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अखाड़े से लेकर ओलंपिक तक, WFI की कुश्ती पर सख्त होती पकड़ और इससे जुड़े विवाद

डब्ल्यूएफआई भारत में कुश्ती का शासकीय निकाय है, और यह सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय खेल संघों में से एक है. पर देश के शीर्ष स्तर के पहलवान कुछ समय से इस संस्था में आ रही सड़न का संकेत दे रहे हैं.

रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया और उसके प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ दूसरे दिन मौन विरोध के दौरान पहलवान विनेश फोगट और बजरंग पुनिया/फोटो: एएनआई

नई दिल्ली: जब भारत के शीर्ष स्तर के पहलवानों के एक समूह ने भारतीय कुश्ती महासंघ (रेसलिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया – डब्ल्यूएफआई) के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन शुरू किया और उसके अध्यक्ष, भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह, पर राष्ट्रीय शिविरों के दौरान महिला पहलवानों के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया, तो इसने इस खेल के गवर्निंग बॉडी में पनप चुकी सड़न के बारे में सारा कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया.

पिछले हफ्ते देश के एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स की विजेता विनेश फोगाट, ओलंपियन, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया जैसे नामचीन पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित एक तीन दिवसीय विरोध प्रदर्शन के दौरान यौन उत्पीड़न से जुड़े अपने विस्फोटक दावों के साथ खुलकर सामने आए. भारतीय ओलंपिक संघ (इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (आईओओ) को लिखे गए एक पत्र में उन्होंने और अन्य पहलवानों ने डब्ल्यूएफआई में वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया और दावा किया कि उनके द्वारा नियुक्त किए गए कोच और स्पोर्ट्स साइंस के कर्मचारी ‘अक्षम’ हैं .

केंद्रीय खेल एवं युवा मंत्रालय, द्वारा एक राष्ट्रीय खेल महासंघ के रूप में मान्यता प्राप्त डब्ल्यूएफआई ने तुरंत पलटवार करते हुए दावा किया कि यह विरोध ‘निराधार’ है और डब्ल्यूएफआई के ‘वर्तमान प्रबंधन को हटाने के यह छिपे हुए ‘एजेंडे’ से प्रेरित है. यहां तक कि सिंह के रसोइए ने भी इस सारी गहमागहमी में स्पष्ट रूप से शामिल होते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने के मकसद से ‘जबरन वसूली और ब्लैकमेल’ का सहारा लेने हेतु कुछ पहलवानों के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की गई है.

अभी तो फिलहाल के लिए यह सारी लड़ाई शांत हो गई है. सरकार द्वारा इस बात की घोषणा किए जाने के बाद कि तीन बार के डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष सिंह को एक ‘ओवरसाइट कमिटी’ द्वारा आरोपों की जांच किये जाने और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने तक अपने पद से हट जाने के लिए कहा गया है, जिसके बाद आंदोलनरत पहलवानों ने शुक्रवार को अपना विरोध समाप्त कर दिया.

इसके अलावा खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि डब्ल्यूएफआई के सहायक सचिव विनोद तोमर को मीडिया में सिंह का बचाव करने और उनके खिलाफ लगे ‘वित्तीय अनियमितता’ के आरोपों की वजह से बर्खास्त कर दिया गया है.

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ठाकुर ने सोमवार को यह घोषणा भी की कि मुक्केबाजी चैंपियन मैरी कॉम की अध्यक्षता वाली सरकार द्वारा नियुक्त ‘ओवरसाइट कमिटी’ अगले एक महीने के लिए डब्ल्यूएफआई की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को भी चलाएगी.

हालांकि, यह पैनल अपनी जांच को अपने नियत समय में पूरा करेगा, मगर इस विवाद ने न केवल भाजपा के ‘बाहुबली’ नेता और भारतीय कुश्ती के ‘सुधारक’ बृजभूषण शरण सिंह, बल्कि समूची डब्ल्यूएफआई को भी सुर्खियों में ला दिया है.

यहां हम इस बात पर एक नजर डालते हैं कि भारतीय कुश्ती का यह शीर्ष निकाय कैसे काम करता है, इसके सदस्यों को कैसे चुना जाता है, और कैसे यह हाल ही में पहलवानों के साथ हो रहे व्यवहार से जुड़े कुछ अन्य विवादों में भी उलझा रहा है.

