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बेरोजगारी और अनलिमिटेड डेटा पैक- UP के युवाओं में न तो गुस्सा है और न ही निठल्ले बैठे होने की परवाह

दोपहर फोन की बैटरी चार्ज करने और शाम पार्कों में बैठकर डिजिटल गेम खेलने में बीतती है. और रातें तो छतों पर चढ़कर नेटवर्क कवरेज चेक करने और फिर वीडिया और इंस्टा रीलों की दुनिया में गुम हो जाने के लिए होती हैं.

अपने फोन के साथ तस्वीर खींचाते युवा | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

प्रयागराज/लखनऊ: दोपहर है फोन की बैटरी 100 फीसदी चार्ज करने के लिए और शामें बीत जाती हैं खेल के मैदानों में डिजिटल गेम खेलते हुए. और रात को छतों पर चढ़कर नेटवर्क के सिग्नल ढूंढ़ना भी एक पसंदीदा शगल बन गया है. हो भी क्यों न, आखिर जब सबसे सस्ता और सबसे तेज मोबाइल डेटा मिल रहा हो तो तीन पी यानी पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा, पोर्नोग्राफी और पॉटबॉयलर्स— मसलन पुष्पा जैसा एक्शन ड्रामा जिसने हाल ही में देशभर में तहलका मचाकर रख दिया—की दुनिया में गोते लगाना किसे पसंद नहीं आएगा.

इस तरह अपना पूरा-पूरा दिन बिता देने वाली यह उत्तर प्रदेश की वह पीढ़ी है, जिसे जाने-माने विद्वान क्रेग जेफरी भारत में शिक्षित, बेरोजगार युवाओं के संदर्भ में ‘जेनरेशन नोवेयर’— यानी एक उद्देश्यहीन पीढ़ी— की संज्ञा देते हैं.

नौकरी की संभावनाएं दूर-दूर तक नजर नहीं आतीं, कॉलेज की डिग्री पर हर साल थोड़ी और धूल जम जाती है और आमतौर पर परिवार ने बैंकों में कोई पैसा भी नहीं जमा करा रखा है, लेकिन इन युवाओं के पास इस सबसे बेपरवाह होकर अपना समय बिताने के लिए एक चीज जरूर है— हर दिन मिलने वाला 2जीबी मोबाइल डेटा का कोटा.

एक पीढ़ी पहले तक 20 साल की उम्र के आसपास वाले शिक्षित लेकिन बेरोजगार युवाओं के कारण सामाजिक आक्रोश की लहर उत्पन्न हो जाती थी, लेकिन जब बेरोजगारी के खिलाफ छोटे-मोटे प्रदर्शन ही होते हैं और थोड़े ही समय में ये खामोश भी हो जाते हैं, जैसा पिछले महीने यूपी और बिहार में रेलवे भर्तियों को लेकर हिंसा के दौरान नजर आया.

यही नहीं, 2020 के दशक में बेरोजगार युवाओं में सबसे अधिक अभाव एकाग्रता का नजर आता है. ऐसा नहीं है कि नई पीढ़ी के इन नौजवानों में गुस्से या निराशा का भाव उत्पन्न नहीं होता, लेकिन आमतौर पर थोड़ी ही देर में ये उससे बाहर भी आ जाते हैं और अपना एक लंबा समय इंस्टाग्राम रीलों के बीच बिताकर शांत हो जाते हैं.

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जैसा प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के पास एक गांव के एक 26 वर्षीय शिक्षक शीश राम ने कहा, ‘बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव द्वारा 2016 में किया गया एक कटाक्ष इस पर सटीक बैठता है…: ‘घर में नहीं है आटा, लेकिन हमको चाहिए फोन में डेटा.

उत्तर प्रदेश में भारत की आबादी का लगभग छठा हिस्सा बसता है— जो कि 20 करोड़ से ऊपर है और यह देश में सबसे अधिक युवा आबादी वाले राज्यों में से एक है (2016 में यहां औसत आयु 20 वर्ष थी). विधानसभा चुनावों से पहले राज्य सरकार ने यूपी में बेरोजगारी दर काफी कम कर दी है. दरअसल, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक, जनवरी 2022 में यूपी में बेरोजगारी दर 3 प्रतिशत के करीब रही. हालांकि, जैसा खुद सीएमआईई ने माना है कि बेरोजगारी दर ‘देश में श्रम बाजार का सबसे अहम संकेतक नहीं है’ क्योंकि यह केवल इसका संकेत देती है कि कामकाजी उम्र के कितने लोग रोजगार चाहते हैं लेकिन उससे वंचित हैं.

