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बीजेपी को जिन राजा महेंद्र प्रताप पर प्यार आ रहा है, उन्होंने वाजपेयी को हराया था

राजा महेंद्र प्रताप का एएमयू में गहरा सम्मान है और यहां शतवार्षिकी समारोह हुआ तो उन्हें ही मुख्य अतिथि बनाया गया. ये भी नहीं भूलना चाहिए कि महेंद्र प्रताप अटल बिहारी वाजपेयी को हराकर सांसद बने थे.

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राजा महेंद्र प्रताप की तस्वीर, उनकी आत्मकथा से

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को लेकर यूपी की सियासत गर्म है. हिंदू जागरण मंच और भाजपा के कई नेताओं के बाद अब राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद कमान संभाल ली है. पिछले दिनों योगी आदित्यनाथ ने यह ऐलान किया कि एएमयू को जमीन दान करने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर अलीगढ़ में विश्वविद्यालय बनाया जाएगा. साथ ही ये आरोप भी लगाया कि ‘राजा महेंद्र प्रताप ने ही एएमयू के लिए ज़मीन दान में दी थी. लेकिन, एएमयू ने उन्हें भुला दिया.’

राजा महेंद्र प्रताप सिंह आजादी के आंदोलन के सेनानी थे और मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित थे. उन्होंने अफगानिस्तान में निर्वासित भारतीय सरकार का गठन किया था. वे स्वदेशी आंदोलन में भी शामिल रहे. आजादी के बाद से सांसद बने और इस क्रम में उन्होंने जनसंघ के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था.

योगी आदित्यनाथ के इस आरोप को एएमयू प्रशासन सिरे से नकारता है कि एएमयू राजा महेंद्र प्रताप सिंह की दी हुई जमीन पर बना है. इंडिनय एक्सप्रेस में छपी एक खबर में एएमयू के हवाले से बताया गया है कि ये सही है कि महेंद्र प्रताप ने 3.04 एकड़ जमीन यूनिवर्सिटी को लीज पर दी थी, जिसका किराया दिया जाता है. लेकिन यूनिवर्सिटी की कुल जमीन का ये छोटा सा हिस्सा है. यूनिवर्सिटी की ज्यादातर जमीन अंग्रेजों से खरीदी गई और कुछ अन्य दानदाता भी थे.


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एएमयू प्रवक्ता प्रोफ़ेसर राहत अबरार कहते हैं कि ‘सर सैय्यद अहमद खां के सपनों के ‘मदरसा’ का उद्घाटन 24 मई, 1875 को ही कर दिया गया था. दो साल बाद 7 जनवरी, 1877 को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एम.ए.ओ.) कालेज की बुनियाद रख दी गई. वहीं दूसरी तरफ़ देखें तो राजा महेन्द्र प्रताप का जन्म ही 1 दिसंबर, 1886 को हुआ. उनके जन्म तक एम.ए.ओ. कालेज पूरी बनकर तैयार था.

प्रोफ़ेसर राहत अबरार बताते हैं कि राजा महेन्द्र प्रताप एमएओ कालेज के छात्र ज़रूर थे. उन्होंने सर सैय्यद अहमद खां को देखा था और उनके जनाज़े में शामिल भी हुए थे. सर सैय्यद भी उन्हें मानते थे. इन बातों का ज़िक्र खुद राजा महेन्द्र प्रताप ने अपनी आत्मकथा में किया है.

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प्रोफ़ेसर अबरार अलीगढ़ में राजा महेन्द्र प्रताप के नाम पर विश्वविद्यालय बनाए जाने की घोषणा का स्वागत करते हैं. वे कहते हैं, ‘एम.ए.ओ. कालेज के छात्र के नाम पर इसी अलीगढ़ में यूनिवर्सिटी बन रही है, एएमयू के लिए इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात क्या होगी.’

बता दें कि एएमयू के मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी के मेन हॉल में जहां यूनिवर्सिटी के लिए योगदान करने वाले लोगों की फोटो लगी हैं, उनमें राजा महेंद्र प्रताप सिंह की फोटो भी विवरण के साथ मौजूद है. ये फोटो लाइब्रेरी के शोध खंड के ठीक ऊपर लगी हुई है.


