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जितिन प्रसाद के OSD को क्यों हटाया गया? पैनल ने ‘योगी की मंजूरी से चुने गए इंजीनियर के तबादले पर उठाई उंगली ‘

सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा गठित समिति ने इंजीनियरों के तबादले में 'अनियमितता' पाए जाने के बाद पिछले महीने यूपी पीडब्ल्यूडी मंत्री के ओएसडी को हटा दिया और 5 अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया था.

कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद, फाइल फोटो | फेसबुक

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) से लगभग 400 इंजीनियरों के तबादले के बाद इस विभाग के एक बड़े हिस्से में हड़कंप मच गया था. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक जांच समिति की रिपोर्ट से कथित तौर पर तबादले की प्रक्रिया में कई तरह की विसंगतियों की बात सामने आई है.

राज्य सरकार के सूत्रों के मुताबिक, समिति ने पाया है कि सभी स्तरों पर तबादलों की संख्या आधिकारिक ट्रांसफर पॉलिसी की मानक संख्या से अधिक है. तो वहीं एक विशेष मुख्य अभियंता का तबादला मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) की मंजूरी के बिना किया गया था. 19 जुलाई को पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) अनिल कुमार पांडेय को हटाने का कथित रूप से यही कारण था.

हालांकि पीडब्ल्यूडी के वरिष्ठ अधिकारियों ने दावा किया कि कार्यकारी इंजीनियरों और इस ग्रेड से ऊपर के अधिकारियों का तबादला करते समय ‘किसी भी नियम’ का उल्लंघन नहीं किया गया. लेकिन सूत्रों के अनुसार, जांच समिति ने पाया है कि किए गए तबादले सीनियर अधिकारियों के ‘अनुचित कार्यों’ को दर्शाते हैं.

पीडब्ल्यूडी तबादलों में गड़बड़ी – मृत इंजीनियरों के तबादले और कई की दो या तीन जिलों में बदली करने- के आरोपों के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 12 जुलाई को निर्देश दिया कि कथित विसंगतियों को देखने के लिए एक कमेटी बनाई जाए. साथ ही सीएमओ को रिपोर्ट देने के लिए भी कहा.

कमेटी में कृषि उत्पादन आयुक्त (APC) मनोज कुमार सिंह और ACS (कृषि) देवेश चतुर्वेदी शामिल थे.

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इसके बाद राज्य सरकार ने 19 जुलाई को पीडब्ल्यूडी मंत्री प्रसाद के ओएसडी को हटा दिया, जबकि इंजीनियर-इन-चीफ (विकास) और विभाग प्रमुख मनोज कुमार गुप्ता सहित पांच अन्य अधिकारियों को निलंबित कर दिया.

समिति के निष्कर्षों के बारे में पूछे जाने पर APC सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें सचिवालय में अधिकारियों की ओर से कोई चूक नहीं मिली.

सिंह ने बताया, ‘कमेटी ने मुख्यालय से जुड़े इंजीनियरों के तबादलों में विसंगतियों की समीक्षा करने और तबादलों को रद्द करने की सिफारिश की है.’ उन्होंने कहा कि निर्धारित सीमा से ज्यादा किए गए तबादलों को भी रद्द किया जाना चाहिए.

अभी तक तबादलों को रद्द करने की दिशा में कुछ नहीं हुआ है.

दिप्रिंट ने इस मामले पर प्रसाद से प्रतिक्रिया लेने का अनुरोध किया था, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. पीडब्ल्यूडी के एक पदाधिकारी ने कहा कि मंत्री से तबादले की सभी सिफारिशों को स्वीकार करने की उम्मीद नहीं है. कथित उल्लंघनों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या किसी नियम का उल्लंघन किया गया है और जवाब नहीं है.’

जांच समिति ने पाया है कि किए गए तबादले 15 जून के ट्रांसफर पॉलिसी ऑर्डर के निर्धारित ‘20 प्रतिशत’ मानकों से अधिक थे.

अधिकारी ने कहा, ‘कार्यकारी इंजीनियरों (XENs) के स्तर से ऊपर के अधिकारियों का तबादला 20 प्रतिशत से ज्यादा किया गया था.’


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‘सीएमओ की मंजूरी न लेने से विसंगतियों का पता चला’

जांच से मिले निष्कर्षों की जानकारी रखने वाले सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ट्रांसफर में सबसे बड़ी विसंगति असिस्टेंट इंजीनियर और जूनियर इंजीनियर के तबादलों में मिली है.

