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यूपी में सिर के बल खड़ी आरक्षण नीति और एनसीबीसी का हस्तक्षेप

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन डॉ. भगवान लाल साहनी और सदस्य कौशलेंद्र सिंह पटेल ने सुनवाई में पाया कि शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया में आरक्षण के प्रावधानों को लागू करने में गड़बड़ी हुई है.

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फाइल फोटो.

उत्तर प्रदेश में इन दिनों डिग्री कॉलेजों में 1,150 असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर भर्ती की प्रक्रिया चल रही है. भर्ती की प्रक्रिया को लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) का एक ताजा फैसला आया है. एनसीबीसी ने सुनवाई के दौरान पाया कि भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों की अवहेलना की गई है. आयोग ने इस आधार पर साक्षात्कार पर रोक लगा दी है. साथ ही कहा है कि आरक्षण के नियमों के मुताबिक फिर से साक्षात्कार की सूची तैयार की जाए और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के जिन अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों से ज्यादा अंक मिलने के बावजूद साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया है, उन्हें अवसर देते हुए प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए.

रोस्टर विवाद से जुड़े हैं तार

उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (यूपीएचईएससी) ने डिग्री कॉलेजों में 35 विभिन्न विषयों के 1150 असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले थे जिसमें आवेदन की अंतिम तिथि 14 जुलाई 2016 रखी गई थी. इस भर्ती में पहला विवाद पदों के आरक्षण को लेकर उठा.

उदाहरण के लिए इन 1150 रिक्तियों में समाजशास्त्र में कुल 273 पद थे, जिसमें 63 पद ओबीसी, 43 पद एससी और शून्य पद एसटी के लिए आरक्षित किए गए. इसी तरह से राजनीति शास्त्र में 121 पद में से 18 पद ओबीसी, 11 पद एससी और शून्य पद एसटी के लिए आरक्षित किए गए.

इसी तरह के आरक्षण के प्रावधान करीब हर विषयों के लिए थे. किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि समाजशास्त्र में आईं 273 रिक्तियों में विभिन्न वर्गों का कोटा कैसे तय किया गया था. उत्तर प्रदेश शासन के जिम्मेदार अफसरों ने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया.


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बहरहाल उन्हीं दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 200 प्वाइंट रोस्टर खत्म कर दिया था और उसकी जगह विभागवार रोस्टर व्यवस्था लागू की थी. इसकी वजह से यह गड़बड़ी हुई. कानूनी पेच से बचने के लिए यूपीएचईएससी ने विज्ञापन के नीचे ही नोट लगा दिया था कि आरक्षण की व्यवस्था उच्च न्यायालय के 20.04.2009 के फैसले के मुताबिक की गई है और आरक्षित पदों का फैसला उच्चतम न्यायालय के फैसलों के मुताबिक होगा.

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दिल्ली से लेकर तमाम विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने 200 प्वाइंट रोस्टर की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. हंगामा इतना बढ़ा कि तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को संसद में कहना पड़ा कि हम इस मामले में न्यायालय जाएंगे और जरूरत पड़ी तो अध्यादेश लाएंगे.

इस बीच तमाम विश्वविद्यालयों में धड़ाधड़ भर्तियां निकलती रहीं. उसमें से देश की 85 प्रतिशत कही जाने वाली एससी, एसटी, ओबीसी आबादी गायब रही. छात्र और सामाजिक न्याय की लड़ाई करने वाले आंदोलनकारी सड़कों पर संघर्ष करते रहे और भारत बंद भी किया. आखिरकार सरकार इस मामले में अध्यादेश लेकर आई. इस तरह विश्वविद्यालयों में रोस्टर की पुरानी व्यवस्था बहाल हुई. इस संबंध में लाए गए विधेयक को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया और अब यह कानून बन गया.

यूपी में शिक्षक नियुक्ति में कोटा विवाद

अब लौटते हैं यूपीएचईएससी के विज्ञापन और भर्तियों पर. 2016 में जो आवेदन मंगाए गए थे, उनके लिए आयोजित मुख्य परीक्षा का परिणाम 2019 में आने शुरू हुए. इस बीच लोकसभा चुनाव भी चलता रहा. इस दौरान जितने भी विषय के परिणाम आए, उनमें ज्यादातर विषयों में ओबीसी की मेरिट सामान्य की तुलना में ज्यादा थी. इस बीच लोकसभा चुनाव का परिणाम भी आ गया. नरेंद्र मोदी दोबारा प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बन गए. आरक्षित वर्ग के बच्चे अपने हारे नेताओं के पीछे घूमते रहे. रोते बिलखते रहे कि भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई है और जनरल सीट पर चयनित अभ्यर्थियों से ज्यादा अंक पाने के बावजूद उन्हें साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया है. लोकसभा चुनाव में पिटा विपक्ष जहां तक कर सकता है, उसने किया भी. समाजवादी पार्टी ने इस मसले को लेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में हंगामा किया.

