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भारत-चीन की तेजी के बूते BRICS ने आर्थिक वृद्धि की गोल्डमैन की उम्मीदों को 10 साल पहले पूरा किया

अपने स्तंभ के अंतिम लेख में टी.एन. नायनन जायजा ले रहे हैं कि ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं ने उस भविष्यवाणी को कितना पूरा किया कि वे अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली से आगे निकल जाएंगे.

चित्रणः प्रज्ञा घोष । दिप्रिंट

नई सदी के 25 साल पूरे होने के साथ जो माहौल पिछले वीकेंड बना उसी को आगे बढ़ाते हुए उस दीर्घकालिक भविष्यवाणी को याद करना प्रासंगिक होगा जिसने पूरी दुनिया को नयी सदी के शुरू में आकर्षित किया था. गोल्डमैन सैक्स की वह भविष्यवाणी प्रसिद्ध हुई थी (कुछ लोग इसका उल्टा मानते हैं) कि ‘ब्रिक्स’ नामक संगठन की चार उभरती अर्थव्यवस्थाएं (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन) अंततः उस समय की छह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली यानी ‘जी-6’) की बराबरी करने के बाद उनसे आगे निकल जाएंगी.

सिर्फ व्यापक परिवर्तन की दिशा को देखें तो कहा जा सकता है कि वह भविष्यवाणी सही साबित हुई है. गोल्डमैन ने कहा था कि व्यापक स्तर पर ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्थाएं जी-6 की अर्थव्यवस्थाओं के सातवें हिस्से के बराबर से आगे बढ़ते हुए 2025 तक उनके आधे के बराबर पहुंच जाएंगी.

आश्चर्य की बात यह है कि ब्रिक्स ने वह स्तर समय से पूरे एक दशक पहले, 2015 में ही हासिल कर लिया. लेकिन इसके बाद से रफ्तार सुस्त हुई है.

उम्मीद है कि 2025 तक ब्रिक्स की अर्थव्यवस्था जी-6 की कुल अर्थव्यवस्था के 60 प्रतिशत के बराबर हो जाएगी. इस उपलब्धि का बड़ा हिस्सा मुद्रा की कीमत में उछाल से हासिल किया जाना था लेकिन यह नहीं हो पाया है. फिर भी, जो भविष्यवाणी की गई थी उससे कुल मिलाकर ब्रिक्स ने ज्यादा ही हासिल किया है.

यह मुख्यतः चीन के शानदार प्रदर्शन के कारण संभव हुआ है, जबकि ब्राज़ील और रूस ने बुरी तरह निराश किया. रूस को अब तक इटली से आगे निकलकर फ्रांस के बराबर हो जाना था. लेकिन आज यह ब्राज़ील की तरह इन दोनों देशों से कमतर ही है.

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भारत ने उस भविष्यवाणी के काफी नजदीक पहुंचने वाला प्रदर्शन किया है. भविष्यवाणी की गई थी कि भारत की अर्थव्यवस्था सन 2000 में जी-6 की कुल अर्थव्यवस्था के 2.4 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर 2025 में 8.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगी. वास्तव में, यह 8.4 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है.

जैसा कि व्यापक तौर पर माना जा रहा है, पिछले 25 साल ब्रिक्स के कम और चीन-भारत के ज्यादा रहे. गौरतलब भविष्यवाणी यह थी कि भारत की वृद्धि दर 2025 में चीन की वृद्धि दर से ज्यादा हो जाएगी और इसके बाद और तेजी से आगे बढ़ेगी. यह भविष्यवाणी ज्यादा सटीक साबित हुई है.

गोल्डमैन ने ब्रिक्स की अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन को मजबूती देने वाले जिन चार तत्वों की पहचान की थी वे हैं— व्यापक आर्थिक स्थिरता, व्यापार तथा निवेश के लिए अपने दरवाजे खुले रखना, मजबूत संस्थाएं, और उत्तम शिक्षा.

भारत ने इन चार में से केवल आर्थिक मोर्चे पर ही नहीं, राजनीतिक मोर्चे पर भी स्थिरता हासिल की; दुनिया के लिए अपने दरवाजे ज्यादा खोले (हालांकि हाल में इससे पीछे कुछ कदम खींचे); अपनी आर्थिक संस्थाओं को मजबूत किया हालांकि राजनीतिक संस्थाओं को कुछ कमजोर किया; साक्षरता का स्तर ऊपर उठाते हुए उच्च शिक्षा में सुधार किए, हालांकि दोनों मोर्चों पर सुधार की काफी जरूरत है.

ब्राज़ील और रूस ऐसे दावे नहीं कर सकते, जबकि चीन ने आगे बढ़कर अपना अलग ही मुकाम बना लिया है. भारत बेशक इस जमात में सबसे गरीब देश है लेकिन गोल्डमैन के मुताबिक उसमें सबसे ज्यादा दीर्घकालिक संभावनाएं हैं.

इस सदी के अगले 25 वर्षों में यही दिशा रहने की उम्मीद की जा सकती है, जब कि भारत प्रमुखता हासिल कर सकता है.

रूस ने आर्थिक प्रतिबंधों के तात्कालिक असर को झेल लिया है लेकिन अपने उत्पादों के लिए बाजार नहीं मिलने के कारण अलग-थलग पड़ गया है.

इसके अलावा टेक्नॉलजी से वंचित किए जाने के कारण उसे दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है. ब्राज़ील का इतिहास कभी वृद्धि तो कभी गतिरोध वाला रहा है.

चीन उत्कर्ष पर पहुंचकर धीमा हो गया है लेकिन वह वैश्विक अर्थव्यवस्था के मुक़ाबले तेजी से वृद्धि करता रहेगा. भारत इन चारों में सबसे तेजी से वृद्धि करता रह सकता है.

अंत में : यह स्तंभ 1997 के उत्तरार्द्ध में दबाव में शुरू किया गया था. उस समय ‘बिजनेस स्टैण्डर्ड’ का संपादक होने के नाते मेरा मानना था कि किसी अखबार के संपादक को अपने हस्ताक्षर के साथ स्तंभ नहीं लिखना चाहिए.

वह अखबार के संपादकीय के जरिए अपनी बात कह सकता है लेकिन अलग से कोई राय नहीं दे सकता.

लेकिन अखबार के शनिवार के अंक को वीकेंड की प्रस्तुति के रूप में तैयार करने वाले मेरे साथियों ने ऐलान कर दिया कि अगर मैन नहीं लिखूंगा तो उतनी जगह खाली रह जाएगी.

सो, यह स्तंभ 26 साल से भी पहले शुरू किया गया और कोशिश की गई कि यह आम संपादकीय टिप्पणी से अलग हो. पाठकों के बीच इसकी लोकप्रियता एक सुखद आश्चर्य रही और यह एक पुरस्कार से कम नहीं रहा.

करीब 1300 लेखों को लिखते हुए आपका यह स्तंभकार 47 से 74 साल की उम्र का हो गया. उम्र कसे साथ सक्रिय पत्रकारिता से दूर होते जाने के कारण हर सप्ताह कुछ सार्थक कहना मुश्किल होता गया.

इसलिए, अखबार के संपादकों से पिछले तीन-चार महीनों के विचार-विमर्श के बाद अलविदा कहने का वक्त आ गया. पाठकों ने जितने ध्यान और लगाव से मुझे पढ़ा उसके लिए मैन उनका सदा आभारी रहा और रहूंगा.

(बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा विशेष व्यवस्था द्वारा)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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