उन्होंने कहा, प्रसाद के ओएसडी को हटा दिया गया था क्योंकि मुख्य अभियंता के ‘आउट ऑफ सीजन’ स्थानांतरण के लिए सीएमओ की मंजूरी नहीं मांगी गई, जबकि उन्हें सीएम की मंजूरी के बाद पद पर लाया गया था.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सेतु निगम (उत्तर प्रदेश ब्रिज कॉरपोरेशन, पीडब्ल्यूडी विभाग के तहत एक निकाय) का तबादला इस तथ्य के बावजूद किया गया था कि उन्हें इस पद पर एक साल पूरा करना बाकी था.’

अधिकारी ने बताया, ‘एमडी की नियुक्ति सीएम कार्यालय की ओर से हुई थी. इसलिए उनके तबादले के लिए सीएम कार्यालय से मंजूरी लेना उचित होता. यह गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन सीएम के अनुमोदन से तैनात एक अधिकारी को स्थानांतरित करने के लिए सीएम कार्यालय से मंजूरी नहीं लेना अनुचित कार्यों की ओर इशारा करता है.’

सूत्रों के मुताबिक, प्रमुख सचिव की तरफ से मंत्री के कार्यालय के समक्ष एमडी के स्थानांतरण का मामला उठाना, कार्रवाई का एक ‘प्रमुख कारण’ था.

सूत्रों की मानें तो जांच समिति ने पाया कि पीडब्ल्यूडी के प्रधान सचिव नरेंद्र भूषण ने मुख्य अभियंता के स्तर पर कुछ वरिष्ठ व्यक्तियों के स्थानांतरण के मुद्दे को प्रसाद के कार्यालय में पुनर्विचार के लिए उठाया था, लेकिन इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, ‘सेतु निगम के एमडी के पद सहित लगभग दो-तीन मामले थे जिन पर फिर से विचार करने के लिए कहा गया था.’

संपर्क करने पर, भूषण ने जोर देकर कहा कि सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में सभी अनियमितताओं और गलतियों का उल्लेख किया गया है. और साथ यह अनियमितताएं किस स्तर पर की गई हैं इसका भी जिक्र है.

मृत इंजीनियरों का ‘तबादला’

सूत्रों के अनुसार, समिति को असिस्टेंट और जूनियर इंजीनियरों के तबादलों में सबसे ज्यादा विसंगतियां मिली हैं. उनके तबादले निर्धारित सीमा से काफी ज्यादा संख्या में किए गए हैं.

जांच की रिपोर्ट की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘जूनियर इंजीनियरों में दस प्रतिशत का तबादला किया जाना चाहिए था, लेकिन इसका ध्यान नहीं रखा गया. एक्सईएन, एसई (सुपरिटेंडेंट इंजीनियर ) और सीई (चीफ इंजीनियर) जैसे उच्च स्तर पर विसंगतियां कम हैं. सबसे ज्यादा गड़बड़ निचले स्तरों पर पाई गई’

आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि तबादलों में कई कथित अनियमितताओं में सबसे ज्यादा अजीबोगरीब लिस्ट वो थी, जिसमें मृत और गैर-मौजूद इंजीनियरों के नाम थे.

उन्होंने कहा, मसलन इंजीनियर घनश्याम दास कस्वाल का फिरोजाबाद से झांसी तबादला कर दिया गया, जबकि उनकी मौत तीन साल पहले हो चुकी है. इटावा के निर्माण खण्ड में काम कर रहे राजकुमार नाम के एक अन्य इंजीनियर का तबादला ललितपुर कर दिया गया, जबकि उस नाम का कोई इंजीनियर इस विभाग में मौजूद नहीं था. धर्मपाल नाम के एक जूनियर इंजीनियर की दो जिलों मैनपुरी और इटावा में बदली कर दी गई. सालिग सिंह के साथ भी यही हुआ. उनका तबादला बदायूं और लखनऊ दोनों जगहों पर एक साथ कर दिया गया.

एक जिले या एक डिपार्टमेंट में 7 से 18 साल से काम कर रहे कई इंजीनियरों की उसी जिले या डिपार्टमेंट में पोस्टिंग दी गई. लेकिन पीडब्ल्यूडी मुख्यालय में कथित तौर पर अनियमितताएं सबसे अधिक दिखाई दे रही हैं, जहां 12 से 18 साल से एक ही जगह पर काम कर रहे कुछ इंजीनियरों का तबादला नहीं किया गया.

पीडब्ल्यूडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘एक कार्यपालक अभियंता लखनऊ पीडब्ल्यूडी मुख्यालय में पिछले 12 साल से तैनात है, लेकिन उनका तबादला नहीं किया गया. एक मुख्य अभियंता पिछले 18 सालों से लखनऊ जिले में काम कर रहे हैं, उनकी भी बदली नहीं की गई.’

यूपी इंजीनियर्स एसोसिएशन का कहना है कि मुख्यालय से जुड़े अधिकारियों को आमतौर पर एनुअल ट्रांसफर प्रोसेस से बाहर रखा जाता है.

