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मोदी-शाह ने कर्नाटक के लिए अपना संदेश भेज दिया है लेकिन येदियुरप्पा उसे देखना नहीं चाहते

येदियुरप्पा को अब सम्मान के साथ रियाटर होने के विकल्प पर गौर करना चाहिए. उनके साथ अब न तो उम्र है और न ही विधायक हैं कि अगर ऐसी स्थिति आ जाए, तो वो आलाकमान के साथ बल परीक्षा कर सकें.

चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा चुनावी राज्यों के घटनाक्रम पर नज़र जमाए हुए होंगे, हालांकि उनकी उत्सुकता में थोड़ा मायूसी का अहसास भी छिपा होगा.

शनिवार को वो मन ही मन में मिथुन चक्रवर्ती को मुंह दबाकर हंसते देख रहे होंगे, जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) शारदा चिट फंड धोखाधड़ी मामले में तृणमूल कांग्रेस के सांसद सताब्दी रॉय की संपत्ति ज़ब्त कर रहा था. रॉय और चक्रवर्ती दोनों शारदा समूह के ब्रांड एंबेसडर हुआ करते थे. दोनों ने ईडी को वो पैसा लौटा दिया था, जो उन्हें समूह से पारितोषिक के रूप में मिला था. लेकिन शनिवार को चक्रवर्ती खुशी-खुशी रोड शो कर रहे थे जबकि रॉय बेबसी के साथ ईडी को अपनी संपत्तियां अटैच करते हुए देख रहीं थीं. चक्रवर्ती पिछले महीने ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुए थे जबकि रॉय ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में ही बनी हुईं थीं.

आज बीजेपी की दो और बड़ी हस्तियों- राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय और असम में मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के दामन पर भी कभी शारदा घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता के चलते, केंद्रीय एजेंसियों की आंच आ रही थी. लेकिन अब वो ठंडी पड़ चुकी है. आज वो बीजेपी के प्रमुख नेता हैं.

पिछले हफ्ते एक और घटनाक्रम में भारतीय निर्वाचन आयोग ने निष्पक्षता के अपने संशोधित मानदंडों पर खरा उतरते हुए, सरमा के प्रचार करने पर लगी पाबंदी को 48 से घटाकर 24 घंटे कर दिया, ताकि वो असम में प्रचार के अंतिम दिन का भरपूर इस्तेमाल कर सकें.

ये देखते हुए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, दूसरी पार्टियों से आए नेताओं का किस तरह ध्यान रखते हैं, येदियुरप्पा ज़रूर सोच रहे होंगे कि उनकी घर वापसी के बाद आखिर गड़बड़ कहां हुई- जब 2014 में वो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के कहने पर बीजेपी में लौटे थे.

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अगर पार्टी दूसरे दल छोड़कर आने वाले मुख्यमंत्री उम्मीदवारों को इतना भाव दे रही है, तो फिर उनके मुख्यमंत्री बनने को लेकर इतनी कुढ़न क्यों है, क्योंकि इसके लिए उन्होंने कर्नाटक में वही किया, जो बीजेपी दूसरे बहुत से प्रांतों में कर चुकी थी? 20 महीने पहले उन्होंने जनता दल (एस)-कांग्रेस को गिराया था लेकिन उनका सफर दुश्वारी भरा रहा है क्योंकि बीजेपी आलाकमान ने पहले तो उनके साथ तीन डिप्टी लगा दिए और फिर बहुत समय तक उन्हें अपने मंत्रियों की टीम बनाने से रोके रखा.


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शीर्ष पर खामोशी

एक ऐसे नेता के लिए जो 50 साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हुए थे और 14 महीनों के अलावा लगातार पार्टी के वफादार रहे हैं, बिल्कुल साफ संकेत मिल रहे हैं: बीजेपी आलाकमान चाहता है कि वो खुद से कुर्सी छोड़कर किनारे हो जाएं. पिछले हफ्ते जब मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने राज्यपाल और पार्टी के शीर्ष को लिखकर सीएम की शिकायत की, तो बीजेपी आलाकमान की प्रतिक्रिया में लहजे और सुर का हल्कापन, साफ देखा जा सकता था.

बीजेपी महासचिव और कर्नाटक प्रभारी अरुण सिंह ने कहा, ‘मतभेद कुछ भी हों, उन्हें मुख्यमंत्री के साथ और पार्टी मंच पर चर्चा करनी चाहिए थी’. येदियुरप्पा की कार्यशैली को लेकर ईश्वरप्पा की शिकायत, अनसुनी भी नहीं की जाएगी. सिंह ने कहा कि पत्र में उठाए गए मुद्दों पर विधानसभा चुनावों के बाद चर्चा की जाएगी.

येदियुरप्पा गलत नहीं होंगे, अगर वो दिल्ली की प्रतिक्रिया का ये अर्थ निकालें कि इसमें असंतुष्टों के लिए अपने प्रयास बढ़ाने का संकेत है. बीजेपी विधायकों की ओर से सीएम पर हो रहे निरंतर हमलों पर आलाकमान की खामोशी से ये बात और भी ज़ाहिर हो जाती है. पिछले जनवरी में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद आधे दर्जन से अधिक भाजपा विधायकों ने लोगों से कहना शुरू कर दिया कि सीएम को किस तरह एक ‘सीडी के ज़रिए’ मंत्री पद देने के लिए ब्लैकमेल किया गया.

