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गोरखपुर के होटल के रूम नं. 512 में क्या हुआ था, जहां पुलिस ने UP के कारोबारी की ‘हत्या’ कर दी थी

मनीष गुप्ता गोरखपुर के कृष्णा होटल में अपने दो दोस्तों के साथ ठहरे हुए थे, जब पुलिस ने उन्हें घेर लिया और कथित तौर पर पीट-पीटकर उन्हें मार डाला.

गोरखपुर स्थित होटल कृष्णा पैलेस जहां कारोबारी मनीष गुप्ता ठहरे हुए थे | उन्नति शर्मा/दिप्रिंट

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कृष्णा पैलेस होटल के कमरा नंबर 512 में दो दोस्तों के साथ ठहरे हरबीर सिंह की 27 सितंबर की आधी रात को दरवाजे पर जोरदार दस्तक के साथ आंख खुली.

तीनों लोगों- हरबीर सिंह, प्रदीप कुमार और मनीष गुप्ता- ने शाम को ही यहां चेक-इन किया था और काम के सिलसिले में दिनभर की भागदौड़ की थकान मिटाने के लिए आराम से सो गए थे. गुप्ता कानपुर के रहने वाले थे, जबकि अन्य दोनों मित्र हरियाणा के गुड़गांव निवासी हैं.

हरबीर सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि उसने ही दरवाजा खोला क्योंकि बाकी दोनों लोग गहरी नींद में थे. उन्होंने पुलिसकर्मियों की एक टीम को देखा जो होटल रिसेप्शनिस्ट के साथ अंदर घुस आए और उनसे पहचान पत्र मांगने लगे.

हरबीर ने कहा, ‘मैंने अपनी और प्रदीप की आईडी दिखाई और मनीष, जो उस समय सो रहा था, से अपनी आईडी दिखाने को कहा. उन्होंने हमसे यहां आने की वजह पूछी…हमने उन्हें बताया कि हम कारोबार के सिलसिले में यहां किसी से मिलने आए हैं.’

हरबीर ने आगे बताया, ‘उन्होंने शहर में हमारे परिचित को बुलाया और हमारी यात्रा के कारण के बारे में पूछा. लेकिन इस बीच पुलिसकर्मी पूरी आक्रामकता के साथ हमारे बैग की तलाशी लेते रहे. इस पर गुप्ता ने कहा कि, ‘क्या हम आपको आतंकवादी लगते हैं जो आप हमारे बैग को इस तरह से खंगाल रहे हैं.’ बस इतना कहना ही रामगढ़ ताल थाने के एसएचओ और थाना प्रभारी जे.एन. सिंह को भड़काने के लिए काफी था. फिर उन्होंने यह कहते हुए गालियां देना और हमें पीटना शुरू कर दिया कि ‘क्या आप लोग किसी पुलिसवाले को उसकी ड्यूटी करना सिखाएंगे.’

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हरबीर सिंह के मुताबिक, उन्हें कई थप्पड़ मारे गए और कमरे से बाहर धकेल दिया गया.

हरबीर ने बताया, ‘थोड़ी ही देर बाद मैंने देखा कि वे मनीष गुप्ता को कमरे से लिफ्ट की ओर खींच रहे थे. उनका चेहरा खून से लथपथ था और वह बेहोश थे.’

अंतत: गुप्ता को अस्पताल रेफर किया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

गोरखपुर का रामगढ़ ताल पुलिस स्टेशन | उन्नति शर्मा/दिप्रिंट

उस घटना के बाद पुलिस पहले तो यह दावा करती रही कि गुप्ता की मौत एक दुर्घटनावश हुई है. हालांकि, बाद में इस रुख से पीछे हटकर इसमें शामिल छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया. मामला अब कानपुर पुलिस को ट्रांसफर कर दिया गया है. यूपी सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी है.

इस घटना ने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था पर सवाल तो खड़े किए ही हैं लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इसने राज्य में पुलिसकर्मियों के आचरण को भी उजागर किया है.


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कोई गिरफ्तारी नहीं, परिवार ने लगाया हत्या का आरोप

इस घटना में कथित तौर पर शामिल छह पुलिसकर्मी- रामगढ़ ताल एसएचओ जगत नारायण सिंह, एसआई अक्षय मिश्रा, एसआई विजय यादव, एसआई राहुल दुबे, हेड कांस्टेबल कमलेश यादव और कांस्टेबल प्रशांत कुमार फरार हैं और उन्हें गिरफ्तार किया जाना बाकी है.

यद्यपि इन सभी छह पुलिसकर्मियों को 29 सितंबर को निलंबित कर दिया गया था लेकिन इनमें से केवल तीन- एसएचओ जगत नारायण सिंह, एसआई अक्षय मिश्रा और एसआई विजय यादव का नाम प्राथमिकी में शामिल किया गया है और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया है.

पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि मौत एक दुर्घटना की वजह से हुई थी, गोरखपुर के एसएसपी विपिन टाडा ने एक प्रेस बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया कि गुप्ता की मौत ‘हड़बड़ी में गिर जाने’ के कारण हुई थी.