दिप्रिंट ने फोन के जरिए डब्ल्यूएफआई कार्यालय से संपर्क करने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. दिल्ली शौकिया कुश्ती संघ (दिल्ली एमेच्योर रेसलिंग एसोसिएशन- डीएडब्ल्यूए ) के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों ही ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


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डब्ल्यूएफआई वास्तव में क्या है?

27 जनवरी 1967 को गठित डब्ल्यूएफआई भारत में कुश्ती का शासकीय निकाय है. इसके संविधान के अनुसार, इसके शासनाधिकार के तहत ‘शौकिया कुश्ती से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देना, प्रोत्साहित करना तथा नियंत्रित करना’ और साथ ही, ओलंपिक, एशियाई खेलों, राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप और विश्व कुश्ती चैंपियनशिप जैसे अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों में भारतीय पहलवानों की भागीदारी की व्यवस्था करना, शामिल है.

यह फेडरेशन भारतीय ओलंपिक संघ – जो भारत की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के साथ-साथ राष्ट्रमंडल खेलों के लिए एडमिनिसट्रेटिव फेडरेशन भी है – सहित राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा प्रशासित कुश्ती संघों से संबद्ध है. डब्ल्यूएफआई यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (यूडब्ल्यूडब्ल्यू) से भी संबद्ध है, जो शौकिया कुश्ती के लिए अंतरराष्ट्रीय एडमिनिसट्रेटिव फेडरेशन है (यूडब्ल्यूडब्ल्यू को पहले फेडरेशंने इंटरनेशनेल डेस लुटेस असोसाई या ‘फिला’ के रूप में भी जाना जाता था).

डब्ल्यूएफआई भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त 50 से अधिक राष्ट्रीय खेल संघों (नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन- एनएसएफ) में से एक है. इसका मतलब यह है कि यह सरकार से वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता प्राप्त करने के लिए पात्र है.

सभी एनएसएफ, भारतीय राष्ट्रीय खेल विकास संहिता (नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड ऑफ़ इंडिया – एनएसडीसीआई) 2011 के तहत आते हैं, जो इन संघो को सरकारी मान्यता देने और साथ ही उनके निलंबन और मान्यता रद्द करने से जुड़े दिशानिर्देश प्रदान करता है.

हरेक एनएसएफ के लिए एक वार्षिक मान्यता प्रक्रिया का पालन किया जाता है, जो समय पर चुनाव कराने सहित एनएसडीसीआई के प्रावधानों का अनुपालन करने पर निर्भर करता है.

यह एक ऐसा उपाय है जो कुछ व्यक्तियों को किसी खेल महासंघ को अपनी निजी जागीर में तब्दील करने, जो हमारे देश में बार-बार सामने आने वाली समस्या रही है, से रोकने के लिए है.

अखाड़ों से लेकर ओलंपिक तक

यह महासंघ राज्य और केंद्रीय निकायों के प्रतिनिधियों से बना है और खेल एवं युवा मंत्रालय, द्वारा इसकी देखरेख की जाती है. डब्ल्यूएफआई हमारे देश में गांवों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कुश्ती से जुड़ी सभी गतिविधियों की देखरेख करता है.

प्रत्येक गांव में एक शौकिया कुश्ती संगठन होता है जो जिला निकायों द्वारा शासित होता है. ये जिला निकाय आगे चलकर राज्य स्तरीय निकायों द्वारा शासित होते हैं, और राज्य निकाय डब्ल्यूएफआई के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा शासित होते हैं.

स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के पूर्व कोच अजीत सिंह ने बताया कि कैसे डब्ल्यूएफआई देश भर में कुश्ती को नियंत्रित करता है.

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए, यदि रोहतक जिले में 500 गांव हैं, तो इसे यह देखने की आवश्यकता है कि क्या प्रत्येक गांव में एक अखाड़ा (जो कुश्ती का पारंपरिक मैदान और प्रशिक्षण केंद्र होता है) मौजूद है. इसके बाद यह अखाड़ा राज्य निकाय से संबद्ध होता है और राज्य निकाय राष्ट्रीय महासंघ से संबद्ध होता है.’

