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बंदी संजय को लेकर दुविधा, आदिवासियों का दबाव और अनुभव- BJP ने 4 राज्यों में पार्टी प्रमुख क्यों बदले?

चुनावी राज्य तेलंगाना में बंदी संजय बीजेपी के लिए एक मुश्किल मुद्दा बन गए थे. जहां तक ​​पंजाब, आंध्र प्रदेश और झारखंड का सवाल है, पार्टी अपने प्रदेश इकाई में दोबारा जान फूंकने की कोशिश कर रही है.

बीजेपी नेता जी किशन रेड्डी, सुनील जाखड़, डी पुरंदेश्वरी और बाबूलाल मरांडी (बाएं से दाएं) | फोटो: ANI

नई दिल्ली: तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने दक्षिणी राज्य में आगामी महत्वपूर्ण चुनाव को ध्यान में रखते हुए बंदी संजय की जगह केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है.

इसके अलावा जाति संतुलन सुनिश्चित करने और राज्यों में संगठन को फिर से खड़ा करने के लिए बीजेपी ने आंध्र प्रदेश, पंजाब और झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष को बदले हैं. 

संजय, जो मार्च में तेलंगाना बीजेपी प्रमुख के रूप में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं, पार्टी के भीतर ही विवाद का विषय बन गए थे.

तेलंगाना के विधायक और पूर्व मंत्री एटाला राजेंदर को आगामी चुनावों के लिए तेलंगाना बीजेपी की चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाया गया. उनसे कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के साथ-साथ बीजेपी की तेलंगाना इकाई में शांति लाने की उम्मीद है.

तेलंगाना के पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में पूर्व केंद्रीय मंत्री डी. पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. माना जाता है कि राज्य में पार्टी दिशाहीन हो गई है. बीजेपी राज्य में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ गठबंधन करना चाह रही है.

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प्रमुख आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी झारखंड में पार्टी का नेतृत्व करेंगे, जबकि सुनील जाखड़ को पंजाब संगठन को फिर से मजबूत करने का जिम्मा सौंपा गया है. 

पंजाब में वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था और जाखड़ जैसे अधिक अनुभवी चेहरे को लाने के लिए बदलाव की आवश्यकता थी, जो पहले कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं.

तेलंगाना में विद्रोह

सबसे चौंकाने वाला बदलाव तेलंगाना में हुआ है जहां बीजेपी ने बंदी संजय विरोधी लॉबी के दबाव के आगे घुटने टेक दिए. एटाला राजेंदर ने संजय को नहीं बदलने पर पार्टी से इस्तीफा देने की धमकी दी थी.

तेलंगाना में नवंबर में चुनाव होने वाले हैं और कर्नाटक में हार के बावजूद बीजेपी को बीआरएस शासित दक्षिणी राज्य से काफी उम्मीदें हैं. लेकिन बड़े पैमाने पर अंदरूनी कलह और गुटबाजी बीजेपी की उम्मीदों को प्रभावित कर रही थी. लगातार गुटबाजी और सभी नेताओं को अपने नेतृत्व में लाने में असमर्थता के कारण बीजेपी आलाकमान के समर्थन के बावजूद संजय को अपना पद गंवाना पड़ा.

चूंकि एटाला राजेंदर समूह बंदी संजय के रवैये के खिलाफ आवाज उठा रहा था, इसलिए चिंतित पार्टी आलाकमान ने रेड्डी को राज्य का जिम्मा सौंपा, जो पहले राज्य संगठन में काम कर चुके हैं.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “रेड्डी सबकी पसंद हैं और वह दोनों गुटों में स्वीकार्य थे.”

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि अगले फेरबदल में संजय को केंद्रीय मंत्रालय में एक पद मिलेगा. उन्होंने कहा कि पिछले हफ्ते ही एटाला राजेंदर गुट को इस बदलाव के बारे में जानकारी दी गई थी जब उन्होंने रेड्डी की उपस्थिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी.

एटाला के एक करीबी नेता ने दिप्रिंट को बताया, “हमने अन्य नेताओं को सम्मान न देने और निरंकुश की तरह व्यवहार करने के बंदी संजय के रवैये के बारे में कई बार शिकायत की थी. वरिष्ठ नेता किशन रेड्डी और के. लक्ष्मण भी पार्टी को लेकर संजय के रवैये से खुश नहीं थे.”

