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महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद पर BJP vs BJP की जड़ें शिवसेना के विवाद से जुड़ी हैं, जानिए कैसे

हाल फ़िलहाल में, एकनाथ शिंदे ने इस विवाद को लौ दिखाते हुए कई निर्णय लिए हैं. लेकिन शिवसेना के दोनों गुटों के नेताओं का कहना है कि यह बाल ठाकरे की विरासत पर दावा ठोंकने की उनकी कोशिश भर है.

उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की फाइल फोटो | एएनआई/ट्विटर/@mieknathshinde
उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की फाइल फोटो | एएनआई/ट्विटर/@mieknathshinde

मुंबई: पिछले कुछ दिनों में, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने कुछ बहुप्रचारित फैसलों के साथ महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद को एक बार फिर से भड़का दिया है . अब तक, उन्होंने इस विवाद पर एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का पुनर्गठन किया है, इस सीमा विवाद के सिलसिले में ‘शहीद’ हुए लोगों के लिए पेंशन की घोषणा की है, और सर्वोच्च न्यायालय में राज्य की कानूनी लड़ाई पर निगाह रखने के लिए वरिष्ठ मंत्रियों को नियुक्त किया है.

उनके इन फैसलों ने महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जुबानी जंग छेड़ दी है, और संयोग से इन दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में है.

महाराष्ट्र में, जहां भाजपा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बालासाहेबंची शिवसेना के साथ सत्ता में है, वहां यह संघर्ष पार्टी सुप्रीमो बाल ठाकरे की विरासत का दावा करने के लिए मुख्यमंत्री और उद्धव ठाकरे के बीच चल रहे झगड़े का सीधा परिणाम भी है.

शिंदे द्वारा इस साल जून में पार्टी के अधिकांश विधायकों द्वारा की गई बगावत के दौरान उनका नेतृत्व किये जाने के बाद शिवसेना विभाजित हो गई थी, जिसके नतीजे में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी.

साल 1966 में शिवसेना की स्थापना के बाद से ही महाराष्ट्र के पड़ोसी राज्य कर्नाटक के मराठी भाषी क्षेत्रों को हासिल करना इस पार्टी के एजेंडे में रहा है.

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यह वही मुद्दा है जिसकी वजह से शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे साल 1969 में पहली बार जेल गए थे. शिवसेना के दो संघर्षरत गुटों के मामले में सीमा विवाद में महाराष्ट्र के हितों को आगे बढ़ाना बाल ठाकरे के एजेंडे को आगे ले जाने के रूप में देखा जाएगा.

इस बारे में बात करते हुए राजनीतिक टिप्पणीकार अभय देशपांडे ने दिप्रिंट को बताया कि शिंदे शायद पुरे नैरेटिव पर नियंत्रण रखने के लिए जानबूझकर सीमा विवाद को फिर से फोकस में ले आये है.

उन्होंने इसे थोड़ा विस्तार से समझाते हुए कहा, ‘इसका एक कारण बालासाहेब ठाकरे की विरासत का दावा करना है. दूसरी बात यह भी है कि विपक्ष इस तरह के मुद्दों का इस्तेमाल सत्तारूढ़ गठबंधन को घेरने के लिए कर सकता है क्योंकि कर्नाटक में भी बीजेपी की सरकार है. विपक्ष यह कहकर अपनी तरफ से सीमा विवाद खड़ा कर सकता था कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद को हल करने के लिए कार्रवाई न करके सत्ता सुख के चलते महाराष्ट्र के हितों के साथ समझौता कर रहे हैं.’

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे – यूबीटी) गुट से विधान परिषद की सदस्य मनीषा कायंडे ने दिप्रिंट को बताया कि शिंदे शायद यह दिखाने के लिए इस विषय को सामने लेकर आए हैं कि उनके पास उनका अपना दिमाग है और वह अपने गठबंधन सहयोगी (भाजपा) के नियंत्रण में नहीं हैं.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन, राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार है और एकनाथ शिंदे को सवाल यह खड़ा करना चाहिए कि केंद्र अभी भी इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम क्यों नहीं उठा रहा है?0 जैसे महाराष्ट्र से सारा निवेश गुजरात में जा रहा है, क्या यह सरकार राज्य के इलाके को भी कर्नाटक में मिल जाने की अनुमति देने जा रही है?’

इस बीच, बालासाहेबंची शिवसेना के सदस्यों का कहना है कि इस तथ्य के अलावा कि मुख्यमंत्री बालासाहेब की लड़ाई जारी रखना चाहते हैं, शिंदे इस मुद्दे को इस वजह से भी आगे ले जा रहे हैं क्योंकि वह व्यक्तिगत रूप से इससे जुड़ाव रखते हैं.


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सीमा विवाद और बालासाहेब ठाकरे की ‘विरासत’

महाराष्ट्र की सीमा से सटे 814 गांवों और बेलगाम शहर – यानि कि बड़ी मराठी भाषी आबादी वाले सभी क्षेत्र जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा हैं – को राज्य की सीमाओं में शामिल करना शिवसेना के प्राथमिक राजनीतिक एजेंडे में शामिल रहा है.

