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कोविड से हुई गड़बड़ियों के अलावा भारत की कहानी का दूसरा पहलू भी है, जो उम्मीद जगाता है

कोविड की महामारी से त्रस्त भारत को अच्छी खबरों की या सोचने के लिए किसी और विषय की तलाश है. ऐसे में यह खबर शायद कुछ मददगार हो.

चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

भारत को अच्छी खबरों की जरूरत है. कोविड की महामारी और जरूरी इलाज न मिल पाने की दहशत को देखकर ऐसा लगता है कि प्रसिद्ध कवि यीट्स का यह पूर्वाभास सच साबित हो रहा है कि ‘सब कुछ बिखर रहा है, केंद्र कुछ भी नियंत्रण में नहीं ले पा रहा है, दुनिया में बस अराजकता फैल रही है.’

इसलिए, हां देश को अच्छी खबर की जरूरत है या किसी और विषय की जिससे ध्यान थोड़ा अलग दिशा में जाए. एक ओर वास्तविक रूप से बीमार, मृतप्राय या मृत लोगों के लिए जबकि एंबुलेंस की कमी पड़ी हो, वैसे में आईपीएल में भाग ले रहे क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए एंबुलेंस की कतार की भौंडी तस्वीरों ने सोचने का एक अलग मुद्दा जुटा दिया.

जिन लोगों ने देश के लिए अभी उम्मीद नहीं गंवाई है, उनके विचार के लिए ज्यादा गंभीर मुद्दा भी है, जिसे ‘क्रेडिट सुइस’ के इंडिया स्ट्रेटेजिस्ट नीलकंठ मिश्रा ने ‘बिजनेस स्टैंडर्ड ’ अखबार में चार कड़ियों (5,14,21, 29 अप्रैल) में लिखे अपने विशद लेख में बड़े बदलाव की ओर ध्यान आकृष्ट किया है. उनके पहले लेख का शीर्षक है— ‘भारत का बदलता कॉर्पोरेट परिदृश्य’. आईपीएल तो पलायनवाद को मजबूत करता है लेकिन मिश्र का लेख उम्मीद जगाता है.

मिश्रा ने 16 जनवरी को प्रकाशित मेरे इस स्तंभ ‘यूनीकॉर्न्स कमिंग ऑफ एज’ में प्रस्तुत विचार को और आगे बढ़ाया है. वह बताता है कि भारत में ‘यूनीकॉर्न’ कंपनियों (एक अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य वाली) की संख्या 100 से ज्यादा हो गई है, पहले उनकी संख्या 37 बताई गई थी. मिश्र का व्यापक संदेश यह है कि भारत अपने कॉर्पोरेट परिदृश्य को नया रूप देने के प्रारंभिक चरण में है. उन्होंने इसकी वजह यह बताई है कि प्राइवेट इक्विटी में वृद्धि हुई है, जो असामान्य करवट बदलते हुए पूंजी का पब्लिक-ऑफर वाले पूंजी बाज़ार से भी बड़ा स्रोत बन गई है. प्रचुर पूंजी (मुख्यतः विदेशी) के इस स्रोत ने स्टार्ट-अप कंपनियों को अपनी क्षमता उतनी तेजी से बढ़ाने की सुविधा प्रदान की है जितनी तेजी से पुराने उपक्रम अपने प्रारंभिक चरण में अपनी क्षमता नहीं बढ़ा पाए थे.