बीजेपी के एक दूसरे सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “एटाला ने पिछले हफ्ते पार्टी नेतृत्व को बताया था कि उनका पार्टी में मोहभंग हो गया है क्योंकि उनके कार्यकर्ताओं और सहयोगियों को सम्मान नहीं मिल रहा है. साथ ही उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कई बीआरएस नेता शुरू में बीजेपी में शामिल होने के इच्छुक थे, लेकिन कहते हुए वह पीछे हट गए कि अगर एटाला को सम्मान नहीं मिल रहा है तो उनके भविष्य की क्या गारंटी है.”

नेतृत्व के मुद्दों के अलावा, चुनाव से संबंधित मुद्दों और बीआरएस के खिलाफ कैसे चुनाव लड़ा जाए, इस पर भी दो गुटों के बीच मतभेद थे.

“एटाला कैंप” के एक बीजेपी नेता ने कहा था कि संजय के नेतृत्व में तेलंगाना बीजेपी वास्तविक मुद्दों के बजाय वैचारिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता था.

उन्होंने कहा, “बंदी का मानना ​​है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर जोर देकर तेलंगाना चुनाव जीता जा सकता है. हालांकि, राज्य भर में एक मजबूत कैडर के बिना और भ्रष्टाचार, धन के कुप्रबंधन और बेरोजगारी के मुद्दों पर फोकस किए बिना हम बीआरएस को नहीं हरा सकते.”

बीजेपी के एक वरिष्ठ महासचिव ने दिप्रिंट को बताया कि किशन रेड्डी सर्वसम्मति बनाने वाले व्यक्ति हैं और किसी को भी उनसे कोई समस्या नहीं है. उन्होंने कहा, “एटाला की पदोन्नति में कांग्रेस और बीआरएस के नेताओं को पार्टी की ओर आकर्षित करने का एक प्रयास भी है. पार्टी यह कह सकती है कि उन्हें पुरस्कृत किया गया है और वह राज्य में अधिक लोकप्रियता हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा हो सकते हैं.”

रेड्डी के पास 2020 से 2014 तक एकीकृत आंध्र के दौरान पार्टी चलाने का अनुभव है. वह 2014 से 2016 तक तेलंगाना राज्य के पार्टी प्रमुख भी रह चुके हैं.

एक अन्य बीजेपी नेता ने बताया कि बदलाव जल्द ही होने वाला है क्योंकि संजय के खिलाफ शिकायतें बढ़ती जा रही हैं. उन्होंने कहा, “रेड्डी के पास अभी तीन विभाग हैं. यदि उनसे अभी पद छोड़ने के लिए नहीं कहा गया तो उन्हें आगे कुछ पद छोड़ने पड़ सकते हैं. साथ ही संजय को कैबिनेट में जगह मिलने की भी उम्मीद है. एटाला की नियुक्ति रेड्डी के लिए कुछ समस्याएं पैदा कर सकती है क्योंकि उन्हें नेविगेट करना मुश्किल हो सकता है.”


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आंध्रप्रदेश की पहेली

पुरंदेश्वरी की पदोन्नति एक आश्चर्य की बात है क्योंकि उनके अपने बहनोई और टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू के साथ अच्छे संबंध नहीं थे. हालांकि उन्हें आंध्र प्रदेश में नायडू को कमजोर करने के लिए बीजेपी महासचिव के रूप में शामिल किया गया था, लेकिन टीडीपी के साथ बीजेपी नेतृत्व की हालिया बैठक आंध्र प्रदेश में पार्टी की ओर से एक मिला जुला संकेत भेज रहा है.

पुरंदेश्वरी ने दिप्रिंट को बताया, “मेरे ऊपर राज्य संगठन को मजबूत बनाने, विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए संगठन को मजबूत बनाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. पहली प्राथमिकता प्रदेश इकाई को मजबूत करना है. गठबंधन का फैसला आलाकमान पर छोड़ दिया गया है.” 

उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री सोमू वीरराजू की जगह आंध्र प्रदेश बीजेपी का नया प्रमुख नियुक्त किया गया है.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “पार्टी ने राज्य में अपनी पकड़ खो दी है. पुरंदेश्वरी एनटीआर की बेटी हैं. आंध्र की राजनीति में उनका बड़ा रुतबा है. उनके उत्थान से पार्टी को चुनावों में एनटीआर की विरासत को अपनाने में मदद मिलेगी. यह एक और तथ्य है कि पार्टी संगठन का पुनर्गठन कर रही है और इसके लिए पार्टी कई महासचिवों की नियुक्ति भी करेगी.”

बीजेपी नेता ने कहा कि कई लोगों ने सुझाव दिया था कि किसी ओबीसी चेहरे को नई जिम्मेदारी दी जानी चाहिए क्योंकि यह समुदाय चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

उन्होंने कहा, “पुरंदेश्वरी की नियुक्ति करके हम यह संदेश दे रहे हैं कि एक समुदाय का दबदबा रहेगा. राज्य में सत्तारूढ़ दल रेड्डीज के साथ है. नायडू कम्मा समुदाय से हैं और पुरंदेश्वरी भी.” 

दिलचस्प बात यह है कि हालांकि कम्मा समुदाय के बीच नायडू की मजबूत पकड़ है, लेकिन समुदाय का एक वर्ग अभी भी एनटीआर के प्रति बहुत वफादार है. बीजेपी नेता ने कहा, “नायडू और पुरंदेश्वरी एक साथ काम नहीं कर सकते इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन होगा या नहीं.”

पंजाब, आंध्र प्रदेश में चुनौतियां

पंजाब में, पार्टी ने 2022 में अमरिंदर की पंजाब लोक कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, लेकिन चुनाव परिणाम कुछ खास नहीं मिला. हालांकि, बीजेपी ने सुनील जाखड़ से लेकर राणा सोढ़ी और मनप्रीत बादल तक कई कांग्रेस नेताओं को शामिल किया. सितंबर, 2022 में अमरिंदर सिंह भी बीजेपी में शामिल हो गए.

चूंकि बीजेपी अब 2024 के लोकसभा चुनाव में पंजाब में अधिक हिस्सेदारी हासिल करना चाहती है, इसलिए वह अकाली दल को एनडीए के पाले में वापस लाने के विकल्प तलाश रही है.

पंजाब बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “जाखड़ अधिक अनुभवी चेहरा हैं. उनका राजनीति में लंबा करियर रहा है. सांसद रह चुके हैं. पिछले चुनाव में, हमें तीन सीटें मिली थीं, लेकिन अधिक ताकत के साथ और हम अकालियों के साथ गठबंधन के बिना लोकसभा में अधिक सीट जीतने का लक्ष्य रख रहे हैं.” 

जाखड़ मई 2022 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा की उपस्थिति में बीजेपी में शामिल हुए थे. इससे पहले, 2021 में नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने से पहले वह चार साल तक पंजाब कांग्रेस के प्रमुख थे.

एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा कि यह देखना दिलचस्प होगा कि कैडर जाखड़ को कैसे स्वीकार करेगा क्योंकि पार्टी उन लोगों को आगे बढ़ाते हुए दिख रही है जो अन्य दलों से बीजेपी में शामिल हुए हैं.

इस बीच, मरांडी को झारखंड प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दीपक प्रकाश की जगह ले लिया गया.

मरांडी ने दिप्रिंट से कहा, “यह उस व्यक्ति को बदलना पार्टी की रणनीति का एक हिस्सा है जिसने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है. मैं पहले भी संगठन में काम कर चुका हूं. हम अगले चुनाव में बीजेपी सरकार को वापस लाने के लिए काम कर रहे हैं.” 

आदिवासी नेता मरांडी ने 2000 से 2003 तक झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवा दी है.

झारखंड बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा “रघुबर दास की नियुक्ति आदिवासियों को लेकर अच्छी नहीं हुई और पार्टी आदिवासी इलाकों में लगभग सभी सीटें हार गई. हमने मरांडी को विपक्ष के नेता के रूप में लाकर भरपाई करने की कोशिश की, लेकिन सोरेन ने वह मान्यता नहीं दी. पार्टी को एहसास हो गया है कि एकमात्र रास्ता मरांडी को कमान सौंपना है, जिनका ट्रैक रिकॉर्ड साफ-सुथरा है. एक अन्य आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं. महत्वपूर्ण पदों पर दो आदिवासी नेताओं के होने से आदिवासियों के बीच एक सही संदेश जाएगा.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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