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महात्मा गांधी और आंबेडकर ने हेडगेवार के साथ बातचीत क्यों नहीं की

गांधी के तमाम विचारों में से भाजपा-आरएसएस ने सिर्फ स्वच्छता को चुना है और गांधी को लगभग सफाई कर्मचारी बना दिया है. आरएसएस को गांधी में इसके अलावा काम का कुछ नहीं मिला.

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बीआर आंबेडकर और महात्मा गांधी | कॉमन्स

मोहनदास करमचंद गांधी, केशव बलिराम हेडगेवार और बी.आर. आंबेडकर तीनों की जीवन यात्राओं में ऐसा साझा समय काफी है, जब वे सक्रिय थे. तीनों का शुरुआती कार्यक्षेत्र अविभाजित मुंबई स्टेट था. माना जा सकता है कि तीनों को एक दूसरे के बारे में मालूम था और एक, दूसरे और तीसरे के विचारों से वे वाकिफ रहे होंगे.

दक्षिण अफ्रीका से लौटकर गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाल ली थी और 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन के बाद उनकी राष्ट्रीय नेता की छवि बन चुकी थी. आंबेडकर ने उससे तीन साल पहले 1917 में भारतीय जाति व्यवस्था पर अपनी पहली थीसिस कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पेश करके छपवा ली थी. 1925 आते-आते वे डिप्रेस्ड क्लासेस यानी उस समय अछूत कहे जाने वालों की आवाज़ के तौर पर स्थापित हो चुके थे. इसी नाते 1932 में सेकेंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में उन्हें गांधी के साथ लंदन आमंत्रित किया गया था. हेडगेवार ने कांग्रेस को अलविदा कहकर 1925 में ही आरएसएस का गठन कर लिया था. उनकी मौत 1940 में हुई.

गांधी और हेडगेवार में अबोलापन

भारत के इतिहास में कम से कम 15 साल का समय ऐसा है, जब गांधी, आंबेडकर और हेडगेवार साथ-साथ सक्रिय थे. ये एक दिलचस्प तथ्य है कि जहां गांधी और आंबेडकर एक दूसरे के साथ तमाम असहमतियों के बावजूद लगातार संवाद में थे और एक दूसरे के विचारों से सहमत-असहमत हो रहे थे, वहीं इन दोनों नेताओं ने हेडगेवार के साथ कोई संवाद नहीं किया. गांधी और हेडगेवार के बीच सिर्फ एक मुलाकात हुई, लेकिन सहमति का कोई बिंदु बन नहीं पाया. गांधी ने हेडगेवार को हिंसा छोड़ने की नसीहत दी थी, जिस पर हेडगेवार ने कहा कि उनका संगठन हिंसा नहीं करता.


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यह दिलचस्प है कि बीजेपी और उसका पितृ संगठन आरएसएस आज गांधी की बात करता है और उनकी विरासत में अपने लिए एक कोना तलाश रहा है. लेकिन गांधी के जीते जी इस साम्य या साझा यात्रा की कहीं कोई गुंजाइश नहीं थी. बल्कि गांधी की हत्या में जिस विचारधारा से प्रभावित युवक शामिल थे, वे वही विचारधारा है, जिसे आरएसएस ने आगे बढ़ाया. ये भी रोचक है कि गांधी के तमाम विचारों में से बीजेपी-आरएसएस ने सिर्फ स्वच्छता को चुना है और गांधी को लगभग सफाई कर्मचारी बना दिया है. उदारवादी लोकतंत्र, सर्वधर्म सम्भाव (जिसे भारत में धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है), अहिंसा, ग्राम स्वराज, नैतिकता जैसे गांधीवादी मूल्यों की बात करने से भी बीजेपी कतराती है.

हिंदू राष्ट्र के विचारों से टकराते आंबेडकर

हेडगेवार, गोलवलकर और सावरकर एक बार आंबेडकर से मिलने जरूर गए थे. लेकिन आंबेडकर अपने लाखों शब्दों के भाषण और लेखन के 21 खंडों में संकलित रचनाओं में कहीं हेडगेवार का जिक्र भी नहीं करते हैं. यह इस बात का प्रमाण है कि आंबेडकर जिस लक्ष्य के लिए जुटे थे, उसमें हेडगेवार, उनके विचार और उनका संगठन बिल्कुल अप्रासंगिक है. लेकिन यही बात गांधी के बारे में नहीं कही जा सकती, जिनसे आंबेडकर बार-बार संवाद करते हैं.

