होम देश स्कूल की किताबों की खरीद में देरी, HC ने लगाई दिल्ली सरकार...

स्कूल की किताबों की खरीद में देरी, HC ने लगाई दिल्ली सरकार को फटकार — ‘असली मुद्दा कि श्रेय किसको’

यह रेखांकित करते हुए कि किसी भी मुख्यमंत्री को ‘अनिश्चित अवधि’ के लिए अनुपस्थित नहीं रहना चाहिए, कोर्ट ने एमसीडी आयुक्त को किताबें खरीदने का निर्देश दिया, भले ही उनका बजट 5 करोड़ रुपये से अधिक हो और ‘लापरवाही’ के लिए दिल्ली सरकार की आलोचना की.

प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो: मनीषा मंडल | दिप्रिंट

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की अपने स्कूलों में बच्चों के लिए किताबें खरीदने में असमर्थता इस बात को दर्शाती है कि मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति के कारण दिल्ली सरकार दाखिले की प्रक्रिया में रुकावट डाल रही है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अब समाप्त हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति (2021-22) में कथित अनियमितताओं को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज एक मामले में जेल में हैं.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी.एस. अरोड़ा की खंडपीठ ने एमसीडी आयुक्त को किताबें खरीदने के निर्देश दिए, भले ही इसमें इस उद्देश्य के लिए निर्धारित 5 करोड़ रुपये से अधिक का बजट शामिल हो, जबकि इस बात को खारिज कर दिया कि मुख्यमंत्री को आयुक्त की वित्तीय शक्तियों में किसी भी वृद्धि को मंजूरी देनी होगी.

पीठ ने केजरीवाल की अनुपस्थिति के कारण स्कूली बच्चों के लिए महत्वपूर्ण आपूर्ति सुनिश्चित करने में सरकार की निष्क्रियता की आलोचना करते हुए कहा, “किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का पद, दिल्ली जैसी व्यस्त राजधानी की तो बात ही छोड़ दें, कोई औपचारिक पद नहीं है…राष्ट्रीय हित और जनहित की मांग है कि इस पद पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक या अनिश्चितकाल तक के लिए संपर्क से बाहर और अनुपस्थित नहीं रहता है.”

अदालत द्वारा उनकी याचिका खारिज करने के बावजूद केजरीवाल के दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहने के फैसले को “व्यक्तिगत” बताते हुए पीठ ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि “अगर, सीएम उपलब्ध नहीं हैं, तो छोटे बच्चों के मौलिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे”. उन्हें कुचल दिया जाएगा और वे पहले सत्र (1 अप्रैल-10 मई) को मुफ्त किताबों, लेखन सामग्री और वर्दी के बिना गुजारेंगे.”

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पीठ ने ये टिप्पणियां एक नागरिक अधिकार समूह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार ने मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति के कारण छह लाख से अधिक स्कूली बच्चों को किताबों जैसी शैक्षिक सामग्री देने से इनकार कर दिया है. याचिका में तर्क दिया गया कि यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का उल्लंघन है, जो मुफ्त शिक्षा की गारंटी देता है और ऐसी सामग्री के वितरण पर अन्य राज्य और केंद्रीय नियमों का उल्लंघन करता है.

मामले की जड़ यह है कि छात्रों को ऐसी स्कूली सामग्री उपलब्ध कराने की कानूनी जिम्मेदारी एमसीडी के पास होने के बावजूद, उसके पास इन्हें हासिल करने की वित्तीय शक्तियां नहीं हैं. ऐसी शक्ति एमसीडी की स्थायी समिति के पास निहित है, जो इसकी चुनाव प्रक्रिया पर चिंताएं उठाए जाने के बाद एक साल से निष्क्रिय है.

इस समिति का भाग्य शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है.

इस संदर्भ में दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते इस मुद्दे को हल करने के लिए ऐसी सामग्री खरीदने की वित्तीय शक्तियां एमसीडी आयुक्त को सौंपने का आह्वान किया था.

हालांकि, दिल्ली सरकार के अनुसार, ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया क्योंकि इसके लिए मुख्यमंत्री की मंजूरी की ज़रूरत होगी, जो वर्तमान में तिहाड़ में बंद हैं.

न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि स्कूली बच्चों के लिए लाभ की गारंटी न केवल आरटीआई अधिनियम के तहत कानून द्वारा दी गई है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 ए द्वारा संवैधानिक रूप से गारंटी दी गई है, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है.

इसने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार को स्कूल सामग्री खरीदने के लिए आयुक्त को सशक्त बनाने के लिए एमसीडी सदन में स्वप्रेरणा प्रस्ताव पेश करने से कोई नहीं रोक सका है. अदालत ने कहा, “जीएनसीटीडी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) के विद्वान वकील द्वारा अन्य संस्थानों को दोषी ठहराना ‘मगरमच्छ के आंसू बहाने’ के अलावा कुछ नहीं है.”

इसने लोकतांत्रिक नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए एमसीडी हाउस को स्कूल सामग्री पर इस तरह के खर्च को मंजूरी देने की अनुमति देने के दिल्ली सरकार के वकील शादान फरासत के वैकल्पिक प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि असली मुद्दा सत्ता का है.

अदालत ने कहा, “असली मुद्दा ‘शक्ति’, ‘नियंत्रण’, ‘क्षेत्र का प्रभुत्व’ और ‘श्रेय कौन लेता है’ इसका है.”

इसमें यह भी कहा गया कि अधिक समय तक इंतज़ार करना अव्यावहारिक है और दिल्ली सरकार की दलील मौजूदा मुद्दे के महत्व को ध्यान में नहीं रखती है.

कोर्ट ने कहा, “यह दलील कि इन वैधानिक लाभों को प्राप्त करने के लिए अनुबंध को सदन से मंजूरी मिलने का इंतज़ार करना चाहिए, इस मामले की तात्कालिकता के प्रति पूरी तरह से अनादर दर्शाता है और छात्रों की भलाई और उनके वैधानिक और मौलिक अधिकारों के प्रति जीएनसीटीडी और महापौर दोनों की लापरवाही को दर्शाता है.”

अदालत ने कहा, “जीएनसीटीडी की तत्परता से कार्य करने और मुद्दे की तात्कालिकता पर प्रतिक्रिया देने में असमर्थता, एमसीडी स्कूलों में नामांकित छात्रों की दुर्दशा के प्रति उसकी उदासीनता को दर्शाती है और यह उक्त छात्रों के मौलिक अधिकारों का जानबूझकर उल्लंघन है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मोदी युग पर किताबें नया चलन हैं, प्रकाशक भारत में मंथन करते रहना चाहते हैं


 

Exit mobile version