हालांकि, बाद में पुलिस इस रुख से पीछे हट गई.

गोरखपुर जोन के एडीजी अखिल कुमार ने मीडिया से कहा कि सबूतों के आधार पर गिरफ्तारियां की जाएंगी. उन्होंने कहा, ‘मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, लेकिन उससे पहले हम सारे सबूत जुटा रहे हैं. अदालत सबूत मांगती है.’

प्राथमिकी में केवल तीन नामों को ही शामिल किए जाने के बारे में पूछने पर एडीजी अखिल कुमार ने कहा कि वह इस ब्योरे की पुष्टि नहीं कर सकते हैं लेकिन जांच के बाद इस घटना में शामिल सभी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

हालांकि, जांच कानपुर पुलिस को सौंप दी गई है.

जमीनी स्तर पर मौजूद सबूत पुलिस के बयानों से मेल नहीं खाते हैं.

कृष्णा पैलेस होटल के मालिक सुभाष शुक्ला ने दिप्रिंट को बताया कि पुलिस दल सीधे कमरा नंबर 512 पर पहुंचा था.

शुक्ला ने कहा, ‘मैंने सीसीटीवी फुटेज देखा है. उन्होंने (पुलिसवालों ने) रजिस्टर देखा और आगे बढ़कर आधी रात करीब 12 बजे गुप्ता के कमरे का दरवाजा खटखटाया. मुझे बताया गया था कि यह एक रुटीन चेकिंग हैं और पुलिसकर्मियों को इन लोगों पर संदेह था क्योंकि तीन लोग एक ही कमरे में ठहरे थे और वो वो अलग-अलग जगह से थे- एक यूपी से था और बाकी हरियाणा से.’

शुक्ला ने आगे बताया कि सीसीटीवी फुटेज ने पूरी घटना को कैद कर लिया है लेकिन पुलिस ने इसे अपने कब्जे में ले रखा है.

उन्होंने कहा, ‘हमने देखा कि उन्होंने अपनी गाड़ी होटल के बाहर पार्क की और रजिस्टर चेक किया और कमरा नंबर 512 में चले गए. कमरे के अंदर जो कुछ हुआ वह तो सीसीटीवी में कैद नहीं हो सकता था, लेकिन जल्द ही उन्हें गुप्ता की बेहोशी की हालत में खींचते देखा जा सकता है.’ उनका दावा किया कि उन्होंने पुलिस की तरफ से सबूत के तौर पर जब्त किए जाने से पहले सुबह वह सीसीटीवी फुटेज देखा था.

हालांकि, मनीष गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता ने पुलिस और होटल कर्मचारियों पर सबूत मिटाने का आरोप लगाया है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि जब वह 28 सितंबर को होटल पहुंची तो पाया कि होटल के कमरे से खून साफ कर दिया गया था, जिसके बारे में होटल मालिक ने कहा कि उसे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.

उन्होंने दिप्रिंट को यह भी बताया कि उस रात सोने से ठीक पहले उसकी अपने पति के साथ फोन पर बात हुई थी.

आधे घंटे बाद उनके पास भतीजे का फोन आया, जिसे मनीष ने पुलिस छापे के दौरान कॉल करके बुलाया था. परिजन गोरखपुर पहुंचे तो देखा कि मनीष को पहले मानसी अस्पताल ले जाया गया और फिर एम्स गोरखपुर रेफर कर दिया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

दिप्रिंट के पास मौजूद पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में एंटीमॉर्टम चोट (मौत से पहले लगी चोटें) के कारण मौत होने का जिक्र है. 36 वर्षीय कारोबारी के माथे, खोपड़ी, हाथ, बांह, बाईं पलक के ऊपरी हिस्से में चोटें आई थीं और ‘चोटों के कारण ही वह कोमा में चला गया था.’ मौत और चोटें लगने के बीच 15 मिनट का अंतराल बताया गया है.

गुप्ता को लगी चोटों के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘माथे के मध्य हिस्से में चोट के कारण सूजन, ब्रेन हेमेटोमा के नीचे ब्रेन स्कल टूटने के अलावा दाहिने हाथ और बांह पर घाव के निशान और ब्रेन हेमेटोमा के ऊपर खाल कटी हुई पाई गई है.’

गुप्ता की पत्नी द्वारा साझा की गई तस्वीरों में उनके हाथ पर दो जगहों पर किसी नुकीली चीज से चोट के निशान दिखाई दे रहे हैं. मीनाक्षी का दावा है कि उन्हें राइफल की बट से मारा गया था, लेकिन पुलिस ने इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया है कि उन्होंने हमले में इस्तेमाल राइफलों को अपने कब्जे में लिया है या नहीं.


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‘नगद नारायण’ के नाम से कुख्यात थे गुस्सैल एसएचओ

छापा मारने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे एसएचओ जगत नारायण सिंह का विवादों से पुराना नाता रहा है. रिपोर्टों के मुताबिक, वह पहले भी ऐसे मामलों से जुड़े रहे हैं और पकड़ने के दौरान चार लोगों पर गोली चला चुके हैं लेकिन उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगाया गया.