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जहां तक आंबेडकर की बात है तो उनका ऐतिहासिक प्रोजेक्ट भारत में सामाजिक-आर्थिक भेदभाव रहित सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना था, जिसका आरएसएस की हिंदू राष्ट्र की अवधारणा से कोई मेल ही नहीं था. आंबेडकर अपनी किताब पाकिस्तान एंड पार्टिशन ऑफ इंडिया (1945) में साफ लिखते हैं कि- ‘अगर हिंदू राष्ट्र बनता है तो ये इस देश के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी. हिंदू चाहें जो भी कहें, हिंदूवाद स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का दुश्मन है. हिंदू राष्ट्र को हर कीमत पर रोकना होगा.’

गांधी और आंबेडकर में समानता और द्वंद्व

जिस समय आंबेडकर जाति मुक्ति की अवधारणा पर काम कर रहे थे, उस समय गांधी भारत की राजनीतिक आजादी को सबसे महत्वपूर्ण मानकर स्वतंत्रता संग्राम में जुटे थे. उनका मानना था कि भारतीय समाज के आपसी अंतर्विरोधों को आजादी के बाद हल किया जा सकता है. छुआछूत को वे हिंदू समाज का अपराध मानते थे और इसका पश्चाताप करने के लिए उन्होंने अपना मैला खुद उठाने की परंपरा शुरू करने की कोशिश की. हालांकि भारतीय समाज इसके लिए तैयार नहीं था. गांधी के तमाम प्रयासों के बावजूद छुआछूत 21वीं सदी में भी कायम है, जो ये साबित करती है कि आंबेडकर की इतिहास दृष्टि ज्यादा वैज्ञानिक थी.

लेकिन एक बात ध्यान रखने योग्य है कि आंबेडकर गांधी को इस लायक मानते थे, या इतना जरूरी मानते थे कि उनसे बातचीत की जाए. दोनों के बीच लगातार संवाद होता है. दोनों एक दूसरे से टकराते हैं, पर बातचीत जारी रखते हैं. राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस और पूना पैक्ट से शुरू हुई उनकी बातचीत एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में जारी रहती है और आजादी के बाद भी संविधान सभा में बाबा साहेब की हिस्सेदारी तक उसमें कभी व्यवधान नहीं आता. नेहरू कैबिनेट में बाबा साहेब का शामिल होना भी गांधी की सहमति के बिना संभव नहीं था.


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दो छोर पर गांधी और हेडगेवार

वहीं, गांधी और हेडगेवार दो अलग छोर पर नजर आते हैं. इसका ऐतिहासिक सूत्र तिलकवाद बनाम राणाडे-गोखलेवाद में है. बाल गंगाधर तिलक भारत का प्राचीन गौरव फिर से हासिल करना चाहते थे, जिसमें ब्राह्मणों के नेतृत्व में समाज का संचालन होना था. वे मराठी में अपने संपादकीय में लिखते हैं कि अगर अंग्रेज न आते तो पूरे भारत पर पेशवा का राज होता. गौरवशाली भारत के लिए वे बार-बार पीछे मुड़कर देखते हैं.

इसलिए तिलक समाज सुधार की हर कोशिश के खिलाफ खड़े होते हैं. वे अछूतों और पिछड़ी तथा किसान जातियों को राजकाज में हिस्सेदार बनाए जाने के विरोधी हैं. वे अंतर्जातीय विवाह के विरोधी हैं. वे महिलाओं को आजादी देने के खिलाफ हैं. कसेंट ऑफ सेक्स की उम्र बढ़ाए जाने के खिलाफ वे आवाज उठाते हैं. इसके मुकाबले महादेव गोविंद राणाडे तथा गोपाल कृष्ण गोखले समाज सुधार के पक्षधर हैं. ये दोनों भी क्रांतिकारी नहीं हैं. वे वर्ण व्यवस्था का उन्मूलन भी नहीं चाहते. लेकिन वे सब को साथ मिलाकर चलने के विचार के समर्थक हैं. आदर्श समाज की अपनी कल्पना में वे तिलक की तरह बार-बार पीछे मुड़कर ग्रंथों की तरफ नहीं देखते. कांग्रेस के अंदर काम करते हुए दोनों ही समाज सुधार आंदोलन में शामिल रहे.

