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सैयद मुश्ताक अली—इंदौर के हरफनमौला बल्लेबाज जो टेस्ट को टी-20 स्टाइल में खेलते थे

1936 से 1952 तक भारत के लिए मैच खेलने वाले सैयद मुश्ताक अली की बैट घुमाने की स्टाइल तमाम महान गेंदबाजों को हैरत में डाल देती थी. 2006-07 में बीसीसीआई ने अपनी ट्वेंटी-20 प्रतियोगिता का नाम उन पर ही रखा था.

भारत के पूर्व बल्लेबाज सैयद मुश्ताक अली | दिप्रिंट

1930 और 40 के दशक में कुछ ही बल्लेबाज उस समय व्हाइट बॉल क्रिकेट टीम में अपनी जगह बना पाते थे. इस मामले में स्वभाव से बेहद शालीन और खेल के मैदान पर बेहद आक्रामक सैयद मुश्ताक अली को एक शानदार अपवाद कहा जा सकता है.

बीसीसीआई की तरफ से अपने ट्वेंटी-20 टूर्नामेंट—जो रणजी ट्रॉफी टीमों के बीच खेला जाता है—का नाम उनके नाम रखकर उनकी प्रतिभा का सही मायने में सम्मान किया गया है. दरअसल, जैसा कि क्रिकेट के दिग्गज बताते हैं कि वे ऐसे क्रिकेटर थे जो दर्शकों की मांग पर छक्के लगाते थे (‘मुश्ताक! सिक्स!’ और गेंद बाउंड्री के पार).

यह सैयद मुश्ताक अली, जिनकी आज 107वीं जयंती है, की अनूठी प्रतिभा को एक श्रद्धांजलि है.

ओल्ड ट्रैफर्ड में बवंडर

अंग्रेज क्रिकेटर, और बाद में ख्यात क्रिकेट प्रशासक रहे जी.ओ.बी. ‘गब्बी’ एलन—जिनका घर लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड के साथ मिला हुआ था और वह वहां तक बेरोकटोक आते-जाते रहते थे—को मुश्ताक की क्षमताओं का अंदाजा शुरू में ही लग गया था.

1936 में जब भारतीय टीम ने इंग्लैंड का दौरा किया तो गब्बी एक शानदार शुरुआती गेंदबाजी जोड़ी का हिस्सा थे. उनके और अल्फ गोवर के आगे बड़े-बड़े बल्लेबाज नहीं टिक पाते थे.

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भारतीय टीम सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, अन्य कारणों से भी खराब स्थिति में थी. भारतीय कप्तान, विजयनगरम के महाराजा, जिन्हें ‘विजी’ के नाम से जाना जाता है, को टीम में कोई पसंद नहीं करता था.

भारत के लिए सीरीज के तहत ओल्ड ट्रैफर्ड, मैनचेस्टर में होने दूसरा टेस्ट काफी मायने रखता था. भारत की पहली पारी के 203 रनों के जवाब में इंग्लैंड ने वॉली हैमंड के एक बड़े स्कोर के साथ अपनी पारी 571/8 पर घोषित की थी. जैसे ही भारत ने अपनी दूसरी पारी शुरू की तो इंग्लैंड को उम्मीद थी कि वह इसे सत्ते में ही निपटा देगी.

लेकिन लंबे कद का आक्रामक भारतीय सलामी बल्लेबाज, जो पहली पारी में रन आउट हो गया था, ने कुछ और ही योजना बन रखी थी.

मुश्ताक अली, जो मैटिंग विकेट पर खेलने के आदी थे और शायद टर्फ विकेट पर कभी खेले भी नहीं थे, ने मैदान में कदम रखा और पहली गेंद में मिड-विकेट पर गब्बी एलन का सामना किया.

दूसरे छोर से गेंदबाजी करने वाले अल्फ गोवर विश्व स्तर के ख्यात स्विंग गेंदबाज थे. सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने जाने-माने इनडोर स्कूल में प्रतिभाओं को निखारने का काम किया जिसे समय से आगे की सोच रखते हुए एक कोचिंग सेंटर माना जाता है.

गोवर ने अपने अधिकांश विकेट स्लिप में लिए थे और उस दिन उन्होंने ऑफ साइड फील्ड को आजमाया.

उनकी हैरानी की कल्पना कीजिए जब मुश्ताक अली ने ऑफ साइड से मिड-विकेट की ओर तेजी से आती स्विंग गेंद को आगे बढ़कर खेला और चौका जड़ दिया.