गोरखपुर पुलिस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वह अपने गुस्सैल स्वभाव और अभद्र भाषा के लिए कुख्यात थे. कथित तौर पर रिश्वत मांगने और जबरन वसूली के मामलों में लिप्त होने के कारण उन्हें ‘नगद नारायण’ भी कहा जाता रहा है. हालांकि, उनके सहयोगियों ने इस तरह के दावे का खंडन किया है.

कृष्णा होटल के मालिक सुभाष शुक्ला ने बताया कि एसएचओ कई बार उनके होटल पर छापा मार चुके थे.

शुक्ला ने आरोप लगाया, ‘पिछले दो वर्षों में यह काफी बढ़ गया था. सिंह हर महीने अपने परिचितों के लिए कम से कम 10-12 कमरे लेते थे और कभी भुगतान नहीं करते थे. उनके पहले एक और थाना प्रभारी थे राणा देवेंद्र प्रताप सिंह, जिन्हें एक बार जब होटल में कमरा देने से मना कर दिया गया क्योंकि सभी कमरे फुल थे तो उन्होंने 15 दिनों में चार बार होटल पर छापा मारा था. लगातार इस तरह छापों ने हमारा व्यापार बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. कोई भी कस्टमर उस होटल में कमरा क्यों लेगा अगर उसे पता चले की यहां अक्सर पुलिस का छापा पड़ता रहता है.’

हालांकि, गोरखपुर के एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि छापा नियमित जांच का हिस्सा था. उन्होंने कहा, ‘इस तरह की चेकिंग विभिन्न होटलों में अमूमन महीने में तीन-चार बार होती है. कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री के दौरों या त्योहारों के आसपास इसे और भी बढ़ा दिया जाता है.’

जगत नारायण सिंह के साथ काम कर चुके एक अन्य पुलिस अधिकारी ने एसएचओ पर लगे आरोपों को खारिज किया. उन्होंने कहा, ‘उनकी छवि एक ‘दबंग थानेदार’ की थी…लेकिन इस छवि के कारण ही अपराधी उनसे डरते थे.’

पुलिस सूत्रों के अनुसार, एसएचओ को एक बीट पुलिस अधिकारी (बीपीओ) के तौर पर उनके सराहनीय प्रदर्शन और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के ‘अथक प्रयासों’ के कारण प्रशस्ति पत्र से सम्मानित भी किया गया था.

एक सूत्र ने कहा, ‘हममें से कुछ को 12 घंटे की ड्यूटी पूरी करने के बाद भी साहब की तरफ से बुला लिया जाता था, क्योंकि वह हमारे क्षेत्र को लेकर बहुत चिंतित रहते थे. अगर कोई मना करता तो वह अपना उदाहरण देते कि ‘अगर मैं 54 साल की उम्र में बिना रुके काम कर सकता हूं, तो आप क्यों नहीं कर सकते?’


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साक्ष्य जुटाए जा रहे: एडीजी

गोरखपुर जोन के एडीजी अखिल कुमार ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में कहा था कि मामले की जांच के लिए एक एसआईटी बना दी गई है, बयान लिए जा रहे हैं और सीसीटीवी फुटेज और ऑडियो रिकॉर्डिंग की जांच भी जारी है.

उन्होंने कहा, ‘यह भी जांच का विषय है कि टीम उस रात होटल क्यों गई थी…कुछ लोगों की हरकतों ने न सिर्फ गोरखपुर पुलिस बल्कि उत्तर प्रदेश पुलिस पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं लेकिन कई पुलिसकर्मी हैं जो सराहनीय काम कर रहे हैं.’

गोरखपुर के एसपी (अपराध) डॉ. एमपी सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि जांच का ब्योरा उजागर नहीं किया जा सकता है, लेकिन जांच जारी है.

एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें डीएम विजय किरण आनंद और एसएसपी विपिन टाडा परिवार से यह कहते नजर आ रहे हैं कि कोर्ट केस सालों खिंचेगा.

डीएम को यह कहते सुना जा सकता है, ‘मैं एक बड़े भाई के नाते अपने अनुभव से आपको बता रहा हूं…आपको अंदाजा नहीं है सालों तक कोर्ट में केस चलता है.

इस बारे में पूछे जाने पर एडीजी अखिल सिंह ने कहा कि वह व्यक्तिगत तौर पर इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें क्लिप की प्रामाणिकता के बारे में कोई अंदाजा नहीं है, लेकिन साथ ही कहा कि एसएसपी और डीएम दोनों ‘जिम्मेदार अधिकारी’ हैं और यह चर्चा कानून-व्यवस्था बनाए रखने का हिस्सा हो सकती है और इस समय उपयोगी हो सकती है.

दिप्रिंट ने फोन कॉल के माध्यम से डीएम विजय किरण आनंद और एसएसपी विपिन टाडा दोनों से संपर्क साधा, लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

इस बीच, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को मीनाक्षी गुप्ता से मुलाकात की और उन्हें सरकारी नौकरी और 50 लाख रुपये मुआवजा देने का वादा किया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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