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अबू धाबी मंदिर गए अरब के मंत्रियों से भारतीय मुसलमानों को रूढ़िवाद से लड़ने की प्रेरणा लेनी चाहिए

यूएई जैसे मुस्लिम-बहुल राष्ट्र का हिंदू धर्म के प्रति सम्मान दिखाना हमें भारत के हिंदू-मुस्लिम रिश्तों के संदर्भ में आशा देता है.

ओम्सिय्यत रमज़ान सांस्कृतिक संध्या, अबू धाबी | Baps.org
ओम्सिय्यत रमज़ान सांस्कृतिक संध्या, अबू धाबी | Baps.org

रमज़ान के पाक महीने में अरब मंत्रियों और शेखों का संयुक्त अरब अमीरात में नवनिर्मित BAPS हिंदू मंदिर जाना धार्मिक सद्भाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण पल है. ओम्सिय्यत रमज़ान सांस्कृतिक संध्या के बाद, मंदिर रोज़ा तोड़ना, इस बात का आदर्श उदाहरण है कि हम आपसी सौहार्द के साथ कैसे सह-अस्तित्व में रह सकते हैं.

धर्मनिरपेक्षता की समर्थक के तौर पर जो बात मेरा ध्यान खींचती है, वो यह है कि कुछ मुस्लिम-बहुल देशों के विपरीत, यूएई इस्लामी सिद्धांतों को बरकरार रखते हुए हिंदू धर्म का सम्मान कर रहा है. इससे हमें आशा मिलती है, विशेषकर भारत के हिंदू-मुस्लिम संबंधों के संदर्भ में. भारत, अपनी पर्याप्त मुस्लिम आबादी से प्रेरणा ले सकता है.

हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि यूएई के अंतरधार्मिक सद्भाव और धार्मिक सुधार लाने की कोशिश पूरी तरह से वित्तीय प्रेरणाओं पर आधारित है, लेकिन अबू धाबी में, जहां देश का 96 प्रतिशत तेल भंडार स्थित है, ऐसी पहल आर्थिक हितों से परे हैं. धार्मिक स्वीकृति और सांस्कृतिक समावेशिता को बढ़ावा देने के प्रति अबू धाबी की प्रतिबद्धता, जैसा कि BAPS हिंदू मंदिर कार्यक्रम में दिखाया गया है, विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने की वास्तविक इच्छा की तरह लगती है.

इसके अलावा, यह भारतीय मुसलमानों को ज़रूरी सबक देता है. भारत में अंतर-धार्मिक सद्भाव की सदियों पुरानी परंपराओं, उदाहरण के लिए दरगाहों पर होली उत्सव, को अक्सर मुस्लिम समुदाय के भीतर रूढ़िवादी तत्वों की आलोचना का सामना करना पड़ा है. यूएई जैसे देशों से प्रेरणा लेकर भारतीय मुसलमान परंपरावादी और रूढ़िवादी दृष्टिकोण के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं.


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भारत, विश्व के लिए प्रेरणा

सह-अस्तित्व की कहानी को अपनाने से न केवल उदारवादी मुसलमानों को ताकत मिलती है, बल्कि दोनों समुदायों में दक्षिणपंथी तत्वों की बयानबाजी को भी चुनौती मिलती है, जो अपरिवर्तनीय मतभेदों की धारणा का प्रचार करते हैं. हिंदू दक्षिणपंथ की धारणा है कि मुसलमान अन्य धर्मों का सम्मान नहीं कर पाते हैं, अबू धाबी में स्थापित उदाहरण से चुनौती मिलती है, जहां अरब मुसलमान मंदिर में आयोजित शाकाहारी इफ्तार में शरीक हुए. इसी तरह, मुस्लिम दक्षिणपंथी व्यक्तियों का यह दावा भी खारिज हो गया है कि उनका धर्म उन्हें गैर-मुसलमानों से जुड़ने और उनकी आस्था का सम्मान करने से रोकता है. ओम्सिय्यत घटना एक धार्मिक समुदाय के सभी सदस्यों को एक ही नज़रिये से देखने की भ्रांति को उजागर करती है.

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एक अन्य चिंताजनक प्रवृत्ति भारत में मुस्लिम समुदाय पर चर्चा करते समय कुछ व्यक्तियों द्वारा दोहरे मानदंड अपनाने की प्रवृत्ति है. एक ओर, वे भारत में मुसलमानों की आलोचना करने के लिए ये तर्क देते हैं कि इस सामान्यीकरण का लाभ उठाते हैं कि सभी मुसलमान ‘असहिष्णु’ हैं. दूसरी ओर, जब अबू धाबी मंदिर जैसी घटनाएं होती हैं, तो वे भारतीय मुसलमानों को घटिया करार देते हुए अरब मुसलमानों की प्रशंसा करते हैं. यह पाखंड समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी कट्टरता और निराशाजनक पूर्वाग्रहों को दर्शाता है. भारत में मुसलमानों ने लंबे समय से देश के लोकाचार को अपनाया है, जो सभी धर्मों के लिए सद्भाव और सम्मान को बढ़ावा देता है. जबकि दुनिया भर से धार्मिक समावेशिता के संकेतों से प्रेरणा लेना महत्वपूर्ण है, हमें उन परंपराओं को भी स्वीकार करना चाहिए जो भारत के इतिहास में गहराई से बसे हैं.

अंत में BAPS हिंदू मंदिर कार्यक्रम ने भारत और दुनिया में सह-अस्तित्व के बारे में एक बहुत ज़रूरी बहस छेड़ दी है, खासकर ताजिकिस्तान में सार्वजनिक क्रिसमस समारोहों पर प्रतिबंध जैसे धार्मिक असहिष्णुता के इतिहास को देखते हुए.

(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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