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गुजरात का आदिवासी चेहरा और 7 बार के विधायक छोटूभाई वसावा झगड़िया में पीछे, BJP उम्मीदवार आगे

अगर रुझान जारी रहा तो बीटीपी प्रमुख छोटूभाई वसावा अपना गढ़ खो देंगे, जहां से वह लगातार 7 बार चुनाव जीत चुके हैं. बेटे से अनबन के चलते वह इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

बीटीपी नेता महेश वसावा और उनके पिता छोटूभाई वसावा | फेसबुक

नई दिल्ली: गुजरात के जाने-माने आदिवासी चेहरों में से एक, सात बार के विधायक छोटूभाई वसावा झगड़िया निर्वाचन क्षेत्र से पीछे चल रहे हैं. उन्होंने अपने बेटे महेश वसावा के साथ भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) की सह-स्थापना की थी.

वसावा ने अपने बेटे के साथ चल रहे मनमुटाव के चलते इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा है. भाजपा के रितेशकुमार रमनभाई वसावा 65,891 मतों के साथ 14,904 मतों के अंतर से आगे चल रहे हैं. छोटूभाई वसावा को अब तक 50,987 मत मिले हैं. ये आंकड़े चुनाव आयोग की वेबसाइट से दोपहर 1.37 बजे लिए गए हैं.

अगर रुझान जारी रहा तो छोटूभाई अपनी पारंपरिक सीट झगड़िया से हार जाएंगे, जहां से वे लगातार सात बार जीत चुके हैं.

आदिवासी मतदाताओं के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाली बीटीपी की स्थापना 2017 में पिता-पुत्र की जोड़ी ने जनता दल (यूनाइटेड) से अलग होकर की थी. छोटूभाई कभी गुजरात में जद(यू) के इकलौते विधायक थे.

2017 में पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में गुजरात चुनाव लड़ा था. इस बार वे अकेले चुनाव लड़ रहे हैं.

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चुनाव से कुछ दिन पहले एक हाई-ड्रामा संघर्ष देखने को मिला था, क्योंकि बीटीपी प्रमुख महेश ने ‘सुरक्षित सीट’ – झगड़िया से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा थी. यह भरूच जिले में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित एकमात्र सीट है. इसने उनके पिता छोटूभाई को एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने के लिए मजबूर कर दिया था.

अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के बाद पिता-पुत्र की जोड़ी एक समझौते पर पहुंची थी.

बीटीपी के भीतर कुछ लोगों ने आम आदमी पार्टी (आप) पर छोटूभाई के करीबी सहयोगी को फंसा कर पिता-पुत्र के झगड़े को भड़काने के का आरोप लगाया. इसने इस साल की शुरुआत में बीटीपी के साथ एक संक्षिप्त गठबंधन किया था.


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बीटीपी के कई गठबंधन

बीटपी की राजस्थान और गुजरात में भील समुदाय के बीच अच्छी खासी पैठ है. 2017 में इसने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और छह में से दो सीटों पर जीत हासिल की थी.

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट की बगावत के दौरान बीटीपी भी कांग्रेस के साथ खड़ी थी.

पार्टी ने इस साल मई में ‘आप’ के साथ हाथ मिलाया था, लेकिन गठबंधन सिर्फ सितंबर तक चला. छोटूभाई ने आप पर बीटीपी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने और आप के सिंबल पर बीटीपी के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का आरोप लगाते हुए इसे गठबंधन को खत्म कर दिया था.

बीटीपी ने 2021 में होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ भी गठबंधन किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले उससे अपना नाता तोड़ लिया.

नवंबर में छोटूभाई ने घोषणा की कि बीटीपी ने गुजरात चुनाव के लिए जद(यू) के साथ गठबंधन किया है. लेकिन उनके बेटे और जद(यू) ने इसका खंडन किया था.


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आदिवासी वोट शेयर

देश भर में गुजरात में सबसे अधिक जनजातीय आबादी है. यहां 182 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से 27 सीटें अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित हैं.

2017 में 27 में से 16 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, भाजपा ने आठ और बीटीपी ने दो सीटें जीती थीं, जबकि एक निर्दलीय ने एक सीट पर अपना कब्जा जमाया था. 2012 में कांग्रेस ने उन सीटों में से 16, भाजपा ने 10 और जद (यूनाइटेड) ने एक सीट जीती थी.

आदिवासियों के लिए आरक्षित 27 सीटों के अलावा, 31अन्य विधानसभा क्षेत्र भी हैं जहां अनुमानित जनजातीय आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा है.

बीटीपी ने गुजरात में 2017 के राज्य सभा द्विवार्षिक चुनाव के दौरान भी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, जिसमें कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल का भाजपा के साथ कड़ा मुकाबला था.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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