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डीएमके कर रही हिंदी का विरोध, जबकि पार्टी के स्कूलों में पढ़ाई जाती है ये भाषा

डीएमके के नेताओं और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा चलाए जाने वाले 40 से ज़्यादा स्कूल सीबीएसई से जुड़े हैं और 3-भाषा वाले फॉर्मुला पर चलते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: फ्लिकर

नई दिल्ली: ड्राफ्ट राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ने तीन भाषा वाले फॉर्मुले का सुझाव दिया था. इस सुझाव का पुरज़ोर विरोध करने में द्रविड मुन्नेत्र कडगम (डीएमके) सबसे आगे था. डीएमके ने इस फैसले को ‘दक्षिणी राज्यों पर हिंदी थोपने’ का एक और प्रयास बता के लताड़ लगाई थी.

बृहस्पतिवार को डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन भाषा के ऊपर पार्टी द्वारा की जा रही राजनीति को एक कदम और आगे ले गए. उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार के कार्यालयों में तमिल को आधिकारिक भाषा बनाया जाए.

हालांकि, दिप्रिंट को ‘हिंदी थोपे जाने’ का पुरज़ोर विरोध करने वाले डीएमके के बारे में एक बात पता चली है. स्टालिन की बेटी सेंथामरई सबारेसन डीएमके के ऐसे नेताओं और उनके परिवार वालों में शामिल हैं. जो राज्य में 40 स्कूल चलाते हैं. और इन स्कूलों के पाठ्यक्रम में हिंदी भी शामिल है.

ये सारे स्कूल जिनमें सबारेसन का सन शाइन सीनियर सेकेंड्री स्कूल भी शामिल है. सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन (सीबीएसई) से जुड़े हैं. सीबीएसई स्कूल तीन भाषा के फॉर्मुले पर चलते हैं और इसके तहत आठवीं क्लास तक हिंदी पढ़ाया जाना ज़रूर है. ऐसे में डीएमके नेताओं द्वारा चलाए जाने वाले इन स्कूलों में अपने छात्रों को हिंदी पढ़ाते हैं.

ये स्कूल राज्य में हिंदी-विरोध के मुहिम को धत्ता बताते हैं. तमिलनाडु का हिंदी विरोध का इतिहास रहा है. 1968 में यहां हिंदी विरोध की मुहिम चली. यहां दो भाषा की नीति का पालन किया जाता है, जिसके तहत छात्रों को अंग्रेज़ी और हिंदी पढ़ाया जाता है. डीएमके द्वारा चलाए जाने वाले सभी स्कूल सीबीएसई से जुड़े हैं और तीन भाषा का फॉर्मुला अपनाते हैं.

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पार्टी के राज्यसभा सांसद आरएस भारती ने इस बात की पुष्टी की कि इन स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है. लेकिन साथ ही ये भी बताया कि इन्हें डीएमके नेता अपनी निजी क्षमता के तहत चलाते हैं. भारती ने कहा, ‘डीएमके किसी स्कूल से नहीं जुड़ा. आधिकारिक रूप से हम कोई स्कूल नहीं चलाते हैं. अगर डीएमके से जुड़ा कोई व्यक्ति कोई स्कूल चला रहा है तो अपनी निजी क्षमता के तहत ऐसा कर रहा है. हमने स्पष्ट तौर पर कहा है कि हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन हम हिंदी थोपे जाने के ख़िलाफ़ हैं.’

वो आगे कहते हैं, ‘यहां तक कि पेरियार के दौर में 1938 में उनकी ख़ुद की इमारतें ऐसे स्कूलों को दी गई थीं. जिनमें हिंदी पढ़ाया जाता था. इससे साफ है कि हमें भाषा से कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन इसके जबरदस्ती थोपे जाने से थी.’

डीएमके के बड़े नेताओं के स्कूल

स्टालिन की बेटी सबारेसन द्वारा चलाए जाने वाला सन शाइन सेकेंड्री स्कूल के पाठ्यक्रम में हिंदी शामिल है. ये इकलौता स्कूल नहीं है जिसे कोई बड़ा डीएमके नेता चला रहा है. स्कूल से जब फोन के जरिए संपर्क साधने की कोशिश की गई तो किसी ने फोन नहीं उठाया. हालांकि, इसकी आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि यहां पहली क्लास से दसवीं तक हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाया जाता है. क्लास 9 और 10 के बच्चों को स्कूल अंग्रेज़ी और तमिल के अलावा फ्रेंच का विकल्प देता है.

ऐसे अन्य स्कूलों में एक स्कूल आर मणि चलाते हैं. मणि तिरुवन्नामलाई से डीएमके के विधायक के पितचंडी के रिश्तेदार हैं. विधायक के भाई के करुणानिधी भी एक स्कूल चलाते हैं. तीन बार के डीएमके सांसद एस जगतरक्षकण श्री भरत विद्याश्रम चलाते हैं. उन्होंने इस बारे में बात करने से मना कर दिया.

एक और डीएमके सांसद आर गांधी और उनके बेटे विनोद गांधी द गीकी वर्ल्ड स्कूल चलाते हैं. ये स्कूल सीबीएसई औऱ केम्ब्रिज दोनों से ही संबद्ध है.

Source: gked.in

जब दिप्रिंट ने इनमें से ही एक चेन्नई पब्लिक स्कूल से संपर्क किया तो इसके एडमिशन हेल्प डेस्क जुड़े एक अधिकारी ने इसकी पुष्टी की कि पांचवीं क्लास तक हिंदी और तमिल अनिवार्य है. स्कूल के मालिक देवराज हैं. वो डीएमके के बड़े नेता एरकॉट वीरसामी के भाई हैं.

इस ख़ुलासे के बाद राज्य में भाजापा बल मिला है. तमिलनाडु से भाजपा के एक सदस्य केटी राघवन ने डीएमके पर पाखंड का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, ‘डीएमके के नेता पाखंडियों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. वो राज्य में हिंदी पढ़ाए जाने के विरोध के अगुआ रहे हैं. लेकिन उनके अपने सभी स्कूलों में हिंदी तीसरी भाषा है. इसके लिए वो सीबीएसई को ज़िम्मेवाद ठहरा सकते हैं. लेकिन, अगर वो अपने आदर्शों को लेकर इन अडिग हैं. तो उन्हें सीबीएसई स्कूलों के बजाए स्टेट बोर्ड स्कूल चलाने चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि के ये लोग ख़ूब पैसा कमाना चाहते हैं और इसी वजह से सीबीएसई स्कूल चला रहे हैं.’ डीएमके नेताओं ने इसके पहले भी राज्य में केंद्र सरकार के नवोदय विद्यालयों का विरोध किया है और इस विरोध के लिए उन्होंने हिंदी का हवाला दिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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