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तमिलनाडु के चुनावों से पहले रजनीकांत को मिली ‘भगवान की चेतावनी’ क्यों DMK के लिए वरदान है

डीएमके और अन्य दलों के अनीश्वरवादी समर्थक निश्चय ही अपने-अपने देवताओं से रजनीकांत को राजनीति से दूर रखने की गुपचुप प्रार्थना कर रहे होंगे.

रजनीकांत की फाइल फोटो.

रजनीकांत ने एक बार फिर चुनावी राजनीति में कदम नहीं रखने का फैसला किया है. तमिलनाडु विधानसभा के 2021 के चुनावों से पहले जनवरी में अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू करने की घोषणा के बाद पिछले कई सप्ताहों तक लोगों को दुविधा में रखने के बाद सुपर स्टार ने फिल्मी स्टाइल में स्टंट करते हुए एक और यूटर्न ले लिया है.

लेकिन रजनीकांत की राजनीति — जिसमें उन्होंने कभी कदम रखा ही नहीं — से ये संभवत: अंतिम विदाई पहले से ही तय मानी जा रही थी. यहां तक कि जब 3 दिसंबर को उन्होंने अपनी भावी योजनाओं के बारे में ट्वीट किया था, उस समय भी सत्ता के गलियारे में वेट-एंड-वॉच का संदेश सुना जा सकता था. यह दूसरा मौका है जब रजनीकांत पार्टी शुरू करने के अपने फैसले से कदम पीछे खींच रहे हैं. उन्होंने 2017 में भी इसी तरह की घोषणा की थी और फिर अपने फैसले से पीछे हट गए थे.

भगवान की चेतावनी’ पर अमल करने के रजनीकांत के फैसले के बाद दोनों द्रविड़ पार्टियां, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईडीएमके), राहत की सांस ले रही होंगी. डीएमके तथा पेरियार ईवी रामासामी के द्रविड़ कड़गम आंदोलन से निकले अन्य संगठनों के अनीश्वरवादी गुट तो गुपचुप प्रार्थना कर रहे होंगे कि रजनीकांत राजनीति से दूर ही रहें. इसकी वजह जानना मुश्किल नहीं है.


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डीएमके के लिए मैदान साफ है

राजनीति में रजनीकांत के प्रस्तावित दाखिले को लेकर डीएमके की चिंता के पर्याप्त कारण थे. मौजूदा परिदृश्य की बात करें तो सत्तारूढ़ एआईएडीएमके मतदाताओं के कोप का सामना करती दिख रही है. मतदाताओं के इस मोहभंग का सीधा और तात्कालिक लाभ डीएमके को ही मिलेगा. तमिलनाडु में राष्ट्रीय दलों के लिए बहुत कम गुंजाइश है. डीएमके के चुनाव प्रबंधक और रणनीतिकार रजनीकांत के राजनीति में आने पर पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों में होने वाले नुकसान के आकलन में जुट चुके थे. लेकिन यह खतरा अब टल गया है, तो डीएमके के पास खुश होने तथा अपने सितारों, और इस सुपर सितारे का आभारी होने के पर्याप्त कारण हैं.

चुनावी पंडितों की मानें तो रजनीकांत के लिए तमिलनाडु के चुनावों में झंडा गाड़ना संभव नहीं था. रजनीकांत का मूल नाम शिवाजी राव गायकवाड़ है और उनके पूर्वज महाराष्ट्र से थे. रामकृष्ण मठ में आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ने वाले रजनीकांत तमिलनाडु में लोकप्रियता के शिखर पर हैं. उनकी लोकप्रियता विशेष रूप से द्रविड़ पार्टियों के समर्थकों के बीच है, जिनकी आस्तिकता से चिढ़ के बारे में सबको पता है.

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इसलिए, 1996 के विधानसभा चुनाव में रजनीकांत का डीएमके-टीएमसी गठबंधन को अपना समर्थन देना हैरत की बात थी. फिर 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन किया, हालांकि वह पार्टी को तमिलनाडु में एक भी सीट दिलाने में मददगार नहीं बन सके. 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की शानदार जीत के बाद वह भाजपा के पक्ष में और भी अधिक मुखर हो गए. यहां तक कि उन्होंने राजनीति में ’आध्यात्मिक का पुट’ डालने का विचार भी पेश किया, चाहे इसका जो भी मतलब रहा हो. इसे भाजपा के हिंदुत्ववादी रुख को उनके समर्थन के रूप में लिया गया, जो कि सही व्याख्या नहीं थी.

