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पाकिस्तान परेशान है कि अनुच्छेद 370 पर विरोध कैसे करे- चुप्पी साधे या मोदी के पोस्टर के आगे हॉर्न बजाए

भारत पर जीत हासिल करने या श्रीनगर में पाकिस्तानी झंडा फहराने के सपने देखने के दिन अब बीत चुके हैं. अब, बस किसी रेड लाइट पर हॉर्न बजाएं और कश्मीर को आजाद करा लें.

अनुच्छेद 370 और कश्मीर पर एक विरोध मार्च में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और गृहमंत्री शेख रशीद। | पाकिस्तान के राष्ट्रपति के फेसबुक से.

5 अगस्त की सुबह भारत जब चक दे मोड में था और अपनी हॉकी टीम को टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतते देख रखा था, पाकिस्तान साइलेंट मोड में था. या फिर नहीं था.

पाकिस्तानियों के बीच बहुत भ्रम की स्थिति थी, क्योंकि सुबह 9 बजे उन्हें मौन रखना था लेकिन हॉर्न बजाकर कश्मीर के समर्थन में आवाज भी तो बुलंद करनी है. पाकिस्तान समझ नहीं पा रहा कि आखिर करना क्या है. चुप रहना है या हॉर्न बजाना है?

पाकिस्तानी मानक समय के मुताबिक, सुबह 9 बजे देश में हर कोई मौन रहकर कुछ अच्छे 60 सेकंड बिताने के लिए उठा. उसके बाद कुछ भी वैसा नहीं रहा. आपको आश्चर्य होगा कि आखिर कैसे. खैर, यहां तक कि हम भी अब तक नहीं जानते कि कैसे. लेकिन हम यह जरूर जानते हैं कि क्यों. 5 अगस्त को भारत की तरफ से अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने—जिसके जरिये कश्मीर का खास दर्जा खत्म करके उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया—की दूसरी वर्षगांठ पर पाकिस्तान सरकार ने भारत को मौन रहकर जवाब देने का ऐलान किया था और फिर तो आप जानते ही हैं कि कैसे.

तय किया गया कि कश्मीर के साथ एकजुटता दिखाने के लिए एक मिनट का मौन रखा जाएगा और यातायात रोक दिया जाएगा. इस फैसले का ऐलान पाकिस्तान के गृह मामलों के मंत्री शेख रशीद ने किया था, जो पिछले 10 दिनों से एकदम फॉर्म में हैं, कभी तो बैठे-ठाले घुड़सवारी पर निकल जाते हैं या फिर ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ की लहरों पर सवार होकर नौकायन करते हैं. कौन जाने यह जल्द ही हकीकत में बदल जाए. याद रखिएगा कि आपने सबसे पहले यहीं पढ़ा था.


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‘रिपीट टेलीकास्ट’

मौन रहने वाला कदम एकदम आश्चर्यजनक था, यह देखते हुए कि अगस्त 2020 में पाकिस्तान के एक मिनट के मौन का सकारात्मक नतीजा अब तक हमारे साथ साझा नहीं किया गया है. हालांकि, कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि नतीजा खतरनाक ढंग सकारात्मक ही रहा होगा, इसलिए रिपीट टेलीकास्ट किया गया. विरोधी शिकायत कर सकते हैं कि इमरान खान सरकार की दो साल की चुप्पी ही काफी है, फिर वे खुद पर एक मिनट के मौन का बोझ क्यों डालें. विपक्षी नेताओं ने पिछले दो सालों में बार-बार इमरान सरकार पर कश्मीर के सौदागर का लेबल चस्पा किया है, क्योंकि उन्होंने इस दिशा में ‘पर्याप्त’ काम नहीं किया. सरकार का ऐतिहासिक फैसला था कि हर शुक्रवार को कश्मीर के साथ एकजुटता दिखानी है, जिस पर खुद प्रधानमंत्री भी अमल नहीं कर सके. कभी न भूलें, कश्मीर के बिना पाकिस्तान का होना ‘व्यर्थ’ है.

