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कोयम्बटूर के ग्रामीण हाथियों की पूजा करते हैं और उनसे डरते भी हैं, संघर्ष में दोनों की होती है मौत

एक ही अवधि में तमिलनाडु में बिजली का करंट लगने से 29 हाथियों और 152 लोगों की मौत हुई है.

अनाइकत्ती के रास्ते में साइन बोर्ड पर यात्रियों के लिए लिखा हुआ है कि हाथियों के लिए रास्ता दें । अक्षया नाथ । दिप्रिंट

कोयंबटूर: कोयम्बटूर के पुचियुर गांव के पास थडगाम रिजर्व फ़ॉरेस्ट की ओर एक संकरे कंटीले रास्ते पर, एक छोटा सा ताज़ा टीला है जिसे ग्रामीण रजवा पोधाइच एडाम कहते हैं, वह स्थान जहां राजा को दफनाया गया था.

25 मार्च को, जंगली नर हाथी को बिजली का शॉक लगाकर मौत के घाट उतार दिया गया, जो कि पिछले 20 दिनों की अवधि में तमिलनाडु में पांचवी घटना है.

और जहां लोगों में राजा के लिए दुख की लहर है, वहीं इसके विपरीत भी एक आंकड़ा है- हाथियों द्वारा कुचले गए ग्रामीणों का. इस साल अकेले कोयम्बटूर वन प्रभाग में पांच लोगों की मौत हो चुकी है.

पुछियूर के पास थडगाम रिजर्व फॉरेस्ट की तलहटी जहां राजा को दफनाया गया है । अक्षया नाथ । दिप्रिंट

सिकुड़ते स्थानों, जंगलों और बढ़ते गांवों को लेकर इस घातक मानव-पशु संघर्ष में भारत के वन संरक्षण अधिकारियों के लिए पॉलिसी एक पहेली बनी हुई है. विकास की एक-दूसरे को काटती नीतियां, वनवासियों के भूमि अधिकार और हस्तक्षेप से पूरी तरह से प्रतिबंधित हाथी गलियारे सभी एक-दूसरे के विरोधी हैं. नीलगिरी, कृष्णागिरी, कोयंबटूर, धर्मपुरी, इरोड, तिरुपुर, डिंडीगुल ऐसे स्थान हैं जहां निरंतर चलने वाला संघर्ष निराशाजनक स्थिति में पहुंच गया है.

7 मार्च को, धर्मपुरी जिले के काली कविंदर कोट्टई में पुचियूर से लगभग 240 किलोमीटर दूर, हाथियों का एक झुंड एक बिजली की बाड़ की जद में आ गया, जिसे एक किसान ने जंगली सूअरों को अपने खेत पर कहर बरपाने से रोकने के लिए लगाया था. इस घटना में तीन हाथियों की मौत हो गई. बमुश्किल 10 दिन बाद, 18 मार्च को, वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा केलावल्ली गांव से भगाए जा रहे एक जंगली हाथी की बिजली का तार छू जाने से मौत हो गई. यह घटना कैमरे में कैद हो गई.

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केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 2019 के बाद के आंकड़ों से पता चलता है कि तमिलनाडु में बिजली का करंट लगने से 29 हाथियों की मौत हुई है. इसी अवधि में हाथियों के हमले से राज्य में 152 लोगों की मौत हो चुकी है.

बस्तियां जंगलों की तरफ बढ़ने के साथ, हाथी अब भोजन और पानी की तलाश में लगातार बस्तियों की तरफ आते रहते हैं. हो सकता है कि यहां हाथियों की पूजा की जाती हो, लेकिन करीबी और व्यक्तिगत स्तर पर भिड़ंत की वजह से, पुचियुर के निवासियों के मन गहरी श्रद्धा और भय का भाव एक साथ बैठा हुआ है.

तीन साल पहले रात के घुप्प अंधेरे में एक हाथी ने एम राजमणि का दरवाजे पर दस्तक दी. नींद से जागकर जब उसने दरवाजा खोला तो सामने एक विशालकाय जानवर खड़ा था.

पुचियूर गांव से 30 किमी दूर अनाईकट्टी क्षेत्र में रहने वाली 49 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर राजमणि ने कहा, “मैं चिल्लाई, ‘कडवुले बघवाने विग्नेश्वरा (भगवान विग्नेश्वर, हाथी के सिर वाले हिंदू भगवान गणेश का एक नाम) कृपया मेरी रक्षा करें और मैं बेहोश हो गया.”

अनाईकुट्टी में अपने घर के बाहर राजमणि और पट्टिस्वरम । अक्षया नाथ । दिप्रिंट

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राजमणि तो मुठभेड़ में बच गईं, लेकिन उसका भाई इतना भाग्यशाली नहीं था. इस साल मार्च में एक हाथी से मुठभेड़ के बाद उनकी मौत हो गई थी.