एक उभरते हुए लिंगायत नेता, वरिष्ठ विधायक बासनगौड़ा पाटिल यतनाल लगातार येदियुरप्पा पर हमले कर रहे हैं और उन्हें तथा सरकार को शर्मिंदा कर रहे हैं. बीजेपी जैसी पार्टी में ऐसी अनुशासनहीनता पर तुरंत निष्कासन नहीं, तो कम से कम निलंबन ज़रूर हो जाता है. लेकिन बेंगलुरू और दिल्ली में बीजेपी नेतृत्व ने अपनी आंखें फेरी हुई हैं.

असंतुष्ट ऐसे समय पर येदियुरप्पा पर दबाव बढ़ा रहे हैं, जब भ्रष्टाचार के पुराने मामले, फिर से उनके सर पर मंडराने लगे हैं. पिछले हफ्ते कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ 2019 के एक आपराधिक मामले में, जांच पर लगी रोक को हटा दिया, जिसमें उनपर एक जेडी (एस) विधायक के बेटे को कथित रूप से पैसा और मंत्री पद की पेशकश करने का आरोप लगाया गया था.

करीब दो हफ्ते पहले हाई कोर्ट ने एक स्पेशल कोर्ट को निर्देश दिया था कि भूमि अधिसूचना रद्द करने के एक मामले में, येदियुरप्पा पर कथित भ्रष्टाचार के आरोप से जुड़े एक पुराने मामले को फिर से खोला जाए. पिछले पांच महीने में सीएम, भ्रष्टाचार के तीन अन्य मामलों में कानूनी रूप से झटके खा चुके हैं.


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येदियुरप्पा के सामने विकल्प

फिलहाल येदियुरप्पा हथियार डालने के मूड में नहीं लगते और वो अपने बेटे विजयेंद्र के उत्तराधिकार की योजना पर काम कर रहे हैं. इस बात का फायदा उठाते हुए कि वो सबसे बड़े लिंगायत नेता हैं और अकेले बीजेपी नेता हैं जिनकी अपील पूरे कर्नाटक में हैं.

78 वर्षीय मुख्यमंत्री आरएसएस और बीजेपी के अलिखित आयु मानदंड को ठेंगा दिखाने में कामयाब रहे हैं- जिसमें 75 की उम्र के बाद कोई नेता किसी पद पर नहीं रह सकता.

2012 के दोहराव से सावधान रहते हुए, जब येदियुरप्पा ने बीजेपी छोड़कर अपनी पार्टी बना ली थी और 2013 के विधानसभा चुनावों में, अपनी मूल पार्टी की हार सुनिश्चित कराई थी, बीजेपी शीर्ष नेतृत्व उनके साथ सावधानी के साथ व्यवहार करता रहा है. लेकिन अब बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी पर अपनी उल्टी गिनती शुरू कर देनी चाहिए.

शुरू में उनके विरोधी केवल बीजेपी महासचिव (संगठन) बीएल संतोष के कान भरते थे, जिन्हें येदियुरप्पा का कट्टर प्रतिद्वंदी माना जाता है. लेकिन अब मोदी और शाह भी सत्तर वर्ष से अधिक के इस नेता के प्रति उदासीन हो गए हैं, जो कुर्सी से चिपके हुए है और पार्टी के विस्तार की योजनाओं, तथा दो साल बाद आने वाले अगले चुनावों के लिए नया चेहरा तैयार करने की राह में रोड़ा बन रहा है.

कोई सवाल ही पैदा नहीं होता कि मोदी और शाह एक 80 वर्षीय व्यक्ति को पार्टी का चेहरा बनाकर अगले चुनावों में जाएंगे. हाई कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ बहुत से मामलों की जांच को खोलने/ दोबारा खोलने से उनकी स्थिति बहुत असमर्थनीय हो गई है.

येदियुरप्पा को अब सम्मान के साथ रियाटर होने के विकल्प पर गौर करना चाहिए. उनके साथ अब न तो उम्र है और न ही विधायक हैं कि अगर ऐसी स्थिति आ जाए, तो वो आलाकमान के साथ बल परीक्षा कर सकें. राजनीतिज्ञ लोग डूबते सूरज को सलाम नहीं करने के लिए जाने जाते हैं, जो ये लिंगायत नेता अब बन चुके हैं.

इसके अलावा बीजेपी जान-बूझकर, बहुत से दूसरे लिंगायत नेताओं को आगे बढ़ा रही है, ताकि अगर येदियरप्पा के हाथ-पैर पटखते हुए जाने की नौबत आ जाए, तो वो समुदाय से जुड़ाव बनाए रख सकें. लेकिन, कर्नाटक के बीजेपी नेताओं का कहना है कि येदियुरप्पा को किसी राज भवन में पुनर्वास के लिए राज़ी हो जाना चाहिए या अपने बेटे के लिए नरेंद्र मोदी की मंत्री परिषद में जगह ले लेनी चाहिए.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

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