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तेजस्वी यादव : सियासत की नई इबारत लिखने वाला कर्मयोगी

तेजस्वी यादव के सामने अपनी जनता के दुःख-दर्द को कम कर ख़ुशहाल बिहार बनाने की पूरी संभावनाएं पड़ी हैं.

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राजद नेता व बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, फाइल फोटो | फोटो साभार : फेसबुक

शेक्सपियर ‘ट्वेल्थ नाइट‘ नामक नाटक में लिखते हैं, ‘Some are born great, some achieve greatness, and some have greatness thrust upon them.’ अर्थात, ‘कुछ लोग जन्म से महान होते हैं, कुछ लोग महानता हासिल करते हैं और कुछ लोगों पर महानता लाद दी जाती है’.

मेरा ख़याल है कि सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक न्याय और क्लाइमेट जस्टिस के आयाम को जोड़ कर एक चिर टिकाऊ मुकम्मल मॉडल पेश करने वाले, नये बिहार की रचना के अग्रदूत तेजस्वी प्रसाद शेक्सपियर की दूसरी श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने अपनी लगन अनवरत मेहनत व लक्ष्य के प्रति समर्पण से स्वीकार्यता व मक़बूलियत हासिल की है. शुचितापूर्ण व प्रभावी राजनीति हेतु दो गुणों की सर्वदा अपेक्षा रहती है – एक अध्यवसाय और दूसरा, उदारता और ये दोनों मूल्य व सलाहियत तेजस्वी में मौजूद हैं.

सत्ता में रह कर उपमुख्यमंत्री के रूप में वे स्वाभाविक रूप से शालीन नज़र आते थे. पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर रहते हुए महज 20 महीने में उन्होंने बिहार में 5000 किलोमीटर सड़कों का निर्माण कराया. 2017 में जेपी सेतु को लालू जी के जन्मदिवस पर जनता को समर्पित किया. उन्होंने बहुत से पुल को मंजूरी दी, जिनमें आज़ादी के बाद से ही विकास के पथ से फिसले, प्रगति से सुदूर, सिमटे-सिकुड़े दुर्गम इलाके शामिल हैं. 19वीं सदी के जीवन का प्रतीक – कुशेश्वर अस्थान के तिलकेश्वर क्षेत्र में फुहिया घाट पर उन्होंने ही निर्माण शुरू कराया, जो एक छोर पर दो ज़िलों- दरभंगा व खगड़िया (अलौली) को जोड़ता. मगर, जनादेश अपहरण के बाद काम ठप्प पड़ गया.

तेजस्वी यादव के सबसे उल्लेखनीय कार्यों में से एक यह है कि जहां पहले मंत्री के पास टेंडर की, वैरिएशन की फाइल आती थी, वहीं उन्होंने इस पर रोक लगा कर फाइलों के त्वरित निपटारे में पारदर्शिता लाई. यह उनका ही प्रस्ताव था कि ठेका दिये जाने की कोई भी फाइल, कोई वैरिएशन (कॉस्ट वैरिएशन, चेंजेज़ इन प्रोजेक्ट वैरिएशन) की फाइल, कोई ईओटी की फाइल मंत्री के पास नहीं जाएगी. वहीं उनके पहले नीतीश कुमार ने लगातार एस्टिमेट घोटाला होने दिया था.


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राजद का सामाजिक न्याय के लिए काम

हर कमिश्नरी में पिछड़े-अति पिछड़े समाज की लड़कियों के लिए राबड़ी देवी ने आवासीय स्कूल खोला था. उसको हर सुविधा से लैस करने के लिए संबंधित विभाग का मंत्री रहते हुए तेजस्वी ने पहल की. वहां भ्रमण के दौरान उन्होंने बच्चों से खाने की गुणवत्ता और अंग्रेज़ी की किताबों व शिक्षकों की उपलब्धता के बारे में पूछा. लालू-राबड़ी ने मिलकर सूबे में 7 विश्वविद्यालय खोले– जेपी यूनिवर्सिटी, छपरा, बीएन मंडल यूनिवर्सिटी, मधेपुरा, वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी, आरा, सिदू-कान्हो-मुर्मू यूनिवर्सिटी, दुमका, विनोबा भावे यूनिवर्सिटी, हज़ारी बाग़, मौलाना मजहरूल हक़ अरबी-फारसी यूनिवर्सिटी, पटना और नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी (एक्ट के ज़रिए बाक़ायदा स्थापित किया).