बाल ठाकरे के पिता केशव ठाकरे, जिन्हें प्रबोधंकर के नाम से जाना जाता है, उस संयुक्त महाराष्ट्र समिति के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिसने सक्रिय रूप से महाराष्ट्र के निर्माण के लिए अभियान चलाया था और अन्य मराठी भाषी क्षेत्रों को राज्य में शामिल करने के लिए भी जोर दिया था.

1970 और 1980 के दशक के दौरान, बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने कर्नाटक के मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र में शामिल करने की अपनी मांग पर जोर देने के लिए कई हिंसक प्रदर्शन किए थे.

महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद को लेकर शिवसेना का पहला बड़ा विरोध प्रदर्शन फरवरी 1969 में तब आयोजित हुआ था जब तत्कालीन उप प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने मुंबई का दौरा किया था.

देसाई की मुंबई यात्रा के ठीक दो महीने पहले, बाल ठाकरे ने मुंबई के कामगार मैदान में एक रैली को संबोधित करते हुए यह घोषणा की थी कि अगर केंद्र सीमा विवाद का समाधान नहीं करता है और सभी मराठी बोलने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों को इस राज्य का हिस्सा बनाने की मराठी लोगों की मांग को स्वीकार नहीं करता है तो शिवसैनिक दिल्ली के किसी भी नेता को मुंबई में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देंगे.

इसके बाद जब देश के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र का दौरा किया था, तो शिवसेना कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ उनकी कार को बीच सड़क पर रोकने और इस संघर्ष में केंद्र के हस्तक्षेप की मांग करने के लिए इकठ्ठा हो गई थी.

मुंबई पुलिस ने देसाई का रास्ता साफ करने के लिए बल प्रयोग किया और उनकी कार बिना रुके गुजर गई. इसके बाद पूरे शहर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. खुद ठाकरे समेत शिवसेना के कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया था. विरोध प्रदर्शन वाले मामले के काबू से बाहर हो जाने के साथ ही महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बाल ठाकरे से उनकी पार्टी के लोगों से शांति बनाये रखने के लिए अपील करने का अनुरोध किया था.

हालांकि, इसके बावजूद हिंसक विरोध प्रदर्शन रुक-रुक कर जारी रहे और महाराष्ट्र के वर्तमान सीएम (एकनाथ शिंदे) भी शिवसैनिक के रूप में सलाखों के पीछे चले गए थे.


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शिंदे और सीमा विवाद

मुख्यमंत्री के रूप में विधानसभा में दिए गए अपने पहले भाषण में, शिंदे ने याद किया था कि कैसे वह और छगन भुजबल – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वर्तमान नेता, जिन्होंने शिव सैनिक के रूप में अपनी राजनीतिक शुरुआत की थी – को 1980 के दशक में सीमा संघर्ष पर विरोध करने के लिए कैद में ले लिया गया था.

शिंदे ने कहा था, ‘भुजबल साहब भेष बदलकर बेलगाम आए थे. उसके बाद हमारी 100 सदस्यीय टीम वहां गई. वे (कर्नाटक पुलिस) लोगों को उठा रहे थे और उन्हें जंगल में छोड़ आ रहे थे, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि हम शिवसेना से हैं और फिर उन्होंने हमें सीधे बेल्लारी में सलाखों के पीछे डाल दिया.’

शिंदे ने आगे यह भी बताया कि कैसे उन्होंने और अन्य साथी शिवसैनिकों ने 40 दिनों तक पीड़ा झेली. उन्होंने कहा था, ‘रविवार को कैदियों को अंडे और मांसाहारी भोजन मिलता था, लेकिन जब हम वहां गए तो उन्होंने इसे देना बंद कर दिया … हमारे पास 40 दिनों तक कठिन समय था लेकिन हम डरे नहीं, हमने अपना काम किया.’

मुख्यमंत्री के खेमे से जुड़े ठाणे के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि शिंदे हमेशा से सीमा मुद्दे पर आक्रामक रूप से बोलने वाले कुछ शिवसेना नेताओं में से एक थे.

इस नेता ने कहा, ‘जब भी बेलगाम में हमारे (मराठी भाषी) लोगों को किसी अन्याय का सामना करना पड़ा, तो शिंदे साहब हमेशा सबसे मुखर रहे. वह हमेशा किसी भी मुद्दे को लेकर महाराष्ट्र एकीकरण समिति के सदस्यों के संपर्क में रहे हैं और नियमित रूप से या तो स्वयं बेलगाम जाते थे या अपने प्रतिनिधियों को भेजते थे.’

शिवसेना (यूबीटी) के कई नेता भी निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि शिंदे बेलगाम में पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्रिय रूप से शामिल थे और लगभग हर साल वहां जाते रहते थे.

शायद यही कारण है कि उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर महाराष्ट्र के कानूनी प्रयासों का समन्वय करने के लिए शिंदे और भुजबल, जो दोनों उनके मंत्रिमंडल में शामिल थे, को नियुक्त किया था.

शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की मिलीजुली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने भी सीमा विवाद पर बातचीत को फिर से शुरू करने के लिए दिखाई देने वाले प्रयास किए थे. इसने इस मुद्दे पर एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का पुनर्गठन किया था, महाराष्ट्र-कर्नाटक बॉर्डर सेल को और ताकत दी थी तथा इस मुद्दे पर 530 पन्नों की एक किताब का विमोचन भी किया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

(अनुवादः रामलाल खन्ना)


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