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कश्मीर के ‘अंतरराष्ट्रीय के प्रोजेक्ट’ की जमीनी हकीकत अलग रही है. 2019 अगर काला दिवस, ब्लैक डिस्प्ले पिक्स, इंडिया जा जा कश्मीर से निकल जा वाले इमोशनल एंथम और 30 मिनट तक धूप में खड़े रहने के साथ बीता तो 2020 में कश्मीर के साथ एकजुटता दर्शाने को एक और पायदान ऊपर पहुंचाया गया—एक नया नक्शा बनाकर कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताने के साथ ही स्टेट ऑफ जूनागढ़ पर भी दावा जता दिया गया और इस्लामाबाद में कश्मीर राजमार्ग का नाम बदलकर श्रीनगर राजमार्ग कर दिया और इसी तरह कुछ और कदम भी उठाए गए, सिंगिंग, वाकिंग और ट्वीटिंग तो शामिल थी ही. नए नक्शे के मामले को तो सरकार ने बहुत ही ज्यादा गंभीरता से लिया है क्योंकि अब भी उसकी तरफ से समय-समय पर एसएमएस भेजे जाते हैं कि ‘सही’ मैप का इस्तेमाल न करना आप पर भारी पड़ सकता है, इससे कोई छोटी-मोटी दिक्कत नहीं होगी बल्कि पांच साल की जेल और 50 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है. उम्मीद है कि ये लाखों पीएम खान के ‘भारत के एक अरब 30 करोड़ लोगों’ को गलत आंकने जैसे नहीं होंगे. बाकी आपकी इच्छा!

हॉर्न बजा के हईशा

अब 2021 में यह सब व्यर्थ नहीं जाएगा, जैसा कि हमने कहा कि कुछ भी पहले जैसा नहीं था. नतीजा सामने है, पाकिस्तान में इस साल के शुरू में एक विशेष अतिथि के साथ हैलोवीन सिर्फ मनाया नहीं जा रहा था बल्कि सेलिब्रेट किया जा रहा था. इस्लामाबाद में एक रोड क्रॉसिंग पर ड्रैकुला की हैलोवीन पोशाक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पोस्टर लगाया गया था. पोस्टर में वाहन चालकों से आग्रह किया गया, ‘मोदी अमन के दुश्मन हैं, यदि आप सहमत हैं, तो हॉर्न दबाएं.’ सिर्फ कश्मीर के नाम पर ऐसी सोच. सरकार चाहती है कि पाकिस्तानी तब तक हॉर्न बजाएं जब तक आवाज भारतीय पीएम तक न पहुंच जाए. मोदी जी क्या आप हमें सुन सकते हैं? अब, भारत पर जीत हासिल करने या श्रीनगर में पाकिस्तानी झंडा फहराने के सपने देखने के दिन बीत गए हैं. अब, तो बस एक रेड लाइट पर हॉर्न बजाएं और कश्मीर की आजादी हासिल कर लें. हो सकता है कि दुनिया को लगे कि यह कोई मजाक है लेकिन यह भी उतना ही गंभीर है, जब मोदी और अभिनंदन ने पिछले अक्टूबर में लाहौर में एक पोस्टर पर एक साथ डेब्यू किया था.

पाकिस्तान यह बात दोहराने के प्रति गंभीर है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं है और 5 अगस्त भी साल के बाकी 364 दिनों की तरह ही होना चाहिए. किसी भी पाकिस्तानी मंत्री के उस बयान पर ध्यान न दें, जो कहता है कि पाकिस्तान शुरुआत के लिए अनुच्छेद 370 की कोई खास परवाह नहीं करता, लेकिन फिर भी दो साल इसका विरोध करते हुए बिता दिए. स्पष्ट होना चाहिए कि भारत का संविधान महत्व रखता है लेकिन सार्वजनिक तौर पर भावनाएं प्रदर्शित करना भी उतना ही अहम है. जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि एक बार कश्मीरी जनमत संग्रह के बाद पाकिस्तान का हिस्सा बनना तय कर लें तो वे स्वतंत्र हो सकते हैं—तो यह एक तीसरा विकल्प है जिसका वह अक्सर जिक्र करते हैं. निश्चित तौर पर वह जो कहते हैं, वो काफी मायने रखता है, इसलिए हमें कुछ और दशकों तक इंतजार करना होगा. आखिरकार, खान की सफल विदेश नीति दो मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है: मोदी उनके कॉल का जवाब नहीं देते, बिडेन उन्हें फोन नहीं करते.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nalainayat है. व्यक्त विचार निजी है.)


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