जैसा कि विश्लेषकों का कहना है बेरोजगारी दर को श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) के साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए, जो कि 15 वर्ष से अधिक उम्र के उन लोगों का आंकड़ा दर्शाती है जिनके पास पहले से रोजगार है या फिर वे सक्रिय रूप से इसकी तलाश कर रहे हैं. यूपी के लिए एलएफपीआर 2016 की पहली छमाही में करीब 45 प्रतिशत से घटकर 2021 के अंत में लगभग 34 प्रतिशत हो गया, जिसका मतलब है कि कई लोग श्रम बल से बाहर हो गए हैं, इसके कारणों में प्रवासन या फिर नौकरी की तलाश बंद कर देना भी शामिल हो सकता है.

दिप्रिंट ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा की और चाय की दुकानों, मॉल, सिनेमा हॉल, खेल के मैदानों और परिसरों में कई युवाओं से मुलाकात भी की. बहरहाल, इस दौरान ऐसे हैंग-आउट स्पॉट में युवाओं में किसी तरह का उत्साह या फिर चुनावी बहस को लेकर कोई खास सक्रियता नजर नहीं आई.

क्रेग जेफरी ने 2010 में अपनी किताब ‘टाइमपास: यूथ, क्लास एंड द पॉलिटिक्स ऑफ वेटिंग ’ में यूपी के युवाओं का जिक्र करते हुए लिखा था कि वे अपने सेल फोन का इस्तेमाल ‘सांस्कृतिक अंतर’ को दर्शाने और बातचीत के लिए करते हैं. लेकिन एक दशक बाद लगता है कि तस्वीर पूरी तरह बदल गई है. लोग अपने फोन का इस्तेमाल बातचीत करने से ज्यादा आम तौर पर बातचीत से बचने के लिए करते हैं. वे बस सिर नीचे करके अपनी अंगुलियों से फोन को स्वाइप करने और स्क्रॉल करने में व्यस्त नजर आते हैं. साथ बैठकर एक-दूसरे का खाना खाना और तमाम राज साझा करने के बजाये अब मोबाइल हॉटस्पॉट साझा करना ज्यादा घनिष्ठ मित्रता का संकेत माना जाता है.

बांदा जिले के पीएचडी स्कॉलर राम बाबू तिवारी ने कहा, ‘साथ मिलकर समय बिताने की बजाये अब लोगों को अकेले समय काटना ज्यादा पसंद आता है.’


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हाथ में मोबाइल फोन और चिंता सिर्फ टॉप-अप की

22 वर्षीय हर्षल यादव सरकारी नौकरी के लिए कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की परीक्षा देने की तैयारी के बीच एक नियमित दिनचर्या का पालन करना नहीं भूलता है. 5 फरवरी का दिन भी इससे कुछ अलग नहीं था. दोपहर के समय उसने अपना रीयलमी 9 प्रो मोबाइल फोन चार्ज पर लगाया. तीन घंटे बाद लौटकर देखा तो फोन की बैटरी को 100 फीसदी चार्ज देखकर संतुष्ट हो गया. फिर उसने चारपाई से ईयरफोन उठाया और प्रयागराज जिले के अपने गांव धरमपुर उर्फ धुरवा के बाहरी इलाके में स्थित खेल के एक मैदान की ओर चल दिया.

प्रयागराज के धर्मपुर में वॉलीवाल मैच के बीत मोबाइल चलाता एक युवक | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

कीचड़ भरे खेल के इस मैदान में 15 से 35 वर्ष के बीच के लड़के और पुरुष वॉलीबॉल खेलने जुटे थे. यादव और कुछ अन्य युवक थोड़ी दूरी पर बैठे थे, जहां कुछ बाइक खड़ी थीं. हालांकि, उनका खेल पर कोई ध्यान नहीं था. वे तो बस अपने सिर नीचे करके अपनी नजरें फोन के स्क्रीन पर गड़ाए थे और एक ऐप से दूसरे ऐप पर स्विच करते जा रहे थे. कुछ ने फ्रीफायर गेम खेला, जबकि अन्य ने पुष्पा के गानों पर कुछ इंस्टा रील देखीं.