वहीं तेजस्वी यादव सत्ता में आने के बाद जेएनयू जैसी सुविधाओं व गुणवत्ता वाला विश्वविद्यालय खोलने, स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी स्थापित करने, हर कमिश्नरी में एम्स जैसे सुपर स्पेशियलिटी वाला हॉस्पिटल, स्तरीय स्टेडियम खोलने की प्रतिबद्धता दुहराते रहे हैं. लोगों की समस्याओं के ज़ल्दी निपटारे हेतु अविभाजित बिहार में 16 नये ज़िलों का गठन लालू-राबड़ी शासनकाल में हुआ. सबसे ज़्यादा ब्लॉक व सब डिवीज़न उन्होंने बनाये. तेजस्वी भी कुछ नये अनुमंडल व ज़िले बनाने की जनता की मांग पर ‘बेरोज़गारी हटाओ यात्रा’ के दौरान सहमति जताते व आश्वासन देते दिखे.

नि:स्संदेह, बतौर नेता एक सियासी शख़्स विपक्ष में रहते हुए ही सबसे ज़्यादा पुष्पित-पल्लवित होता है. डॉ. लोहिया इसकी बड़ी मिसाल हैं. जनसरोकार के मुद्दे को लेकर सरकार की घेराबंदी करना, प्रतिरोध प्रदर्शन करना, जनता को लामबंद करना, ये सब राजनैतिक गतिविधियां नेता प्रतिपक्ष के हिस्से आती हैं. बिहार में इस गरिमामय पद को समय-समय पर एस.के. बागी (1957-62), कामाख्या नारायण सिंह (1962-67), महेश प्रसाद सिंह (67-69), भोला पासवान शास्त्री (69-70), रामानंद तिवारी (1970-71), दारोगा राय (1971-72), कर्पूरी ठाकुर (1972-73, और 1980-88), सुनील मुखर्जी (1973-77), राम लखन सिंह यादव (1977-78), जगन्नाथ मिश्र (1978-80 और 1990-94), लालू प्रसाद (मार्च 1989 – दिसम्बर 89), अनूपलाल यादव (जनवरी 90 – मार्च 90), रामाश्रय प्रसाद सिंह (1994-95), यशवन्त सिन्हा (1995-96), सुशील मोदी (1996-2004), उपेन्द्र कुशवाहा (2004-05), राबड़ी देवी (2005-10), अब्दुल बारी सिद्दिकी (2010-13), नंदकिशोर यादव (2013-15) और प्रेम कुमार (2015-17) ने सुशोभित किया है.

2017 से अब तक तेजस्वी प्रसाद ने बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी इस भूमिका का बख़ूबी निर्वहन किया है. मानवता को शर्मसार करने वाले मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के मुद्दे पर देश भर के सारे बड़े नेताओं को जंतर-मंतर पर इकट्ठा कर अन्याय की मुख़ालफ़त का मज़बूत संदेश उन्होंने दिया. उन्होंने रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के विरोध में आवाज़ उठाई, एससी-एसटी एक्ट में छेड़छाड़ के ख़िलाफ़ भारत बंद में सभी 80 विधायकों के साथ 2018 में मार्च किया था.

