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पाकिस्तानी और बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालो, हमने अपना भगवा रंग नहीं छोड़ा है-शिवसेना

शिवसेना शुरू से ही मराठी के मुद्दे पर काम करती रही है. शिवसेना ने प्रखर हिंदुत्व के मुद्दे पर देशभर में जागरूकता के साथ बड़ा काम किया है और शिवसेना ने अपना भगवा रंग कभी नहीं छोड़ा है. और यह रंग ऐसा ही रहेगा.

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शिवसेना का चुनाव चिन्ह, फाइल फोटो.

नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के मुद्दे पर शिवसेना ने एकसाथ राज ठाकरे और भारतीय जनता पार्टी दोनों पर निशाना साधा है. अपने मुखपत्र में सामना में आज एक झंडा और एक नेता का नारा देते हुए लिखा है कि शिवसेना ने अपना हिंदुत्व का भगवा रंग कभी नहीं छोड़ा है. साथ ही यह भी बताया है कि सीएए और एनआरसी से सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि देश के 30 से 40 फीसदी हिंदुओं को भी नुकसान होगा.

सीएए पर हाहाकार

अपने संपादकीय की शुरुआत में ही राज ठाकरे की मनसे पार्टी के झंडा बदले जाने पर लिखा है ‘दो झंडों की कहानी.’ साथ ही यह भी बताया कि किस तरह राज ठाकरे ने तिलमिलाकर इस कानून का विरोध किया था. उनका कहना था कि आर्थिक मंदी-बेरोजगारी जैसे गंभीर मसलों से देश का ध्यान भटकाने के लिए अमित शाह इस कानून का खेल खेल रहे हैं और इसमें वे सफल होते दिख रहे हैं. लेकिन एक महीने के भीतर ही राज ठाकरे इस खेल का शिकार हो गए और उन्होंने ‘सीएए’ कानून के समर्थन का नया झंडा कंधे पर रख लिया है. दो झंडे क्यों? अगर किसी को निकालने और खुद को हिंदुत्व का अग्रणी बताने के लिए किसी राजनीतिक दल को अपना झंडा बदलना पड़े तो यह मजेदार है.

एनआरसी और सीएए कानून पर देश में कोलाहल मचा है और सरकार को इसका राजनीतिक लाभ उठाना है. इस कानून का नुकसान सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं बल्कि30 से 40 प्रतिशत हिंदुओं को भी होगा, इस सच को छुपाया जा रहा है. असम या ईशान्य राज्यों में हाहाकार मचा है. पूर्व राष्ट्रपति के रिश्तेदारों को राष्ट्रीय जनगणना से अलग रखा गया.

राज ठाकरे पर बरसे

सामना में शुरू से ही राज ठाकरे के मनसे पार्टी पर निशाना साधा है और लिखा है, ‘अगर देश में घुसे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को निकालना है तो निकालो, उन्हें निकालना ही चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन इसके लिए किसी को अपने झंडे का रंग बदलना पड़े तो यह फिसलती गाड़ी के संकेत हैं.’

मराठी मुद्दे पर 14 साल पहले राज ठाकरे ने अपनी पार्टी की स्थापना की लेकिन अब यह पार्टी हिंदुत्ववाद की ओर जाती दिखाई दे रही है. और इसे पार्टी का बदलना कहना ठीक ही होगा.

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‘शिवसेना शुरू से ही मराठी के मुद्दे पर काम करती रही है. शिवसेना ने प्रखर हिंदुत्व के मुद्दे पर देशभर में जागरूकता के साथ बड़ा काम किया है और शिवसेना ने अपना भगवा रंग कभी नहीं छोड़ा है. और यह रंग ऐसा ही रहेगा.’

बता दें कि पिछले दिनों राज ठाकरे के भाजपा के साथ गठबंधन की चर्चा जोरों पर थी जिसके बाद पार्टी ने अपने रंग बिरंगे झंडे को भगवा रंग में बदल दिया है और उसमें मुद्गा की कृति बनी हुई है.

नहीं गिरेगी सरकार

यही नहीं कांग्रेस और राष्ट्रवादी के साथ शिवसेना के सरकार बनाए जाने के सवाल पर भी जमकर बरसात की है. सामना में लिखा है, ‘शिवसेना ने महा विकास अघाड़ी ने सरकार बनाई है लेकिन इसे रंग बदलना कैसे कहा जा सकता है. हमने जो सरकार बनाई है वह समाज कार्य है. सरकार का उद्देश्य और नीति स्पष्ट है. सरकार संविधान के अनुसार चलाई जाएगी तथा रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, किसान और मेहनतकशों के कल्याण के लिए काम करती रहेगी.’

सामना ने यह साफ कर दिया है कि पार्टी को जनता का समर्थन प्राप्त है और पार्टी एक झंडा एक नेता के साथ 55 वर्षों से काम कर रहे ही और जो सोंच रहे हैं कि शिवसेना ने रंग बदला है तो यह सोचनेवालों के दिवालिएपन की निशानी है. उद्धव सरकार नहीं गिरनेवाली है.

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 और 2019 में गिरगिट की तरह रंग बदला है जिसकी वजह से शिवसेना भगवा रंग कायम रखते हुए महाविकास अघाड़ी में शामिल हुई और अब शिवसेना कांग्रेस-राष्ट्रवादी के साथ मिलकर सत्ता बनाकर ‘तेवर’ बदलने को तैयार नहीं है, इसका अंदाजा लगते ही हिंदुत्ववादी वोटों में फूट डालने के लिए यह साजिश रची गई है.

 

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