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दलित, OBC या ब्राह्मण? UP में नए अध्यक्ष के चुनाव में जातिगत समीकरणों को लेकर दुविधा में BJP

योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में मंत्री और प्रभावशाली ओबीसी नेता स्वतंत्र देव सिंह ने बतौर यूपी भाजपा अध्यक्ष अपना कार्यकाल शनिवार को पूरा कर लिया था.

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यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह | ट्विटर, @swatantrabjp

नई दिल्ली/लखनऊ: स्वतंत्र देव सिंह के उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के तौर पर तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लेने के साथ पार्टी को राजनीतिक रूप से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में उनका उत्तराधिकारी चुनने के लिए जटिल जातिगत समीकरणों को साधने की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

यह चुनाव इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि जो कोई भी स्वतंत्र देव सिंह की जगह लेगा, 2024 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टी की कमान उसके ही हाथ में होगी.

अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करने वाले राज्य के पांचवें भाजपा प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह एक प्रभावशाली अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नेता भी हैं, जो योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में शामिल हैं. वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के नेता भी हैं.

भाजपा के ‘एक सदस्य-एक-पद’ के सिद्धांत के बावजूद स्वतंत्र देव सिंह पिछले चार महीनों से मंत्री पद पर हैं— जब योगी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी.

उन्होंने पिछले शनिवार को यूपी भाजपा अध्यक्ष के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था.

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एक केंद्रीय भाजपा नेता ने कहा, ‘(यूपी के नए भाजपा प्रमुख के चयन में) देरी के दो कारण हैं. पार्टी इस विकल्प पर विचार कर रही है कि राज्य प्रमुख को चुनने के लिए मतदान नए राष्ट्रीय पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही करा लिया जाए, क्योंकि संगठनात्मक चुनाव जल्द ही होने वाले हैं.’ गौरतलब है कि इस साल के अंत में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का तीन साल का कार्यकाल पूरा हो जाएगा.

नेता ने कहा, ‘मुख्य कारण यह है कि पार्टी ब्राह्मण या ओबीसी चेहरे के साथ जाने के विकल्पों पर भी सोच रही है, जिसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित यूपी के तमाम नेताओं के साथ परामर्श पूरा नहीं हो पाया है. ब्राह्मण लॉबी किसी ब्राह्मण को अध्यक्ष बनाने के लिए (संगठन पर) दबाव डाल रही है.’

पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि कुछ महीने पहले अनौपचारिक रूप से यूपी के नेताओं से फीडबैक लिया गया था लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया. नेता ने कहा कि दुविधा ‘जाति समीकरणों को साधने’ को लेकर है.

भाजपा पदाधिकारी ने कहा, ‘यद्यपि ब्राह्मण समुदाय की अनदेखी नहीं की जा सकती लेकिन चूंकि उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ब्राह्मण हैं और मुख्यमंत्री भी उच्च जाति (ठाकुर) से आते हैं, इसलिए किसी अन्य ब्राह्मण को नियुक्त करने की आवश्यकता नजर नहीं आ रही.’

उन्होंने कहा, ‘पार्टी में इस बात को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि वह दलितों और ओबीसी पर बहुत अधिक ध्यान दे रही है. ब्राह्मण चेहरे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन, पहली बैठक (राज्य के नेताओं के साथ) का संदेश यही था कि ब्राह्मण के अलावा किसी अन्य की तलाश की जाए.

एक अन्य केंद्रीय भाजपा नेता ने कहा कि अगर पार्टी को ब्राह्मण चेहरा चुनना होता, तो वह पहले ही घोषणा कर देती.

नेता ने आगे कहा, ‘पार्टी ब्राह्मण चेहरों से इतर देख रही है और ओबीसी और दलित के बीच चयन पर विचार कर रही है. चूंकि स्वतंत्र देव सिंह कुर्मी हैं, इसलिए उन्हें ओबीसी उम्मीदवार के साथ बदलना ही ठीक रहेगा. वहीं, राज्य चुनाव में दलितों ने हमारा खुलकर समर्थन किया था और इस समुदाय से कोई नेता चुनना भी एक विकल्प हो सकता है. लेकिन ओबीसी चेहरा जाति समीकरणों के अनुकूल है…बातचीत खत्म नहीं हुई है.’