एसोसिएशन के महासचिव आशीष यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार चाहें तो मुख्यालय में तैनात अधिकारियों का जब भी जरूरत हो तबादला कर सकती है. इन अधिकारियों को स्थानांतरित करना सरकार पर निर्भर करता है. अगर उसे लगता है कि कोई उचित से अधिक समय तक किसी स्थान पर तैनात है, तो सरकार उसका ट्रांसफर कर सकती है.’

पीडब्ल्यूडी में ट्रांसफर प्रोसेस के बारे में बताते हुए यादव ने कहा कि जूनियर और असिस्टेंट इंजीनियरों की बदली विभाग प्रमुख करता है. एक्जयुकेटिव इंजिनियर, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर और चीफ इंजीनियर जैसे सीनियर पदों पर बैठे लोगों का तबादला राज्य सरकार के अनुमोदन के साथ किया जाता है. कुछ मामलों में प्रमुख सचिव के जरिए मंत्री या यहां सीएमओ भी इनके तबादले का आदेश दे सकता है.

लिस्ट तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हुए, एक वरिष्ठ पीडब्ल्यूडी अधिकारी ने बताया कि सीनियर इंजीनियरों – एक्सईएन, एसई और सीई – की लिस्ट एचओडी के स्टाफ अधिकारी, इंजीनियर-इन-चीफ (डवलपमेंट) और उनकी 18 सबऑर्डिनेट ऑफिसर की टीम द्वारा तैयार की जाती है. एचओडी अनुमोदन के बाद इसे प्रमुख सचिव के पास भेजा जाता है. निलंबित अधिकारियों में से एक मनोज गुप्ता इंजीनियर इन चीफ (डवलपमेंट) और एचओडी थे.

अधिकारी ने बताया, ‘ अगर कुछ बदलाव करने होते हैं तो प्रमुख सचिव उसे मंत्री के कार्यालय में भेजने से पहले कर देता है. अंतिम सूची मंत्री कार्यालय से मंजूरी के बाद ही जारी की जाती है. वही फाइनल अप्रूविंग अथॉरिटी है. इसी तरह इंजीनियर-इन-चीफ (ग्रामीण) और इंजीनियर-इन-चीफ (प्रोजेक्ट / प्लानिंग) की टीमें क्रमशः सहायक इंजीनियरों और जूनियर इंजीनियरों की ट्रांसफर लिस्ट तैयार करती हैं.’

मौजूदा मामले में, कथित तौर पर जेई, एई, एक्सईएन, एसई और सीई सहित सभी स्तरों पर विसंगतियां पाई गई हैं.

ट्रांसफर पॉलिसी क्या है?

15 जून को सीएम आदित्यनाथ की अध्यक्षता में यूपी कैबिनेट ने 2022-23 के लिए नई ट्रांसफर पॉलिसी को मंजूरी दी थी. बाद में मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने एक सरकारी आदेश जारी किया और यूपी सरकार के सभी अतिरिक्त मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों और सचिवों को संबोधित किया था. दिप्रिंट के पास आदेश की एक प्रति है.

आदेश में ग्रुप ए और बी पदों के तहत आने वाले अधिकारियों / कर्मचारियों को स्थानांतरित करने के निर्देश शामिल हैं. इसके मुताबिक, जिस किसी ने जिले में तीन साल या एक डिवीजन में सात साल पूरे कर लिए हैं, उसका तबादला किया जा सकता है. इसमें ट्रांसफर किए जाने वाले कर्मचारियों की संख्या की ऊपरी सीमा भी तय की गई है- मसलन ग्रुप ए और बी के लिए 20 प्रतिशत तक, और ग्रुप सी और डी के लिए 10 प्रतिशत तक.

इस पॉलिसी के मुताबिक, जितना संभव हो, ग्रुप बी और सी के अधिकारियों का स्थानांतरण मेरिट के आधार पर ऑनलाइन ट्रांसफर सिस्टम के जरिए किया जाए.

इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि यदि पति और पत्नी दोनों सरकार के लिए काम कर रहे हैं, तो उन्हें एक ही जिले/शहर/स्थान में जहां तक संभव हो, ट्रांसफर किया जाना चाहिए. विकलांग व्यक्तियों और उनके आश्रितों को स्थानान्तरण से छूट दी जानी चाहिए. मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के माता-पिता को उस स्थान पर तबादला किया जाना चाहिए जहां उनका इलाज संभव हो और दो साल के भीतर रिटायर होने वालों को गृह जिले (ग्रुप ए और बी) के अलावा उनके गृह जिलों (ग्रुप सी) या उनके पसंदीदा जिलों में पोस्टिंग दी जानी चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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