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संवत 2078 में शेयर बाज़ार के लिए आपके पास पैनी नज़र और जोखिम उठाने की भूख क्यों होनी चाहिए

संभावना यही है कि नये संवत में शेयर बाज़ार या तो खुद को संशोधित करेगा या कम-से-कम पिछले वर्ष की ज़्यादतियों को पचाने की कोशिश करेगा.

रमनदीप कौर का चित्रण | दिप्रिंट.

पिछले साल शेयरों की कीमतें अपनी सामान्य रफ्तार को तोड़ती नज़र आईं. आप यह भी कह सकते हैं कि ‘सेंसेक्स’ यानी शेयर कीमत सूचकांक ने अपने होश गंवा दिए. 30 शेयरों के मानक सूचकांक ने अगले सप्ताह समाप्त होने वाले पारंपरिक लेखा वर्ष में करीब 40 फीसदी की आश्चर्यजनक बढ़त हासिल की. एक दशक से ज्यादा हो गए, निवेशकों को ऐसा वर्ष शायद ही नसीब हुआ था. यह ऐसी जबर्दस्त उछाल थी जिसकी भविष्यवाणी घोर आशावादी राकेश झुनझुनवाला के सिवा किसी ने नहीं की थी. मार्च 2020 में कोविड के हमले के बाद से झुनझुनवाला के पोर्टफोलियो के मूल्य में 150 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है.

फिर भी, ‘असली’ दुनिया से दूरी की अनदेखी नहीं की जा सकती. कोविड की दूसरी लहर की त्रासदी झेल चुके वर्ष ने आर्थिक स्थिति पर कहर ढाया उसका पूरा जायजा सामने आ चुका है. अब आर्थिक स्थिति में जो सुधार हो रहा है उससे पिछले साल आर्थिक गतिविधियों में आई कमी की भरपाई ही इस साल हो पाएगी. अगर आप सरकारी आंकड़ों को देखें तो साफ होगा कि अर्थव्यवस्था उसी स्थिति में पहुंच पाएगी जिस स्थिति में कोविड से पहले थी. यह शेयर बाज़ार में 40 फीसदी की उछाल का औचित्य साबित करने वाली स्थिति नहीं है, जबकि पिछले साल शेयर कीमतों में दहाई वाले अंक में वृद्धि हुई थी. तुलना के लिए कह सकते हैं कि 2016 की दीवाली से पहले के छह वर्षों में सेंसेक्स में लगभग एक तिहाई अंकों की वृद्धि हुई और इसके बाद के तीन संवत वर्षों में इसमें अतिरिक्त 40 फीसदी की वृद्धि हुई यानी नौ वर्षों में करीब 80 फीसदी की बढ़त हुई. 2019 की दीवाली में कोई नहीं सोच रहा था बाज़ार क्षमता से कम मूल्य पर है.

इसलिए स्पष्ट है कि कोविड के आर्थिक असर से लड़ने के लिए भरपूर नकदी की उपलब्धता और नीची ब्याज दरों ने शेयरों की कीमतों में उछाल ला दी. इन सबके साथ यह भावना भी जोड़ी जा सकती है कि कॉर्पोरेट और बैंकिंग सेक्टर बेहतर हाल में हैं इसलिए वे तेज धुन पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं या बढने को तैयार हैं. इसके अलावा, बाज़ार पीछे मुड़कर नहीं देखता बल्कि भविष्य पर नज़र रखता है, वरना नाइका की ऑफर कीमत या पेटीएम की अपेक्षित ऑफर कीमत का क्या औचित्य है?

इस तरह के भागते-दौड़ते बाज़ार के लिए असली मसला मध्यावधि आर्थिक वृद्धि की उम्मीदों का है. सरकार सोचती है कि यह 8 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद कर सकती है लेकिन वह जो कुछ हासिल कर सकती है उसकी परवाह किए बिना हमेशा यही इसी तरह सोचती रही है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश का मानना है कि मध्यावधि वृद्धि का आंकड़ा 6 फीसदी के आसपास रह सकता है. भविष्य के प्रदर्शकों कमजोर करने वाले कई पर्याप्त कारण मौजूद हैं, मसलन— उपभोग में कमी, रोजगार का नुकसान, और इन सबके फलस्वरूप क्षमता के उपयोग का नीचा स्टार (फिलहाल 63 प्रतिशत, जबकि दीर्घकालिक औसत 73 प्रतिशत का रहा है. यह निजी निवेश की जरूरत से पहले समय के अंतराल में बदल जाता है. सरकारी निवेश से इस अंतराल को पाटा जा सकता है, लेकिन एक सीमा तक ही क्योंकि घाटे और सार्वजनिक ऋण का स्तर ऊपर चला जाता है.


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पर्यावरण, तकनीक, और प्लेटफॉर्म बिजनेस

सभी बातों के बावजूद इसमें कोई शक नहीं है कि हाल के सप्ताहों में बाजार में ज्यादा ही उछाल आई है, जैसा कि अक्सर होता है. यह बात फ़ेल रही है कि भारतीय बाज़ार दूसरे सभी बाज़ारों से ज्यादा महंगा है और इस कारण ख़रीदारी की गति धीमी हुई है. संभावना यही कि नया संवत वह अवधि होगी जिसमें बाज़ार या तो अपने को सुधारेगा या पिछले साल में हुई ज्यादती को पचाने की कोशिश करेगा.

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निवेशकों के लिए क्या विकल्प हैं? केंद्रीय बैंक बाज़ारों में यह संकेत दे रहे हैं कि वे जरूरत से ज्यादा नकदी को बटोर लेंगे, तब ब्याज दरें केवल ऊपर का रुख ही कर सकती हैं. इससे बॉन्ड की कीमतों पर दबाव बढ़ेगा और वे फिलहाल के लिए आकर्षक नहीं माने जाएंगे. सोने ने दो साल तक चमकने के बाद एक साल पहले अपनी चमक फीकी कर दी थी लेकिन इसकी मांग में वृद्धि और मुद्रास्फीति के खतरों के बावजूद वह महंगा बना हुआ है. रियल एस्टेट में कीमतें स्थिर हुई हैं लेकिन खाली पड़े हाउसिंग स्टॉक इसमें आसान पूंजीगत लाभ को धो देते हैं. तब उफान मारता शेयर बाज़ार ही एकमात्र विकल्प बचता है जिसमें उद्योग में उथल-पुथल मचाने वालों की भीड़ है (पर्यावरण, तकनीक, और प्लेटफॉर्म बिजनेस के बारे में सोचिए). उस क्षेत्र में खेलने के लिए शेयर का चुनाव करने की पैनी नज़र चाहिए और अधिकांश खुदरा निवेशकों के मुक़ाबले जोखिम मोल लेने की तेज भूख चाहिए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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