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किम जोंग- उन की परमाणु हथियारों में रुचि दिखाती है कि वह अपनी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम नहीं लगाएंगे

1950 के बाद से ही दोनों कोरिया पर परमाणु हथियारों का साया मंडराता रहा है लेकिन एक-दूसरे के विनाश की बर्बर आशंका ने अमन बनाए रखा है. एक कहानी हमें यही बताती है कि विचारधारा से ग्रस्त दिमाग तार्किकता पर अपनी पकड़ कैसे गंवा देता है.

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उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन, फाइल फोटो

अंगूर के स्वाद वाले सायनाइड के पेय का प्याला उठाकर होठों से लगाने के चार सप्ताह पहले वे सारे आस्थावान उपदेशक का प्रवचन सुनने के लिए इकट्ठा हुए थे. अमेरिकी उपदेशक जिम जोन्स ने अपने अनुयायियों से कहा कि ‘द पीपुल्स टेंपल एग्रीकल्चरल प्रोजेक्ट’ ‘फिलहाल सबसे शुद्ध कम्युनिस्ट मॉडल’ है. गुयाना के जंगल में जो कल्पनालोक देखा गया उसमें नस्ल और वर्ग लुप्त हो गए थे और पैसे का इस्तेमाल बंद हो गया था लेकिन उत्पादन की समस्या कायम थी. सच्चे साम्यवाद के लिए कड़ी मेहनत और परोपकारी त्याग जरूरी है.

जोन्स ने कहा, ‘8 घंटे काम, 8 घंटे पढ़ाई, उसके बाद 8 घंटे का आराम : एकता और एकजुटता ऐसी कि देश में ऐसी कोई जेल नहीं है जिसमें 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हों. वे अपने नेता किम इल-सुंग को भगवान की तरह पूजते हैं.’

पिछले सप्ताह जब अमेरिका और दक्षिण कोरिया के युद्धपोत उत्तरी कोरिया के समुद्री क्षेत्र में युद्धाभ्यास कर रहे थे तब नॉर्थ कोरिया ने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी और अपनी धमकी की पुष्टि करने के लिए तड़ातड़ मिसाइलें दागी और वायुसेना की आक्रामक गतिविधियां चलाई. किम जोंग-उन की हुकूमत ने सितंबर में एक नया कानून बनाया जिसमें व्यवस्था की गई कि अपने ऊपर हमले का सामना होने पर वह पहले ही परमाणु हमला कर सकता है.

1950 के बाद से ही दोनों कोरिया पर परमाणु हथियारों का साया मंडराता रहा है लेकिन एक-दूसरे के विनाश की बर्बर आशंका ने अमन बनाए रखा है. विद्वान आन्द्रेई लानकोव का कहना है कि उत्तरी कोरिया परमाणु हमले की जो धमकी देता है उसका इरादा कयामत ढाना नहीं है. जबकि यूक्रेन में लड़ाई जारी है, अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्र देश नहीं चाहेंगे कि एशिया में भी कोई संकट खड़ा हो जाए. किम जोंग-उन इसी के आधार पर यह उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें उन प्रतिबंधों से राहत मिलेगी जिनके चलते उनकी हुकूमत बुरी तरह परेशान है.

‘द पीपुल्स टेंपल’ नवंबर 1978 में 909 सदस्यों की सामूहिक आत्महत्या के साथ समाप्त हुआ क्योंकि उन्होंने हार की जगह मौत को बेहतर माना. यह कहानी हमें यही बताती है कि विचारधारा से ग्रस्त दिमाग तार्किकता पर अपनी पकड़ कैसे गंवा देता है.

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किम कुनबे की पूजा

इतिहासकार ब्रूस कमिंग्स ने लिखा है कि उत्तरी कोरिया के संस्थापक राष्ट्रपिता किम इल-सुंग की पहली मूर्ति का अनावरण 1949 में क्रिसमस के दिन किया गया था. वे नये पंथ ‘जुचे’ के प्रवर्तक बने, एक धर्मनिरपेक्ष ईसा जैसे. तय किया गया कि ‘फादर मार्शल’ का जन्मदिन ‘द डे ऑफ द सुन’ के रूप में मनाया जाएगा. धर्मों के ज्ञाता ईउन ही शिन ने कहा कि ‘जुचे’ एक ‘देसी राष्ट्रीय धर्म’ के रूप में विकसित हुआ और ‘अरिरंग मास जिम्नास्टिक्स’ उत्सव जैसे अपने अनुष्ठानों के साथ उसने संस्थात्मक रूप ग्रहण किया.

सभी मिलेनियल आंदोलनों की तरह किम कुनबे की पूजा सामाजिक यातना में से जन्मी. इस मामले में यह 1953 का बर्बर कोरिया युद्ध था. उस युद्ध में 50 लाख लोग मारे गए, जिनमें आधे असैनिक थे. उसमें कई शहर नेस्तनाबूद हो गए.

