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वीकएंड शादियां, अहंकार की लड़ाइयां- ट्रेनिंग के दौरान मिलने वाले कुछ IAS, IPS जोड़े क्यों हो जाते हैं अलग

हाल के सालों में सिविल सर्वेंट्स के बीच शायद सबसे चर्चित जोड़े, आईएएस ऑफिसर्स टीना डाबी और अतहर अमीर ख़ान ने, अलग होने के लिए याचिका दायर कर दी है, जिसके कारण भी तक पता नहीं चले हैं.

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नई दिल्ली: 2016 बैच के अधिकारियों टीना डाबी और अतहर अमीर ख़ान के अलगाव ने, जो दो साल पहले ही विवाद के बंधन में बंधे थे, ऐसे सिविल सर्वेंट्स की शादियों को फिर से फोकस में ला दिया है, मसूरी की लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन (एलबीएसएनएए) में, ट्रेनिंग के दौरान अपने प्रेमालाप शुरू करते हैं.

डाबी और ख़ान की शादी जिन्होंने 2016 के यूपीएससी इम्तिहान में क्रमश: पहली और दूसरी रैंक हासिल की थी, सबसे चर्चित थी, जिसमें उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू, पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, और केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, 2018 में उनके विवाद में शरीक हुए थे. लेकिन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के अधिकारियों के अनुसार, पिछले तीन सालों में ही अधिकारियों के बीच 70 से अधिक शादियां हो चुकी हैं.

एक वरिष्ठ डीओपीटी अधिकारी ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में अधिकारियों के बीच, शादियों की संख्या भले ही बढ़ गई हो, लेकिन निश्चित रूप से ये कोई नया रुझान नहीं है’. उन्होंने आगे कहा, ‘पिछले कुछ सालों में सिविल सर्विसेज़ में, महिलाएं भी ज़्यादा आ रही हैं, इसलिए ऐसी शादियों की संख्या बढ़ गई है लेकिन अफसरों के बीच शादियां दशकों से होती आ रही हैं’.

सामाजिक प्रतिष्ठा से लेकर समान प्रोफेशनल अनुभव और तनाव, ताक़त को मज़बूत करने से लेकर अच्छे काडर्स तक, सिविल सर्वेंट्स के जीवन साथी के रूप में सहकर्मियों को चुनने के कई कारण होते हैं. लेकिन जो लोग मैदान में हैं, उनका कहना है कि आगे का रास्ता बिल्कुल भी सुगम नहीं होता.

उन्होंने आगे कहा कि समान दबाव कई बार, आपसी समझ की जगह तनाव पैदा कर देते हैं, और समान अनुभव तथा करियर की संभावनाएं, अहंकार की लड़ाई में बदल सकती हैं.

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और समान काडर का वादा भी, बरसों की लंबी-दूरी या ‘वीक-एंड शादियों’ से छुटकारा नहीं दिलाता, चूंकि एक ही राज्य में रहते हुए भी, अधिकारी मुश्किल से ही एक ज़िले में रह सकते हैं.

अपने लिए मैच ढूंढ़ना

आधिकारियों के बीच शादियों के बारे में बात करते हुए 1982 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एसपी सिंह ने कहा, ‘एलबीएसएनएए में आने वालों की औसत उम्र 27 से 30 के बीच होती है. यही वो समय होता है जब ज़्यादातर लोग अपना मैच तलाश रहे होते हैं. एलबीएसएनएए में लोगों को लगता है कि उनके करियर का मार्ग स्पष्ट है, पेशेवर रूप से वो स्थापित हो गए हैं और उनकी उम्र भी सही है, इसलिए वो अकेडमी में ही जीवन साथी तलाशते हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसमें एक फैक्टर ये भी होता है कि साथी अधिकारी को कमोबेश बराबर रूप से ही सक्षम माना जाता है, इसलिए पेशेवर रूप से एक तरह की समानता होती है’.

कर्नाटक काडर की आईपीएस अधिकारी डी रूपा ने जिनकी शादी आईएएस अधिकारी मनीष मौदगिल से हुई है, सिंह की दलील में एक और पहलू जोड़ा.

उन्होंने कहा, ‘ये सही है कि लोगों को कमोबेश बराबर सक्षम माना जाता है, इसलिए एक समानता होती है, लेकिन महिलाओं के लिए ख़ासकर और फायदा हो जाता है, अगर उनके पति सिविल सर्विस से होते हैं, क्योंकि इससे कम से कम काम के दबाव की कुछ समझ रहती है, जिससे उनके ऊपर से सामाजिक अपेक्षाएं कम हो जाती हैं.

फिर भी, रूपा ने आगे कहा कि सिविल सर्विस में भी ऐसा पाया जाता है कि महिलाएं ऐसे पति पाना चाहती हैं, जो पेशेवर और आर्थिक रूप से उनसे बेहतर स्थिति में हों.

उन्होंने कहा, ‘ज़्यादातर मामले ऐसे होते हैं, जिनमें रेलवे जैसी सेवाओं की महिलाएं, आईएएस-आईपीएस लोगों से शादियां करती हैं, चूंकि ‘बेहतर’ जीवन साथी की चाह, उनमें अंदर तक बैठी हुई होती है…लेकिन इसका विपरीत आपको मुश्किल से ही देखने को मिलेगा’. उहोंने आगे कहा, ‘सिविल सर्वेंट्स के भीतर भी, अन्नदाता वाली मानसिकता उतनी ही है, जितनी औरों में है’.

