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क्या MCD चुनाव हारने के बाद भी मेयर सीट पर काबिज हो सकती है BJP? क्यों वह अभी भी खेल में बनी हुई है

निर्वाचित पार्षदों के अलावा दिल्ली के 10 सांसद (लोकसभा और राज्यसभा) और 14 विधायक मेयर चुनाव में मतदान के पात्र हैं. लेकिन यह विधानसभा अध्यक्ष के विवेक पर निर्भर करेगा कि किन विधायकों को मतदान के लिए बुलाएं.

कुल्लू में बीजेपी की रैली- तस्वीर, फाइल फोटो, प्रतीकात्मक तस्वीर- एएनआई

नई दिल्ली: दिल्ली निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के 134 सीटें जीतकर बहुमत हासिल करने और एग्जिट पोल अनुमानों के विपरीत थोड़ा बेहतर प्रदर्शन करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 104 सीटें जीत लेने के बाद अब नजरें इस पर टिकी हैं कि अगला मेयर किस पार्टी का बनेगा.

नियमों के मुताबिक, नया वित्तीय वर्ष शुरू होने पर बहुमत वाली पार्टी अपने उम्मीदवार को मेयर के रूप में नामित करती है. लेकिन अगर विपक्ष की तरफ से उसका विरोध करते हुए अपना उम्मीदवार उतारा जाता है तो चुनाव की जरूरत पड़ती है. पहले की तरह प्रत्येक निगम के लिए मेयर के बजाये अब दिल्ली को एक ही मेयर मिलेगा. दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में भाजपा 2007 से ही सत्ता में थी.

एमसीडी चुनाव नतीजे आने के कुछ ही घंटों बाद यह साफ हो गया कि विपक्ष अपना उम्मीदवार मैदान में उतार सकता है, जैसा भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया, ‘अब दिल्ली के लिए एक मेयर चुनने की बारी है…यह सब इस पर निर्भर करेगा कि कड़े मुकाबले में संख्याबल किसके पास है, पार्षद कैसे मतदान करेंगे आदि. उदाहरण के तौर पर चंडीगढ़ में मेयर भाजपा का है.’

गौरतलब है कि चंडीगढ़ में 35 में से सिर्फ 12 वार्ड जीतने के बावजूद भाजपा जनवरी में अपना मेयर बनवाने में सफल रही थी. वहीं आप 14 उम्मीदवारों की जीत के बावजूद अपने मेयर प्रत्याशी को जिता नहीं पाई थी. मालवीय अपने ट्वीट के जरिये इसी का जिक्र करते नजर आए.

इसी बीच, आप के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने दावा किया कि भाजपा ने उनकी पार्टी के विजयी पार्षदों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है.

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एमसीडी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, मेयर चुनाव के लिए मनोनीत सदस्य वोट नहीं डालते हैं.

एमसीडी की स्थापना 1958 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के तहत की गई थी. नागरिक निकाय को 2012 में विभाजित किया गया था, जिसका केंद्र की तरफ से इस वर्ष के शुरू में एक बार फिर विलय कर दिया गया.


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लोकसभा और राज्यसभा सांसद भी मेयर चुनाव में मतदान करेंगे

दिल्ली नगर निगम अधिनियम के मुताबिक, हर पांच साल में एमसीडी का चुनाव कराना होता है, जिससे यह तय हो सके कि कौन-सी पार्टी सत्ता में रहेगी. अधिनियम की धारा 35 में कहा गया है कि एमसीडी को हर वित्तीय वर्ष में उस वर्ष की पहली बैठक के दौरान एक मेयर चुनना चाहिए.

यद्यपि मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का होता है, अधिनियम में यह अनिवार्य है कि किसी भी पार्टी को अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में एमसीडी मेयर पद के लिए किसी महिला का चुनाव करना होगा, और तीसरे वर्ष अपने पार्षदों में से एक अनुसूचित जाति सदस्य को मेयर चुनना होगा.

इस साल अप्रैल की जगह दिसंबर में एमसीडी चुनाव होने से मेयर का कार्यकाल चार महीने ही बचा है. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि चुनाव हाल-फिलहाल में ही होगा या फिर बाद में.

निर्वाचित पार्षदों के अलावा, दिल्ली के 10 लोकसभा और राज्यसभा सांसद और 14 विधायक चुनाव में मतदान करने के पात्र हैं.

भाजपा के एक नेता के मुताबिक, वोट देने के लिए विधायकों में से किसे बुलाना है यह विधानसभा अध्यक्ष के विवेक पर निर्भर है. 14 विधायकों की संख्या क्यों रखी गई है, इसकी वजह बताते हुए उक्त नेता ने कहा, ‘अध्यक्ष को यह सुनिश्चित करना होगा कि पांच साल की अवधि में हर एक विधायक को वोट देने का मौका मिले.’

चूंकि अध्यक्ष आप से हैं, इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि मेयर चुनाव के पहले वर्ष में किस पार्टी को आमंत्रित किया जाएगा.

एमसीडी में सदन के पूर्व नेता और भाजपा के सुभाष आर्य ने महापौर चुनाव प्रक्रिया के बारे में समझाते हुए कहा, ‘पार्षदों के अलावा, 7 लोकसभा सांसद और 3 राज्यसभा सांसद भी वोट देने के पात्र हैं. मनोनीत सदस्य मेयर के चुनाव के लिए मतदान नहीं करते हैं.’

दिल्ली में सभी 7 लोकसभा सदस्य भाजपा के हैं, वहीं तीनों राज्यसभा सांसद आप के हैं. सात सांसदों के साथ मेयर चुनाव में भाजपा वोटर्स की संख्या 111 (104 पार्षदों सहित) हो जाएगी, जबकि आप का संख्याबल 151 तक पहुंच सकता है, जिसमें 134 पार्षद, 3 राज्यसभा सदस्य और 14 विधायक (अध्यक्ष के विवेकाधीन) शामिल हैं. दिल्ली के विधायकों-सांसदों के साथ निगम मेयर चुनाव का निर्वाचक मंडल 274 सदस्यीय है.

भाजपा इस चुनाव में आप को मात देने की उम्मीद कर सकती है, खासकर यह देखते हुए कि नगरपालिका चुनावों में दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता है.

यदि भाजपा और कांग्रेस आप उम्मीदवार का विरोध करते हैं और अपने-अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं तो चुनाव होंगे. ऐसे में सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार ही मेयर बनेगा.

यदि उम्मीदवारों के बीच मुकाबला बराबरी का रहा तो चुनाव निगरानी के लिए नियुक्त विशेष आयुक्त स्पेशल ड्रा के जरिये मेयर का निर्वाचन सुनिश्चित करेगा. इस ड्रा में जिस उम्मीदवार का नाम निकालता है उसे एक अतिरिक्त टाई-ब्रेकिंग वोट मिलता है. चूंकि दल-बदल विरोधी कानून मेयर चुनाव पर लागू नहीं होता, इसलिए क्रॉस-वोटिंग की पूरी संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

इस साल के शुरू में एमसीडी के फिर से एक होने के बाद यह पहला चुनाव था. 2017 में भाजपा ने तत्कालीन 270 नगरपालिका वार्डों में से 181 पर जीत हासिल की थी, जबकि आप के केवल 48 पार्षद जीते थे और कांग्रेस 30 पार्षदों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी )


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