नाथन जेनिंग्स ने लिखा है कि युद्ध की शुरुआत में ही अमेरिकी फौजी कमांडरों ने परमाणु हथियारों की इस्तेमाल करने की इजाजत देने का दबाव डालना शुरू कर दिया था. उस समय ज्वाइंट चीफ़्स ऑफ स्टाफ का तर्क था कि ‘सैन्य लक्ष्यों के खिलाफ समय पर परमाणु हथियारों के प्रयोग पर विचार किया जाना चाहिए.’

बंजर भूमि को समाजवादी कल्पनालोक में बदलने के लिए परोपकारी त्याग की जरूरत होती है, और इसके लिए आस्था की जरूरत होती है.

1980 के दशक के शुरू में ही किम इल-सुंग के उत्तराधिकारी उनके पुत्र किम जोंग-इल ने सरकार के सिद्धांत से मार्क्सवाद-लेनिनवाद के संदर्भों को निकलवा दिया. कोंग्दान ओह और राल्फ हैसिग का कहना है कि पार्टी के साहित्य में किम इल-सुंग का वर्णन पिता के रूप में किया गया है, जो बिना शर्त वफादारी की मांग करता है, और पार्टी मां के समान है जो ‘प्यार और विश्वास’ देती है.

मो टेलोर ने लिखा है कि समाजवादी परोपकारिता को अपनाने से कामगार वर्ग की अनिच्छा के कारण ऐसे विचारों ने तीसरी दुनिया के कुछ क्रांतिकारी नेताओं में जगह बना ली. गुयाना के शासक लिंडेन बर्नहैम ने तो अपनी जनता को प्रेरित करने के लिए उत्तरर कोरिया के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया. यह प्रयोग विफल रहा क्योंकि गुयाना के धान उगाने वाले किसानों ने एकदम भोर में जागने और लगातार 8 घंटे से ज्यादा काम करने से साफ मना कर दिया.

प्योंग्यांग आमंत्रित किए गए इथोपियाई विशेषज्ञ स्वर्ग का प्रत्यक्ष अनुभव पाकर घर भाग गए. 1994 से 1998 के बीच व्यापक अकाल ने, जिसे ‘मार्च ऑफ सफरिंग’ नाम दिया गया, लाखों लोगों को लील लिया. खाने की चीजों की कमी और घोर गरीबी समाजवादी स्वर्ग के जनजीवन का हिस्सा बनी हुई है.

गुलाग ने उत्तरी कोरिया वालों का इंतजार किया, जिन्होंने विरोध जाहिर करके अपने प्यारे अभिभावकों को नाराज कर दिया. उपग्रह के चित्रों और जिंदा बचे लोगों के बयानों से यह पता चला कि लाखों लोगों को गलत सोच, गलत ज्ञान, गलत वर्गीय पृष्ठभूमि के कारण यातना शिविरों में डाल दिया गया. किम इल-सुंग ने घोषणा कर दी— ‘गुटबंदी करने वाले या वर्ग के दुश्मन जो भी हैं उनकी तीन पीढ़ियों के बीजों को नष्ट कर दिया जाए!’

पाकिस्तानी सूत्र

आंतरिक विरोध के कारण ‘पीपुल्स टेंपल’ के नेता हथियारबंद होने लगे. अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई के रेकॉर्ड बताते हैं कि जोन्स और उसकी करीबी मंडली को हासिल विशेषाधिकारों के कारण तनाव पैदा हुआ. टेंपल के दूसरे सदस्यों के मुक़ाबले नेताओं और उनके बच्चों को बढ़िया खाना मिलता था. निचले कार्यकर्ताओं के साथ रोमांटिक अंतरंगता को हतोत्साहित किया जाता था मगर जोन्स टेंपल की महिलाओं और पुरुषों के साथ सेक्स करता था. एक सदस्य ने बताया कि उपदेशक ‘एक यौन परभक्षी’ था.

अवर्गीकृत सरकारी रेकॉर्ड बताते हैं कि टेंपल के नेताओं में सामाजिक नियंत्रण के उत्तर कोरियाई मॉडल के प्रति आकर्षण का नतीजा यह हुआ कि गुयाना में उसके राजदूतों के साथ कई गुप्त बैठकें हुईं. टेंपल के नेताओं ने हथियारबंद दस्ते तैयार किए और असंतुष्टों को हत्या की धमकी दी. कांग्रेस के एक सदस्य लियो रयान इन खबरों की जांच करने के लिए नवंबर 1978 में गुयाना गए लेकिन टेंपल के ऐसे एक दस्ते ने उनके साथ चार लोगों की हत्या कर दी.

