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वैश्विक कीमतें बढ़ने के बीच भारत के पास बाकी बचे साल के लिए फर्टिलाइज़र की पर्याप्त सप्लाई

दुनिया में यूरिया के चार शीर्ष खरीदारों में से एक भारत ने अगले 7 महीनों के लिए 287 लाख मीट्रिक टन का प्रावधान किया है. ये ऐसे समय किया गया है जब यूक्रेन के साथ रूस की लड़ाई से उर्वरकों की कमी पैदा हो गई है.

खेतों में यूरिया डालता किसान | प्रतीकात्मक तस्वीर | एएनआई

नई दिल्ली: शीर्ष सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया है कि भारत ने यूरिया और डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) उर्वरकों का इतना भंडार जमा कर लिया है, जो पूरे साल चल सकता है. ये घटनाक्रम ऐसे समय हुआ है जब इसी साल के शुरू में थोड़ा शांत रहने के बाद यूरिया के वैश्विक दामों में फिर तेज़ी शुरू हो गई है.

भारत ने अगले 7 महीनों के लिए करीब 287 लाख मीट्रिक टन यूरिया का प्रावधान कर लिया है. उसकी मासिक उत्पादन क्षमता 25 एलएमटी पर बरकरार है, जबकि 70 लाख मीट्रिक टन पहले ही राज्यों के पास मौजूद है और अगले दो महीनों में अंतर्राष्ट्रीय टेंडर के जरिए 16 एलएमटी भारत के पास पहुंच रहा है, तथा साथ ही हर महीने नैनो यूरिया के 1.5 लाख बोरों का उत्पादन होने की उम्मीद है.

देश में ही विकसित एक तरल ऊर्वरक नैनो यूरिया के 1.5 लाख बोरों के– उस संयंत्र से जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले माह गुजरात के कलोल में उद्घाटन किया- करीब 3 एलएमटी यूरिया की जगह लेने की अपेक्षा है. इसके अलावा, बिहार के बरौनी और झारखंड के सिंदरी में स्थित संयंत्रों के अक्टूबर से चालू हो जाने की उम्मीद है, जहां हर महीने करीब 2 एलएमटी यूरिया का उत्पादन किया जाएगा.

भारत में यूरिया की वार्षिक जरूरत 325 और 350 एलएमटी के बीच है. डीएपी के लिए वार्षिक जरूरत करीब 100-125 एलएमटी है- जिसमें से सूत्रों के मुताबिक, भारत में करीब 40-50 एलएमटी के उत्पादन की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि बाकी जरूरत के 50 एलएमटी का आयात किया जाएगा और 21 एलएमटी फिलहाल राज्यों के पास मौजूद है.

एक वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हमें बाकी वर्ष के लिए अब और यूरिया खरीदने की जरूरत नहीं है. इसका ये भी मतलब है कि हमारे पास इतनी गुंजाइश है कि हम अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से ऐसे समय पर खरीद कर सकते हैं जब कीमतें हमारे अनुकूल हों. भारत यूरिया के शीर्ष चार खरीदारों में से एक है- बाकी हैं ब्राज़ील, चीन और अमेरिका. अगर हम ऐसे दामों पर खरीद नहीं करते जो हमें ऊंचे लगते हैं, तो बहुत बार हमने देखा है कि कीमतें अपने आप नीचे आ जाती हैं. हम रणनीतिक खरीद करेंगे’.

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अधिकारियों का कहना है कि ऊर्वरकों का बहुत पहले से प्रावधान करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि उपलब्धता में ज़रा सी देरी किसानों में घबराहट फैला सकती है, जिसके नतीजे में विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं- भले ही उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो और देरी का कारण मात्र ढुलाई की समस्या हो.

यूक्रेन के साथ रूस की लड़ाई ने वैश्विक फर्टिलाइज़र बाज़ार पर गंभीर दबाव बना दिया है, जिसके नतीजे में कीमतों में तेज़ी आ गई है.


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यूरिया के विपथन पर कार्रवाई

यूरिया बहुत अधिक सब्सिडी वाली वस्तु है, जिसमें एक बोरे की कीमत किसान के लिए 266 रुपए होती है, जबकि भारत सरकार को ये 3,000 रुपए का पड़ता है. कृषि के अलावा यूरिया का इस्तेमाल प्लाईवुड राल, क्रॉकरी, डेयरी और मवेशी चारे जैसे उद्योगों में भी किया जाता है.

सरकारी सूत्रों के अनुसार, उर्वरक विभाग ने हाल ही में ऐसी कंपनियों के खिलाफ व्यापक छापेमारियां की, जो कृषि के उपयोग में आने वाले ऊंची सब्सिडी वाले यूरिया को अपने इन उद्योगों में लगा रहीं थीं. छापेमारी के दौरान यूरिया के बिना हिसाब के करीब 25,000 बोरों के भंडारण तथा 64.43 करोड़ रुपए की जीएसटी चोरी का पता चला.

इस हेराफेरी में शामिल छह राज्यों की 52 इकाइयों से छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है. ये राज्य हैं- हरियाणा, केरल, राजस्थान, तेलंगाना, गुजरात और उत्तर प्रदेश.

इसी तरह की छापेमारी महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और बिहार की 38 मिश्रण निर्माण इकाइयों में की गई (जो मिश्रित फर्टिलाइज़र्स का उत्पादन करती हैं). जिन 15 इकाइयों में छापे मारे गए उनमें 70 प्रतिशत से अधिक इकाइयां गुणवत्ता टेस्ट में फेल हो गईं. नियमित औचक निरीक्षणों के लिए विभाग ने अब फर्टिलाइज़र उड़न दस्तों का गठन किया है जिससे कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सके.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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