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AICTE ने संस्थानों से कहा- चिकित्सा आधार पर बाहर हुए सैन्य कैडेटों के लिए लेटरल एंट्री पर करें विचार

एआईसीटीई ने पिछले सप्ताह संबद्ध संस्थानों को भेजे गए पत्र में ये सुझाव दिया है. बोर्ड-आउट कैडेट लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे और उन्होंने इस प्रावधान की मांग करते हुए केंद्र सरकार को पत्र भी लिखा था.

एनडीए और नेवल एकेडमी की परीक्षा देते अभ्यार्थी | फोटो: एएनआई

नई दिल्ली: अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने अपने संबद्ध संस्थानों से कहा है कि वे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और इसी तरह के सैन्य संस्थानों के बोर्डेड आउट कैडेटों को ‘सहानुभूति के आधार’ पर लेटरल एंट्री की अनुमति देने पर विचार करें.

‘बोर्डेड आउट’ चिकित्सा आधार पर सैन्य सेवा से मुक्त किए जाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला एक शब्द है.

पिछले हफ्ते भेजे गए एक पत्र में एआईसीटीई- भारत में तकनीकी शिक्षा के लिए शीर्ष निकाय ने अपने संबद्ध संस्थानों से ‘लेटरल एंट्री के जरिए प्रवेश के लिए ऐसे वास्तविक मामलों के सहानुभूतिपूर्ण विचार के मानदंड का पता लगाने’ के लिए कहा है. इसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

यह उन लोगों पर लागू होगा जो एनडीए और भारतीय नौसेना अकादमी जैसे इसी तरह के रक्षा संस्थानों में भर्ती हुए थे, लेकिन चिकित्सा कारणों से अपना कोर्स पूरा नहीं कर सके.

लेटरल एंट्री एक ऐसा सिस्टम है जो किसी व्यक्ति की मौजूदा योग्यता के आधार पर सीधे उच्च स्तर की शिक्षा में प्रवेश की अनुमति देता है. मसलन, एक कैडेट जिसने अपने एनडीए पाठ्यक्रम को दूसरे साल में छोड़ दिया था, इस योजना के जरिए बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी (बीटेक) पाठ्यक्रम के दूसरे वर्ष में सीधे प्रवेश ले सकता है.

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एआईसीटीई न केवल इंजीनियरिंग जैसे पाठ्यक्रम चलाती है बल्कि टाउन प्लानिंग, मैनेजमेंट, एप्लाइड आर्ट एंड क्राफ्ट और होटल मैनेजमेंट एंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी जैसे कोर्स भी उसकी लिस्ट में शामिल हैं.

एआईसीटीई ने अपने आधिकारिक पत्र में लिखा कि उसे बोर्ड-आउट अधिकारी प्रशिक्षुओं को छोड़े गए साल में फिर से पाठ्यक्रम में प्रवेश की अनुमति दिए जाने के लिए पत्र मिले थे.

एआईसीटीई के पत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में लेटरल एंट्री के प्रावधान का हवाला देते हुए कहा गया, ‘ये उम्मीदवार संस्थान को सेवा देने के साथ-साथ उसी संस्थान से अपने डिप्लोमा बीए, बीएससी, बीटेक, एमटेक पाठ्यक्रम भी करते हैं. लेकिन बोर्डेड-आउट की स्थिति में वे अपना कोर्स पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं.’

एनईपी एक नया शिक्षा ढांचा है जो देश की मौजूदा शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव का सुझाव देती है. इसकी विभिन्न योजनाओं में उन स्नातक छात्रों को फिर से अपनी पढ़ाई शुरू करने का प्रावधान है, जो अपने पाठ्यक्रम को किसी कारणवश बीच में छोड़ देते हैं. ऐसे छात्र अगर भविष्य में अपना पाठ्यक्रम को पूरा करना चाहते हैं तो उन्हें उसकी अनुमति दी जाती है.

पत्र में लिखा है, ‘आपसे अनुरोध है कि आप अपने सम्मानित संस्थानों में उचित स्तर पर लेटरल एंट्री के जरिए प्रवेश के लिए ऐसे वास्तविक मामलों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने के मानदंड तलाशे. यह ऐसे योग्य छात्रों के लिए बेहद मददगार होगा जो अपने करियर को फिर से आकार देने के लिए बीच में छोड़े गए अपने कोर्स को पूरा करना चाहते हैं.’

मौजूदा समय में एनडीए के पास लेटरल एंट्री के लिए चुनिंदा विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापन है.

अंकुर चतुर्वेदी एक पूर्व कैडेट है. वह 1992 में एनडीए में शामिल हुए था और उन्हें अपने छठे टर्म के बाद बोर्ड से बाहर होना पड़ा. उसने दिप्रिंट को बताया कि 1985 और 2021 के बीच एनडीए और अन्य अकादमियों के 450 ऐसे कैडेट थे, उनकी स्थिति पर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया है. चतुर्वेदी उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने इस तरह के बदलाव के लिए केंद्र सरकार से गुहार लगाई थी.

उन्होंने कहा कि इस कदम से उन कैडेटों को मदद मिलेगी जिन्हें अकादमी छोड़ने के बाद अपने करियर को फिर से शुरू करने में परेशानी होती है.


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पीएम से गुहार

चतुर्वेदी ने कहा कि उन्होंने इस साल जनवरी से मार्च के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को कई पत्र लिखे. चतुर्वेदी जैसे 50 लोगों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में केंद्र सरकार से उन्हें अन्य संस्थानों में अपनी शिक्षा जारी रखने की अनुमति देने के लिए कहा गया है.

एक पत्र में कहा गया है, ‘प्रशिक्षण के दौरान लगी चोट के कारण हर साल बहुत कम संख्या में अधिकारी कैडेट प्रशिक्षण से बाहर हो जाते हैं. ये स्थिति स्वाभाविक रूप से काफी खतरनाक है. चिकित्सा आधार पर अमान्य होने के कारण ये अधिकारी कैडेट अपनी नौकरी तो खो ही देते हैं और साथ ही सशस्त्र बलों में एक अधिकारी के रूप में सेवा करने का उनका सपना भी टूट जाता है.’

‘सशस्त्र बलों द्वारा पुनर्वास/पुनर्रोजगार के प्रावधान के अभाव में उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है.’

पत्र में कहा गया है कि अन्य संस्थानों में लेटरल एंट्री का प्रावधान न होने के कारण सैन्य अकादमियों में प्रशिक्षण में लगने वाला समय व्यर्थ चला जाता है.

पत्र में लिखा है, ‘मैं आभारी रहूंगा, अगर आप संबंधित मंत्रालय और विभागों को ऐसे कैडेटों के लिए सभी विश्वविद्यालयों में स्नातक के दूसरे वर्ष/तीसरे वर्ष में लेटरल एंट्री की व्यवस्था करने का निर्देश दे सकें, जो एनडीए/ एमसीएमई/ सीएमई और अन्य में अपने कार्यकाल के दौरान अकादमी से चिकित्सा आधार पर अमान्य हो गए हैं.’

पत्र में आगे लिखा है, ‘ऐसे कैडेटों को यदि तीसरे वर्ष में अमान्य कर दिया जाता है तो उन्हें अपनी ग्रेजुएशन नए सिरे से शुरू करनी होती है. अभी तक ग्रेजुएशन के दूसरे या तीसरे साल में लेटरल एंट्री का कोई प्रावधान नहीं है, राष्ट्र के लिए प्रशिक्षण में बिताया गया समय व्यर्थ चला जाता है’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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