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अन्य धर्मों को अपनाने वाले SC के सदस्यों को समान दर्जा मिल सकता है? मोदी सरकार समीक्षा के लिए करेगी आयोग का गठन

यह विचाराधीन आयोग उन परिवर्तनों के बारे में भी पता लगाएगा जिनका धर्म परिवर्तन के बाद अनुसूचित जाति के लोग सामना करते है. साथ ही यह उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन करेगा और यह पता लगाएगा कि यदि उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाता है तो इसके क्या परिणाम होंगे.

प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

नई दिल्ली: जैसा कि दिप्रिंट को पता चला है नरेंद्र मोदी सरकार अनुसूचित जाति से अन्य धर्मों में परिवर्तित होने वाले लोगों के मसले पर एक राष्ट्रीय आयोग स्थापित करने पर विचार कर रही है.

यह नई संस्था इस बात की भी जांच करेगा कि क्या राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों के अलावा किन्हीं अन्य धर्मों में परिवर्तित होने वाले लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है.

इस घटनाक्रम से परिचित अधिकारियों के अनुसार, यह आयोग कई मुद्दों, विशेष रूप से सामाजिक, आर्थिक और अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित अन्य पहलुओं पर समीक्षा करेगा.

इस कदम के जरिए उन परिवर्तनों का पता लगाने की कोशिश की जा रहा है जो अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों को अन्य धर्मों में परिवर्तन के बाद सामना करना पड़ता है. यह उनके रीति-रिवाजों, सामाजिक, आर्थिक और अन्य प्रकार के भेदभाव के साथ साथ उनकी वंचित अवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में पता लगाएगा. इसके अलावा यह इस बात भी की पड़ताल करेगा कि अगर उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाता है तो इसके क्या संभावित प्रभाव होंगे.

संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के तीसरे खंड में कहा गया है कि अगर कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध से अलग किसी और धर्म को मानता है उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा.

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इस मुद्दे पर अब विस्तार से चर्चा की जा रही है और आयोग, इसके एक बार गठित होने के बाद, इस बात की जांच करेगा कि क्या अन्य धर्मों में नए धर्मान्तरित लोग, जो सालों से अनुसूचित जाति से होने का दावा करते हैं, उन्हें भी धर्मांतरण के बाद समान दर्जा दिया जा सकता है.

इस बारे में बात करते हए एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया. ‘जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत अन्य धर्मों में धर्मांतरण करने वाले लोगों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग (नेशनल  कमीशन ऑफ़ शेडूएलेड कास्ट कन्वर्ट्स टू अदर रिलिजनस) की स्थापना की आवश्यकता काफी समय से महसूस की जा रही थी. इस पर बहुत सारी चर्चा हो चुकी है और जल्द ही कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा.’

इस पैनल की जिम्मेदारियों में इस बात का अध्ययन करना भी शामिल होगा कि अगर नए व्यक्तियों को इस सूची में जोड़ा जाता है तो इस कदम का मौजूदा एससी समुदाय पर क्या असर पड़ेगा.


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विभिन्न क्षेत्रों से उठ रहीं मांगे

इस तरह के एक आयोग के गठन की आवश्यकता को जायज ठहराते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों के अलावा अन्य धर्मों में धर्मान्तरित हुए अनुसूचित जाति के लोगों को एससी का दर्जा देने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से मांग की जाती रही है.

इस तरह के एक आयोग की नियुक्ति के पक्ष में दिए जाने वाले मुख्य तर्कों में से एक यह तथ्य भी है कि अभी तक इस बात के कोई व्यापक अध्ययन नहीं किए गए हैं जो इन समुदायों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थितियों के बारे में पता लगाते हों.

इस मसले के विवरण से परिचित एक अधिकारी ने कहा, ‘असलियत तो यह है कि इस तरह के विस्तृत अध्ययन का उपलब्ध नहीं होना ही इस आयोग की नियुक्ति को अनिवार्य बनाता है जो अनुसूचित जाति के दर्जे और उनकी योग्यता के वारे में जांच-पड़ताल कर सकता है.’

एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार के पास इस बारे में पर्याप्त और निश्चित सबूतों वाला डेटा या विश्लेषण मौजूद नहीं है.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में ईसाइयों और मुसलमानों की जनसंख्या क्रमशः 2.4 करोड़ और 13.8 करोड़ जो हमारी कुल जनसंख्या का क्रमशः 2.34 प्रतिशत और 13.43 प्रतिशत थी.

ऊपर वर्णित दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि, वर्तमान में अनुसूचित जाति के रूप में निर्दिष्ट जातियों से ईसाई और इस्लाम धर्म में परिवर्तित होने वाले व्यक्तियों की संख्या के बारे में सही-सही जानकारी उपलब्ध नहीं है.’

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