होम मत-विमत मृत्युदंड का अध्यादेश ‘लॉलीपॉप राजनीति’ का एक और उदाहरण है

मृत्युदंड का अध्यादेश ‘लॉलीपॉप राजनीति’ का एक और उदाहरण है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ | पीटीआई

नया राजनीतिक सूत्र है, यदि आप शिकायत का निवारण नहीं कर सकते हैं, तो रक्त की प्यास को शांत करें| यदि आप समस्या को हल नहीं कर सकते हैं, तो एक और कानून के साथ लोगों को बेवक़ूफ़ बनाओ|

बीजेपी सरकार ने बच्चों के बलात्कारियों को मौत की सजा देने के लिए एक त्वरित अध्यादेश जारी किया है।

इससे समस्या हल नहीं होगी, या ये उन भयानक अपराध की घटनाओं को कम नहीं करेगा|जैसे ही मोहल्ले और कूचों में एक बहुत कठोर बलात्कार कानून, जिसका किसी भी समिति की जांच के बिना या संसद में यथोचित बहस के बिना, पारित (लगभग) हुआ हो उससे दर्ज अपराध संख्याओं को देखते हुए बलात्कारियों पर फर्क नहीं पड़ा|

यद्यपि, यह तत्काल नागरिक क्रोध को शांत करने में मदद करता है|नया राजनीतिक सूत्र है, यदि आप शिकायत का निवारण नहीं कर सकते हैं,तो रक्त की प्यास को शांत करें| यदि आप समस्या को हल नहीं कर सकते हैं, तो एक और कानून के साथ लोगों को बेवक़ूफ़ बनाओ| इसे ही हम ‘लॉलीपॉप राजनीति’ कहते हैं|

हमने इस बात पर तब ध्यान दिया था जब यूपीए, जो 2013 तक बहुत कमजोर हो गयी थी, निर्भया मामले पर जनजागरण के कारण आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक को कुचल रही थी| अन्ना हजारे के उदय के बाद से, यूपीए ने गनपॉइंट पर गंभीर कानूनों के प्रारूपण के विचार को अपनाया था|

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कभी कभी ये समय सीमायें दूसरों द्वारा दी जाती हैं, विशेष रूप से अन्ना हजारे की, जबकि निर्भय मामले में इसने खुद अपनी समय सीमा तय की थी| दिल्ली के सामूहिक बलात्कार के दुष्परिणाम से निपटने में अपनी अक्षमता पर आघातित, भयभीत और सबसे महत्वपूर्ण, शर्मिंदा थे,इन्होने 30 दिनों में एक नये मसौदा कानून के सुझाव के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा के नेतृत्व में सबसे पहले एक समिति का गठन किया| और जब उन्होंने उस मसौदे को प्रस्तुत किया, वास्तव में समय से सीमा से एक दिन पहले, सरकार ने जल्दबाजी में और मनमाने ढंग से कुछ बदलाव करते हुए एक अध्यादेश जारी किया|

अनिर्णीत मुद्दों के लम्बी कतार

हम जानते हैं कि मनुष्य संत्रास में सबसे अविश्वसनीय रूप से बेवकूफी भरे काम कर सकता है|लेकिन आपने उम्मीद की होगी कि मोटी चमड़ी वाले कई राजनीतिक दिग्गजों वाली एक सरकार ने कुछ मोहलत प्राप्त करने के लिए उस रिपोर्ट के प्रस्तुतीकरण का इस्तेमाल किया होगा, व्यापक चर्चा के लिए इसको संचारित करने के लिए – उस सप्ताहांत के टीवी टॉक शो से थोड़ा ज्यादा प्रसार – और एक महीने से भी कम समय में आने वाले संसद सत्र की प्रतीक्षा की होगी| अध्यादेश के साथ, इसने अपने लिए समयसीमा निर्धारित कर ली थी: अब या तो यह कानून संसद में पारित होता,या अध्यादेश समाप्त हो जाता, जिससे समाचार टीवी और कार्यकर्ताओं का संयुक्त रोष वापस आता|

नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने हूबहू यही किया है| अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि यह एक अपराध, जो वर्तमान कानूनों के तहत भी मौत की सजा के पात्र है, पर लोक-सम्मत आक्रोश के जवाब में किया गया है, जैसा कि बलात्कार के बाद बच्चे की कथित तौर पर हत्या कर दी गयी थी|