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एएमयू के सेन्टर ऑफ़ एडवांस स्टडीज इन हिस्ट्री के प्रोफ़ेसर मोहम्मद सज्जाद बताते हैं कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पिता राजा घनश्याम सिंह एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान (1817-1898) के अच्छे दोस्त थे. इसी नाते राजा घनश्याम सिंह ने 250 रुपये का दान दिया, जिससे हॉस्टल के एक कमरे का निर्माण किया गया था. यह वर्तमान में सर सैयद हॉल (साउथ) का कमरा नंबर 31 है जहां आज भी उनका नाम अंकित है.

प्रोफ़ेसर सज्जाद आगे बताते हैं कि भाजपा राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की जिस ज़मीन की बात करती है, वह वर्तमान में एएमयू कैम्पस से लगभग चार किलोमीटर दूर पुराने शहर अलीगढ़ के जीटी रोड पर सिटी हाई स्कूल के खेल मैदान के रूप में इस्तेमाल हो रही है.

इस त्रिभुज के आकार की भूमि को 1929 में 90 वर्षों के लिए लीज पर एएमयू को दिया गया था. लीज की अवधि सितंबर, 2019 में समाप्त हो रही है. ऐसे में एक बार फिर से इस भूमि का स्वामित्व राजा महेंद्र प्रताप सिंह के वंशजों को वापस मिल जाएगा, जिन्हें एएमयू से लीज की राशि हर साल प्राप्त होती थी.

एएमयू के सौ साला जश्न के मुख्य अतिथि बने थे राजा महेन्द्र प्रताप

राजा महेन्द्र प्रताप ने यहां से शिक्षा तो प्राप्त की लेकिन ग्रेजुएशन की पढ़ाई वे पूरी नहीं कर पाए. ये बात उन्होंने अपनी पुस्तक ‘माय लाइफ़ स्टोरी ऑफ़ फिफ्टी फ़ाइव ईयर्स’ में लिखी है. उनकी ये पुस्तक वर्ल्ड फेडरेशन, देहरादून से 1947 में प्रकाशित हुई थी. इस पूरी किताब में खुद या अपने पिता द्वारा एम.ए.ओ. कालेज को किसी भी तरह की जमीन दान दिए जाने का कोई ज़िक्र नहीं किया है. बता दें कि मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज में राजा महेन्द्र प्रताप का दाख़िला 1895-1896 में हुआ था. वह अपनी जीवनी में बताते हैं कि उनके पिता सर सैय्यद अहमद खान के दोस्त थे और इसी वजह से उनका दाखिला मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज में कराया गया था.

एएमयू को आज भी इस बात पर गर्व है कि उसने राजा महेन्द्र प्रताप और सैकड़ों युवाओं को तालीम देकर अपने मुल्क के काम आने के लिए प्रेरित किया. हिन्दू-मुसलमान से ऊपर उठकर इंसानों के लिए काम आने की शिक्षा दी. एएमयू की मोहब्बत अपने इस छात्र के लिए कभी कम नहीं हुई. शायद यही कारण था कि 1977 में जब एएमयू ने अपना शताब्दी वर्ष मनाया तो इस विशाल समारोह के मुख्य अतिथि राजा महेंद्र प्रताप थे.

महेन्द्र प्रताप ने की थी प्रेम महाविद्यालय की स्थापना

24 मई, 1909 को राजा महेन्द्र प्रताप ने वृन्दावन में अपने महल में ही प्रेम महाविद्यालय की न सिर्फ़ स्थापना की, बल्कि अपने पांच गांव भी (जिनकी आमदनी सब खर्च काटकर लगभग 33 हज़ार रुपए प्रति वर्ष होती थी) इस संस्थान को भेंट कर दी. ये पॉलिटेक्निक की शिक्षा देने वाला संस्थान था. राजा महेन्द्र प्रताप ने इस संस्था का अवैतनिक सेक्रेटरी तथा गवर्नर रहकर इसका संचालन किया और कुछ समय तक विद्यार्थियों को विज्ञान आदि विषय पढ़ाए.

