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कोविड से बचने के लिए जो आप ‘डाबर’, ‘झंडु’ और ‘पतंजलि’ का शहद खा रहे हैं, उसमें चीन से आई चीनी घुली है- CSE

सीएसई ने दावा किया है कि भारत और जर्मनी में कराए गए जांच के बाद पता चला है कि चीन की कंपनियां ऐसे शुगर सिरप बना रही हैं जो भारत के जांच मानकों में आसानी से पकड़ में नहीं आते.

शहद/फोटो: सीएसई

नई दिल्ली: भारत के शहद के सभी प्रमुख ब्रांड में जबरदस्त मिलावट की जा रही है. शहद के 77 फीसदी नमूनों में शुगर सिरप की मिलावट पाई गई है, ये दावा है सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट का.

संस्था का कहना है कि भारत और जर्मनी में कराई गई जांच के बाद पता चला है की चीन की कंपनियां ऐसे शुगर सिरप बना रही है जो भारत के जांच मानकों में आसानी से पकड़ में नहीं आती.

सीएसई का कहना है कि उनके द्वारा किए गए प्रमुख शहद उत्पादकों के माल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनएमआर) के परीक्षण  में 13 ब्रांड में सिर्फ 3 ब्रांड ही पास हुए.

सीएसई का यह भी कहना है कि कोविड-19 संकट के वक्त यह खाद्य धोखाधड़ी (फूड फ्रॉड) जनता की ‘सेहत के साथ खिलवाड़’ है. ‘भारतीय इस वक्त ज्यादा शहद का सेवन कर रहे हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि विषाणु से लड़ने के लिए यह अच्छाइयों की खान है, मसलन एंटीमाइक्रोबियल और एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों के साथ इसमें प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी) को बनाने की क्षमता है. असल में अगर यह शहद मिलावटी है तो असल में हम चीनी खा रहे हैं, जो मोटापा और अत्यधिक वजन की चुनौती को बढ़ाता है और जो अंततः हमें गंभीर कोविड-19 संक्रमण के जोखिम की ओर ले जाता है.’

शहद में मिलावट के भंडाफोड़ और अध्ययन को लेकर सेंटर फार साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, ‘यह खाद्य धोखाधड़ी (फूड फ्रॉड) 2003 और 2006 में हमारे द्वारा सॉफ्ट ड्रिंक में की गई मिलावट की खोजबीन से ज्यादा कुटिल और ज्यादा जटिल है.’

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‘हम इस समय जानलेवा कोविड-19 के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं और इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है, ऐसे कठिन समय में हमारे आहार में चीनी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल (ओवरयूज) हालात को और भयावह बना देगा.’


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13 ब्रांडस पर हुआ परीक्षण

सीएसई का दावा है कि 13 ब्रांड्स में से सिर्फ 3 – सफोला, मार्कफेड सोहना और नेचर्स नेक्टर, सभी परीक्षणों में पास पाए गए. शहद के प्रमुख ब्रांड्स जैसे डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, झंडु, हितकारी और एपिस हिमालय, सभी एनएमआर टेस्ट में फेल पाए गए.

सीएसई ने भारतीय बाजार के 13 ब्रांडों की शहद को गुजरात के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) में स्थित सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टॉक एंड फूड (सीएएलएफ) में जांच के लिए भेजा. लगभग सभी शीर्ष ब्रांड (एपिस हिमालय छोड़कर) शुद्धता के परीक्षण में पास हो गए, जबकि कुछ छोटे ब्रांड इस परीक्षण में फेल हुए, उनमें सी3 और सी4 शुगर पाया गया, यह शुगर चावल और गन्ने के हैं.

लेकिन जब इन्हीं ब्रांड्स को न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (एनएमआर) परीक्षण पर परखा गया तो लगभग सभी ब्रांड के नमूने फेल पाए गए. एनएमआर परीक्षण वैश्विक स्तर पर मोडिफाई शुगर सिरप को जांचने के लिए प्रयोग किया जाता है. 13 ब्रांड परीक्षणों में सिर्फ 3 ही एनएमआर परीक्षण में पास हो पाए, इन्हें जर्मनी की विशेष प्रयोगशाला में जांचा गया था.