इतने हंगामों के बीच यूपीएचईएससी ने एक बैठक की. 10 जून 2019 को हुई इस बैठक में यूपीएचईएससी ने कहा, ‘सामान्य श्रेणी के लिए निर्धारित कट ऑफ मार्क्स से अगर आरक्षित वर्ग की कट ऑफ मार्क्स ऊपर जाती है तो भी श्रेणीवार कट ऑफ मार्क में जितने भी अभ्यर्थी आएंगे, उनको ही साक्षात्कार में सम्मिलित किया जाए.’ कुल मिलाकर यूपीएचईएससी ने साफ कर दिया कि आरक्षित वर्ग के कैंडिडेट को ज्यादा मार्क्स आने पर भी अनारक्षित या सामान्य श्रेणी के पदों पर नहीं बुलाया जाएगा. परिणाम ये हुआ कि आरक्षित वर्ग के तमाम ऐसे अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाए गए, जिन्हें अनारक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों की तुलना में ज्यादा अंक मिले थे.


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आरक्षित वर्गों के कैंडिडेट के साथ अन्याय

दिलचस्प है कि यह बैठक यूपीएसईएससी के अध्यक्ष प्रोफेसर ईश्वर शरण विश्वकर्मा की अध्यक्षता में हुई, जो खुद अन्य पिछड़े वर्ग के हैं. संभवतः उनके जेहन में एक बार भी यह बात नहीं आई कि कौन सा फॉर्मूला लागू किया गया है, जिसकी वजह से ज्यादा अंक पाने वाले ओबीसी साक्षात्कार से वंचित कर दिए गए हैं और कम अंक पाने वाले सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए बुला लिए गए हैं.

इस बीच एक पीड़ित अभ्यर्थी ने राज्यपाल से गुहार लगाई. आजमगढ़ के शिव प्रकाश यादव ने 4 जुलाई को ई-मेल से उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को अवगत कराया कि आरक्षित वर्ग के साथ अन्याय किया जा रहा है. राज्यपाल ने उस पत्र को राज्य के मुख्यमंत्री को फारवर्ड करते हुए लिखा कि इस मामले की जांच की जाए. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का हस्तक्षेप

एनसीबीसी ने उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग को इस संबंध में मिली शिकायतों के स्पष्टीकरण के लिए 26 जुलाई 2019 को पत्र जारी किया था. एनसीबीसी ने शिक्षा आयोग की सचिव वंदना त्रिपाठी को सुनवाई के लिए 6 सितंबर को स्वयं प्रस्तुत होने को निर्देशित किया, जिसमें सचिव उचित जवाब नहीं दे पाईं. आयोग ने साक्षात्कार पर रोक लगाते हुए 11 सितंबर को सुनवाई की तारीख रखी और शिक्षा आयोग की सचिव सहित शिक्षा विभाग के अन्य जिम्मेदार अधिकारियों को तलब किया. एनसीबीसी के चेयरमैन डॉ भगवान लाल साहनी और सदस्य कौशलेंद्र सिंह पटेल ने सुनवाई में पाया कि आरक्षण के प्रावधानों को लागू करने में गड़बड़ी हुई है. एनसीबीसी ने साक्षात्कार रोक देने, आरक्षण के प्रावधानों के मुताबिक नए सिरे से अभ्यर्थियों के साक्षात्कार की सूची बनाने का निर्देश दिया. इस सिलसिले में एनसीबीसी की संयुक्त निदेशक डॉ. मधुमाला चट्टोपाध्याय के हवाले से पत्र भेजकर यूपीएचईएससी के अध्यक्ष को सूचित कर दिया गया है.

आरक्षित वर्गों के लिए अधिकतम सीटों की सीमा नहीं

आरक्षण का सामान्य सा नियम है कि अगर 100 रिक्तियां हैं तो उसमें से 50.5 प्रतिशत यानी करीब 50 अनारक्षित पदों पर उच्च मेरिट के आधार पर चयन हो जाता है, जिसमें किसी तरह का आरक्षण न पाने वाले, एससी, एसटी, ओबीसी, विकलांग, सैनिक आश्रित, महिला सहित जितने भी तरह के आरक्षण पाने वाले अभ्यर्थी होते हैं, सभी शामिल होते हैं. उसके बाद शेष पदों पर आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी ही चुने जाते हैं, जिसकी वजह से उनकी मेरिट कम रहती है.


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यूपीएचईएससी ने कुछ इस तरह आरक्षण लागू किया कि मेट्रो की महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर ही महिलाएं बैठेंगी. बाकी सीटों पर किसी महिला को बैठने नहीं दिया जाएगा. इसमें इस सामान्य नियम की अनदेखी की गई कि अनारक्षित सीटें सबके लिए होती हैं लेकिन यूपीएचईएससी ने एससी-एसटी-ओबीसी को अनारक्षित सीट पर नहीं घुसने दिया.

इस मामले में हर स्तर पर जिम्मेदार संस्थान, पदाधिकारी खामोशी ओढ़े रहे. उसे उचित मानते रहे. यह एक नजीर है, जो सभी जगहों पर हो रहा है. अभी यह साफ नहीं है कि भर्ती में क्या व्यवस्था अपनाई जाएगी और एनसीबीसी की सिफारिशें मानी जाएंगी या नहीं. इस मामले में यूपी सरकार को अपना नज़रिया स्पष्ट करना चाहिए.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं. इस लेख में उनके विचार निजी हैं.)

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