इस महाविद्यालय के मक़सद का उल्लेख लेखक नन्द कुमार देव शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘प्रेम पुजारी: राजा महेन्द्र प्रताप सिंह’ में काफ़ी बेहतर ढंग से किया है. ये पुस्तक 1980 में हिन्दी साहित्य कार्यालय, कलकत्ता से प्रकाशित हुई है.


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आज इस महान ऐतिहासिक महाविद्यालय की हालत ये है कि वृन्दावन के बाहर लोग इसे जानते तक नहीं. काश! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजा महेन्द्र प्रताप के द्वारा स्थापित महाविद्यालय को यूनिवर्सिटी का दर्जा देकर इसका गौरव पूरी दुनिया में बढ़ा सकते.

जो लोग एएमयू परिसर में राजा महेन्द्र प्रताप की मूर्ति लगाए जाने की मांग कर रहे हैं, उन्हें बता दें कि राजा महेन्द्र प्रताप के वृंदावन शहर (प्रेम महाविद्यालय परिसर को छोड़कर) में न कहीं उनकी मूर्ति लगी है न ही किसी सड़क का नामकरण उनके नाम पर हुआ है. और तो और वहां पर उनकी समाधि भी ठीक तरह नहीं बन पाई है.

हिंदुत्ववादियों से महेंद्र प्रताप का वैचारिक संघर्ष

राजा महेन्द्र प्रताप हमेशा जनसंघ और हिन्दुत्व के ख़िलाफ़ रहे. 1957 लोकसभा चुनाव में मथुरा से जनसंघ के नेता अटल बिहारी को उन्होंने ज़बर्दस्त पटखनी दी. इस चुनाव में राजा महेन्द्र प्रताप आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे. बावजूद 40.68 फ़ीसदी वोट उनको मिले. वहीं 29.57 फ़ीसदी वोट पाकर कांग्रेस के दिगम्बर सिंह दूसरे स्थान पर थे, जबकि अटल बिहारी वाजपेयी 10.09 फ़ीसदी वोट पाकर चौथे स्थान पर. कुल उम्मीदवारों की संख्या 5 थी.

दिलचस्प बात ये है कि राजा महेन्द्र प्रताप खुद को पीटर पीर प्रताप कहलाना ज़्यादा पसंद किया. अपनी आत्मकथा में अपनी तस्वीर के नीचे उन्होंने अपना यही नाम लिखा है.

राजा महेंद्र प्रताप ने हमेशा से हिन्दू-मुस्लिम एकता पर ज़ोर दिया. उन्होंने एक पत्र में हिन्दू मुसलमानों के झगड़े पर कुछ इस प्रकार सवाल उठाया- ‘झगड़ा है, फ़साद है, बल्कि युद्ध हो रहा है. किनमें? हिन्दू और मुसलमानों में. एक ही मिल्लत के दो बाजुओं में और सर सैय्यद अहमद के कथनानुसार एक ही चेहरे की दो आंखों में! देखिए जब आंखें अंधी हो जाती हैं या अपना फ़र्ज़ अदा नहीं करतीं तो अपने ही पैरों को किसी पत्थर से ठुकवा देती हैं और जब बीमारी का दौरा होता है तो अवगुणकारी चीज़ों को खाने को मन करता है. आज हिन्दुस्तानी मिल्लत अवश्य बीमार है. इसके शरीर में बाहरी रोग घुस गया है. ऐसी अवस्था में हम ठोकरें खाएं या आत्मघात करने पर उतारू हो जाएं तो अचंभे की क्या बात है? अगर हम अपने ही हाथ से अपना खून करना नहीं चाहते तो हमको हर समय यह याद रखना चाहिए कि हम बीमार हैं, हमको हमारा रोग दबाए हुए है और यह रोग सब प्रकार से हमको मिटा देने की चेष्टा कर रहा है.’

वह बीमारी आज तक बनी हुई है! वरना राजा महेंद्र प्रताप और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को एक दूसरे के मुकाबले खड़ा करने की कोशिश न हो रही होती.

(लेखक बियॉन्ड हेडलाइंस डॉट कॉम के संपादक हैं, यह लेख उनका निजी विचार है.)

3 टिप्पणी

  1. बहुत अच्छी जानकारी दी है। ये लोग अपने राजनैतिक और निजी फायदे के लिए ऐसा कर रहे हैं। हमें धर्मान्धता से बचना चाहिए।

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