उन्होंने संकेत दिया कि डब्ल्यूएफआई, भारतीय पहलवानों के लिए शेष दुनिया के साथ एक कड़ी है, क्योंकि यह ‘एक अंतर्राष्ट्रीय महासंघ, यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग, से संबद्ध है, जो स्वयं अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ से संबद्ध है.’ ईएसपीएन इंडिया की वेबसाइट पर मार्च 2022 में प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि डब्ल्यूएफआई पहलवानों के ऊपर पर बहुत अधिक शक्ति रखता है, खासकर इस वजह से क्योंकि वे आम तौर पर एक राष्ट्रीय टीम के हिस्से के रूप में ही किसी भी प्रतिस्पर्धा में शामिल होतें हैं और इसमें भाग लेने के लिए उन्हें इस संस्था से अनुमति की आवश्यकता होती है.

इस लेख में कहा गया है कि हालांकि विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया जैसे नामचीन खिलाड़ियों के मामले अपवाद हैं, मगर डब्ल्यूएफआई किसी भी पहलवान को मिलने वाली कोचिंग, फिजियोथेरेपी और प्रतियोगिताओं पर कड़ा नियंत्रण रखता है. इसमें कहा गया है, ‘सामान्य तौर पर, यदि यह महासंघ किसी खिलाड़ी को निलंबित कर देता है, तो उसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का कोई और रास्ता नहीं होता है.’

कौन हैं इसके सदस्य?

जैसा कि इस निकाय का संविधान कहता है, डब्ल्यूएफआई की सदस्यता सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कुश्ती संघों, सर्विसेज स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड, रेलवे खेल नियंत्रण बोर्ड और यूडब्ल्यूडब्ल्यू के ब्यूरो और सहयोगी सदस्यों के लिए खुली है.

सदस्यता को डब्ल्यूएफआई की आम परिषद (जनरल कौंसिल) द्वारा अनुमोदित किया जाता है, जो इस निकाय की तकनीकी और प्रशासनिक परिषद है. सभी राज्यों के कुश्ती संघों के साथ-साथ दिल्ली एमेच्योर रेसलिंग एसोसिएशन- (डीएडब्ल्यूए) को जनरल कौंसिल में दो प्रतिनिधियों, जिनमे से प्रत्येक के पास एक वोट होता है, को भेजने का अधिकार है. डीएडब्ल्यूए के अलावा अन्य केंद्र शासित क्षेत्रों के कुश्ती महासंघ एक वोट के साथ एक प्रतिनिधि ही भेज सकते हैं.

निकाय की एग्जीक्यूटिव कमिटी (कार्यकारी समिति) के सदस्यों के चुनाव, जो नवीनतम विवाद के केंद्र में रहा है, का जिम्मा जनरल कौंसिल के पास होता है. एग्जीक्यूटिव कमिटी में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष आदि शामिल होते हैं.

डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह 20 जनवरी को गोंडा जिले में अपने ऊपर लगे यौन उत्पीड़न के हालिया आरोपों के बारे में मीडिया से बात करने पहुंचे थे | पीटीआई

एग्जीक्यूटिव कमिटी के सदस्यों में पच्चीस प्रतिशत खिलाड़ी – दो पुरुष और दो महिलाएं – शामिल होते हैं, जो जनरल कौंसिल द्वारा अपने सदस्यों में से ही चुने जाते हैं.

अन्य बातों के अलावा यह समिति टीमों के उचित पर्यवेक्षण, संस्था के वित्त और खातों की देखरेख, अनुशासनात्मक मुद्दों से निपटने, और जनरल कौंसिल के समक्ष शौकिया कुश्ती के प्रचार और विकास के लिए सिफारिशें करने हेतु जिम्मेदार होती है.

कैसे होता है डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष और पदाधिकारियों का चुनाव?

खेल मंत्रालय के मॉडल चुनाव दिशानिर्देशों के अनुसार, डब्ल्यूएफआई के पदाधिकारियों और एग्जीक्यूटिव कमिटी के अन्य सदस्यों के चयन के लिए हर चार साल में जनरल कौंसिल की बैठक में चुनाव होते हैं.

डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष पद के लिए प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के प्रतिनिधि अपना नामांकन दाखिल कर सकते हैं. एक ही उम्मीदवार होने के मामले में, चुनाव नहीं होते हैं और नामांकित उम्मीदवार को सर्वसम्मति से इस पद के लिए चुन लिया जाता है.