लगातार फैलते खेत, सरकार हुई चौकन्नी

राजा का शव गांव के एक पुजारी को मिला था. हाथी को पहाड़ी थडगाम आरक्षित वन की तलहटी में पूचियुर गांव की सीमा के पास आखिरी घर के पास बिजली का झटका लगा था. उसके ऊपर बिजली का खंभा गिर गया. एक वन अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि हो सकता है कि खंभा गिर गया हो जब हाथी ने खुद उससे अपना शरीर खुजलाने की कोशिश की हो.

जब भी किसी हाथी को बिजली का झटका लगता है, सरकार अपनी चौकसी बढ़ा देती है.

राजा की मृत्यु के तीन दिन बाद, तमिलनाडु सरकार के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव सुप्रिया साहू ने सोशल मीडिया पर वन अधिकारियों को गश्त करते हुए वीडियो साझा किया.

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, “हम जिला कलेक्टरों और टैंजेडको के साथ काम कर रहे हैं …ताकि अधिकारी यह सुनिश्चित कर सकें कि डोर-टू-डोर चेक किया जाए, आदतन अपराधियों पर नजर रखी जाए, राजस्व अधिकारी लगातार गश्त करते रहें जिससे अवैध (इलेक्ट्रिक) कनेक्शन का पता लगाया जा सके.”

हालांकि, अपनी फसल की रक्षा करने की कोशिश कर रहे किसान हमेशा इन उपायों को नहीं अपनाते हैं.

हाथियों के लिए, खेतों की फसले दावत जैसी हैं. वन क्षेत्रों के पास के किसान या तो गड्ढे बनाकर, जमीन खोदकर, या बिजली की बाड़ का उपयोग करके अपनी जमीन पर पशुओं की घुसपैठ को रोकते हैं.

अन्नामलाई टाइगर रिजर्व के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, गांवों में हाथी दिखना 2005-06 में शुरू हुआ, जब जानवर अपने सिकुड़ते वन क्षेत्रों से बाहर निकलने लगे. लेकिन यह हर साल बदतर होता जा रहा है क्योंकि कृषि भूमि का विस्तार हो रहा है.

अपनी पहचान को जाहिर न करने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, “आरक्षित वन क्षेत्रों के आसपास कई खेत हैं. लोग जंगल की तलहटी तक जमीन खरीद रहे हैं. उन्होंने नारियल, केले आदि फसलों की सिंचाई और खेती शुरू कर दी है और इसने हाथियों को वन क्षेत्र से आकर्षित करना शुरू कर दिया है.”

वन्यजीवों की रक्षा करते हुए ग्रामीणों को शांत करने के प्रयास में, तमिलनाडु सरकार किसानों को बिजली की बाड़ लगाने की अनुमति देती है. वन अधिकारी ने कहा, “यह केवल एक छोटा झटका देता है, बिना किसी बड़े नुकसान के जानवर को चेतावनी के रूप में पर्याप्त है.” लेकिन पर्यावरणविदों का आरोप है कि निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है.

कोयम्बटूर के पर्यावरणविद् के मोहन राज ने कहा, “मौत पर खाली प्रतिक्रियाएं ही हैं, कोई सक्रिय नियामक तंत्र नहीं है. किसी जानवर के मरने के बाद ही उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए जाते हैं.”

भय और क्रोध

कोयम्बटूर शहर से एक घंटे से अधिक की दूरी पर, अनाईकट्टी की सुरम्य पहाड़ियों में पर्यटकों को उन जंगली जानवरों का सम्मान करने के लिए याद दिलाने वाले कई साइनबोर्ड हैं ये पहाड़ियां जिनका घर हैं. एक साइनबोर्ड पर लिखा है, “हाथियों के पास रास्ते का अधिकार है, बाधा न डालें.” एक और बस लोगों को “जंगली जानवरों को परेशान नहीं करने” का निर्देश देती है.

लेकिन वे त्रासदियों को सामने आने से नहीं रोकते हैं. 67 साल के एम मरुधाचलम ने किसी जंगली जानवर को ‘परेशान’ नहीं किया. 2 मार्च को सुबह 7 बजे के करीब वह शौच के लिए अपने घर के पास एक छोटे से नाले में गए.

उनके 35 वर्षीय बेटे एम पट्टीस्वरन ने कहा, “मेरे पिता को तीन हाथियों के झुंड में से एक हाथी ने रौंद डाला था, जो नदी के पास आया था.”

तमिलनाडु सरकार ने अंतिम संस्कार करने के लिए पट्टीस्वरन के परिवार को 50,000 रुपये दिए, और मुआवजे के रूप में 4.5 लाख रुपये देने का वादा किया.

