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च्विंगम बैन तो ठीक है लेकिन हरियाणा में हुक्का कल्चर कोविड-19 फैलाने में एक कारण साबित हो सकता है

बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए कोरोना घातक सिद्ध हो रहा है तो ऐसे में हरियाणा सरकार को सामूहिक हुक्का जमातों पर नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि हुक्का का बेसिक कॉन्सेप्ट ही लॉकडाउन की अवधारणा के खिलाफ है.

हुक्का पीता व्यक्ति |प्रतीकात्मक तस्वीर | कॉमन्स

कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने च्विंगम या बबल गम बेचने-चबाने को लेकर तीन महीने का बैन लगा दिया है. फूड एंड ड्रग विभाग के एक आदेशानुसार, ‘कोविड-19 लोगों में थूक के जरिए भी फैलता है. इस बात की काफी संभावना है कि च्विंगम या बबल गम को खाकर थूकने से दूसरों में कोरोनावायरस फैले.’

हरियाणा जैसे प्रदेश में सरकार एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहलू की अनदेखी कर रही है. वो है हरियाणा का हुक्का कल्चर जो स्वास्थ्य से ज्यादा इज्जत और शान से जुड़ा है. इसलिए हरियाणा में कोरोना के फैलने की संभावना हुक्का के जरिए ज्यादा है. चूंकि बुजुर्गों में हुक्का पीने का क्रेज ज्यादा है और बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए कोरोना घातक सिद्ध हो रहा है तो ऐसे में हरियाणा सरकार को सामूहिक हुक्का जमातों पर नियंत्रण करना चाहिए. क्योंकि हुक्का का बेसिक कॉन्सेप्ट ही लॉकडाउन की अवधारणा के खिलाफ है. ये लोगों को जोड़ता है, दूर नहीं करता.

हरियाणा में हुक्का क्रेज का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यहां के नेताओं और सेलिब्रिटीज की अपील में पहली बात हुक्का ना पीने की सलाह है. इसके लिए कई तर्क दिए जाते हैं कि हरियाणा एक कृषि प्रधान प्रदेश है इसलिए लोग सुस्ताने के लिए हुक्का पीते हैं. कई कहते हैं कि जात-पात में बंट चुके समाज में हुक्का सभी बिरादरियों को एकसाथ लाता है. ये सामाजिकता फैलाने का संदेश देता है. कइयों के मुताबिक तो हुक्का लैगिंक भेदभाव नहीं करता. हरियाणा की महिलाएं भी हुक्का पीती हैं. भले ही वो पुरुषों की भांति चौपालों पर बैठकर नहीं पीतीं लेकिन अपने घरों में पी लेती हैं.

यही कारण भी रहा कि बॉलीवुड अभिनेता रणदीप हुड्डा ने ताऊओं से हुक्का ना पीने की अपील की. हरियाणवी लहजे में वो कहते हैं कि थोड़े दिन अपने फेंफड़ों को भी आराम दो. कांग्रेसी नेता दीपेंद्र हुड्डा ने भी वीडियो के जरिए मैसेज दिया कि बड़े-बुजुर्ग एक साथ हुक्का पीना छोड़ दें. अगर कोई हुक्के के बिना नहीं रह सकता है तो वो अपना हुक्का शेयर ना करें.

लोगों की इस चिंता के पीछे कारण जायज भी है. अगर हरियाणा में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की संभावना सबसे अधिक किसी चीज़ से है तो वो है हुक्का. लेकिन इस पर सरकार की तरफ से कोई बयान या एडवायजरी नहीं आई है. उत्तर प्रदेश सरकार ने भी कठोर कदम उठाते हुए राज्य में  पान-मसाले पर बैन लगा दिया है क्योंकि कई लोग पान मसाला को भी सांस्कृकित पहचान से जोड़कर देखने लगते हैं. एक दूसरे से खाते वक्त शेयर करते हैं. हरियाणा सरकार को भी इस तरह के कठोर कदम के बारे में सोचना चाहिए.

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आमतौर पर मान लिया जाता है कि बुजुर्ग घर में खाली नही बैठ सकते. वो उंघ जाते हैं और उन्हें शांति शाम की चौपाल पर लगे हुक्कों की गुड़गुड़ी से ही मिलती है. ये गुड़गुड़ी एक व्यक्ति से शुरू होकर पूरे ग्रुप में लगाई जाती है. अगर बुजुर्गों को कोरोना के फैलने के तरीकों को समझाया जा रहा है तो वो इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. कई इसका मखौल उड़ाते हुए कह देते हैं, ‘कोरोना महारा के बिगाड़ैगा. हुक्के बगैर ना रहया जाता ‘.


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अगर मिलेनियल्स सोच रहे हों कि हुक्का इतना क्यों जरूरी है तो मैं बता दूं कि जैसे मिलेनियल्स के लिए आउटिंग है वैसे ही बुजुर्गों के लिए हुक्का गैदरिंग. मिलेनियल्स के लिए स्वैग तो बुजुर्गों के लिए सांस्कृतिक निशानी. जैसा गुरुग्राम के पब में हुक्का कल्चर पॉप्युलर है वैसे ही आपको गांव-देहात में पेड़ों के नीचे या चबूतरों पर दरी बिछाकर ताश खेलते ताऊ हरियाणा में हर जगह दिख जाएंगे. दोनों ही केसों में इसे कम्युनिटी बॉडिंग के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

टिकटोक, लाइकी और इन्स्टाग्राम जैसी एप्स हुक्का पीते युवा लड़कों की तस्वीरों और वीडियो से भरी पड़ी हैं.  एक वीडियो के जरिए आप समझ सकते हैं कि युवाओं के लिए हुक्के का मतलब क्या है? टिकटोक पर राहुल सुथर नाम के एक लड़के ने वीडियो अपलोड किया है जिसमें वो हुक्के का मतलब समझा रहा है- इट इज वेरी फेमस एंड ठाढ़ा इन्स्ट्रूमेंट. इट इट एन एनर्जी ड्रिंक फॉर हरियाणा पीपल. कालजे नै फाडू.

हां, एक और महत्वपूर्ण बात है कि हुक्का सिर्फ मनोरंजन तक ही सीमित नहीं है. ये किसी की सामाजिक स्वीकार्यता की निशानी भी है. उदाहरण के लिए अगर किसी का सामाजिक बहिष्कार करना है तो उसका हुक्का-पाणी बंद कर दिया जाता है. लेकिन अब चिंता की बात ये है कि लॉकडाउन के चलते पांच-छह लोगों के एक साथ हुक्का पीने के वीडियो ज्यादा आ रहे हैं. इसलिए अब वक्त आ गया है कि हुक्के के इज्जत और शान वाले मतलब के अलावा इसे स्वास्थ्य से जोड़कर देखा जाए.  इस बार हुक्का पाणी बंद हो तो वो किसी के सामाजिक बहिष्कार के लिए नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की भलाई और कोरोना को रोकने के लिए हो.

(यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

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