यदि एक से अधिक उम्मीदवार होते हैं, तो भारतीय ओलंपिक संघ और खेल एवं युवा मंत्रालय के प्रतिनिधियों, जो पर्यवेक्षकों के रूप में कार्य करते हैं, की उपस्थिति में एक गुप्त मतदान के माध्यम से चुनावी प्रक्रिया संपन्न कराई जाती है. लगातार तीन कार्यकाल या 12 साल, बिताने के बाद कोई भी प्रतिनिधि चुनाव नहीं लड़ सकता है.

संस्था के वर्तमान अध्यक्ष, बृजभूषण शरण सिंह, पहली बार साल 2012 में चुने गए थे, जब उन्होंने कांग्रेसी नेता दीपेंद्र हुड्डा को इस पद के लिए हुए चुनाव में हराया था.

यह उनके एक दशक से भी अधिक लंबे समय से चल रहे शासनकाल की शुरुआत थी. साल 2019 में, सिंह को निर्विरोध रूप से लगातार तीसरी बार डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष के रूप में चुना गया था. उस वर्ष अन्य पदाधिकारी भी निर्विरोध ही चुने गए थे.

उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट से भाजपा सांसद सिंह यूडब्ल्यूडब्ल्यू की एशियाई परिषद के उपाध्यक्ष भी हैं.


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खिलाड़ियों पर कड़ा नियंत्रण

हालांकि, डब्ल्यूएफआई पर लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप अभी तक उस पर लगाया गया सबसे गंभीर आरोप हैं, लेकिन इस कुश्ती निकाय के लिए विवाद कोई नई बात नहीं है.

मिसाल के तौर पर, पिछले साल मार्च में, बजरंग पुनिया ने दावा किया था कि डब्ल्यूएफआई ने ओलंपिक के बाद उनकी घुटने की चोट के लिए उन्हें फिजियोथेरेपिस्ट की सेवाओं से वंचित कर दिया था, जिसके कारण वह कुछ प्रतियोगिताओं में भाग नहीं ले पाए थे. डब्ल्यूएफआई के सहायक सचिव रहे तोमर, जिन्हें मौजूदा विवाद के बाद बर्खास्त कर दिया गया है, ने दावा किया था कि यह निकाय पुनिया को एक फिजियोथेरेपिस्ट देने के लिए सहमत हो गया था, लेकिन इस पहलवान को जो फिजियोथेरेपिस्ट चहिए था वह उपलब्ध नहीं था. इसी तरह, विनेश फोगट ने आरोप लगाया था कि पिछले साल टोक्यो ओलंपिक के दौरान उनके फिजियोथेरेपिस्ट को उनके साथ यात्रा करने की अनुमति नहीं दी गई थी, जिसकी वजह से उनके प्रदर्शन पर असर पड़ा.

उधर डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष सिंह ने यह भी दावा किया था कि ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट और जेएसडब्ल्यू जैसे गैर-लाभकारी खेल संगठनों, जिन्होंने कुछ पहलवानों को कोचिंग और फिजियोथेरेपी सपोर्ट दिया था, के द्वारा पहलवानों को ‘बिगाड़’ दिया जा रहा है. सिंह ने कहा था कि ऐसे गैर सरकारी संगठनों को ‘हमारे पहलवानों और भारतीय कुश्ती को अकेला छोड़ देना चाहिए.’

5 अगस्त, 2021 को टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पहलवान विनेश फोगट | ट्विटर /@IndiaSports

ऊपर उद्धृत ईएसपीएन के लेख में कहा गया था कि डब्ल्यूएफआई का पहलवानों पर ‘कड़ा नियंत्रण’ है, और इस बात को अब अनिवार्य बना दिया गया है कि ‘पहलवानों द्वारा संभावित सहायक संगठनों के साथ किये गए सभी अनुबंधों को अब उनके (डब्ल्यूएफआई के) द्वारा अनुमोदित किया जाना होगा. इस बात की भी सीमायें तय कर दी गयीं हैं कि पहलवानों के लिए किस तरह के समर्थन की पेशकश की जा सकती हैं.’

बता दें कि, राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता गीता फोगट सहित दस महिला पहलवानों को पिछले साल एशियाई चैंपियनशिप के चयन हेतु होने वाले ट्रायल (परीक्षण) में भाग लेने से इस वजह से रोक दिया गया था, क्योंकि उन्होंने लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय शिविर में प्रतिस्पर्धा करने से इनकार कर दिया था, या पूरे समय तक वहां नहीं रहीं थीं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रामलाल खन्ना  | संपादन: अलमिना खातून)


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