शोषित समाज के लोगों को कालेज-यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनने से रोकने के लिए लाये गये शोषित विरोधी नागपुरी रोस्टर की लड़ाई उन्होंने प्रमुखता से लड़ी. सभी सांसदों और बहुत-से विधायकों के साथ जंतर-मंतर पर मार्च किया, सॉलिडैरिटी पेश की. समाज में तक़सीम कराने के असली मक़सद से लाया गया सीएए जब एक्ट नहीं बना था, बल्कि बिल (सीएबी) के रूप में लोकसभा में 10 दिसम्बर 2019 को 12 बजे रात में पेश हुआ था, तो उसकी अगली ही सुबह 11 दिसम्बर को 10 बजे तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद विरोध प्रदर्शन कर रहा था. तब यह बिल राज्यसभा में टेबल भी नहीं हुआ था. फौरन सड़क पर उतर कर उस गैरज़रूरी क़ानून का विरोध करने वाला राजद पहला दल था.

इतना ही नहीं, बिहार पहला सूबा था जहां एनडीए की सरकार के बावजूद तेजस्वी की सूझ-बूझ और राजनैतिक चातुर्य व कौशल के चलते सदन में एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित हुआ. साथ ही, इस आशय का भी प्रस्ताव पारित हुआ कि एनपीआर के तहत राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, 2010 में अंकित श्रेणियों से संबंधित सूचनाएं ही प्राप्त की जाएं जिससे लोगों को मुश्किल का सामना न करना पड़े. एनपीआर के मौजूदा विवादास्पद क्लॉज़ हटाए जाएंगे, इसके लिए केंद्र सरकार को सरकार की जानिब से ख़त लिखा गया.

जिस रोज़ यह बहस हो रही थी, उस दिन सदन में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच मीठी नोकझोंक भी हुई जो स्वस्थ संसदीय परंपरा की एक झलक दे गई. प्रस्ताव पारित करने के पहले तेजस्वी ने ड्राफ्ट देखने की बात कही, ‘2015 में हम लोगों ने आंख मूंद कर आपको (सीएम) बनाया, पर अब तो जब तक एक-एक चीज़ अपनी आंखों से नहीं देख लेंगे, भरोसा नहीं होगा. एक बार विश्वास करके देख लिया, आप फिर कहीं पलट गये तो? जब मुख्यमंत्री जी ख़ुद मान रहे हैं कि एनआरसी लागू होने पर एनपीआर में जो एडिश्नल चीजें जुड़ी हैं, वो खतरा है. तो उस प्रस्ताव में आप एनआरसी इन्क्लूड करेंगे, तब हम लोग पास करेंगे’. इस पर नीतीश झल्ला गये, ‘आपको कुछ बात हम पर नहीं बोलनी चाहिए, इ सब बोलने का आपके पिताजी को अधिकार है, समझ गए ना! तुम मत बोला करो ज़्यादे!’

तेजस्वी ने भी शालीनता से जवाब दिया, ‘नेता प्रतिपक्ष मैं हूं, तो मैं ही न बोलूंगा! पिताजी थोड़े बोलने आएंगे!’


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हार कर भी जीते तेजस्वी

देश के सबसे युवा नेता, प्रतिपक्ष के रूप में तेजस्वी ने अपनी पहली ही तक़रीर से देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. जनादेश चोरी के ठीक बाद 28 जुलाई 2017 को एक प्रखर व सधे हुए वक्ता की तरह पूरी राजनैतिक परिपक्वता के साथ समग्रता में समसामयिक संदर्भों को समेटते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री को बरहना कर दिया था. एक प्रखर व सधे हुए वक्ता की तरह पूरी राजनैतिक परिपक्वता के साथ समग्रता में समसामयिक संदर्भों को समेटते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री को बरहना कर दिया था. इसे बिहार में विपक्ष की राजनीति की धुरी बनने का तेजस्वी प्रसाद का प्रस्थान-बिंदु कहा जा सकता है. बिना लागलपेट के दो टूक बात कहना और उसे कार्यान्वित करना उनकी सबसे बड़ी यूएसपी है.