एक अध्यादेश जारी किये जाने के साथ अब, इस कानून को समय सीमा के भीतर पारित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, हालाँकि यह अपूर्ण है, जल्दबाजी भरा है और बिना किसी बहस के आया है| जल्दबाजी क्या थी, यह किसी ने नहीं पूछा| आखिरकार, एक नया आपराधिक कानून है क्या और रातोंरात अध्यादेशों को प्रस्तावित कौन करता है? ये ऐसा नहीं है कि एक युद्ध चल रहा था और आपको कुछ खतरनाक छेड़छाड़ करने के लिए भारत के रक्षा नियमों में संशोधन करने की आवश्यकता थी|किसी भी मामले में, एक नया कानून पहले से ही किए गए अपराध पर लागू नहीं होगा। और जबकि हम जानते हैं कि इस समय में ऐसे प्रश्न उठाना जोखिम भरा है, तो क्या आप वास्तव में सोचते हैं कि उन भयानक लोगों, जिन्होंने उस बच्चे के साथ क्रूरता की, के पास दूसरा विचार होता यदि ऐसा एक नियम अस्तित्व में होता|

यूपीए के मामले में, आप कम से कम यह कह सकते हैं कि यह आश्चर्यजनक रूप से कमजोर सरकार थी। यह उस रेलमार्ग के जैसा है जिसकी व्यवस्था बहुत त्रासदी भरी है। लेकिन एक मजबूत एनडीए सरकार को ऐसा क्यों करना पड़ा? सिर्फ इसलिए, क्योंकि इस समय यह लोकमत का नमूना है। अगर लोग परेशान हों, तो उनके लिए एक और कानून लागू कर दें।

यह एक बहुत ही गंभीर कानून है और यह उन मुद्दों से भरा हुआ है जो अभी भी गंभीर रूप से विवादास्पद हैं: उनमें से सबसे अधिक, भारत को अब कितने अपराधियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान करना चाहिए? और क्या मौत की सजा का प्रावधान ना होना ही बलात्कारियों द्वारा बाल पीड़ित को मारने का कारण है। इन मुद्दों पर बजाय बंदूक की नोंक वाले कानून बनने के, समय के साथ बहस होनी चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को परिमार्जन के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।
हर बुराई के लिए एक कानून

जटिल मामलें एक बुरा कानून बनाते हैं और यह व्यापक रूप से स्वीकार भी किए जाते हैं, जो वास्तव में हो भी रहा है। यह कानून कई मुद्दों, कानूनों, दुखों, स्पष्टता, नुकसानों और विचारधाराओं को एक में लपटे हुए है। अब यह उस खतरनाक अध्यादेश द्वारा तय समय सीमा के साथ पारित किया जा रहा है।

एक संकट के लिए एक राजनीतिक प्रतिक्रिया के स्थान पर एक कानून की पेशकश करना कमजोर शासन का पुराना लक्षण है। नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार क्यों झुक रही है?

हमें बस उस तर्क को समझने का इंतजार है कि सिर्फ जल्दी से एक नया कानून लागू कर देने से भारत में उस बच्ची को न्याय मिल सकेगा, जबकि इस कानून को अभी भी शासन की प्रणाली में लागू किया जाना बांकी है, इतना घटिया कि यह किसी मामले में मुख्य आरोपी को प्रतिबंधित नहीं कर सका था जिस मामले (निर्भया) ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था और जिसकी वजह से 2013 का बालात्कार के लिये कानून लागू किया गया जेसके चलते उस केश के मुख्य आरूपी ने आत्महत्या कर ली.

पुलिस और न्यायिक सुधार की कमीं के कारण, इस नए कानून के तहत देश भर में हजारों एटीम स्थापित करने पड़ेगे, कम से कम हर पुलिस स्टेशन में एक एटीम स्थापित करवाना पड़ेगा। इससे कमजोर बच्चों की रक्षा हो या ना हो लेकिन एक बात तो पक्की तरह से तय है कि इससे भ्रष्ट पुलिस कर्मी और भी ज्यादा भ्रष्ट हो जाएंगे।

दुनिया भर का राजनैतिक वर्ग मूर्खों को लालच देने और शासन पर भड़की हुई जनता को शांत करने में बहुत ही माहिर होता है। यूपीए के शासन के सालों में हमने कहा था कि अब आपको लॉलीपॉप से ‘लॉ’ लीपॉप की ओर आकर्षित होना चाहिए। सरकार ग्रामीण समस्याओं का निपटान नहीं कर सकी, इसलिए उसने आपको एक रोजगार गारंटी का कानून दिया। लेकिन क्या फायदा यह कानून भूखे लोगों को खाना नहीं दे सका जबकि लोगों के खाते भरते चले गए इसलिए इसने हमें एक खाद्य कानून का अधिकार दिया।

