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CBI के ममता के परिवार तक पहुंचने के साथ ही BJP को बंगाल में वंशवाद का मनचाहा मुद्दा मिल गया है

कुछ साल पहल् जब सीबीआई जब कोलकाता के पुलिस प्रमुख राजीव कुमार के घर पहुंचीं थी तो ममता बीचबचाव के लिए वहां फौरन पहुंच गईं थी. अब अभिषेक बनर्जी को स्वयं के परिवार के बचाव में अकेले खड़ा रहना पड़ रहा है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी/एएनआई

कुछ दिन पहले, लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी ने भाजपा को चुनौती दी थी कि ‘बेबुनियाद आरोप’ लगाते हुए वो उनका नाम लेकर दिखाए. लेकिन इस सप्ताहंत उनकी पत्नी रूजिरा नरूला को सीबीआई के समन के बाद, ये साफ होता जा रहा है कि अभिषेक अपनी बुआ और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए कमज़ोर कड़ी बनते जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पहले ही दीदी के ‘भतीजे’ और भ्रष्टाचार को राज्य में चुनावी मुद्दा बना चुके हैं. तो क्या वह तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के ‘रॉबर्ट वाड्रा’ बनते जा रहे हैं?

केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो से लेकर कैलाश विजयवर्गीय तक तमाम भाजपा नेता अभिषेक बनर्जी पर निशाना साध रहे हैं. ऐसे समय जब टीएमसी के कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, यह सुनिश्चित करना मोदी-शाह की पार्टी की एक चतुर चाल है कि टीएमसी अपने नेताओं के बचाव में फंसी रहे. और यह रणनीति एक हद तक सफल भी हो रही है. बंगाल के वरिष्ठ मंत्री और ममता के करीबी सहयोगी फ़रहाद हकीम ने भाजपा पर बुजदिली दिखाने और टीएमसी नेताओं के परिजनों पर हमले के लिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. ममता बनर्जी का कहना है कि भाजपा उनके भतीजे को इसलिए निशाना बना रही है क्योंकि उसके लिए उन पर हमला करना मुश्किल है. दक्षिण 24 परगना में एक रैली को संबोधित करते हुए ममता ने कहा, ‘दिन-रात वे ‘दीदी-भतीजा’ की बात करते हैं. मैं अमित शाह को चुनौती देती हूं, वो पहले अभिषेक बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़कर दिखाएं, फिर मेरे खिलाफ.’

लेकिन जब से सीबीआई वाली खबर आई है, ममता ने अपने भतीजे के बारे में बात नहीं की है. सीबीआई के अभिषेक के कोलकाता स्थित निवास पर पहुंचने के दो घंटे बाद, ममता भाषा दिवस पर शहर में एक पूर्वनिर्धारित सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल हुईं. वहां सभा को संबोधित करते हुए, उन्होंने अपने भतीजे के बारे में एक भी शब्द नहीं बोला. लेकिन उन्होंने बार-बार जोर देकर कहा कि बंगाल और बांग्ला की रक्षा की लड़ाई को अधिकतम प्राथमिकता दी जानी चाहिए और गैर-बंगालियों (यानि भाजपा) के ‘हमले’ का हर कीमत पर विरोध किया जाना चाहिए. उन्होंने खुद को गोलकीपर बताया. लेकिन इस राजनीतिक फुटबॉल मैदान पर अभिषेक बनर्जी की भूमिका के बारे में किसी को नहीं पता.

सीबीआई की कार्रवाई और अभिषेक पर ममता की चुप्पी असामान्य है. केवल दो साल पहले, जब सीबीआई अधिकारियों की एक टीम कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के आवास पर गई थी, तो उन्हें राज्य की पुलिस ने तुरंत हिरासत में लिया गया था. ममता बनर्जी शारदा चिटफंड मामले में कुमार के खिलाफ किसी भी तरह की जांच को रोकने और उसका विरोध करने के लिए उनके घर पहुंच गई थीं. ममता इतने पर ही नहीं रुकीं – उसी रात, उन्होंने राज्य के मामलों में केंद्र की दखलअंदाजी के विरोध में कोलकाता के एस्प्लेनेड इलाके में धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया था. टीएमसी के कुछेक नेताओं को छोड़ दें, तो आज अपना और अपने परिवार का ट्वीट्स के जरिए बचाव करने के लिए अभिषेक बनर्जी को अकेला छोड़ दिया गया है. शायद, ममता अभिषेक और उनके परिवार को लेकर बढ़ते विवाद से खुद को दूर करना चाहती है, ताकि ऐसा न हो कि विवाद उनके गले पड़ जाए और टीएमसी की चुनावी रणनीति को गड़बड़ा दे.


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चौखट तक पहुंचा भ्रष्टाचार का मुद्दा

जिस राज्य में ममता बनर्जी के कल्याणकारी कार्यक्रमों का जलवा हो, वहां भाजपा भ्रष्टाचार के आरोपों के कारगर साबित होने की उम्मीद कर रही है. और आरोप यदि सीधे बनर्जी के परिजनों पर लगाए जाते हों तो भी तृणमूल ज़्यादा कुछ नहीं कर सकती है.

