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ट्रांसफर को लेकर सरकारी आदेश के बावजूद क्यों परेशान है बिहार की हजारों महिला टीचर

राज्य का शिक्षा विभाग दो साल से शिक्षकों की ट्रांसफर नीतियों पर काम कर रहा है. इस बीच महिलाओं और दिव्यांगों को सबसे ज्यादा कठिनाई झेलनी पड़ रही है.

एक स्कूल की प्रतीकात्मक तस्वीर

पटना: बिहार में हजारों की संख्या में ऐसी महिला शिक्षक और लाइब्रेरियन हैं जो राज्य के विभिन्न जगहों पर अपने परिवार से दूर रहकर काम कर रही हैं. राजधानी पटना से 250 किमी दूर स्थित भागलपुर जिले के भ्रमपुर पंचायत की रोजी झा ने बताया कि मैं अभी अपने घर से 136 किलोमीटर दूर अररिया जिले के ‘प्लासी’ गांव में आदर्श मध्य विद्यालय में कार्यरत हूं. मेरे साथ मेरे पति और बेटा भी रहता है.

रोजी ने बताया, ‘पति का भागलपुर में अपना व्यवसाय था, जिन्हें मेरी वजह से छोड़ना पड़ा. अब मजबूरी में अररिया शहर में ही मार्केटिंग फील्ड में काम कर रहे हैं. मैं अभी तक 2 साल में कम से कम 10 बार सरकारी अधिकारी के पास ट्रांसफर की अर्जी दे चुकी हूं. लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिला. हम किराए का मकान लेकर अकेले रहते हैं. हमें इतनी दिक्कत होती है कि हम क्या बताएं आपको.’

‘शिक्षक नियोजन नियमावली’ के तहत नियोजित सरकारी शिक्षक और शिक्षिकाएं वर्षों से मनचाही जगह पर काम करने के इंतजार में हैं. उनकी इसी मांग को देखते हुए बिहार शिक्षा विभाग ने 2020 में नई नियोजन नियमावली बनाई थी, जिसके मुताबिक राज्य सरकार ने प्राथमिक रूप से महिला और विकलांग शिक्षकों को राज्य के अंदर ही अपनी मर्जी के स्कूल में तबादला लेने का अवसर दिया था.

बिहार सरकार के द्वारा दिए गए नियम के मुताबिक महिला शिक्षक या लाइब्रेरियन जिनकी सेवा अवधि तीन वर्ष या उससे अधिक होगी, आवेदन दे सकेंगे.

वहीं महिला और दिव्यांग शिक्षकों के बाद पुरुष शिक्षकों को भी पारस्परिक तबादला दिया जाना था. पुरुष शिक्षक भी घर से दूर रहकर नौकरी करते हैं और अल्प वेतन में लंबी दूरी तय करने के लिए मजबूर हैं, इसलिए पुरुष शिक्षक संघ भी तबादले की कई दिनों से मांग कर रहे हैं.

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राज्य का शिक्षा विभाग दो साल से शिक्षकों की ट्रांसफर नीतियों पर काम कर रहा है. इस बीच महिलाओं और दिव्यांगों को सबसे ज्यादा कठिनाई झेलनी पड़ रही है.


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ट्रांसफर नहीं होने की वजह से छोड़ी नौकरी

बिहार के सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज प्रखंड के बभनगामा गांव में कन्या मध्य विद्यालय में निर्मला झा (बदला हुआ नाम) और अमिता मंडल की 2007 में शिक्षिका के पद पर नियुक्ति हुई थी. निर्मला गांव से 24 किलोमीटर दूर वीणा बभनगामा और अमिता लगभग 50 किलोमीटर दूर मधुबनी जिला के मधेपुर की रहने वाली है. अभी दोनों त्रिवेणीगंज शहर में भाड़े पर कमरे लेकर रह रही हैं.

अमिता बताती हैं, ‘त्रिवेणीगंज बहुत छोटा शहर है. यहां आज भी महिलाओं और लड़कियों का बाहर जाना उतना संभव नहीं हो पाया है. मतलब मजबूरी में ही कोई महिलाओं को नौकरी करने भेजता है. ऐसे शहर में बच्चे को लेकर रहना अपने आप में एक संघर्ष है.’

‘2007 में मैं निर्मला और आशा एक साथ नियुक्त हुए थे. आशा के पति को भी लगभग 2 साल बाद शिक्षक की नौकरी मिल गई. उसके बाद आशा ट्रांसफर के लिए अर्जी लगाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बाद में वो अपने पति के साथ रहने लगी नौकरी छोड़कर.’

अमिता बताती हैं, ‘मेरे पति मुझसे दूर कटिहार में एक प्राइवेट नौकरी करते हैं. ट्रांसफर न होने के कारण मैं काफी समय तक अपने पति से दूर रही, इसलिए शुरुआत में हम दोनों की अंडरस्टैंडिंग नहीं हो पाती थी. हालांकि अब सब ठीक है.’

