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भारतीय शिक्षा प्रणाली में टेस्टिंग और स्कोरिंग साइंस को लाना चाहते हैं : ETS के सीईओ अमित सेवक

एजुकेशन टेस्टिंग सर्विस (ETS) भारतीय सरकार के साथ मिलकर राष्ट्रीय मूल्यांकन नियामक ‘परख’ स्थापित करने के लिए काम कर रही है, जो परीक्षा के लिए मानदंड स्थापित करेगी.

ईटीएस के सीईओ अमित सेवक | स्पेशल अरेंजमेंट

नई दिल्ली: एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस (ईटीएस) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमित सेवक ने दिप्रिंट के साथ हुई एक बातचीत में कहा, ‘‘हम भारतीय शिक्षा प्रणाली में टेस्टिंग और स्कोरिंग साइंस को लाना चाहते हैं.’’

ईटीएस विदेशों में पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों के लिए ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशन (जीआरई) और ‘टेस्ट ऑफ इंग्लिश एज़ ए फॉरेन लैंग्वेज’ (टीओईएफएल) जैसी ज़रूरी परीक्षाएं आयोजित कराता है.

यह अंतरराष्ट्रीय निकाय भारत सरकार के साथ काम मिलकर काम कर रहा है ताकि ‘परख’ (परफॉर्मिंग असेसमेंट, रिव्यू एंड एनालिसिस ऑफ नॉलेज फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट) नामक एक राष्ट्रीय मूल्यांकन नियामक स्थापित करने में मदद मिल सके. यह देश के सभी मान्यता प्राप्त बोर्ड और नेशनल अचीवमेंट सर्वे (एनएएस) जैसे सर्वेक्षणों के लिए नियम, मानक एवं दिशानिर्देश तय करेगा. इसके जरिए अलग-अलग बोर्ड से जुड़े स्टूडेंट्स के स्कोर में दिखने वाली असमानता के मुद्दे को हल किया जाएगा.

ईटीएस राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के साथ साझेदारी में काम कर रहा है. यह एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया होगी जिसमें ईटीएस दिशानिर्देशों को स्थापित करने और उनके कार्यान्वयन की देखरेख करने में मदद करेगा.

सेवक ने कहा कि ईटीएस, एक वैश्विक इवेल्यूशन प्लेटफॉर्म होने के नाते इस क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता ला रहा है ताकि राज्यों के लिए दिशानिर्देश स्थापित करने में मदद मिल सके और परीक्षाएं कैसे की जानी चाहिए, इस संदर्भ में मानक निर्धारित किए जा सकें.

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उन्होंने कहा कि भले ही निकाय कक्षा 1 से 12 के लिए मूल्यांकन दिशा-निर्देश स्थापित करने में मदद करेगा, लेकिन बुनियादी स्तर पर सीखने के परिणामों में सुधार की बड़ी संभावना है क्योंकि असली चुनौती वहीं है.

सीईओ ने कहा, ‘‘हम अपने विशेषज्ञों को साइकोमेट्रिक्स में ला रहे हैं, जो असल में टेस्टिंग का साइंस है, मनोविज्ञान, सांख्यिकी और शिक्षा का इंटरेक्शन है. हमारे पास दुनिया के कुछ प्रमुख मनोचिकित्सक हैं जो दिशानिर्देश तैयार करने में मदद करेंगे. वह यह बताएंगे कि टेस्ट कैसे तैयार किए जाने चाहिए और किस तरह से नंबर दिए जाने चाहिए.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘हम मानकों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, हम राष्ट्रीय नीतियों और दिशानिर्देशों को निर्धारित करना चाहते हैं, हम वैश्विक तकनीकी विशेषज्ञों के रूप में उभर रहे हैं. शुरुआत करने के लिए हमारा फोकस इस बात होगा कि भारत में (शिक्षा प्रणाली की) मौजूदा स्थिति क्या है और इस मुद्दे से जुड़े लोगों से बातचीत कर यह जानने की कोशिश करेंगे कि वे क्या चाहते हैं. इसके बाद हम एनसीईआरटी के साथ साझेदारी करेंगे और दिशानिर्देशों को लेकर आएंगे.’’

सेवक ने कहा कि ईटीएस भारत में आकलन में वैश्विक संदर्भ जोड़ने में भी सक्षम होगा क्योंकि इसके पास पीआईएसए (प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट) आयोजित करने का अनुभव है.

पीआईएसए एक ग्लोबल असेसमेंट है जिसका मकसद 15 साल के छात्रों के गणित, विज्ञान और रीडिंग के कौशल और ज्ञान को मापना है.

उन्होंने कहा, ‘‘दिशानिर्देश स्थापित करने के लिए हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुरूप काम करेंगे और एजुकेशन की नए फॉर्मेट- 5+3+3+4 का पालन करेंगे.’’

एनईपी 2020 यानी नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फार्मेट में ढाला गया है. इसका मतलब है कि अब स्कूल के पहले पांच साल में प्री-प्राइमरी स्कूल के तीन साल और कक्षा 1 और कक्षा 2 सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे. फिर अगले तीन साल को कक्षा 3 से 5 की तैयारी के चरण में विभाजित किया जाएगा. इसके बाद तीन साल का मध्य चरण (कक्षा 6 से 8) और अंत में चार साल का माध्यमिक चरण (कक्षा 9 से 12) होगा.

मूल्यांकन का स्तर विभिन्न स्तरों के लिए अलग होगा और यहीं पर ईटीएस पारख को मानक स्थापित करने में मदद करेगा.

एसोसिएशन के बारे में बात करते हुए, एनसीईआरटी के शैक्षिक सर्वेक्षण प्रभाग की प्रमुख प्रोफेसर इंद्राणी भादुड़ी ने कहा, ‘‘पाठ्यचर्या और मूल्यांकन में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं की ईटीएस की समझ देश के विभिन्न स्कूल बोर्डों में इन पहलुओं को मानकीकृत करने में एक बड़ी संपत्ति होगी, जिससे शिक्षण-अधिगम और मूल्यांकन प्रथाओं में गुणवत्ता, निरंतरता और एकरूपता की दिशा में मार्ग प्रशस्त होगा.’’

दरअसल, अभी तक सभी बोर्ड्स के नंबरों में असमानता देखने को मिलती थी. किसी बोर्ड में स्टूडेंट्स को ज्यादा तो किसी में कम नंबर दिए जाते थे. पारख का सबसे बड़ा काम इस समस्या को खत्म करना होगा.

पिछले साल विभिन्न राज्यों के हितधारकों के साथ एक बैठक हुई और सरकार इस बात पर सहमत हुई कि एक सामान्य मूल्यांकन नियामक की ज़रूरत है.

(अनुवाद : संघप्रिया | संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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