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उदयपुर में लंपी स्किन रोग पर काबू पाने में कैसे मददगार साबित हो रहा कोविड-स्टाइल का कंट्रोल रूम

सरकारी पशु चिकित्सालय में स्थापित कंट्रोल रूप ग्राम पंचायतों से आने वाली कॉल के जरिये संदिग्ध मामलों और उपचार के अनुरोध के बारे में जानकारियां जुटाता है, जबकि रैपिड रिस्पांस टीम जमीनी स्तर पर काम करती है.

वरिष्ठ पशुचिकित्सक डॉ. दत्ताराय चौधरी और पशु सहायक खुशबू शर्मा और राजेंद्र कुमार मीणा लंपी स्किन बीमारी से ग्रसित गाय का इलाज करते हुए | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

उदयपुर: उदयपुर में कई गांवों में मवेशियों के बीच लंपी स्किन बीमारी के प्रकोप पर काबू पाने के लिए युद्ध स्तर पर सक्रिय जिला प्रशासन ने शहर के एक सरकारी पशु चिकित्सा अस्पताल में कोविड-स्टाइल का एक कंट्रोल रूम स्थापित किया है.

बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और जालोर आदि में लंपी स्किन से संक्रमण के मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे थे, वहीं इससे सटे उदयपुर जिले में पिछले तीन हफ्तों में ही इस बीमारी के मामले सामने आए हैं.

उदयपुर के चेतक सर्कल स्थित पशु चिकित्सालय में संयुक्त निदेशक, पशुपालन सूर्य प्रकाश त्रिवेदी अपने दफ्तर में कंट्रोल रूम चला रहे हैं.

त्रिवेदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने जुलाई के अंतिम सप्ताह में नियंत्रण कक्ष स्थापित किया, जब हमें उदयपुर में पहला मामला (लंपी स्किन का) मिला. नियंत्रण कक्ष जिला स्तर पर स्थापित किया गया है और ब्लॉक स्तर पर हमने एक रैपिड रिस्पांस टीम बनाई है ताकि वे जल्द से जल्द संदिग्ध मामलों पर काबू पा सकें.’

पशुपालन विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर सूर्य प्रकाश त्रिवेदी अन्य अधिकारियों के साथ बैठक कते हुए | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

कोविड महामारी के दौरान दिल्ली और मुंबई जैसे कई महानगरों ने कंट्रोल रूम बनाए थे जो जिले और वार्ड स्तरों पर मामलों पर नजर रखते थे और संक्रमण के नए मामलों, अस्पताल के बेड की उपलब्धता और ठीक होने वालों आदि का ब्योरा जुटाते थे. उदयपुर प्रशासन भी जिले में लंपी स्किन रोग फैलने से रोकने के लिए इसी तरह का नजरिया अपना रहा है और इस पर नजर रख रहा है कि कहां जानवरों के उपचार की जरूरत है और कहां टीकाकरण की या उन्हें आइसोलेट करने की.

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त्रिवेदी के मुताबिक, जिले में अब तक 4,854 मवेशी संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें 82 की मौत हुई है. संकट की एक और वजह यह है कि जिले में पशु चिकित्सा अधिकारी के 23 पदों में केवल 11 ही भरे हुए हैं.

‘वृक्ष’ नामक एक स्थानीय एनजीओ के वालंटियर के साथ काम करते हुए त्रिवेदी उदयपुर के विभिन्न ग्राम पंचायतों के संपर्क में है और हर जगह से यही मांग की जा रही है कि इलाज के लिए या फिर लंपी स्किन के संदिग्ध मामलों की रिपोर्ट के लिए डॉक्टरों को भेजा जाए.

वृक्ष एनजीओ चला रहे कैलाश वैष्णव ग्राम पंचायतों की कॉल के आधार पर संबंधित वार्ड के नोडल पशु चिकित्सा अधिकारी के साथ कोऑर्डिनेट करते हैं. फिर वह डॉक्टर को जानकारी देता है, जो इलाज अथवा जानकारी जुटाने के लिए दूरदराज के गांवों की यात्रा करता है.

दिप्रिंट ने उदयपुर में ऐसी ही एक टीम के साथ दौरा किया.


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लंच का कोई ठिकाना नहीं, लगातार ड्यूटी, झूठी सूचनाएं

उदयपुर से करीब 20 किलोमीटर दूरी पर सारे नामक गांव है. पहाड़ियों के बीच बसे इस गांव तक पहुंचाने वाली सभी सड़कें गड्ढों से भरी हैं, क्षेत्र में लगातार बारिश ने स्थिति और खराब कर दी है. सारे में कोई मोबाइल नेटवर्क कनेक्टिविटी नहीं है. नजदीकी पहाड़ी के ऊपर एक खास जगह पर ही नेटवर्क आता है और ग्रामीण कॉल करने के लिए वहीं जाते हैं.