यादव ने करियर संबंधी कुछ ऐप खोले लेकिन कुछ समय बाद फेसबुक पर कुछ शॉर्ट वीडियो देखने से खुद को रोक नहीं पाया. थोड़ी देर बाद यह समूह उठकर खेल में शामिल होने के लिए चल दिया और कुछ अन्य युवकों ने यह जगह ले ली. और फिर ये भी उसी तरह सिर नीचा करके अपनी अंगुलियों से मोबाइल स्क्रॉल करने लगे.

एक पीढ़ी पहले तक गांवों के युवा छतों पर बातें करते दिखते थे, क्रिकेट, फुटबॉल, वॉलीबॉल और कबड्डी जैसे खेल खेलते थे, गलियों में टहलते थे और सड़क किनारे की दुकानों में चाय की चुस्कियां लेते नजर आ जाते थे.

11 साल पहले सेना में शामिल हुए धर्मपुर उर्फ धुरवा निवासी 30 साल के पवन कुमार के जेहन में तो ऐसी ही यादें बसी हैं. उन्होंने कहा, ‘हर साल सेना में दो बार भर्तियां होती थीं और खेल का मैदान और गांवों की ओर जाने वाली सड़कें दिन-रात दौड़ते युवाओं से भरी नजर आती थीं. जो पढ़ना चाहते थे प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होते थे और छात्र राजनीति का भी हिस्सा बनते थे.’ साथ ही जोड़ा कि पिछले कुछ सालों में पुलिस और सेना की भर्ती में कमी आई है.

पवन ने कहा, ‘पिछली बार कब किसी ग्रामीण ने युवाओं के एसएससी नौकरियों में शामिल होने के बारे में सुना? चीजें ठहरी हुई हैं. तो मेरे गांव के ये 50 युवा क्या करेंगे? वे इंटरनेट पर ही तो समय बर्बाद करेंगे.’

विवान मारवाह, जिनकी किताब व्हाट मिलेनियल्स वांट: डिकोडिंग द लार्जेस्ट जेनरेशन इन द वर्ल्ड पिछले साल आई थी, की राय है कि भारतीय युवा बेरोजगारी और अवसरों की कमी के ‘दुष्चक्र’ में फंस गए हैं. मारवाह ने कहा, ‘हर साल कार्यबल में शामिल होने वाले लाखों लोगों के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे-भुगतान वाली और स्थिर नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं. नतीजतन, युवा पुरुषों और महिलाओं की एक बड़ी संख्या अपने फोन पर समय बिताने या सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करने के लिए बाध्य है.’

प्रयागराज के कटरा के युवाओं के फोन का फोन स्क्रीन जिसमें मनोरंजन के साधने से लैस एप मौजूद हैं | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

यूपी के तमाम युवा जानते हैं कि अपने फोन के प्रति उनका जरूरत से ज्यादा रुझान एक किस्म की बीमारी की तरह है लेकिन उनका कहना है कि बात केवल ‘टाइमपास’ करने भर की नहीं है.

धरमपुर उर्फ धुरवा के ही रहने वाले शीश राम, जिनके पास बीए पास की डिग्री है, का कहना है कि यह तो किसी जादू की छड़ी की तरह हो गया है.

उन्होंने कहा, ‘युवा फोन का इस्तेमाल अपनी हताशा दूर करने के लिए कर रहे हैं…वे सिर्फ टाइमपास नहीं कर रहे…वे चार्जिंग, रिचार्जिंग और सेल फोन के उपयोग के साथ एक लंबा समय काट रहे हैं.’

फोन का एक और फायदा यह भी है कि ये शर्मिंदगी के भाव से बचाते हैं.

एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान से डिप्लोमा रखने वाले यादव कहते हैं, ‘यह हमें एक सबसे खतरनाक सवाल— ‘क्या कर रहे हो आजकल’— से भी बचाता है.