स्वतंत्र देव सिंह के अपना कार्यकाल पूरा किए एक सप्ताह बीत जाने के बाद भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यूपी के लिए अगला पार्टी प्रमुख चुनने की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में है, राज्य और केंद्रीय दोनों ही इकाइयां हाल के दिनों में कई कार्यक्रमों में व्यस्त रही हैं— मसलन एमएलसी चुनाव, लोकसभा उपचुनाव, राष्ट्रपति चुनाव, उप-राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार और संसद सत्र.

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम ने दिप्रिंट को बताया, ‘योगी जी और स्वतंत्र देव सिंह जी के नेतृत्व में सरकार और पार्टी संगठन काम कर रहे हैं, कोई जल्दबाजी नहीं है. पार्टी पहले उपचुनाव में व्यस्त थी. अब यह प्रक्रिया शुरू होगी. पार्टी को पता है कि नए अध्यक्ष की नियुक्ति की जानी है.’


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दौड़ में शामिल नाम

एक चौथे भाजपा नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि जाति के अलावा पार्टी को कई बातों को ध्यान में रखना होगा, जैसे क्षेत्र, संगठनात्मक मामलों पर पकड़ और एक इतने बड़े राज्य में पार्टी को चलाने की संभावित दक्षता.

नेता ने कहा, ‘2017 और 2022 के दोनों राज्य चुनाव ओबीसी अध्यक्षों के नेतृत्व में हुए. चुनाव हारने के बावजूद केशव प्रसाद मौर्य का डिप्टी सीएम बने रहना एक स्पष्ट संदेश है कि पार्टी ओबीसी वोट खोने का जोखिम नहीं उठाएगी. इसी तरह, महेंद्र नाथ पांडे को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दिए जाने के बाद स्वतंत्र देव सिंह को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. एक उत्कृष्ट संगठनात्मक कौशल वाले नेता के तौर पर उन्होंने अच्छा प्रदर्शन भी किया है. पार्टी ओबीसी मतदाताओं पर अपनी पकड़ खोना नहीं चाहती.’

केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा और भानु प्रताप सिंह वर्मा (ओबीसी), कौशांबी के सांसद विनोद कुमार सोनकर, एमएलसी लक्ष्मण आचार्य और इटावा के सांसद राम शंकर कठेरिया (दलित) को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है.

उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 40 फीसदी है.

माना जाता है कि गैर-यादव ओबीसी में लगभग 58 प्रतिशत ने 2017 में भाजपा को वोट दिया था, यह हिस्सेदारी 2022 में लगभग 65 प्रतिशत हो जाने जाने का अनुमान है.

यह स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी जैसे प्रभावशाली ओबीसी नेताओं के यूपी चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा बदल लेने के बावजूद हुआ.


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‘ब्राह्मण चेहरे के लिए पैरोकारी जारी’

ऊपर उद्धृत दूसरे भाजपा नेता ने कहा कि एक ब्राह्मण चेहरे की पैरोकारी करने वाले लोग इस ओर ध्यान आकृष्ट कर रहे थे कि पार्टी ने 2004 और 2009 में केशरी नाथ त्रिपाठी और रमापति राम त्रिपाठी के नेतृत्व में राज्य में लोकसभा चुनाव लड़ा था. इसमें से रमापति राम मौजूदा समय में लोकसभा में देवरिया का प्रतिनिधित्व करते हैं.

ब्राह्मण समुदाय के अन्य प्रमुख नेताओं में भाजपा के पूर्व राज्य प्रमुख लक्ष्मीकांत बाजपेयी हैं, जो अब राज्य सभा सांसद हैं. 2014 में जब महेंद्र नाथ पांडे को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, तो इसे ब्राह्मणों के लिए एक गहन संदेश माना गया कि राज्य की आबादी में 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी वाला यह समुदाय भाजपा पर भरोसा बनाए रख सकता है.

दिसंबर में, भाजपा ने राज्य में ब्राह्मणों के असंतुष्ट होने की अटकलें तेज होने के बीच विधानसभा चुनाव से पहले इस समुदाय को लुभाने के लिए चार सदस्यीय पैनल का गठन किया.

भाजपा के राज्य महासचिव सुब्रत पाठक ने दिप्रिंट को बताया कि उत्तर प्रदेश इकाई के लिए नेता चुनना केंद्रीय नेतृत्व का विशेषाधिकार है.

उन्होंने कहा, ‘वरिष्ठ नेतृत्व विभिन्न फैक्टर पर विचार करेगा…उन्हें (केंद्रीय नेताओं को) 2024 के लिए भी सोचना होगा क्योंकि नए अध्यक्ष का पहला काम लोकसभा में भाजपा की बढ़त को बनाए रखना होगा. केवल प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ही जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति कब की जानी है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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