हालांकि, हमेशा ही उनका रवैया टालमटोल वाला रहा है. पूर्णकालिक तौर पर सिनेमा से जुड़ी शख्सियत के रूप में रजनीकांत अपनी लोकप्रियता को किसी भी पार्टी के लिए वोटों में तब्दील नहीं कर सके, सीटें दिलाना तो दूर की बात है. ऐसे ही दौर में उनके दोस्तों ने उन्हें राजनीति में कदम रख कर खुद को आजमाने की सलाह दी होगी, और 2017 में उन्होंने ऐसा ही करने की घोषणा की. असंगठित फैन क्लबों से जुड़े उनके लाखों प्रशंसकों को रजनी मक्कल मंद्रम (आरएमएम) नामक एक अस्थाई मंच से जोड़ा गया, जिसे राजनीतिक पार्टी के रूप में लॉन्च किया जाना था.
उन दिनों एआईएडीएमके अपेक्षाकृत कमज़ोर स्थिति में थी, पार्टी में जयललिता जैसी कद्दावर शख्सियत का स्थान लेने वाला कोई नहीं था और जयललिता की सहयोगी वीके शशिकला को पार्टी के शीर्ष पदों से हटा दिया गया था. यानि 2020 के विपरीत, 2017 में रजनीकांत के लिए सचमुच में ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ वाली स्थिति थी. लेकिन 2017 में अकस्मात उन्होंने कभी नहीं वाला विकल्प चुन लिया.

तमिलनाडु की भावी राजनीति

हालांकि यह सच है कि कोविड-19 महामारी और अपने बेहद व्यस्त शूटिंग शेड्यूल के कारण उनके लिए स्वास्थ्य बहुत अहम है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये बात अनुभवी अभिनेता को पहले पता नहीं रही हों. इसलिए, पार्टी लॉन्च नहीं करने के उनके फैसले की असली वजह एक बड़ा रहस्य है. एक कारण शायद ये हो सकता है कि उन्हें इस बात का अहसास हुआ हो कि उनकी नई पार्टी को सरकार बनाने लायक पर्याप्त सीटें नहीं मिल पाएंगी. उन्होंने शायद यह भी महसूस किया होगा कि उनकी पार्टी बाकी सभी दलों के वोट काटेगी, जिसके कारण 2021 के चुनावों के बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन सकती है. शायद वह पूरी ज़िंदगी के लिए अपनी अंतरात्मा पर ये बोझ नहीं डालना चाहते थे.

लेकिन तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य पर रजनीकांत की भागीदारी होने या नहीं होने का कोई फर्क पड़ता नहीं दिखता है. जहां डीएमके और एआईएडीएमके अपने दम पर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें जीतने के बारे में ज़्यादा आश्वस्त नहीं हैं, वहीं भाजपा पैर जमाती दिख तो रही है, लेकिन इतनी नहीं कि विधानसभा में जादुई संख्या तक पहुंच सके. कांग्रेस और अन्य दल अपनी सीटों का आंकड़ा दो अंकों में पहुंचने और उम्मीदवारों की ज़मानत बचने पर ही खुद को भाग्यशाली समझेंगे. वैसे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हर वर्ग और पार्टी के नेताओं में रजनीकांत का आशीर्वाद पाने की होड़ दिखेगी.

तमिलनाडु की राजनीति में हमेशा फिल्म स्टारों का बोलबाला रहा है. अन्नादुराई से लेकर जयललिता, करुणानिधि और एमजीआर तक, हर मुख्यमंत्री का फिल्म उद्योग से एक लंबा जुड़ाव था. लेकिन वे किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से संबद्ध थे, जिसके कारण उन्हें चुनावों के दौरान आवश्यक प्रशासनिक और तकनीकी मदद मिली. वे सत्ता में आ सकते थे और पार्टी में अपना समर्थन बढ़ाने के लिए उसका इस्तेमाल कर सकते थे. रजनीकांत के दौड़ से बाहर होने के बाद, अब 2021 का विधानसभा चुनाव फिल्म उद्योग से जुड़ी किसी बड़ी शख्सियत के बगैर राज्य का पहला चुनाव होगा.
हालांकि बहुत कुछ भावी परिस्थितियों पर निर्भर करता है और संभव है कई और आश्चर्यजनक घटनाक्रम देखने को मिले. तमिलनाडु का राजनीतिक परिदृश्य अभी प्रकट होना शुरू ही हुआ है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)


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