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डब्लूएचओ ने कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था, लेकिन संसद चल रही थी लोग मर रहे थे

कोरोना वायरस के वैश्विक महामारी घोषित होने के दो हफ्ते बाद तक क्यों चलती रही संसद? इस दौरान संसद के दोनों सदनों में क्या-क्या हुआ?

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भारतीय संसद, फाइल फोटो | प्रवीण जैन, दिप्रिंट

11 मार्च को कोरोनावायरस या कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था. इसके दो दिन बाद भारत में कोरोनावायरस से पहली मौत की खबर आई. डब्ल्यूएचओ ने ऐलान कर दिया था कि फिजिकल डिस्टेंसिंग ही इस बीमारी को फैलने से रोकने का उपाय है. भारत के नेता और सरकार के कुछ उच्च पदस्थ लोग इस बात को समझ रहे थे.

11 मार्च से काफी पहले, 4 मार्च को ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कह दिया था कि कोरोना को फैलने से रोकने के लिए वे इस साल होली मिलन समारोह में शामिल नहीं होंगे.

19 मार्च को प्रधानमंत्री ने कहा कि तीन दिन बाद पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगाया जाए. प्रधानमंत्री के निर्देश पर करोड़ों लोगों ने रविवार को खुद को घर में बंद रखा. फिर सवाल उठता है कि भारतीय संसद के दोनों सदन 23 मार्च तक क्यों चलते रहे? सैकड़ों सांसद और संसद भवन के हजारों कर्मचारी और अधिकारी इकट्ठा होकर देश को क्या संदेश दे रहे थे?

क्या इसकी वजह कोई ऐसा विधायी काम था, जिसे समय से पहले पूरा नहीं किया जा सकता था और जिसके पूरा न होने पर देश में आफत आ जाती? अगर ऐसा था तो दोनों सदनों की कार्यवाही 23 मार्च को अनिश्चितकाल के लिए कैसे स्थगित कर दी गई, क्योंकि सामान्य स्थितियों में तो संसद को 3 अप्रैल तक चलना था?

जो फैसला 23 मार्च को हुआ, वो पहले क्यों नहीं हुआ?

इस आलेख का मकसद, इसी सवाल को हल करने की कोशिश करना है और इसी क्रम में हम जानेंगे कि कोरोनावायरस जब पूरी दुनिया में फैल रहा था और उसका हस्तक्षेप भारत में हो चुका था, तो भारतीय संसद ने किस तरह काम किया और उसका आचरण कैसा रहा.

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कोरोनावायरस और भारतीय संसद

कोविड-19 के शुरुआती केस 2019 दिसंबर में चीन के वुहान प्रांत में सामने आए और दिसंबर में ही उसकी वजह से चीन में पहली मौत हुई. इसके लगभग एक महीने बाद 30 जनवरी, 2020 को भारत में कोरोना का पहला केस आ गया, ये केस चीन से लौटे एक भारतीय का था. इसके एक दिन बाद संसद का बजट सत्र शुरू हुआ.


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ये आश्चर्यजनक है कि इसके बाद 23 मार्च तक संसद की कार्यवाही चली, लेकिन इस दौरान कोरोनावायरस पर कोई बहस या चर्चा नहीं हुई. यानी जिस विषय पर पूरी दुनिया और भारत के गली-मोहल्लों तक में चर्चा हो रही थी, उस विषय को संसद में बहस करने लायक नहीं माना गया.

बेशक इस दौरान सांसद इस बारे में आवाज उठाते रहे, लेकिन ये आवाजें मंत्रालयों से पूछे गए सवालों की शक्ल में थीं, जिनमें से ज्यादातर के जवाब लिखित रूप से सदन के पटल पर रख भर दिए गए. इस दौरान संसद में लगभग 50 सवाल कोरोना, उससे बचाव और उसके असर के बारे में पूछे गए. लोकसभा में 23 और राज्यसभा में 27 सवालों के जवाब सरकार के अलग-अलग मंत्रियों ने दिए. ज्यादातर सदस्यों ने कोरोनावायरस के अर्थव्यवस्था, नौकरियों, निर्यात, मैन्युफैक्चरिंग पर असर के बारे में सवाल पूछे.

लेकिन इस बीच सरकार क्या कह और कर रही थी?

20 मार्च और उसके बाद तक सरकार ये कह रही थी कि आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी से इस बीमारी को रोका जा सकता है. सांसदों के सवालों के जवाब में बाकायदा दवाओं के नाम बताए जा रहे थे, हालांकि साथ में ये भी कहा जा रहा था कि ये उपचार नहीं है, रोकथाम के लिए है.

अब कोई भी सरकारी अधिकारी या मंत्री इन दवाओं का नाम नहीं ले रहा है. संसद के बाहर तो स्थिति और विचित्र थी. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने 19 मार्च को संसद परिसर में पत्रकारों को बताया कि 15 मिनट धूप में रहने से कोरोनावायरस मर जाता है. उत्तराखंड से बीजेपी विधायक महेंद्र भट्ट 19 मार्च को ही बता रहे थे कि खाली पेट गोमूत्र पीने से कोरोनावायरस खत्म हो जाता है. सरकार की तरफ से इनका खंडन नहीं किया जा रहा था.