देश की दलीय व्यवस्था में उनका एक बड़ा योगदान है कि पार्टी के सांगठनिक चुनावों में उन्होंने दलित-आदिवासी (17℅) और अति पिछड़े (28℅) के लिए सीटें रिज़र्व कीं ताकि उन वर्गों के अंदर से नेतृत्व उभर सके. तेजस्वी प्रसाद ने सबसे हाशिये के लोगों के लिए दल के मैन विंग में पंचायत से लेकर ज़िला तक नुमाइंदगी सुनिश्चित की. ऐसी ज़रूरी व अनूठी पहल करने वाला राजद देश का ऐसा पहला दल है.

गत वर्ष विधानसभा चुनाव में सूबे सहित पूरी केंद्र सरकार के तमाम कुप्रचारों व कुप्रयासों के बावजूद तेजस्वी यादव ने सभी सत्ताधारी दलों को जनता के एजेंडे पर आने के लिए मजबूर कर दिया. सभी खाली पड़े पद भरने, पहली कैबिनेट में पहले दस्तख़त से 10 लाख युवाओं को स्थाई नौकरी देने, किसानों की संपूर्ण कर्जमाफी, स्थानीय स्तर पर टिकाऊ रोज़गार-सृजन, शिक्षा पर बजट का 22 ℅ खर्च करने, विश्वविद्यालयों का सत्र नियमित करने, स्वयं सहायता समूह में कार्यरत लोगों का मेहनताना बढ़ाने, वृद्धा पेंशन बढ़ाने, बेरोज़गारी भत्ता देने जैसे कई ऐसे सच्चे और पूरा किये जाने लायक सगुण वादे थे जिन पर जनता ने अपनी मुहर लगाई, और 75 सीट जिता कर राजद को बिहार का सबसे बड़ा दल बनाया. महागठबंधन को 110 सीटें हासिल हुईं. लेकिन, क्या कीजै कि जनादेश को शासनादेश से बदलने का घिनौना कृत्य हुआ और भाजपा के रहमोकरम पर ‘एकात्म कुर्सीवाद’ का नमूना पेश करते हुए नीतीश कुमार ने लाचारगी व बेबसी से भरी भूमिका स्वीकार कर ली.

जातिवार जनगणना जो इस देश में 1931 के बाद नहीं हुई है, वह 1948 के जनगणना क़ानून के मुताबिक़ भारत सरकार के जनगणना आयोग द्वारा 2021 में हो, इसके लिए प्रधानमंत्री से मुलाकात कर बात करने के लिए तेजस्वी प्रसाद ने नीतीश कुमार को बाध्य किया. और, सरकार की ओर से नकारात्मक उत्तर के बाद अभी भी वे इसके लिए हर मुमकिन पहलकदमी कर रहे हैं ताकि संपूर्णता में सबकी सामाजिक-शैक्षणिक-आर्थिक स्थिति का पता चल सके और तदनुरूप उनके उत्थान के लिए लोक कल्याणकारी राज्य में नीतियां बनाई जा सकें.

बहरहाल, तेजस्वी यादव के सामने अपनी जनता के दुःख-दर्द को कम कर ख़ुशहाल बिहार बनाने की पूरी संभावनाएं पड़ी हैं. अब तक की उनकी यात्रा निष्कलुष रही है, और आगे भी वे आरोग्यमयता के साथ सुदीर्घ सक्रिय पारी खेलें, उनके जन्मदिन की 32वीं वर्षगांठ पर वंचित व प्रगतिशील लोगों की यही दिली दुआएं हैं. दिनकर के शब्दों में,

झांकी उस नयी परिधि की, जो दिख रही कुछ थोड़ी-सी,
क्षितिजों के पास पड़ी, पतली चमचम सोने की डोरी-सी.
छिलके हटते जा रहे, नया अंकुर मुख दिखलाने को हैं,
यह जीर्ण तनोवा सिमट रहा, आकाश नया आने को है.
(नीलकुसुम)

(लेखक नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राज्य कार्यकारिणी के सदस्य हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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