वहीं निर्मला अपने पति राजन झा के साथ त्रिवेणीगंज शहर में ही रहते हैं. उसके पति राजन सहरसा में एलआईसी डिपार्टमेंट में काम करते हैं. वह बताती है, ‘अभी भी मुझे रूम से स्कूल आने के लिए 6 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. मेरे बच्चे बड़े हो गए थे, इसलिए मैंने नौकरी करते रहने का फैसला किया. ससुराल में सास हैं, जो बीमार रहती हैं, उनको भी देखने वाला कोई नहीं है. पति भी मेरे वजह से यहां रह रहे हैं.’

निर्मला, अमिता और आशा की तरह कई महिलाएं हैं जिन्हें रोज अपने कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए घंटों का सफर तय करना पड़ता है. ऐसे में कई महिला शिक्षकों को या तो काम छोड़ना पड़ता है या फिर उन्हें कई समझौते कर स्कूल पहुंचना पड़ता है.

गौरतलब है कि राज्य में नियोजित शिक्षकों की कुल संख्या 3 लाख 51 हजार है, जिनमें करीब 2 लाख महिलाएं हैं.


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महिला सशक्तिकरण की हकीकत

महिलाएं राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मजबूत वोट बैंक रही हैं. बिहार सरकार ने भी महिला सशक्तिकरण के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले किए हैं. साल 2016 में राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35% और शिक्षा विभाग की नौकरियों में 50% तक आरक्षण का प्रावधान किया गया. इसके बाद सरकार ने सरकारी दफ्तरों की पोस्टिंग में भी महिलाओं को 35% रिजर्वेशन दिया.

टीईटी प्रारंभिक शिक्षक संघ बिहार के प्रदेश संयोजक राजू सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘आज पूरे बिहार में हजारों ऐसी महिलाएं हैं जो सरकारी नौकरी पाने के बाद अपने परिवार और नौकरी के बीच किसी एक को चुनने के लिए मजबूर कर दी गई हैं. दिव्यांगों की स्थिति तो बहुत ही ज्यादा खराब है‌. अभी कमोबेश दो लाख से ज्यादा शिक्षक ट्रांसफर की बाट जोह रहे हैं. हमने इस मांग को लेकर कई बार धरना प्रदर्शन भी किया है. हालांकि प्रदर्शन से सरकार के कान में जूं ही नहीं रेंगा.’

टीईटी प्रारंभिक शिक्षक संघ बिहार के प्रदेश संयोजक राजू सिंह के नेतृत्व में बेगूसराय में तबादला के मुद्दे पर धरना प्रदर्शन | विशेष प्रबंध

सुप्रीम कोर्ट के वकील सुनील ठाकुर बताते हैं, ‘2021 में एक सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज जीएस अहलुवालिया ने कहा था कि ‘शादीशुदा महिला को उसके पिता के घर में रहने को मजबूर करना क्रूरता है’. हालांकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट से संबंधित था लेकिन बिहार में महिला शिक्षकों के साथ भी कुछ ऐसा ही बर्ताव हो रहा है, तभी तो ट्रांसफर नहीं मिलने से हजारों शिक्षिकाएं वर्षों से मायके में रहने को मजबूर हैं.’


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‘जल्द शुरू होगी प्रक्रिया’

2022 के जनवरी महीने में राज्य के शिक्षा मंत्री विजय चौधरी ने इस मामले पर कहा था, ‘शिक्षा विभाग की मुख्य प्राथमिकता अभी शिक्षक बहाली प्रक्रिया को पूर्ण करना है. शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही शिक्षकों का तबादला किया जाएगा. सॉफ्टवेयर के माध्यम से तबादले की प्रक्रिया पूरी कराई जाएगी.’

इस पर टीईटी शिक्षक संघ के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अमित विक्रम कहते हैं, ‘अभी भी बिहार की राजधानी पटना के गर्दनीबाग में प्रारंभिक स्कूलों में सातवें चरण की शिक्षक विज्ञप्ति की मांग को लेकर चल रहे अनिश्चितकालीन आंदोलन पर बैठे हुए हैं. पता नहीं शिक्षक बहाली प्रक्रिया कब पूरी होगी और मंत्री साहब कब अपना वादा निभाएंगे.’

सुपौल के जिला शिक्षा पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार ने कहा, ‘हम लोगों को इसका अपडेट नहीं है. आपको पटना बात करना पड़ेगा.’

वहीं पटना के शिक्षा विभाग के एक बड़े अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘जल्द ही इस प्रक्रिया का काम शुरू होगा. अभी हम लोग शिक्षक नियुक्ति पर ही फंसे हुए हैं. शिक्षकों के तबादला के लिए सॉफ्टवेयर भी तैयार हो गया है. हालांकि इसका फाइनल ट्रायल होना बाकी है.’

(राहुल कुमार गौरव स्वतंत्र पत्रकार हैं)


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