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पटना के पोस्टर वार से निकलते संदेश : नीतीश के सामने जातीय संकट, RJD के तेज प्रताप बने ‘शर्मिंदगी’ की वजह

एक तरफ तेज प्रताप यादव ने पोस्टर में अपने भाई तेजस्वी को शामिल नहीं किया है, वहीं दूसरी और जद (यू) के पोस्टर युद्ध ने पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के बीच की दरारों को उजागर कर दिया है.

जद (यू) नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (बाएं), और आरसीपी सिंह; राजद नेता तेज प्रताप यादव | तस्वीरें ट्विटर/पीटीआई

पटना: बिहार की राजधानी पटना में शनिवार को चस्पा किए गये राजनीतिक पोस्टरों ने सत्तारूढ़ जद (यू) के साथ-साथ मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में भी पनपती दरारों को उजागर कर दिया है.

एक ओर जहां राजद को अपने सदाबहार विघ्नसंतोषी नेता – लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव – से जूझना पड़ रहा है, वहीं जद (यू) में छिड़े पोस्टर युद्ध ने पार्टी अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और नये-नये केंद्रीय मंत्री बने आरसीपी सिंह के बीच फैलती दरारों को सबके सामने ला दिया है.

इसने ऐसी तेज अटकलों को जन्म दिया कि बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) के सुप्रीम नेता नीतीश कुमार को स्वयं हस्तक्षेप करते हुए यह स्पष्ट करना पड़ा कि उनकी पार्टी के भीतर किसी तरह का कोई मतभेद नहीं हैं.

सोमवार को पटना में संवाददाताओं से मुखातिब होते हुए नीतीश ने कहा. ’कुछ लोगों को पोस्टरों पर अपनी तस्वीरें लगवाने का चाव होता है. जब आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बने, तो उन्होंने खुद यह प्रस्ताव रखा कि ललन सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनकी जगह ले लेनी चाहिए. पार्टी के भीतर कोई मतभेद नहीं है. पोस्टर गलती से लग गया होगा.’

जदयू का पोस्टर: ललन बनाम आरसीपी

जद (यू) मे उठे इस नवीनतम विवाद के केंद्र में आरसीपी सिंह, जो केंद्रीय मंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद पहली बार 16 अगस्त को पटना आने वाले हैं, के स्वागत के लिए लगाया गया एक पोस्टर था.

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पटना स्थित जद (यू) कार्यालय के बाहर लगाए गए इस पोस्टर में नीतीश कुमार और एक निर्दलीय मंत्री सहित तरीबन एक दर्जन अन्य नेताओं की तस्वीरें थीं, लेकिन इसमें से ललन सिंह को हटा दिया गया था.

बाद में, सोमवार तक यह पोस्टर हटा दिया गया था.

राज्य जद (यू) के अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने दिप्रिंट को बताया कि यह ग़लत था और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. हालांकि केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के समर्थक इस बात से बेफिक्र लगते हैं.

जद (यू) की युवा शाखा, जिसकी ओर से यह पोस्टर लगाया था, के एक पदाधिकारी अभय कुशवाहा का कहना है, ‘यह ज़रूर एक गलती थी, लेकिन ललन सिंह की स्वागत रैली (जो उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद हुई थी) में भी आरसीपी, जो लालन सिंह के पहले जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, की कोई तस्वीर नहीं थी.’

केंद्रीय मंत्री के समर्थकों का कहना है कि ललन सिंह के समर्थकों ने 6 अगस्त को जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया था.

आरसीपी के एक समर्थक ने कहा, ‘यह पैसे और बाहुबल का एक विशाल प्रदर्शन था जिसमें एक खास जाति का वर्चस्व था. पटना को पूरी तरह से अराजकता में डाल दिया गया था, यहां तक कि कई हवाई यात्रियों की उड़ान भी छूट गई थी.’ इस समर्थक ने जोर देकर कहा कि वे 16 अगस्त को वे इससे भी बड़ा प्रदर्शन करेंगे.

जातीय समीकरणों का खेल

हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी में किसी भी तरह के दरार की आशंका को खारिज कर दिया है, फिर भी उन्हें पार्टी में एक बड़ी जातीय समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

अपनी स्थापना के बाद से हीं जद (यू) को ओबीसी समुदायों जैसे कि कुर्मी और कुशवाहा जातियों की पार्टी के रूप में जाना जाता है. नीतीश कुमार की तरह आरसीपी सिंह भी कुर्मी हैं.

