिए वहां मौजूद थे.

दिल्ली की पालम खाप के प्रमुख सुरेंद्र सोलंकी ने कहा, ‘जयंत चौधरी के परिवार का हमारे समाज (समुदाय) से बहुत गहरा नाता है. सभी खापों के बीच इस परिवार को बहुत सम्मान हासिल है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘जिसे पगड़ी भेंट की जाती है, उसे समाज या इन खापों के लोगों के लिए आवाज उठाने की जिम्मेदारी मिलती है.’

सुभाष चौधरी ने कहा, ‘खापों के बीच ‘चौधरी’ की यह उपाधि अत्यधिक सम्मान दिलाने के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी लाती है. हर खाप एक तय संख्या में गांवों का प्रतिनिधित्व करता है. उदाहरण के तौर पर चौबीसी खाप के मुखिया के तौर पर मैं 24 गांवों के लोगों का प्रतिनिधित्व करता हूं. उनके लिए मैं ‘चौधरी’ हूं, अपनी खाप पंचायतों में उनका प्रतिनिधि हूं. इसी तरह भारत की सबसे बड़े खापों में से एक पालम खाप 360 से अधिक गांवों का प्रतिनिधित्व करती है. बड़े चौधरी सभी खापों के प्रतिनिधि हैं.’

सोलंकी ने भी स्पष्ट किया कि यह मान लेना गलत होगा कि खाप केवल जाट समुदाय के लोगों से बनी होती हैं. उन्होंने कहा, ‘सभी जातियों और धर्मों के लोग खापों का हिस्सा हैं.’


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रालोद के लिए जयंत के ‘बड़े चौधरी’ बनने का क्या मतलब है?

रालोद नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों, खासकर जाटों के बीच भाजपा के खिलाफ बढ़ती नाराजगी को भुनाने की कोशिश कर रही है. पार्टी को उम्मीद है कि इससे उसे अपना जाट वोट बैंक फिर साधने में मदद मिलेगी, जिसे उसने 2014 के बाद से व्यापक स्तर पर भाजपा के हाथों गंवा दिया है.

रालोद के प्रवक्ता अनुपम मिश्रा के मुताबिक, पार्टी अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है और उसे राज्य के किसानों का पूरा समर्थन हासिल है.

उन्होंने कहा, ‘हम अभी पश्चिमी यूपी में अपना जनाधार और बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं.’

‘बड़े चौधरी’ के रूप में जयंत की नई भूमिका पर मिश्रा ने कहा, ‘पार्टी के लिए बड़े गर्व की बात है कि हमारे अध्यक्ष जयंत चौधरी को पूरे देश की तीन दर्जन से अधिक खापों की तरफ से एक और जिम्मेदारी सौंपी गई है. वह सही मायने में एक नेता हैं जो जनता के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करने का साहस रखते हैं. हम इस चुनाव में पार्टी के बेहतर भविष्य को लेकर आशान्वित हैं क्योंकि हम उनके सभी कार्यक्रमों में भारी भीड़ उमड़ती देख रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘जयंत चौधरी को पहले ही पश्चिमी यूपी में व्यापक समर्थन हासिल था लेकिन रस्म पगड़ी के इस कार्यक्रम के बाद पूरे उत्तर भारत में उन्हें सबसे शक्तिशाली राजनीतिक आवाजों में एक माना जाएगा. हमें उम्मीद है कि आने वाले चुनावों में इससे पार्टी को भी फायदा होगा.’


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