उनकी प्रतिभा से पूरी तरह वाकिफ और उनके आमतौर पर शांत रहने वाले और मितभाषी मित्र जहांगीर खान ने मुश्ताक अली को लाइन से बाहर आकर खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. तब इंग्लिश टीम और मैनचेस्टर की भीड़ को लग रहा था कि यह खिलाड़ी ज्यादा देर नहीं टिकेगा.

सैयद मुश्ताक अली कुछ ही समय में 30 के आंकड़े पर पहुंच गए. दर्शकों की भीड़ में मौजूद लंकास्ट्रियन इससे ज्यादा प्रभावित नहीं थे और उन्हें लगा कि जल्द ही वह मैदान से बाहर हो जाएंगे.

एलन के एक ओवर में मुश्ताक ने 15 रन बनाए. तब इस साझेदारी को तोड़ने के लिए हेडली वेरिटी को गेंदबाजी के लिए लाया गया.

अब, एक बल्लेबाज जो कई मायने में डॉन ब्रैडमैन से कम नहीं रहे हैं, ऑन रिकॉर्ड कहा था कि उनकी क्षमता को पूरी तरह आंका नहीं गया है. लेकिन जुलाई के उस दिन तो सच्चाई यही थी कि कोई भी ताकत उन्हें रन बनाने से रोकने में सक्षम नहीं थी.

जब मुश्ताक अली 90 रन पर बल्लेबाजी कर रहे थे, तो महान वैली हैमंड उनके पास आए और उन्होंने सुझाव दिया कि थोड़ा धीमे खेलें क्योंकि टेस्ट शतक के मौके बार-बार नहीं आते हैं.

इसके बाद तो अगले तीन स्कोरिंग शॉट बाउंड्री पर थे. यह एक ऐतिहासिक शतक था, क्योंकि पहली बार किसी भारतीय ने विदेशी सरजमीं पर शतक पूरा किया था. मुश्ताक ने 112 रन बनाए और अंग्रेजों की पिच पर विजय मर्चेंट के साथ 203 रनों का ओपनिंग स्टैंड साझा किया.

मुश्ताक ने न केवल उस पारी में बल्कि अपने पूरे कैरियर में जाहिर तौर पर असंभव शॉट ही खेले. इस मैच अंत तक ओल्ड ट्रैफर्ड में जुटे दर्शक उनकी बेजोड़ प्रतिभा के कायल बन चुके थे.

अंग्रेजों की टीम से सी.बी. फ्राई, पेलहम फ्रांसिस ‘प्लम’ वार्नर, जैक हॉब्स और डगलस जार्डिन आदि तो मुश्ताक को बधाई देने के लिए ड्रेसिंग रूम तक आए.


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मुश्ताक की चुनौती से सामना

कलकत्ता (जो उस समय इसका नाम था) में वेस्टइंडीज के खिलाफ 1948-49 की सीरिज के तीसरे टेस्ट में मुश्ताक ने पहली पारी में अर्धशतक और दूसरी में शतक बनाया. वेस्टइंडीज ने दूसरी पारी में मैदान पर मौजूद सभी 10 क्रिकेटरों से मुश्ताक के खिलाफ गेंदबाजी के लिए आजमाया.

मुश्ताक अली ने जब अपना संस्मरण क्रिकेट डिलाइटफुल लिखा तो इसकी प्रस्तावना लिखने के लिए उन्होंने एक शानदार क्रिकेटर और ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज महान कीथ मिलर को चुना. उन्होंने मिलर को बताया था कि उनका इरादा कोई विवादास्पद या बेस्ट सेलर किताब लिखने का नहीं है बल्कि वह ऐसी किताब चाहते हैं जिसमें क्रिकेट के खेल का खुशनुमा अहसास हो.

ओल्ड ट्रैफर्ड में एलन और गोवर जो हाल हुआ था, कीथ मिलर ने उसका अनुभव दिल्ली में किया था.

मिलर ने ऑफ स्टंप के बाहर एक अच्छी लेंथ की गेंद फेंकी, केवल यह देखने के लिए कि मुश्ताक ने उसे क्रॉस बैट से स्क्वायर लेग तक मार पाते हैं या नहीं. मिलर को एक बार तो लगा कि ऐसा तुक्के में हो गया होगा. लेकिन जब ऑफ साइड पर उठती गेंद को उन्होंने फाइन लेग पर मारा तो मिलर को एहसास हुआ कि मुश्ताक अली वाकई करामाती बल्लेबाज हैं.

