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थके विराट को क्रिकेट और ब्रांड कोहली से आराम की जरूरत, यह उनके गौरव और जुनून को फिर से जगा सकता है

कोहली द्वारा खेल के मैदान में दिखाई जाने वाली ऊर्जा के पीछे की घेराबंदी वाली मानसिकता अब मैदान से बाहर भी नजर आने लगी है. अब वह थकने लगे हैं और यह उनकी बल्लेबाजी को प्रभावित कर रहा है.

भारत के पूर्व कप्तान विराट कोहली दक्षिण अफ्रीका दौरे पर बल्लेबाजी करते हुए | फोटो: एएनआई

‘अगले 60 ओवरों तक, उन्हें वहां नर्क जैसा महसूस होना चाहिए. ‘-2021 में लॉर्ड्स में विराट कोहली.

हम कोई खेल क्यों खेलते हैं? इसके भरपूर आनंद के लिए? जीत और कीर्तिमानों (रिकॉर्डस) के लिए? विरोधियों पर अपनी धाक ज़माने के लिए? भारतीय पुरुष टेस्ट क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में, विराट कोहली इसे बस एक चीज़ के लिए खेलते थे : वो था उनका गौरव.

पिछले साल के लॉर्ड्स टेस्ट मैच में केवल दो से भी कम सेशन का खेल बचे रहने के बावजूद कोहली ने अपनी टीम को एक और मशहूर होने वाली जीत हासिल करने की कोशिश करने तथा एक नई कहानी लिख देने के लिए नहीं कहा. पहले के कप्तानों के उलट उन्होंने अपनी टीम से नतीजे के बारे में भूल जाने या फिर सिर्फ खेल की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भी नहीं कहा. उन्होंने बस एक ही अनुरोध किया: ‘उन्हें दिखा दो कि हम कौन हैं!’

अगले दिन, इस जीत के बारे में बात करते हुए, जोनाथन ल्यू ने ‘द गार्जियन’ के लिए ‘इंग्लैंड बीटन एंड बुल्लीड बाई ए टीम मोल्डेड इन विराट कोहलीस इमेज (‘विराट कोहली की छवि में ढली टीम द्वारा इंग्लैंड को बुरी तरह से पीटा और तंग किया गया) के शीर्षक वाले आलेख में लिखा, ‘भारत सिर्फ लॉर्ड्स में ही नहीं जीता है, उन्होंने इस पर कब्ज़ा कर लिया है.’

ब्रिटिश मीडिया ने बहुत आसानी ने विराट कोहली की टीम को असभ्य और धौंस जमाने वाला करार देकर उन्हें गलत बता डाला लेकिन उसने न तो भारतीय टीम के व्यवहार का आंकलन किया और न ही उनके देश की चारित्रिक विशेषताओं का ख्याल रखा. कुछ हफ्ते पहले लगभग यही टीम न्यूजीलैंड के खिलाफ वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में हारी थी. यह मैच अपने लिए और भी ज्यादा अहम होने के बावजूद भारतीय टीम ने अच्छा व्यवहार करने वाले कीवियों के खिलाफ एक भी गलत शब्द इस्तेमाल नहीं किया. लेकिन जब इंग्लैंड की टीम ने जसप्रीत बुमराह के खिलाफ कुछ अप्रिय शब्द बोलकर मैदान में तनाव बढ़ाया, तो ‘टीम इंडिया’ की तरफ से मुंहतोड़ जवाब दिया जाना लाजिमी ही था. के.एल. राहुल ने भी मैच के बाद के अपने इंटरव्यू में ऐसे शब्दों के चयन में कोई कोताही नहीं बरती, आप हममें से किसी एक को निशाना बनाएंगे तो सभी 11 मिलकर आपको इसका जवाब देंगे.’

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विराट कोहली द्वारा टेस्ट टीम की कप्तानी छोड़ने का एलान किये जाने के बाद से ही उनकी कप्तानी के रिकॉर्ड के बारे में बहुत कुछ कहा गया है. हालांकि, निश्चित रूप से कोहली की इन जीतों में एक भूमिका रही है, पर एक टीम की सफलता आमतौर पर कई चीजों का परिणाम होती है और कप्तानी उनमें से एक है. परन्तु, आप कोहली से जो श्रेय छीन नहीं सकते, वह है उनके द्वारा अपनी टीम को ‘शिकारियों के एक ऐसे समूह में बदलने की क्षमता’ जो खेल के मैदान पर किसी को एक इंच जगह भी देने से इनकार कर देती थी.