मिश्रा इसे एक ओर तो टेली डेंसिटी, डेटा के इस्तेमाल और स्मार्टफोन (या सारे अब पहले के मुकाबले ज्यादा सस्ते हो गए हैं) के उपयोग में वृद्धि से एक दिशा में हुए विस्तार से जोड़ते हैं, तो दूसरी ओर हर मौसम में उपयोगी ग्रामीण सड़कों और ग्रामीण विद्युतीकरण के (जिसके चलते अधिकतर घरों में बिजली के तार पहुंच गए हैं) विस्तार से जोड़ते हैं. इनके चलते निचले स्तर पर बहुआयामी बदलाव हुए हैं और उत्पादकता बढ़ी है. ‘जाम’ (जनधन-आधार-मोबाइल) को नया मुहावरा देते हुए मिश्रा वित्तीयकरण के परिचित क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, जिसे यूनिफाएड पेमेंट्स इंटरफेस जैसे ‘इंडिया स्टैक’ आविष्कारों ने सरल बनाया है और क्रेडिट कार्ड वाले चरण से सीधे डिजिटल भुगतान वाले दौर में पहुंचा दिया है (जो पांच साल पहले कुल भुगतान का 5 प्रतिशत था और अब 30 प्रतिशत हो गया है). आधार कार्ड ने केवाईसी की प्रक्रिया को आसान करके इसमें मदद ही की है.

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दूसरे शब्दों में, तमाम तरह के बदलावों ने यूनिकॉर्न कंपनियों के गठन में मदद की है और ये कंपनियां कुछ पुराने व्यवसायों में बदलाव ला रही हैं और कुछ नये व्यवसाय पैदा कर रही हैं, जिनमें ई-कॉमर्स से लेकर फिनटेक और एडुटेक के अलावा वितरण और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र भी शामिल हैं. इसने अर्थव्यवस्था को ठोस औपचारिक रूप देने में मदद की है, जिसके कारण वित्त कंपनियों ने उपभोग, तथा उधार लेने की प्रवृत्तियों को समझना शुरू किया ताकि एक ओर वे व्यक्तिगत उधार का विस्तार कर सकें, तो दूसरी ओर छोटे व्यवसाय सप्लाई चेन के निर्माण और आसान उधार की उपलब्धता के बूते अपनी क्षमता में वृद्धि कर सकें.


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बदलाव के उदाहरण

इसके साथ-साथ आईटी के क्षेत्र में ‘सेवा के तौर पर सॉफ्टवेयर’ के विस्तार के कारण बदलाव आया है, जिसमें आज करीब 8,000 कंपनियां विशिष्ट सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट का निर्माण करती हुई कारोबार कर रही हैं. इसके लिए वे ‘पे-पर-यूज़’ के लिए मानक भाषा का उपयोग कर रही हैं जिससे कम लागत पर आईटी का उपयोग करने को इच्छुक लघु और मझोले व्यवसायों को भारी बढ़ावा मिलेगा. ‘नैस्कोम’ के मुताबिक, इससे 2025 तक आमदनी में 15 अरब डॉलर तक की वृद्धि होगी. मिश्रा का अनुमान है कि उद्यमशीलता के सक्षम दायरे में यूनीकॉर्न कंपनियों की संख्या बढ़ेगी. और उनकी आय वृद्धिशील जीडीपी में 5 प्रतिशत का योगदान करेंगी.

कई पाठकों को इस कहानी के कुछ हिस्सों या अधिकांश हिस्से की पहले से ही जानकारी होगी क्योंकि बदलाव के उदाहरण हमारे चारों तरफ मौजूद हैं. वास्तव में यह कहानी टुकड़ों-टुकड़ों में कही भी जा चुकी है. मिश्रा ने जो काम पहली बार किया है वह यह है कि उद्यम के स्तर पर और सेक्टर के स्तर पर बदलावों को चालू व्यापक परिवर्तन की बड़ी, सुसंगत तस्वीर में स्थापित किया है और बताया है कि इससे भविष्य का क्या रूप बनेगा. व्यवस्था और सरकार के स्तरों पर विफलताओं को कमतर बताए बिना और तबाह हुई ज़िंदगियों को चोट पहुंचाए बिना इस बात को ध्यान में रखना भी जरूरी है कि भारत की कहानी का एक दूसरा पहलू भी है और इसलिए उम्मीद की वजह भी कायम है.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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