सीएसई के फूड सेफ्टी एंड टॉक्सिन टीम के कार्यक्रम निदेशक अमित खुराना ने कहा, ‘हमने जो भी पाया वह चौंकाने वाला था. यह दर्शाता है कि मिलावट का व्यापार कितना विकसित है जो खाद्य मिलावट को भारत में होने वाले परीक्षणों से आसानी से बचा लेता है.

खुराना ने आगे कहा, ‘हमारी चिंता सिर्फ इतनी भर नहीं है कि जो शहद हम खाते हैं वह मिलावटी है लेकिन यह चिंता इस बात को लेकर है कि इस मिलावट को पकड़ पाना बेहद जटिल और कठिनाई भरा है. हमने पाया कि शुगर सिरप इस तरह से डिजाइन किए जा रहे हैं कि उनके तत्वों को पहचाना ही न जा सके.’

सीएसई ने यह भी आरोप लगाया है कि भारत सरकार को शहद में हो रही मिलावट का अंदेशा था. उनका कहना है कि निर्यात किए जानेवाले शहद का एनएमआर परीक्षण 1 अगस्त, 2020 से अनिवार्य कर दिया गया है, जो यह बताता है कि भारत सरकार इस मिलावटी व्यापार के बारे में जानती थी.

बीते वर्ष भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने आयातकों और राज्य के खाद्य आयुक्तों को बताया था कि देश में आयात किए जा रहे गोल्डन सिरप, इनवर्ट शुगर सिरप और राइस सिरप का इस्तेमाल शहद में मिलावट के लिए किया जा रहा है.

चीन का हाथ

सीएसई के अमित खुराना ने शहद के मिलावट पर कहा, ‘यह अब भी अस्पष्ट है कि खाद्य नियामक वास्तविकता में इस काले कारोबार के बारे में कितना जानता है.’ वह कहते हैं कि एफएसएसएआई के निर्देश में जिन सिरप के बारे में कहा गया है, वे उन नामों से आयात नहीं किए जाते हैं या इनसे मिलावट की बात साबित नहीं होती. इसकी बजाए चीन की कंपनियां फ्रुक्टोज के रूप में इस सिरप को भारत में भेजती हैं. एफएसएसएआई ने यह निर्देश क्यों दिया? हमें यह निश्चित तौर पर नहीं मालूम?’

सीएसई ने अलीबाबा जैसे चीन के व्यापारिक पोर्टल्स की छानबीन की जो अपने विज्ञापनों में दावा करते हैं कि उनका फ्रुक्टोज सिरप भारतीय परीक्षणों को बाईपास (मिलावट को पकड़ पाना संभव नहीं ) कर सकता है. यह भी पाया गया कि वही चीन की कंपनी जो फ्रुक्टोज सिरप का प्रचार कर रही थी, वह यह भी बता रही थी कि यह सिरप सी 3 और सी 4 परीक्षणों को बाईपास कर सकते हैं और इनका निर्यात भारत को किया जाता है. सीएसई ने इस मामले में और जानकारी हासिल करने के लिए एक अंडरकवर ऑपरेशन चलाया.

खुराना ने बताया कि चीन की कंपनियों को ईमेल भेजे गए और उनसे अनुरोध किया गया कि वे ऐसे सिरप भेजें, जो भारत में परीक्षणों में पास हो जाएं. उनकी ओर से भेजे गए जवाब में हमें बताया गया कि सिरप उपलब्ध हैं और उन्हें भारत भेजा जा सकता है.

चीन की कंपनियों ने सीएसई को सूचित किया कि यदि शहद में इस सिरप की 50 से 80 फीसदी तक मिलावट की जाएगी तो भी वे परीक्षणों में पास हो जाएंगे. परीक्षण को बाईपास करने वाले सिरप के नमूने को चीनी कंपनी ने पेंट पिगमेंट के तौर पर कस्टम्स के जरिए भेजा.

सीएसई की मांग है कि इस सिरप और शहद का चीन से आयात बंद होना चाहिए, परीक्षण सशक्त किया जाने चाहिए, घरेलू बाजार में भी शहद के लिए एनएमआर टेस्ट अनिवार्य किए जाएं.


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