गांव चिरवा स्थित पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुभाष को जानकारी मिली कि सारे में लंपी स्किन संक्रमण होने की संभावना है.

डॉ. सुभाष कहते हैं, ‘गांव अभी हाइपर अलर्ट है. इसलिए कई बार झूठी सूचनाएं भी मिलती हैं. यह एक गलत सूचना होने के आसार हैं क्योंकि आसपास के किसी भी क्षेत्र में अभी कोई मामला नहीं आया है’. सारे में, वह ग्रामीणों को एकत्र करते हैं और धैर्यपूर्वक उनकी बात सुनते हैं और बीमारी के बारे में जानकारी देते हैं.

लंपी स्किन बीमारी के बारे में गांव वालों को जागरूक करते अधिकारी | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

फिर वह इन लोगों को बताते हैं आखिर यह बीमारी क्यों होती हैं, यह मच्छरों, मक्खियों आदि के जरिये कैसे फैलती है और इसे रोकने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए.

वह ग्रामीणों को बताते हैं, ‘यह बीमारी आपके मवेशियों के दूध उत्पादन को प्रभावित कर सकती है. कृपया सभी से कहें कि जब तक यह काबू में न आ जाए, तब तक कुछ हफ्तों के लिए सतर्क रहें.’

इसके बाद डॉ. सुभाष की टीम मवेशियों को कृमि मुक्त करने वाली दवाओं के साथ-साथ बीमारी की जानकारी देने वाले पर्चे बांटती है. वे कहते हैं, ‘कीड़े मारने की दवा यह सुनिश्चित करती है कि जानवर की प्रतिरक्षा प्रणाली रोगाणुओं से बेहतर ढंग से लड़ने में सक्षम हो.’

पशु चिकित्सा अधिकारी ने हर दिन के कामकाज को दो हिस्सों में बांटा है. पहले आधे दिन में वे उन गांवों का दौरा करते हैं जहां कोई संक्रमण नहीं है. दिन के उत्तरार्ध में, वह लंपी स्किन से प्रभावित गांवों का दौरा करते हैं और मवेशियों का इलाज करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करता हूं कि संक्रमण को एक गांव से दूसरे तक न पहुंचा दूं.’ उन्हें सौंपे गए क्षेत्रों में 10,000 से अधिक गायें हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

इस बीच, बड़गांव पशु चिकित्सालय में पशु सहायक खुशबू शर्मा और राजेंद्र कुमार मीणा पूरी तरह भीगकर पहुंचे हैं. सुबह 8 बजे से दोनों थुर, लोयारा और चिलकवास सहित कई गांवों का दौरा कर रहे थे.

वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. दत्ताराय चौधरी के साथ यह टीम दोपहर का लंच भी नहीं करती है और दवाओं और सिरिंज का इंतजाम करके अन्य मवेशियों के इलाज के लिए फिर बाहर निकल जाती है.

बड़गांव केंद्र से टीम पहले एक परिवार की गाय का इलाज करने के लिए मदार जाती है जो लंपी स्किन से संक्रमित है.

वहां पहुंचने पर डॉ. चौधरी को पता चलता है कि संक्रमित गाय के बछड़ों को अलग करने की उनकी सलाह के बावजूद परिवार ने ऐसा नहीं किया है. नतीजतन, अब बछड़ों में संक्रमण के लक्षण नजर आ रहे हैं.

डॉ. दत्ताराय चौधरी लंपी स्किन बीमारी से ग्रसित गायों का इलाज कर रहे हैं | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

वे बताते हैं, ‘हमने पिछले 10 दिनों में कोई छुट्टी नहीं ली है.’ जिला पशुपालन विभाग एक व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से मामलों की संख्या और जमीनी स्तर पर इलाज पर नजर रखता है.

यद्यपि दवाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं लेकिन टीम ने बताया कि गोटपॉक्स टीके की कमी के कारण अभी तक क्षेत्र में इसकी आपूर्ति नहीं हुई है.

फिलहाल लंपी स्किन का कोई इलाज नहीं है और ज्यादातर इलाज नैदानिक लक्षणों पर केंद्रित होता है. अभी जो टीका लगाया जा रहा है, वो गोटपॉक्स वायरस का है, हालांकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दो संस्थान कथित तौर पर इस बीमारी के लिए एक स्वदेशी टीका विकसित कर चुके हैं, जिसे केंद्र सरकार कॉमर्शियलाइज करने की योजना बना रही है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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