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जीवन में भर गई है नीरसता

इस महीने के शुरू में बजट सत्र के दौरान सरकार ने युवाओं को ‘सशक्त’ बनाने के लिए अगले पांच वर्षों में 60 लाख रोजगार पैदा करने के अपने लक्ष्य की घोषणा की है.

लेकिन, बहुप्रतीक्षित सरकारी नौकरियों के लिए रिक्त पदों में पिछले कुछ सालों में लगातार गिरावट आई है. 2018 में यह खबर सुर्खियों में रही थी कि यूपी पुलिस में चपरासी स्तर के 62 पदों के लिए आवेदन करने वाले 93,000 उम्मीदवारों में 3,700 पीएचडी धारक, 28,000 स्नातकोत्तर और 50,000 स्नातक थे. स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. उदाहरण के तौर पर पिछले साल रेलवे भर्ती बोर्ड परीक्षा में नॉन-टेक्नीकल पॉपुलर कैटेगरी (एनटीपीसी) पदों की 35,208 रिक्तियों के लिए 1.15 करोड़ उम्मीदवारों ने पंजीकरण कराया था. यहां तक कि ऐसी खबरें भी आईं कि यूपी के कुछ स्नातक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत अकुशल श्रमिक के तौर पर काम चाहते थे.

ऐसे परिदृश्य में नौकरी के लिए ‘तैयारी’ करना लॉटरी में अपनी किस्मत आजमाने के जैसा लगता है. इसके अलावा आप कुछ कर भी नहीं सकते.

रायबरेली जिले के एक छोटे से शहर डालामऊ निवासी 26 वर्षीय जयशंकर के पास अच्छी-खासी डिग्रियां हैं— बीएससी, एमएससी, बी.एड. लेकिन अब सरकारी शिक्षक की नौकरी पाने की कोशिश में लगे हैं. यह पूछे जाने पर कि वह कितने समय से कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने कहा, ‘पांच साल’.

शंकर जब प्रयागराज में रहने का खर्च नहीं उठा पाए तो डालामऊ लौट आए. वह अब अपने पिता की चाय की दुकान पर मदद करते हैं. ग्राहकों की सेवा के बीच वक्त मिलते ही वह अपना फोन उठा लेते हैं और इससे उन्हें थोड़ी राहत महसूस होती है.

उन्होंने कहा, ‘जब तक इंटरनेट काम करता है, सब ठीक चलता रहता है. कभी-कभी मैं फोन खोलकर जीके सेक्शन में उत्तर देखने लगता हूं या फिर टेलीग्राम और व्हाट्सएप ग्रुप खोल लेता हूं. काफी समय फेसबुक के डेली ट्रेंड देखने में चला जाता है.’

कौशांबी जिले के हटवा अब्बासपुर गांव निवासी 21 वर्षीय सुजीत द्विवेदी एसएससी की तैयारी कर रहे हैं और कानून के छात्र हैं. सुबह से ही वह दिन के सबसे रोमांचक हिस्से का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं. रात का खाना खाते ही वह बिना किसी रुकावट नेटवर्क की तलाश में छत पर चढ़ जाते हैं और अगले तीन घंटों तक वहां अकेले ही फ्रीफायर खेलते रहते हैं.

बड़े शहर प्रयागराज में भी तमाम बेरोजगार युवा इसी तरह अपने मोबाइल का इस्तेमाल करके अपने दिन (और रातें) काट रहे हैं.

कटरा, प्रयागराज स्थित लक्ष्मी टॉकीज युवाओं के लिए नाश्ता-पानी और मस्ती करने की एक लोकप्रिय जगह है. 4 फरवरी की एक सर्द शाम को छह युवाओं— इसमें 20 से 25 वर्ष उम्र के चार लड़के और दो लड़कियां शामिल थीं— का एक समूह माउंटेन ड्यू की चुस्कियां लेने के लिए एक टेबल पर जुटे. सभी मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं और सरकारी नौकरी की इच्छा रखते हैं और सभी का कहना है कि फोन उनके लिए बहुत मददगार है.