टेंपल की तरह, पीपुल्स रिपब्लिक ने बाहर से हमला करने की तैयारी की. 1950-53 के युद्ध के बाद किम इल-सुंग ने चार प्रमुख निर्देश जारी किए जिनमें हथियारों के आधुनिकीकरण, जनता को हथियारबंद करने, देश की किलाबंदी करने, और सेना को सत्ता के ढांचे में केंद्रीय भूमिका देने की बातें शामिल थीं. उत्तर कोरिया ने तोपों और मिसाइलों की अपनी ताकत बढ़ाई, ताकि दक्षिण कोरिया के शहरों और औद्योगिक ढांचे को मिनटों में नेस्तनाबूद किया जा सके.

उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था 1970 के दशक में जब लड़खड़ाने लगी तो उसकी सेना का और आधुनिकीकरण मुश्किल हो गया. किम जोंग-इल ने ज्यादा भरोसे के काबिल हथियार, परमाणु बम की तलाश शुरू कर दी. लेकिन इसमें समस्या थी. सोवियत संघ ने उत्तर कोरिया को 1950 के दशक में परमाणु अनुसंधान कार्यक्रम शुरू करने में मदद की थी लेकिन वह मदद बंद हो गई थी.

पीपुल्स रिपब्लिक को जो टेक्नोलॉजी चाहिए थी वह पाकिस्तान से आई. 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने मिसाइल टेक्नोलॉजी हासिल करने के लिए प्योंग्यांग का दौरा किया. इसके चार साल बाद पाकिस्तान ने पीपुल्स रिपब्लिक को अपना परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू करने के लिए जरूरी सेंट्रीफ्यूज़ और यूरेनियम हेक्सा फ्लोराइड उपलब्ध कराया. अनुमान लगाया जाता है कि किम वंश की तीसरी पीढ़ी के किम जोंग-उन के नेतृत्व में पीपुल्स रिपब्लिक के पास 55 परमाणु वारहेड मौजूद हैं और उनसे वह दुनियाभर में मार कर सकता है.


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परमाण्विक खुदकशी का करार?

मीथांफ़ेटामाइन की मदद से हासिल बौद्धिक चमक के साथ जोन्स ने अंतिम बार अपने अनुयायियों को उस रात संबोधित किया था जब उनके हत्यारे दस्ते ने कांग्रेस के सदस्य रयान को मार डाला था. उसने कहा था, ‘मैंने आप सबको प्यार किया है. आपको अच्छा जीवन देने की कोशिश की है. लेकिन गिनती के चंद लोगों ने अपने झूठ के कारण हामार जीना मुश्किल कर दिया है… अगर हम शांति से जी नहीं सकते तो शांति से मर ही जाएं.’ छोटे-छोटे बच्चों को जानलेवा सुई दी गई और उसके बाद उनके अभिभावकों ने उस पेय को गटक लिया. अंत में जोन्स ने खुद को गोली मार ली.

उपन्यासकार शिवा नायपॉल कहते हैं कि यह पंथ ‘कयामत से जुड़े विनाश के पाप और छवियों से जुनूनी रूप से जुड़ा हुआ है, जो अपनी आंतरिक आवेगों में निरंकुशवादी है, केवल बचे हुए लोगों और खारिज किए गए लोगों के हिसाब से सोचता रहता है.’ उसने अंततः जो हासिल किया वह ‘न तो नस्लीय न्याय है और न समाजवाद है लेकिन दोनों का मसीहाई पैरोडी है.’

उत्तर कोरिया को क्षेत्रीय दायरे में शामिल करने की कोशिशें 2008 में तब विफल हो गईं जब इसके परमाण्विक और मिसाइल संबंधी महत्वाकांक्षाएं उजागर हो गईं. किम जोंग-उन के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था का उदारीकरण हुआ जिससे छोटे-से कुलीन तबके की समृद्धि बढ़ी, लेकिन वे उपलब्धियां हवाई साबित हुईं.

किम जोंग-उन और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शिखर बैठक के गुलाबी तस्वीर तो दिखी मगर कुछ हासिल न हुआ क्योंकि उत्तर कोरिया अपनी परमाण्विक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम कसने को तैयार नहीं था, चाहे उसके आर्थिक नतीजे जो भी हों.

किम वंश का चमकदमक वाला जीवन, पत्रकार अन्ना फिफील्ड द्वारा उजागर किए किए गए उसके बोर्गियानुमा अत्याचार यही संकेत देते है कि वह पीपुल्स टेंपल की तरह सामूहिक आत्महत्या करने वाला कुनबा नहीं है. आखिर, किम वंश अपनी दौलत और ताकत पर इतराता है. ऐसे में यह सवाल पूछा जा सकता है कि अगर उसे इस सबसे वंचित होना पड़ा तब वह क्या करेगा?

(व्यक्त विचार निजी हैं)

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