रूपा ने आगे कहा, ‘शादियों में ज़्यादा जटिलता तब आ जाती है, जब वो आईएएस अधिकारियों के बीच या, आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बीच होती हैं. कई दूसरे अधिकारियों ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा कि अलग ज़िलों में तैनाती और भारी दबाव से भी कलह पैदा हो जाती है.

ऐसी शादियां सरकार के लिए भी थोड़ा सिरदर्द ही रहती हैं, जिसे आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के आपस में शादी करने के बाद, काडर आवंटन का मेहनती काम फिर से करना पड़ता है, ताकि जोड़ा एक ही राज्य में रह सके.

डीओपीटी नियमों के अनुसार, शादी के आधार पर अखिल भारतीय सेवाओं के इंटर-काडर तबादले किए जा सकते हैं. तीन साल पहले तक, आपस में शादी करने वाले दो अधिकारियों को, ऐसा कॉमन काडर दिया जाता था, जो उनमें से किसी का होम काडर न हो. लेकिन, 2017 में, केंद्र सरकार ने नियमों में और ढील देते हुए ऐसे काडर के आवंटन की अनुमति दे दी, जो दोनों अधिकारियों में से किसी एक का होम स्टेट हो सकता है.

काडर्स के प्रेम के लिए

सभी सेवाओं के अधिकारियों ने एलबीएसएनएए शादियों के रुझान को माना, लेकिन दिप्रिंट से बात करते हुए ज़्यादातर ने कहा कि ये जोड़ियां ‘काडर आधारित’ होती हैं.

डाबी और ख़ान के एक बैचमेट ने कहा, ‘सब जानते हैं कि एलबीएसएनएए में शादियां ज़्यादातर काडर्स के लिए होती हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘जो लोग उत्तर-पूर्व या जम्मू-कश्मीर नहीं जाना चाहते, वो अक्सर यूपी, महाराष्ट्र, बिहार जैसे ज़्यादा सुरक्षित काडर्स से जीवन साथी चुनते हैं…सरकार उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकती, इसलिए सब कुछ अच्छे से हो जाता है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘लेकिन अधिकतर शादियां सुविधा के लिए की गई होती हैं’.

दूसरे अधिकारी भी इससे सहमत थे. 2016 बैच के एक रेलवे सर्विसेज़ ऑफिसर ने कहा, ‘सिविल सर्विसेज़ को ताक़त हासिल करने का रास्ता माना जाता है. और सिविल सर्वेंट्स के बीच शादियां, उसी ताक़त को मज़बूत करने का एक तरीक़ा हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसी अधिकांश शादियां एक सोची-समझी व्यवस्था होती हैं’.

‘ऊंची तलाक़ दरें’

इसलिए, जैसा कुछ अधिकारियों ने कहा, इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि अधिकारियों के बीच तलाक़ की दर ऊंची है.

2016 बैच के आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘ऐसी बहुत सी शादियां ज़्यादा लंबी नहीं चलतीं. व्यक्तिगत मामलों पर टिप्पणी करना उचित नहीं है, लेकिन मेरे अपने बैच में ही, पिछले दो सालों में चार तलाक़ हो चुका है’.

इसके पीछे कई कारण हैं. सिंह ने कहा, ‘आईएएस और आईपीएस अधिकारियों में अहंकार बहुत होता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर आप देखें, तो एक आईपीएस पति और एक आईएएस पत्नी के बीच शादी, मुश्किल से ही चलती है चूंकि पति, पत्नी की तरक़्क़ी और उसके करियर के ज़्यादा तेज़ी से आगे बढ़ने को सहन नहीं कर पाता’.

इसके अलावा, एक वास्तविकता ये भी है कि पति-पत्नी दोनों पेशे और आर्थिक स्थिति के हिसाब से आत्मनिर्भर होते हैं, इसलिए दुखी रिश्तों के साथ बने रहने की उनकी ज़रूरत कम हो जाती है.

लेकिन रूपा इस मुद्दे पर एक महिला दृष्टिकोण पेश करती हैं. उन्होंने कहा, ‘जब ये बात आती है कि एक ही ज़िले में रहने के लिए, पति पत्नी में से एक को, कम प्रतिष्ठित तैनाती लेनी पड़ सकती है, तो ज़्यादातर वो पत्नी ही होती है. मर्द अभी भी अपेक्षा करते हैं कि आप घर को संभालें, उनसे पहले घर आ जाएं, और बहुत सी महिला अधिकारियों को ससुराल वालों की अपेक्षाओं से भी निपटना होता है…इस चीज़ों को सब समझते हैं’.

लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि सिविल सर्वेंट्स के बीच तलाक़ के मामले अभी भी उतने आम नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि पिछले कुछ सालों में तलाक़ें बढ़ गईं हों, लेकिन वैसा पूरे समाज में ही हो रहा है, लेकिन सिविल सर्वेंट्स अभी भी तलाक़ को लेकर रूढ़िवादी ही हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘ये राजनेताओं की तरह है. सबकी निगाह इतनी ज़्यादा रहती है कि वो एक रुकावट का काम करती है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

2 टिप्पणी

  1. भारत में आप की पत्रकारिता का अच्छा सम्मान है।

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