पिछले दो वर्षों के दौरान, अमित शाह ने अपनी जनसभाओं में भतीजे के तौर पर उल्लेख करते हुए अभिषेक बनर्जी पर हमले करते रहे हैं. राज्य के भाजपा नेताओं ने भी उनका अनुसरण किया. लेकिन ज्यादातर ने कोयला चोरी, गाय तस्करी घोटाला और पैसा वसूली के आरोप उछालते हुए अभिषेक का नाम लेने से परहेज किया. पिछले साल दिसंबर में, मेदिनीपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए, हाल ही में टीएमसी से भाजपा में आए सुवेंदु अधिकारी ने ‘लुटेरे भतीजे को भगाओ’ का नारा लगाया था. लेकिन अब सुवेंदु खुलकर बोलने लगे हैं. जनवरी में एक सार्वजनिक रैली में, उन्होंने एक कथित दस्तावेज का हवाला दिया, जिसमें बैंकॉक के एक बैंक खाते में हर महीने पैसा जमा होने की बात जाहिर होती है. 22 फरवरी को, सीबीआई के अभिषेक के आवास तक पहुंचने के बाद, सुवेंदु ने अपना आरोप दोहराते हुए कहा, ‘खाता किसी मैडम नरूला का है. कौन हैं ये मैडम नरूला? वो और कोई नहीं, बल्कि वही हैं जिन्हें 2019 में सोना लाने के आरोप में कोलकाता हवाई अड्डे पर हिरासत में लिया गया था.’ उल्लेखनीय है कि अभिषेक की पत्नी रूजिरा नरूला – थाई पासपोर्ट धारक – को 2019 में बैंकॉक से लौटते समय कथित रूप से बड़ी मात्रा में सोना लाने के कारण कोलकाता हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारियों ने कुछ देर के लिए हिरासत में लिया था, और फिर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने मामले में हस्तक्षेप किया था. हालांकि अभिषेक बनर्जी ने इस दावे का खंडन किया था.

टीएमसी नेताओं और कैडरों पर भ्रष्टाचार के आरोप पहले भी सुर्खियों में आ चुके हैं. पार्टी के कुछ कार्यकर्ता द्वारा सरकारी धन के गबन और राज्य की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के गरीब लाभार्थियों से पैसे वसूले जाने (कट मनी) की बात ममता खुद स्वीकार कर चुकी हैं. भाजपा इसे आगामी चुनाव में एक प्रमुख मुद्दे के रूप में उठाने की कोशिश कर रही है. मुस्लिमों को ‘अवैध आप्रवासी’ और ‘दीमक’ करार देने के कारण राज्य में हुए नुकसान को देखते हुए, भाजपा ने बंगाल की सत्ताधारी पार्टी पर हमले करने के लिए भ्रष्टाचार के मुद्दे का इस्तेमाल करने की कोशिश की. लेकिन गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की भरमार के सहारे टीएमसी इस हमले का मुकाबला करने में सफल रही है. लेकिन आरोपों की आंच अब ममता के परिवार तक पहुंच चुकी है. इसलिए पार्टी के लिए जवाबी हमले करना आसान नहीं होगा.


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भाजपा का वंशवाद का आरोप

गौरतलब है कि टीएमसी के नंबर 2 शीर्ष नेता के रूप में अभिषेक बनर्जी का उदय किसी औपचारिक घोषणा के माध्यम से नहीं हुआ था. पार्टी में ममता बनर्जी की बात आखिरी होती है, और मुकुल रॉय के भाजपा में शामिल होने के बाद अभिषेक को आगे बढ़ाया जाने लगा.

राजधानी कोलकाता या जिलों में पार्टी की बड़ी सभाओं में अभिषेक के बड़े कट-आउट लगाए जाने का रिवाज बन गया है, जिनका मुकाबला केवल ममता के कट-आउट ही कर सकते हैं. लेकिन जल्द ही पार्टी में अभिषेक मनमानेपन को लेकर असंतोष दिखने लगा, और कइयों ने इस बात का उल्लेख किया कि अभिषेक की मर्जी के बिना टीएमसी में किसी को भी ढंग की भूमिका नहीं मिल सकती है. टीएमसी छोड़ चुके सुवेंदु अधिकारी और राजीब बनर्जी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने अभिषेक पर बेहिसाब ताकत हथियाने का खुलकर आरोप लगाया है. फिर, जबरन वसूली और कोयले की तस्करी में भागीदारी के आरोप सामने आने लगे. लेकिन न तो ममता ने और न ही अभिषेक ने उस पर कभी सफाई देने की कोशिश की. याद कीजिए कि कैसे ममता ने 2016 में भवानीपुर के अपने गढ़ में जमीन-जायदाद में अचानक वृद्धि के बारे में टीवी पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया था? यह सच है कि अभिषेक शुरू से ही ये कहते रहे हैं कि उसकी पत्नी का विदेश में कोई बैंक खाता नहीं है. लेकिन ममता की चुप्पी उनके भतीजे के काम नहीं आ रही है.

भाजपा के नेता इस आरोप की ताक़त को जानते हैं. ममता बनर्जी अपनी पार्टी की मुख्य प्रचारक हैं, और अगर उनकी छवि थोड़ी भी कलंकित होती है, तो यह भाजपा के लिए उत्साहजनक बात होगी. सीबीआई द्वारा दरवाजे पर दस्तक देने से पहले आरोपों को खारिज न करके, ममता और अभिषेक ने आगामी चुनाव के राजनीतिक एजेंडे को बदल दिया है. पहले यह बंगाली बनाम गैर-बंगाली (ममता का मुद्दा), भ्रष्टाचार और ‘कट मनी’ की टीएमसी की संस्कृति (भाजपा का मुद्दा) और सोनार बांग्ला (भाजपा का वादा) पर केंद्रित था. अभिषेक बनर्जी के आवास पर सीबीआई के छापे ने अब इसमें एक नया मुद्दा जोड़ दिया है – क्योंकि वंशवाद से लड़ना भाजपा का मज़बूत पक्ष रहा है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

लेखक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है. ये उनके निजी विचार है.


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