प्रयागराज के लक्ष्मी टॉकीज पर बैठकर बात करते सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले छात्र | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

24 वर्षीय अंकित पटेल ने कहा, ‘मेरा जियो डेटा देर रात 1.40 बजे शुरू होता है. मैं तब तक इंस्टा रील देखता हूं जब तक मेरा डेटा समाप्त नहीं हो जाता. मैं करीब चार बजे सोता हूं और सुबह देर से उठता हूं. यह एक नियमित आदत बन गई है. दिन में मैं परीक्षा की तैयारी करता हूं.’

वहीं, 23 वर्षीय माधुरी सैनी इंस्टा पर स्किनकेयर वीडियो और फैशन व्लॉगर्स के वीडियो देखने में वक्त बिताती हैं. कभी-कभी, वह गूगल पर जीके के सवालों को देखती है. 23 साल की उनकी फ्लैटमेट विनीता पांडे की भी दिनचर्या ऐसी ही है और वह अपना ज्यादातर डेटा इंस्टाग्राम पर खर्च करती हैं.

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था प्रतियोगी छात्र संघ के अध्यक्ष अजीत सोनकर का कहना है कि कई युवा ‘इंटरनेट की लत’ और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के शिकार हो रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘वे लोगों से कटते जा रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सरकारी नौकरी के लिए घोषित होने वाली हर परीक्षा के लिए आवेदन करने वाले छात्रों की न्यूनतम संख्या चार लाख से कम नहीं होती है. अधिसूचना का लंबा इंतजार, फिर परीक्षा की तारीखें, परिणामों की घोषणा और फिर नौकरी मिलना…इन सभी के बीच चार से पांच साल लग जाते हैं.’

हालांकि, इस लंबे इंतजार के बीच लोग कभी-कभी किसी न किसी तरह से पैसा कमाने की कोशिशें करते रहते हैं, भले ही यह उनकी आदत को पूरा करने भर का क्यों न हो.


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डेटा पर खर्च के लिए कहां से जुटाते हैं पैसा

प्रयागराज के पूरे सूरदास गांव निवासी 68 वर्षीय रामपाल सिंह की शिकायत है, ‘ज्यादातर युवा खेती के अलावा दौड़, कबड्डी, खो-खो जैसे पुराने खेलों में कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं.’ हालांकि, उनकी बात आंशिक तौर पर ही सही है, क्योंकि गांवों के युवा अक्सर स्थानीय क्रिकेट मैचों में तो हिस्सा लेने को तैयार रहते हैं, खासकर अगर इसमें किसी तरह की ईनामी राशि शामिल हो.

हर्षल यादव ने बताया, ‘यह सब हम अपने फोन रिचार्ज कराने के लिए कुछ राशि पाने के इरादे से करते हैं.’ साथ ही फोन रिचार्ज कराने के लिए पैसा जुटाने के कुछ और तरीके भी बताए.

उन्होंने आगे बताया, ‘कुछ लोग तीन महीनों के भीतर अपना सिम पोर्ट करा लेते हैं और मुफ्त डेटा का आनंद लेते हैं, कुछ भावनात्मक तरीकों से अपने माता-पिता को कुछ पैसे देने पर राजी कर लेते हैं और कुछ छात्रवृत्ति भत्ते का इस्तेमाल करते हैं. जिनके पास ये सभी विकल्प नहीं हैं वे इंटरनेट रिचार्ज के लिए रिसेप्शनिस्ट या डिलीवरी बॉय जैसे छोटे-मोटे काम करते रहते हैं. अगर 2जीबी न भी हो पाए तो कम से कम एक जीबी डेटा तो चाहिए ही होता है.’

उत्तर प्रदेश स्थित एक मोबाइल रीचार्ज की दुकान | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

हर्षल यादव के समूह के सभी युवाओं के पास आमतौर पर 2जीबी डेटा वाले प्लान होते हैं. अपने निजी खर्च को पूरा करने के लिए प्रयागराज में एक मेडिकल सप्लायर के तौर पर काम करने वाले 22 वर्षीय महान सिंह ने कहा, ‘यूट्यूब पर एक घंटे का समय, इंस्टा रील पर आधा घंटे और फेसबुक पर कुछ मीम्स और बस दिनभर पार हो गया.’