दूसरी तरफ ललन सिंह एक भूमिहार है, जो एक उच्च जाति वर्ग है और परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देती आई है.

इस दरार ने अब बिहार के राजनीतिक हलकों में कई सारी अटकलों को जन्म दे दिया है कि यह पार्टी के भीतर एक उच्च जाति बनाम पिछड़ी जाति के संघर्ष को जन्म दे सकता है, जिसे नीतीश कुमार झेल नहीं सकते.

जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने दिप्रिंट को बताया कि इस तरह की धारणा झूठी है. ललन और आरसीपी दोनों नीतीश कुमार के नेतृत्व में विश्वास करते हैं.


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लेकिन फिलहाल सभी की निगाहें उस स्वागत पर टिकी हैं, जो आरसीपी सिंह को पटना पहुंचने पर मिलेगा और जिसमें कुर्मी एवम् कुशवाहा समुदाय के एक बड़े वर्ग के भाग लेने की उम्मीद है.

लालू के गुस्सैल पुत्र

दूसरी ओर राजद को पोस्टर वार के अपने खुद के संस्करण से जूझना पड़ रहा है.

इस शनिवार को तेज प्रताप यादव की अध्यक्षता में पार्टी की युवा शाखा की बैठक से ठीक पहले पटना में पार्टी कार्यालय के सामने एक पोस्टर लगाया गया था.

इसमें तेज प्रताप, लालू, राबड़ी सहित कई अन्य नेताओं की तस्वीरें थीं. लेकिन उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव, जिन्हें लालू ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर रखा है, की तस्वीर इस पोस्टर से लापता थी.

इसके बाद एक राजद कार्यकर्ता ने गुस्से में आते हुए पोस्टर पर तेज प्रताप के एक करीबी आकाश यादव का चेहरा काला कर दिया. बाद में, सोमवार तक, इस पोस्टर को हटा दिया गया और उसकी जगह वह पोस्टर लगाया गया जिसमें तेजस्वी की भी तस्वीर थी.

लेकिन इस सारे पोस्टर विवाद के बीच भी, तेज प्रताप ने अपने पिता के करीबी विश्वासपात्र नेता और राज्य राजद अध्यक्ष जगदानंद सिंह पर हमला करते हुए एक और हलचल पैदा कर दी.

राजद नेताओं को शर्मिंदा करते हुए तेज प्रताप ने जगदानंद के बारे मे कहा, ‘वह हिटलर की तरह काम करते हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं को अंदर जाने की अनुमति नहीं है. कोई भी हमेशा के लिए पद पर नहीं रह सकता.’

राजद नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि इसी कारण जगदानंद सिंह नाराज चल रहे है.

अदम्य नेता

तेज प्रताप लगातार पार्टी को शर्मसार करने के लिए जाने जाते है.

पिछले महीने भी, उन्होंने जगदानंद सिंह पर ‘उनकी उपेक्षा’ करने के लिए सार्वजनिक रूप से ज़ुबानी हमला किया था. हालांकि, सिंह के इस्तीफा देने की अटकलों के बाद दोनों ने विवाद को शांत कर दिया था.

राजद के सूत्रों ने बताया कि लालू ने स्वयं पार्टी के उम्रदराज नेता जगदानंद सिंह को फोन करके उन्हें उन्हें अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी किया. और साथ हीं तेज प्रताप को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करने की सलाह भी दी.

तेज प्रताप तलाक के एक मामले में भी फंसे हुए हैं और अपने पिता के कहने के बावजूद उन्होंने अपनी तलाक़ याचिका वापस लेने से इनकार कर दिया है.

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने दो निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के विरुद्ध अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे.

राजद के एक नेता का कहना है, ‘हालांकि पार्टी के नेताओं और मतदाताओं दोनों ने तेजस्वी को अपने नेता के रूप में स्वीकार कर लिया है, पर तेज प्रताप यह सुनिश्चित करते रहते हैं कि पार्टी को हरसमय शर्मनाक पलों का सामना करना पड़े. वह लालू जी की भी नहीं सुनते.’

बिहार में जद (यू) की सहयोगी भाजपा ने भी इस पोस्टर वार अपना मत जाहिर किया है. पार्टी की तरफ से बिहार सरकार में मंत्री सम्राट चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘ हमारे लिए, हमारी सहयोगी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पार्टी हीं है. जहां तक राजद का सवाल है, बुजुर्ग नेताओं का अपमान करना उसकी संस्कृति का हिस्सा है. जगदानंद सिंह सरीखे अभिभावक समान नेता का वहां बार-बार अपमान किया जा रहा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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