मुश्ताक, प्रशंसकों के बीच खासे लोकप्रिय

आधुनिक क्रिकेटर आजकल जिस शैली में क्रिकेट खेलते हैं, उसकी वजह है कि टी-20 और वनडे क्रिकेट ने उन्हें ऐसा करने का मौका दिया है.

आपको यह जाकर बहुत हैरानी होगी कि 1936 से 1952 तक इंदौर के इस लंबू क्रिकेटर ने टी-20 शैली में ही क्रिकेट खेला. उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 1945 में जब उन्हें कलकत्ता में ऑस्ट्रेलियन सर्विसेज टीम के खिलाफ खेलने के लिए नहीं चुना गया, तो हजारों की संख्या में दर्शक प्रदर्शन पर उतर आए. ईडन गार्डंस में हर तरफ बस एक ही गूंज सुनाई दे रही थी—’नो मुश्ताक, नो टेस्ट’

जनता का गुस्सा इतना ज्यादा था कि टीम को मुश्ताक को खेल के मैदान में उतारना पड़ा. इस पर कीथ मिलर ने ठीक ही कहा था कि उन्होंने अपने जीवन में किसी क्रिकेटर के लिए ऐसा होते नहीं देखा.

मुश्ताक की फैन फॉलोइंग देश में ही नहीं इसकी सीमाओं से परे भी थी. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने दो बार मुश्ताक को पाकिस्तानी नागरिकता लेने पर राजी करने की कोशिश तक की थी, यहां तक कि 1972 के शिमला समझौते के दौरान भी उन्होंने यह प्रयास किया था.

लेकिन उनकी तरफ से साफ इनकार कर दिए जाने पर किसी को बहुत आश्चर्य नहीं हुआ. उन्हें अपना गृह नगर इंदौर इतना ज्यादा पसंद था कि उन्हें पाकिस्तान जाने की तो बात ही छोड़ दिए, उन्हें दिल्ली-मुंबई जैसे शहर भी इसके आगे नहीं सुहाते थे. यद्यपि मुश्ताक ने भुट्टो का प्रस्ताव तो ठुकरा दिया लेकिन उनका मान रखते हुए अपने पोते का नाम ‘जुल्फी’ रखा.

मुश्ताक एक सीधे-सरल, संवेदनशील व्यक्ति थे. हमेशा अपने प्रशंसकों के प्यार का आभार जताते हुए वह दिन का खेल समाप्त होने के बाद घंटों तक ईडन गार्डंस में बैठे ऑटोग्राफ देते रहते थे.


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एक बेहतरीन इंसान

अपने समय के सभी क्रिकेट दिग्गजों की नजर में मुश्ताक एक बेहतरीन इंसान के तौर पर क्रिकेटर से दोगुने महान थे. एक अच्छे इंसान वाली खूबियों और उदार व्यवहार के मामले में वह शीर्ष स्थान पर थे.

वह हमेशा कहते थे कि भारत के पहले कप्तान कर्नल सी.के. नायडू, उनके ‘गुरु’ थे और वह उन्हें क्रिकेट का ‘शहंशाह’ बुलाते थे.

मुश्ताक के साथ मिलने का मतलब होता था एक सज्जन, सीधे-सादे, मिलनसार, मृदुभाषी व्यक्ति की संगत में वक्त बिताना.

लेकिन उसका तो भगवान ही मालिक होता था जो उनके साथ सैर पर निकला हो! उन्हें चाय बहुत पसंद थी और काफी पैदल चलने की भी आदत थी. यहां तक कि जब वह 90 वर्ष के थे, तब भी 50 वर्ष के किसी व्यक्ति के लिए सैर के दौरान उनके साथ कदमताल कर पाना मुश्किल होता था. वह तो उस दुखद रात—जब उनका निधन हुआ—को भी शाम के समय एक लंबी सैर करके आए थे. वह कभी अनफिट नहीं रहें, 90 साल की उम्र में भी वह किसी बड़ी बीमारी से पीड़ित नहीं थे.

2006-07 में जब क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास लेने के पचास साल बाद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अपनी अधिकृत घरेलू टी-20 ट्रॉफी का नाम सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी रखने का फैसला किया, तो कोई ऐसा नहीं था जिसे यह फैसला पसंद न आया हो.

‘क्रिकेट केवल एक खेल नहीं है; यह एक कोड ऑफ कंडक्ट है, जीवन का दर्शन है, एक सद्भावना दूत की तरह है.’—सैयद मुश्ताक अली (जन्म 17 दिसंबर 1914, इंदौर —निधन 18 जून 2005, इंदौर)

कुश सिंह द क्रिकेट करी टूर कंपनी के संस्थापक हैं

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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