भारत में अब दुनिया का सबसे सस्ता मोबाइल डेटा नहीं मिलता, जबकि 2020 तक यहां यही स्थिति थी लेकिन अब भी यह अपेक्षाकृत सस्ता है. यूपी के युवाओं के बीच सबसे लोकप्रिय प्लान रिलायंस के स्वामित्व वाले जियो के हैं: जिसमें 249 रुपये में 23 दिनों तक प्रतिदिन 2 जीबी डेटा और 199 रुपये में इतनी ही अवधि के लिए 1.5 जीबी डेटा उपलब्ध है. रियलमी, जियोमी और ओप्पो जैसे चीन निर्मित स्मार्टफोन ब्रांड भी आसानी से उपलब्ध हैं और इनकी कीमत 10,000 रुपये से 15,000 रुपये के आसपास है— ये सस्ते भले ही न हो लेकिन पहुंच से एकदम बाहर भी नहीं हैं.

दो महीने पहले जब यादव का ओप्पो फोन खराब हुआ तो उन्होंने 24 घंटे के भीतर 12,000 रुपये का इंतजाम किया और अपने लिए एक नया फोन ले लिया.

पढ़े-लिखे, बेरोजगार युवा भले ही कितनी भी अलग-अलग पृष्ठभूमि से क्यों न आते हों, वे डिजिटल इंडिया से जरूर पूरी तरह जुड़े नजर आते हैं.

सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व महानिदेशक राजन एस. मैथ्यू कहते हैं, ‘सस्ते मोबाइल फोन, सस्ते डेटा और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं की तरफ से बढ़ी बैंडविड्थ की उपलब्धता के कारण इन (बेरोजगार) युवाओं के लिए अपना खाली समय ऑनलाइन मनोरंजन में बिताना आसान हो गया है जो वेब पर लगभग मुफ्त में उपलब्ध होता है.’

लखनऊ में दिप्रिंट की मुलाकात रूमी दरवाजा क्षेत्र में छह मुस्लिम युवाओं के एक समूह से हुई, जिनकी आयु 18 से 22 वर्ष के बीच थी. ये समूह सेल्फी लेने में व्यस्त था. उन्होंने बताया कि प्रतापगढ़ के रहने वाले हैं और इंस्टाग्राम पर चमकने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए एक पर्यटन एजेंसी के साथ काम करते हैं. इनमें दानिश सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले युवा हैं, जिनके इंस्टाग्राम पर 1,500 फॉलोअर्स हैं.

लखनऊ के रूमी दरवाज के सामने खड़े होकर फोटो खींचाते इंस्टा स्टार्स | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

19 वर्षीय अहमद खान ने कहा, ‘जियो रिचार्ज और वीवो-ओप्पो फोन किसी का भी जीवन आसान बनाने के लिए काफी हैं. बाजार में अच्छी नौकरियां नहीं हैं. कॉलेज भी चल नहीं रहे हैं. इसलिए, मैंने अपने मोबाइल और अन्य निजी खर्चों को पूरा करने के लिए इस नौकरी को चुना.

युवा पीढ़ी— किशोर और बच्चों— को इस तरह की लाइफस्टाइल, फोटो के लिए पोज देना और खाली समय में घूमना-फिरना काफी ग्लैमरस भी लग सकता है.

प्रयागराज के पूरे सूरदास गांव में रहने वाले 16 साल के अनुज यादव का कहना है कि वह भी अपने आसपास के युवाओं की तरह स्मार्टफोन रखना चाहता था. एक महीने पहले उसने दूध बेचने के अपने काम के जरिये काफी पैसा बचा लिया और 14,000 रुपये में एक वीवो 423 फोन खरीदा. अपने फोन कवर के अंदर उसने 40 रुपये रख रखे हैं. उसने कहा, ‘जब मेरे पास यह मैसेज आएगा कि अपना पैक रिचार्ज करा लें, तब मेरे पास टॉप अप के लिए पर्याप्त पैसा होगा.’

उसी गांव में रहने वाले 8वीं कक्षा के एक छात्र ने जब यह पूछा कि वह जीवन में क्या करना चाहता है, तो उसका कहना था, ‘मैं बस फेसबुक स्टोरीज अपलोड करना चाहता हूं.’ हालांकि, फिलहाल वह अपने दोस्तों से हॉटस्पॉट शेयर करने में जुटा है ताकि वे एक-दूसरे को देखे बिना एक साथ डिजिटल गेम खेल सकें.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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