अपनी किताब गांधी, राणाडे और जिन्ना में आंबेडकर दोनों धाराओं के बारे में लिखते हैं कि – ‘उस समय का बौद्धिक वर्ग दो धाराओं में बंटा था. पहला वर्ग कट्टरवादी था, लेकिन अराजनैतिक था. दूसरा वर्ग अपने विचारों में आधुनिक था, लेकिन उसके लक्ष्य राजनैतिक थे. पहले वर्ग का नेतृत्व चिपलूणकर और तिलक कर रहे थे.’ आंबेडकर की राय में ये दोनों धाराएं समाज सुधार के खिलाफ काम कर रही थीं क्योंकि दूसरी धारा राजनीतिक आजादी को ज्यादा महत्व देकर समाज सुधार के कार्यों को स्थगित करना चाहती थी. दूसरे वर्ग का नेतृत्व आगे चलकर गांधी के हाथ में आ गया. लेकिन उन्हें ज्यादा शिकायत पहली धारा से है, जो पुरातन विचारों के हिसाब से भारत बनाना चाह रही थीं.

गांधी के आने के बाद से कांग्रेस के आंदोलन का इलीट चरित्र नष्ट हो जाता है और इसमें हर तरह के लोग जुड़ जाते हैं. तिलकवादियों को ये बात समझ में आ जाती है कि ऐसी कांग्रेस उसके काम की नहीं है. आरएसएस की स्थापना की जमीन यहीं पर तैयार होती है.

तिलकवादी धारा पर आगे बढ़ते हैं हेडगेवार

इतिहास के इसी बिंदु पर हेडगेवार कांग्रेस से अलग राह चुन लेते हैं और खुद को तिलक की धारा के साथ जोड़ लेते हैं. वे और सावरकर नहीं चाहते कि भारतीय समाज में ऐसा कोई बदलाव आए, जिसका नेतृत्व एक अब्राह्मण (गांधी) करें. इसी लक्ष्य के साथ हेडगेवार 1925 में आरएसएस बनाते हैं और इसका लक्ष्य हिंदुओं को संगठित करना होता है. इसके साथ ही आजादी की लड़ाई से हेडगेवार खुद को पूरी तरह अलग कर लेते हैं. आरएसएस का लक्ष्य अराजनैतिक रखना तिलक की धारा के मुताबिक ही था.


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आजादी की लड़ाई में आंबेडकर भी शामिल नहीं हैं. लेकिन जहां हेडगेवार वर्ण व्यवस्था आधारित समाज बनाने में जुटते हैं, वहीं आंबेडकर जातिमुक्त भारत की कल्पना को साकार करने के अभियान का नेतृत्व करते हैं. गांधी दोनों के बीच खड़े हैं जो समाज सुधार आंदोलन को स्थगित कर आजादी की लड़ाई को सफल बनाने में जुटे हैं. वे तिलक और हेडगेवार की तरह कट्टर जातिवादी समाज नहीं बनाना चाहते, लेकिन आंबेडकर की तरह जाति का विनाश भी नहीं चाहते. वे इन सवालों को आजादी के बाद हल करना चाहते हैं.

गांधी और आंबेडकर दोनों समाज सुधार चाहते हैं. गांधी जो काम आजादी पाने के बाद करना चाहते हैं, वह काम आंबेडकर तत्काल किए जाने के पक्षधर हैं. इसलिए दोनों के बीच बातचीत चलती रहती है. दूसरी तरफ हेडगेवार समाज सुधार विरोधी हैं. इसलिए गांधी और आंबेडकर उनसे बातचीत करने की जरूरत महसूस नहीं करते.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये लेख उनका निजी विचार है)

4 टिप्पणी

  1. यह लेख या तो अज्ञानता से लिखा गया है या फिर जानते हुए भ्रम फैलाने का प्रयास किया गया है । तथ्यात्मक रूप से यह लेख झूठ का पुलिंदा है, वामपंथी षडयंत्र!

  2. क्या आरएसएस का उद्देश्य हिंदुओ को संगठित करना नहीं है,क्या वे हिन्दू राष्ट्र की कल्पना नहीं करते,यदि नहीं तो आरएसएसएस की कल्पना में क्या क्या है?आप बताइए

  3. बेशक,ये सभी बातें सत्य हैं मगर अब हमें बीते समय की राख को अपने हाथों से मथने से कुछ हासिल नहीं होगा…बेहतर है हम सभी पुरानी गलतियों को भुलाकर भारत को सही दिशा में लेकर चलें,जहाँ जातिवाद ना हो गरीबी ना हो अशिक्षा ना हो और मानव का मानव से कोई भेदभाव भी ना हो

  4. ashish:- aaj v desh ki satta uss kattar hindutav ko badhawa dene ki taraf aagrasar hai…. jaha pahle musalman uske baad untouchables(sc/st) ko uske aadhikaro se wanchit karne ka pura prayas hai… or constitution ko badalne ki prakiriya jari hai…..

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