अन्नामलाई टाइगर रिजर्व के अधिकारी के अनुसार, 2022 में, 200 से अधिक किसानों को हाथियों और अन्य जंगली जानवरों द्वारा नुकसान किए गए फसल के मुआवजे के तौर पर 2 करोड़ रुपये दिए गए.


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पट्टीस्वरन के लिए, मुआवजा महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि हाल की घटनाएं वन अधिकारियों के लिए कड़ी निगरानी सुनिश्चित करने के लिए एक वेक-अप कॉल हैं.

“हम केवल अब उम्मीद करते हैं कि हाथी के हमले के कारण यह यहां आखिरी मौत थी.”

जिस दिन मरुदाचलम की मृत्यु हुई, एक अन्य किसान, पी महेश कुमार, जो पांच किलोमीटर दूर रहता था, को भी उसके खेत में एक हाथी ने मार डाला. मोहन ने कहा, “किसानों को लगता है कि जानवरों के प्रवेश से होने वाले नुकसान के लिए उन्हें पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया गया है.”

अगर पूचियुर के ग्रामीण डर और खौफ के बीच झूल रहे हैं, तो यहां अनाईकट्टी में लोगों में गुस्सा भरा हुआ है.

तमिलनाडु किसान संघ की महिला शाखा की अध्यक्ष एम महालक्ष्मी ने कहा, “पहले केवल फसलें नष्ट होती थीं, लेकिन अब वे घरों को नष्ट कर रहे हैं और लोगों को भी मार रहे हैं. हम एक तनावपूर्ण जीवन जीते हैं और इस क्षेत्र के 80 प्रतिशत से अधिक किसान गरीबी रेखा से नीचे हैं.” सदस्य मांग कर रहे हैं कि सरकार उनके मुद्दे को उठाए और उनकी मदद के लिए पहल के साथ अधिक सक्रिय हो.

खनन से दोनों तरफ हो रहा नुकसान

बढ़ते शहरीकरण की वजह से संघर्ष और ज्यादा बढ़ गया. दोनों तरफ काफी मौतें हुई हैं.

मोहन ने कहा, “शहरीकरण के कारण हम वन क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं. भूमि जो पहले जानवरों द्वारा उपयोग की जाती थी अब खेती या खनन गतिविधियों के कारण प्रतिबंधित हो गई है.”

कट्टांचि पर्वत की तलहटी में खनन के कारण बना नैकेनपलायम । अक्षया नाथ । दिप्रिंट

और खेती ही एक मात्र खतरा नहीं है. कोयंबटूर के कट्टांची पर्वत की तलहटी में खनन की वजह से नैकेनपलायम बन रहे हैं. लाल रेत में बड़े-बड़े गड्ढे खोदे गए थे. गड्ढा युक्त भूमि बंजर पड़ी रहती है और पानी या पेड़-पौधों से रहित होती है. स्थानीय निवासियों का कहना है यह 15 साल तक चला जब तक कि मद्रास उच्च न्यायालय ने 2021 में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
जैसे ही ईंटों और भट्टों के लिए लाल रेत का खनन किया गया, पहाड़ी वन क्षेत्र के हाथी भोजन की तलाश में गांवों में प्रवेश करने लगे.

थडगाम घाटी संरक्षण समिति के एस. गणेश ने कहा, “बेकार खुदाई के प्रभाव ने किसानों और वन्यजीवों को खतरे में डाल दिया है.” जबकि बड़े पैमाने पर खनन कार्य बंद हो गया है, गणेश का आरोप है कि लोग अभी भी कई जगहों पर लगभग 50 से 100 फीट की गहराई तक अवैध रूप से लाल रेत और नदी की रेत खोद रहे हैं.

गणेश ने कहा, “करीब 120 विद्युत लाइन के खंभे हैं जो 22 पर्वतीय गांवों और कृषि क्षेत्रों को बिजली की आपूर्ति करते हैं. वे कमजोर स्थिति में हैं क्योंकि उन्होंने (ईंट भट्ठा खनन करने वालों) बिजली के खंभों के पास रेत खोदी है जिससे बिजली की उचित आपूर्ति प्रभावित हुई है. अब, ये बिजली के खंभे खतरे की स्थिति में हैं क्योंकि हवा और अन्य भूस्खलन के कारण ये नीचे गिर सकते हैं.”

यह बिजली का खंभा स्थिर नहीं था जिसने राजा को गिरा दिया और मार डाला. ग्रामीणों ने उसे राजा नाम दिया, क्योंकि यह वन क्षेत्र में हाथियों को संबोधित करने का एक सामान्य सम्मानजनक तरीका है.

उन्होंने हाथी के पोस्टमॉर्टम के बाद उसे अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दी, उसे दफनाने से पहले फूल और माला से नहलाया.

पुचियूर गांव के निवासी राजा की मौत पर शोक मनाते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें इस बात का भी डर है कि राजा के साथ अगली मुठभेड़ में उनमें से एक की जान जा सकती है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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