कोहली की टीम के ज्यादातर लड़के वास्तव में बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते थे, और उन्हें ‘टीम इंडिया’ (भारतीय क्रिकेट टीम) की टोपी को पहनने के लिए हर कदम पर भारी बाधाओं का सामना करना पड़ा था. यह खेल खेलना उनके लिए गर्व की बात थी. कोहली उस स्वभाव को बहुत अच्छे से समझते हैं और 1970 के दशक के एक कुशल बॉलीवुड मसाला फिल्म निर्देशक की तरह वह जानते हैं कि इस टीम को किस तरह से चैनलाइज करना है और इससे उन्हें बाहर निकालना  है

थकान आ ही जाती है…

एक चैंपियन के दिमाग को पढ़ना मुश्किल नहीं होता है बल्कि यह काफी जोखिम भरा भी होता है. आप हर निर्णय अपने दम पर, जोखिम पर ही करते हैं क्योंकि इसी की वजह से आप सभी को एकजुट करते हैं, गुदगुदाते हैं, लेकिन इस रास्ते में आने वाली पतन के जिम्मेदार भी होते हैं. कोहली की बीसीसीआई से हुई अनबन को लेकर तरह-तरह की अफवाहें चल रही हैं. इन सारी बातों पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना आमतौर पर पेन की स्याही और कॉलम स्पेस की बर्बादी होती है. लेकिन कोई अनबन हो या न हो पर कोहली की थकान हम सभी को स्पष्ट रूप से दिखने लगी है.

कोहली नेक इरादे से पहले आरसीबी के कप्तान के रूप में और बाद में भारत की टी 20 टीम के कप्तान के रूप में पद छोड़ने की घोषणा की थी. यह उनके द्वारा अपने काम के भार को प्रबंधित करने और अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए एक सोची समझी तरकीब थी.

हालांकि, टी-20 कप्तान के रूप में उनके पिछली वापसी से मिले नतीजों उनके विरोधियों की खुश नहीं कर सके. आरसीबी ने आईपीएल का एक और सीजन बिना कोई ट्रॉफी जीते खत्म किया और भारत को आखिरकार विश्व कप के किसी मैच में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से हार मिली. आप तभी यह जान सकते थे कि कोहली इस परिणाम से निराश थे जब वे मैच के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में हैरान से दिखे और उन्होंने एक सवाल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था, ‘क्या आप रोहित शर्मा को टीम से बाहर कर देंगे?’.

विश्व कप के मैच में पाकिस्तान के हाथों किसी-न-किसी दिन हार तो होनी ही थी, लेकिन कोई भी कप्तान उस अपमान को अपने हिस्से में नहीं चाहता था. मामले को और बदतर बनाते हुए, भारत के अत्यधिक सक्रियता दिखाने वाली बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली – जो उन्हीं संस्थानों और प्रक्रियाओं को नष्ट करने की धमकी दे रहे हैं जिनकी वह अध्यक्षता करते हैं – ने फैसला किया कि कोहली के लिए अब एकदिवसीय मैचों की कप्तानी छोड़ देने का समय भी आ गया है. काफी सारी अटकलों के बाद कोहली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की जहां उन्होंने बीसीसीआई अध्यक्ष की बातों का खुलकर खंडन किया.

सफेद गेंद वाले क्रिकेट के प्रारूपों की कप्तानी खोने के बाद भी, बोर्ड और प्रशंसको को कोहली में अभी भी टेस्ट टीम कप्तानी का विश्वास था. कागज पर भारत की टीम एक बेहतर टीम लग रही थी और दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट सीरीज़ की शुरुआत इसने एक फेवरेट (पसंदीदा) टीम के रूप में की थी. एक तरह से इतिहास कोहली की ओर ईशारे कर रहा था. क्योंकि उनके पास दक्षिण अफ्रीका की धरती पर अपनी पहली श्रृंखला जीतने के लिए भारत का नेतृत्व करने और सफेद गेंद के कप्तान के रूप में अपनी निराशाजनक भागीदारी में सुधार लाने का मौका था. पर जैसा कि अंत में देखने को मिला, एक ख़राब शुरुआत के बाद, दक्षिण अफ्रीकी टीम अपने प्रेरणादायक कप्तान डीन एल्गर के नेतृत्व में एकजुट हुई, जिन्होंने न केवल अपनी टीम की भावनात्मक ऊर्जा का दोहन किया बल्कि अपने भारतीय समकक्ष की तुलना में तनाव का बेहतर ढंग से सामना किया. तीसरे टेस्ट, जहां कोहली को स्टंप माइक्रोफोन पर इस मैच के दक्षिण अफ्रीकी ब्रॉडकास्टर पर अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए सुना गया था, के बाद डीन एल्गर ने कहा, ‘भारत अपने खेल के बारे में भूल गया, और यह हमारे लिए फायदेमंद रहा’.