स्थिति की गंभीरता का एहसास नहीं

26 फरवरी को भारत सरकार ने मेडिकल सप्लाई लेकर एक विमान को चीन के लिए रवाना किया. इसकी पुष्टि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने 6 मार्च को लोकसभा में एक लिखित जवाब में की. इस समय तक कोरोनावायरस लगभग सारी दुनिया में फैल चुका था और 80,000 से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हो चुके थे. हर्षवर्धन के जवाब के सात दिन के अंदर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया. ये वही समय था, जब चीन में कोरोना के फैलने की रफ्तार कम होने लगी थी और इटली और ईरान जैसे नए हॉटस्पॉट बनने लगे थे.

क्या सरकार को इस समय तक ये लग रहा था कि ये बीमारी भारत में ज्यादा असर नहीं दिखाएगी? वरना जो समय अपनी तैयारियों में जुटने और संसाधनों को एकत्र करने का था, तब चीन को मेडिकल सप्लाई भेजने का क्या मतलब था?


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लगभग इसी समय, 4 मार्च को नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी ने एक सवाल के जवाब में राज्यसभा को बताया कि ‘चीन, हांगकांग, जापान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, नेपाल, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, इटली और ईरान से आने वाले सभी यात्रियों की भारत के इंटरनेशन एयरपोर्ट्स पर जांच की जा रही है.’

गौरतलब है कि इस समय तक कोराना वायरस के केस 70 देशों में हो चुके थे. अमेरिका में संक्रमित लोगों की संख्या 150 को पार कर चुकी थी. जिस समय 70 देशों में ये बीमारी फैल चुकी थी, तब भारत सिर्फ 12 देशों के यात्रियों की स्क्रीनिंग कर रहा था और ये बात संसद को बताए जाने के बावजूद वहां कोई हंगामा नहीं हुआ. किसी ने इस पर सरकार को आड़े हाथों नहीं लिया.

भीड़भाड़ नहीं करनी है, लेकिन संसद चलती रहेगी

सरकार संसद को लगातार आश्वस्त करती रही कि देश कोरोनावायरस का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं और सारे बंदोबस्त किए जा रहे हैं. 4 मार्च को जब प्रधानमंत्री ये कह रहे थे इस साल वे होली भीड़भाड़ के साथ नहीं मनाएंगे, तब तक दुनिया में तीन लाख लोग संक्रमित हो चुके थे और 14,500 से ज्यादा लोग मर चुके थे. लेकिन इसके दो हफ्ते बाद तक संसद भवन में सैकड़ों सांसद और हजारों कर्मचारी इकट्ठा होते रहे.

सरकार ये क्यों नहीं समझ पाई कि इस तरह हजारों लोगों का एक बिल्डिंग में इकट्ठा होना सही नहीं है? ये वो लोग हैं, जिन्हें जनता का रहनुमा माना जाता है.

कनिका कपूर का संक्रमण और संसद का स्थगित होना

ऐसा लगता है और ये असंभव नहीं है कि लखनऊ में गायिका कनिका कपूर के संक्रमित पाए जाने के बाद ही सरकार और सांसदों को समझ में आया कि अब संसद की कार्यवाही आगे जारी रख पाना संभव नहीं है. 20 मार्च को ये खबर आई कि लंदन से लौटी कनिका कपूर जिन पार्टी में गई थी, उनमें बीजेपी सासंद दुष्यंत सिंह भी गए थे. उसके बाद दुष्यंत सिंह ने संसद की कार्यवाही में हिस्सा भी लिया. ये शुक्रवार का दिन था. शनिवार और रविवार की छुट्टी के बाद संसद जब 23 मार्च को बैठी तो सिर्फ एक काम के लिए. वित्त विधेयक को आनन-फानन में बिना बहस पास कर दिया गया और इसके बाद संसद के दोनों सदनों को तत्काल अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया! जाहिर है कि वित्त विधेयक को पहले भी इसी तरह पारित किया जा सकता था. हालांकि, इस समय तक एनसीपी और तृणमूल कांग्रेस के सांसद कह चुके थे कि वे अब संसद की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेंगे.


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कौन जाने कि अगर कनिका कपूर वाली घटनाएं न हुई होतीं तो संसद की कार्यवाही अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक 3 अप्रैल तक चल रही होती!

स्थिति की गंभीरता को समझ पाने में नाकामी

दरअसल कई सांसद इस बात को समझ रहे थे कि ऐसे समय में संसद को चलाते रहना सही नहीं है. 18 मार्च को राज्यसभा में कई सांसदों ने कहा कि सदन को अब स्थगित कर देना चाहिए. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई. सरकार की तरफ से जवाब देते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि ‘हम सांसदों को इस वायरस से लड़ने के लिए उत्साह दिखाना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि ‘पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है और संसद को समय से पहले स्थगित करने से देश में गलत संदेश जाएगा.’

इसी रोज जब कुछ सांसद मास्क पहनकर सदन में आए तो राज्यसभा के चेयरमैन एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि ऐसा करना सदन के नियमों के खिलाफ है और उन्हें मास्क उतारकर सदन में आना चाहिए. हालांकि जब पी. चिदंबरम और अन्य संदस्यों ने मास्क पहनने के पक्ष में तर्क दिए तो नायडू मान गए.

जब देश मौजूदा दौर से सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है, तब देश की सबसे बड़ी पंचायत और उसके सदस्यों की गंभीरता का अंदाजा इन बातों से लगाया जा सकता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह लेख उनका निजी विचार है.)

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