सदेश यह थाः जाओ और खाओ, यह कानून जो एक भ्रष्ट राजनीतिक नौकरशाह ठेकेदारों के जाल के माध्यम से आपका आनाज चुरा लेता था। यदि आप सामान्य रूप से हमारी संसद का इतिहास (रिकार्ड) देखते हैं, तो सभी हास्यास्पद, अनुपूरक या बुरे कानून बिना बहस के ही पास हो जाते हैं। कोई भी व्यक्ति लोकप्रिय बुरे कानून के पक्ष पर नहीं होना चाहता है। वैसा ही इस मृत्युदंड अध्यादेश के साथ होगा।

इतिहास से एक सबक

सभ्य लोग, परिपक्व लोकतंत्र की मांग करते हैं और बेहतर प्रशासन का अधिकार रखते हैं। वे जल्दबाजी में गलत कानूनों को लागू नहीं करते हैं। ऐसे कानूनों को लागू करना आसान है, लेकिन उन्हें सुधारने में पीढ़ियाँ लग जाती हैं। याद रखें, हमारे सबसे कमजोर आर्थिक कानूनों में से कुछ, जो अभी भी हमारी सुधार प्रक्रिया को नष्ट कर रहे हैं, जिसमें श्रम कानूनों में नगरीय भूमि सिलिंग से संशोधन प्रक्रिया को नष्ट करने तक, इंदिरा गांधी को अपने छठे वर्ष (छह वर्षीय संसद) में अवैध और असंवैधानिक आपातकालीन संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था ( इस गणतंत्र पर इस तरह से कुरूपता प्रवृत्त को लगाया गया है)। इसने तीन इच्छुक संसदों को नगरीय भूमि सीलिंग को निरस्त करने के लिए लिया है, लेकिन कई राज्य अभी भी इसके लिए लटके हुए हैं।

राजनेता, स्वनिर्णय और दरार उत्पन्न करने वाले बुरे कानूनों से प्यार करते हैं। और केवल खराब संसदें ही जल्दबाजी में कानून पारित करती हैं। एक तथ्य पर ध्यान दें: एक साल में पारित कानूनों की सबसे बड़ी संख्या के लिए रिकॉर्ड, 118, 1976 की छह साल की बनाना-रिपब्लिक संसद के साथ है, जब विपक्ष जेल में था। यहां तक कि एक ही गैरकानूनी संसद द्वारा हमारे संविधान के प्रस्ताव में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द भी शामिल किए गए थे।

विधानसभा में इस मुद्दे पर दोबारा बहस करना एक झुकाव हो सकता है या शायद न भी हो। ऐसी मांगों को खारिज करने के लिए अम्बेडकर का शानदार स्पष्टीकरण भी हो सकता है। उन्होंने कहा, “राज्य की आर्थिक और सामाजिक नीतियां, समय और परिस्थितियों के अनुसार लोगों द्वारा स्वयं तय की जानी चाहिए।” उन्होंने आगे बताया: “इसे संविधान में ही नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह लोकतंत्र को पूरी तरह से नष्ट कर रहा है … फिर आप लोगों की स्वतंत्रता छीन रहे हैं (भविष्य में) यह तय करने के लिए कि वह कौन सा सामाजिक संगठन होना चाहिए जिसमें वे रहना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, हालांकि लोग उस समय समाजवाद में विश्वास करते थे, पर आने वाले समय में, “यह पूरी तरह संभव है” कि वे “आज-कल के समाजवादी संगठन की तुलना में एक (बेहतर प्रणाली) तैयार कर सकते हैं।”

यह लेख आपको बताएगा कि हमारे गणराज्य के संस्थापक कितने शानदार ढंग से उदार और राजनीतिक रूप से प्रतिष्ठित थे। उन्होंने एक सहनशील और विचारशील कानून बनाने की परंपरा की स्थापना की और हमें उपहार स्वरूप सौंप दिया। हमने इसे अपने स्वार्थ के लिए भावी पीढ़ियों के साथ मजाक के तौर पर छोटा कर दिया है।

एक अन्तिम सवाल के साथ मैं अपने मामले को विश्राम देता हूँ। इस कानून के बावजूद भी यदि ऐसा कोई अन्य अपराध भारत को झटका देता है तो सरकार क्या प्रतिक्रिया देगी? जनता की फांसी के लिए एक नया कानून? और अगला कानून क्या होगा सामूहिक वध, जैसा कि आईएस या तालिबान व्यभिचार के लिए करते हैं? लॉलीपॉप (लालच देने) वाली राजनीति एक फिसलने वाली ढलान है।

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