टेस्ट सीरीज की हार के बाद बुरी तरह से थके हुए कोहली ने टेस्ट टीम की कप्तानी भी छोड़ने का फैसला किया. टीम इस झटके से उबरने के लिए संघर्ष करती रही और एकदिवसीय श्रृंखला भी 3-0 से हार गई. इस श्रृंखला के समापन नोट, कम-से-कम मीडिया द्वारा जो कुछ सामने लाया गया उसके अनुसार, कोहली और अनुष्का शर्मा के बारे में था, जो अपनी बेटी की तस्वीरों को मीडिया में बहुत ज्यादा दिखाए जाने का विरोध कर रहे थे. कोहली द्वारा क्रिकेट बोर्ड, मीडिया, लाइव ब्रॉडकास्टर्स आदि पर अपनी निराशा व्यक्त करने के ये उदाहरण, उनके अपने आसपास की दुनिया के प्रति उनकी बढ़ती नाराजगी का संकेत देते हैं. कोहली द्वारा खेल के मैदान में दिखाई जाने वाली ऊर्जा के पीछे की घेराबंदी वाली मानसिकता अब मैदान से बाहर भी आने लगी है. अब यह उन्हें थकाने लगा है और टीम के लिए उनके सबसे महत्वपूर्ण कौशल, यानि कि उनकी बल्लेबाजी, को प्रभावित कर रहा है.


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अपने आप को तरोताजा करें और अपने दूसरे मौके की तलाश करें

पूर्व में भी एक और महान बल्लेबाज ने बल्लेबाजी की ऊंचाइयों को छूने के बाद – जिसके तहत उन्होंने टेस्ट और प्रथम श्रेणी दोनों प्रारूपों की पारी में सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था – खुद को इसी तरह से थका हुआ पाया था. यह साल 2000 में हुआ था, जब दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के खिलाफ लगातार दो सीरीज हारने के बाद ब्रायन लारा ने कप्तानी से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन वह यहीं नहीं रुके. लारा ने खेल और किसी भी तरह की मीडिया की चकाचौंध से अपने आप को पूरी तरह से दूर करते हुए एक छोटा विश्राम लिया और एकदम से तरोताजा होकर फिर वापस आ गए. उनकी वापसी के तीन साल बाद लारा को फिर से कप्तान के रूप में नियुक्त किया गया. अपना दूसरा मौका तलाश लेने के बाद, लारा ने अपनी टीम को चैंपियंस ट्रॉफी में जीत दिलाई और साथ ही किसी टेस्ट की एक पारी में पहली बार 400 रन बनाए.

कोहली ब्रायन लारा का रास्ता अपना सकते हैं और कुछ महीनों के लिए पूरी तरह से सुर्खियों से दूर रह सकते हैं. यह न केवल क्रिकेट से बल्कि किसी भी तरह के विज्ञापन, सार्वजनिक उपस्थिति, सोशल मीडिया पोस्ट आदि से भी लिया गया विराम होना चाहिए.

इससे न केवल कोहली को भरपूर आराम करने और अपना ध्यान फिर से केंद्रित करने का मौका मिलेगा, बल्कि यह नए कप्तान को अपनी नई भूमिका में रचने-बसने और बिना किसी अनावश्यक तरीके के व्यबधान अथवा हस्तक्षेप के ड्रेसिंग रूम का विश्वास हासिल करने का मौका भी देगा. मुझे पता है कि ‘ब्रांड कोहली’ पर इतना कुछ निर्भर करने के साथ पूर्ण रूप से विराम लेना व्यावहारिक रूप से असंभव लगता है. हालांकि, अगर कोहली ऐसा कर पाते हैं, तो यह उनके करियर में नई ऊंचाइयों को हासिल करने के प्रति उनकी भूख का ही संकेत होगा.

आप जिस चीज के लिए जुनूनी होते हैं, उससे थोड़े समय के लिए अलग होना केवल इसी बात को दर्शाता है कि आप उसकी कितनी परवाह करते हैं. यह आपके जुनून के प्रति आपकी इस ईमानदारी की निशानी है कि आप कभी भी उसके बारे में कोई आधा-अधूरा प्रयास नहीं करना चाहते. इसके बजाय आप उससे पूरी तरह से विराम लेना चाहेंगे और फिर उसे उसी तरह का समर्पण देना चाहेंगे जिसका वह हकदार है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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